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मेरी कविताएँ

1. बातें बनाना

बातें बनाना,
हैं सबसे पसंदीदा काम,
खूब लगता हैं सुहाना।

हम बातें कब नहीं बनाते?
हर पहली फुर्सत में,
यही काम तो हैं करते।

गलती छुपाने के लिए,
हमने सीखा बातें बनाना,
और दे डाला एक अच्छा सा बहाना।

झूठ को सच साबित करने के लिए,
हमने सीखा बातें बनाना,
हमें न आया ज़िम्मेदारी निभाना।

बोहोत की हमने गपशप, फेहलाई अफवाएं,
हमने सीखा बातें बनाना,
बुरा लगने लगा सारा ज़माना।

कुछ मीठी नोक झोंक हुई अपनों के साथ,
हमने सीखा बातें बनाना,
अब तो किसी तरह, उन्हें हैं मनाना।

भोजन न मिले, तो चल जाएगा,
हमने सीखा बातें बनाना
बातों के बगैर, न सीखा हमने सांस लेना।
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2. दादीमाँ की कहानियां

दादीमाँ की कहानियां
अब वही है उनकी निशानियां
हर एक कहानी थी मन भावन
उन्हें सुनकर बिता सारा बचपन।

"आओ बच्चों, सुनाऊ तुम्हें एक कहानी।"
दादी की यह वाणी, लगती बड़ी सुहानी।
सब दादी को घेर कर बैठ जाते
छोटे, बड़े, सब चाव से सुनते।

कई कहानियां हंसी और मस्ती भरी होती
तो कई बस यूँही हमें रुलाती।
कइयों में होती नैतिक सीख
दादी कर देती हर गड़बड़ ठीक।

कहानियों में कहीं तितलियाँ उड़ती
तो कहीं बंदर ले जाता रोटी।
किसी में भालू खुद को खुजलाता
तो किसी में शेर गुस्से से चिल्लाता।

दादी का उच्चारण बोहोत ही था अद्भुत
हमारा ध्यान पकड़ कर रखता मज़बूत।
न आती नींद, न कोई पलक जपकाता,
बस कहानियां सुनकर मज़ा आ जाता।

बीच बीच में दादी करती अटपटा सवाल
हम जवाब देने को करने लगते धमाल।
कई बार दादी पाप और पुण्य में हमें फ़साती,
चुपके से वह भी हमारे डर का मज़ा लेती।

न जाने कहाँ से लाई थी इतना बड़ा पिटारा
आदत सी हो गई थी...
कहानियों के बगयर न था हमारा गुज़रा।
आज भी लुभा ता है दादी की कहानियों का खज़ाना
आज भी याद आता है वो बचपन का ज़माना।

दादी की सारी कहानियां लिखकर रखली है मैंने
अब अपने बच्चों को सुनाती हूँ, जब वो जाते है सोने
दादी और उनकी कहानियों की आज भी है कीमत
उनकी दी हुई अब अपने बच्चों को देती हूं हिम्मत।
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3. एक खामोशी

एक खामोशी...मर्ज़ी का मौन
या दबी हुई सिसकी?
तूफान से पहले का सन्नाटा,
या गहरी सोच से निकली हुई कविता?

एक खामोशी के पीछे,
न जाने क्या क्या निकल आता हैं।
कई राज़ दिलमें छुपे मिलते हैं,
कई तन्हाईयाँ रोती नज़र आती हैं।

किसी की खामोशी को
उनकी कमज़ोरी ना समझें
वे अल्फाज़ों के मोहताज नहीं
मौन में भी बड़े काम सुलझ सकते हैं।

आसान नहीं चुप रहना
हर किसी को बोलने की जल्दी होती है।
खामोशी से जो काम कर जाए
कीमत उसी की होती हैं।

आओ खामोशी का सबक
हम प्रकृति से सीखें
पेड़ों की जडोंने या फिर पर्बतोंने
कभी अपनी डींगे मारी है?

मुझे अपनी खामोशी बड़ी प्यारी लगती है
डूबी हुई सोच, अल्फाज़ों को खूबसूरती देती है
मसरूफियत में जो दो चार पल चुरा पाती हुँ
कलम उसी में दौड़ने लगती है।
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4. हिचकी

यूं तो है हिचकियां साँसों के लिए एक रुकावट,
फिर भी उनके आने से आती है चहेरे पर मुस्कुराहट।

हिचकियां मेरे दिल की ख्वाहिश साबित कर रही है,
यक़ीनन वो कहीं बैठी मेरा ज़िक्र कर रही है।

वरना यूं ही नहीं आती मुझे हिचकियां शामसे,
उसके ज़हन में हूं, ये सोच कर बैठा हूं आरामसे।

मायूसी छोड़, चहरे पर एक रौनक सी छा गई,
उसकी यादों पर मेरी जाँ फ़िदा हो गई।

मैं तो उसे हर वख्त, हर पल याद करता हूं,
हिचकिने तसल्ली दी, कि में भी उसे याद आता हूं।

मेरी यादों से उसे भी हिचकी आती होगी,
मुझे माफ़ कर, वो भी मुस्कुराती होगी।

वो जिस तरह आकर मेरे ज़हन में थम सी गई है,
उम्मीद है, उसे भी अपनी हिचकि प्यारी लग रही है।

हिचकियां तो बस एक खुशफहमी है,
दिल को मनाए रखने का अच्छा बहाना है।

उसके चेहरे पर एक तबस्सुम देखने को बेकरार हूँ मैं,
बस ये जान लूँ, उसकी आँखों की चमक की वजह हूँ मैं।

आमने सामने मुलाकात हो तो कुछ बात बने,
उसका चेहरा देखूं, तो हिचिकियों को भी राहत मिले।

शमीम मर्चन्ट, मुंबई.
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