त्रिधा - 10 आयुषी सिंह द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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त्रिधा - 10

संध्या अपने कमरे में बैठी हुई अपनी मार्कशीट और आज शाम पार्टी में मिले गिफ्ट्स को देख रही थी। उसे तो अभी तक विश्वास नहीं हो रहा था कि उसने टॉप किया है। आज वह प्रभात से ढेर सारी बातें करना चाहती थी मगर इस समय वह त्रिधा को उसके हॉस्टल तक छोड़ने गया होगा यही सोचकर वह कुछ देर और इंतजार कर रही थी कि जब प्रभात त्रिधा को छोड़ आएगा तब वह उससे फोन पर बात करेगी। संध्या ने अपने सारे गिफ्ट्स खोल खोल कर देखे। सबसे पहले त्रिधा का दिया हुआ टेडी बेयर, फिर उसकी ही दी हुई एक डायरी और एक पेन का सेट, एक सफेद रंग का सितारे लगा हुआ दुपट्टा, संध्या को त्रिधा के दिए हुए सारे तोहफे बहुत पसंद आए, तभी उसकी नजर एक बॉक्स पर गई, उसने देखा उस पर प्रभात का नाम लिखा हुआ था। उसने फटाफट गिफ्ट रैप हटाकर देखा उसके अंदर एक लेटर था और साथ ही एक और बॉक्स था। संध्या ने लेटर को खोलकर पढ़ना शुरू किया -



डियर संध्या,



आज जब मैं यह लेटर लिख रहा हूं, यकीन मानो शायद तुमसे भी ज्यादा खुश मैं हूं। तुम्हारी तरह अपनी हर एक बात को कह देना तो मुझे नहीं आता इसीलिए शायद आज यह लेटर लिखकर तुम्हें बताने की कोशिश कर रहा हूं। सच कहूं तो मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि तुम टॉप करोगी क्योंकि तुम हर वक्त इतनी शैतानी करती रहती हो, इतनी मस्ती करती रहती हो कि मुझे लगा ही नहीं था कि तुम टॉप करोगी, हालांकि मैं तुमसे अक्सर कहता रहता था कि अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो मगर तुम अपना अधिकतर समय मेरे साथ ही बिताना चाहती थी। आज तुमसे भी ज्यादा खुश मैं हूं संध्या कि तुमने टॉप किया है, यह तुम्हारी आगे की जिंदगी की बहुत सुंदर शुरुआत है संध्या आगे और भी आगे बढ़ती रहना। जानती हो संध्या... तुम मेरा पहला प्यार हो, संध्या मैं तुमसे कभी कंपीट नहीं कर सकता इसीलिए हमेशा भगवान से बस यही प्रार्थना करता हूं कि तुम हमेशा आगे बढ़ो और अपने सारे सपने पूरे करो। आज मैंने तुम्हारे लिए कोई भी गिफ्ट नहीं लिया क्योंकि मुझे लगता है आज के दिन मेरी भावनाओं को लिखकर तुम्हें बताने से ज्यादा महत्वपूर्ण कोई भी गिफ्ट तुम्हारे लिए नहीं हो सकता। अपने पेरेंट्स के बाद मैं दुनिया में सबसे ज्यादा तुमसे प्यार करता हूं और अब से लेकर आगे तक की, अंत तक की अपनी जिंदगी का हर एक पल तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं लेकिन इसके साथ ही मैं यह भी चाहता हूं कि जितना तुम मुझ पर ध्यान देती हो उतना ही अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान दो। हम दोनों तो हमेशा साथ रहने वाले हैं पर यह वक्त तुम्हारे करियर के लिए बहुत ज्यादा जरूरी है, इसलिए अपने करियर पर भी ध्यान दो। इस गिफ्ट में इस बॉक्स में तुम्हारे लिए मम्मी का भेजा हुआ एक तोहफा है, तुम्हारे टॉप करने पर मम्मी पापा भी बहुत खुश हैं। दोनों तुम्हें मेरी दोस्त के रूप में काफी पसंद करते हैं। किसी दिन वक्त निकालकर मम्मी से मिलने आओ, मैं जल्द ही तुम्हें अपने घर पर सब से मिलवाना चाहता हूं ताकि हम लोगों की पढ़ाई पूरी होने के बाद जब मैं घर पर सब लोगों को हम दोनों के बारे में बताऊं तो यह बहुत अप्रत्याशित नहीं हो। मैं धीरे-धीरे मम्मी पापा को हम दोनों के बारे में सबकुछ बता दूंगा और फिर जिंदगी भर के लिए तुम्हारी बेवकूफियां सहन करूंगा। चलो अब बस, इससे ज्यादा भावनाएं नहीं लिखी जाएंगी मुझसे, त्रिधा मुझे खड़ूस कहती है और मैं वही हूं भी।



तुम्हारा प्रभात।




प्रभात का लेटर पढ़ने के तुरंत बाद संध्या ने वह बॉक्स खोलकर देखा तो उसमें बहुत सुंदर घड़ी थी जिसे देख कर संध्या मुस्कुरा दी और फिर कुछ देर बाद अपने कमरे में बिखरे हुए सारे सामान को समेट कर सो गई।



दूसरी तरफ हर्षवर्धन अपने कमरे में लेटा हुआ था और आज संध्या की पार्टी में जो कुछ भी हुआ था उसके बारे में सोच रहा था। वह सोच रहा था कि कैसे त्रिधा ने उसे 'हर्षवर्धन' की जगह 'हर्ष' कहकर बुलाया था, उसे लगने लगा था कि अब धीरे-धीरे त्रिधा उसके करीब आने लगी है। अपनी सोच पर वह हल्के से मुस्कुराया और फिर अपने द्वारा बनाई गई त्रिधा की पेंटिंग्स में त्रिधा को देखने लगा।



प्रभात अपनी नींद से कॉम्प्रोमाइज न करने वालों में से था, वह बिना कुछ सोचे चुपचाप अपने कमरे में जाकर सो चुका था।



त्रिधा अपने कमरे में बैठी हुई थी। उसे याद आया कि आज माया का भी तो रिजल्ट आया है जल्दबाजी में वह उसका रिजल्ट तो देखना ही भूल गई थी। 'कल देखेंगे' सोच कर वह सो गई। उसने अपना फोन साइड टेबल पर रख दिया था जिस पर बार-बार एक अनजान नंबर से कॉल आ रहा था मगर फोन साइलेंट मोड पर होने की वजह से त्रिधा को कोई भी कॉल आने का पता नहीं चला।



****



कुछ दिन बीत गए। हर्षवर्धन को अभी तक पता नहीं था कि वर्षा उसके ही कॉलेज में फर्स्ट ईयर में एडमिशन ले चुकी है। एक दिन त्रिधा, प्रभात और संध्या तीनों कॉलेज कैंटीन में बैठे हुए थे और हर्षवर्धन उनके पास ही आ रहा था कि तभी अचानक वर्षा हर्षवर्धन के सामने आ गई। एकदम से वर्षा को अपने सामने देखकर हर्षवर्धन हैरान रह गया।



"तुम यहां क्या कर रही हो?" हर्षवर्धन ने हैरानी से वर्षा से पूछा।



"मैं अब यहीं पढ़ती हूं।" वर्षा ने भी सपाट लहजे में कहा और इतना कहकर वह आगे जाने लगी मगर इससे पहले कि वर्षा आगे जा पाती, हर्षवर्धन ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपने सामने करके कहने लगा - "तुम यहां, इसी कॉलेज में पढ़ने क्यों आई हो?"



"क्योंकि मैं फर्स्ट ईयर में फेल हो गई हूं और वापस उसी कॉलेज में पढ़ना मेरे लिए बहुत मुश्किल है इसीलिए मुझे किसी दूसरे कॉलेज में एडमिशन लेना पड़ा।" वर्षा ने बिना किसी भाव के हर्षवर्धन को देखते हुए कहा।



"क्या सिर्फ यही कॉलेज बचा था?" हर्षवर्धन ने गुस्से से वर्षा को देखते हुए पूछा।



"इट्स नॉट माय चॉइस इट्स माय पैरेंट्स चॉइस।" वर्षा ने कहा तब हर्षवर्धन ने ध्यान दिया कि वर्षा आज हर्षवर्धन से बात तो कर रही थी मगर अब यह वह पहले वाली वर्षा नहीं रही थी जो हर्षवर्धन के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी आज वह एक सामान्य लड़की की तरह ही बात कर रही थी।



"वर्षा अगर तुम यहां त्रिधा को परेशान करने आई हो तो कान खोल कर सुन लो यह मैं नहीं होने दूंगा, कभी नहीं होने दूंगा।" यह कहते वक्त हर्षवर्धन को बिल्कुल भी नहीं पता था कि प्रभात संध्या और त्रिधा उसे ही देख रहे हैं। वह तो वर्षा को देखकर अपना आपा खो चुका था।


"तुम गलत समझ रहे हो हर्षवर्धन, मैं त्रिधा या किसी को भी कोई भी नुकसान पहुंचाने नहीं आई हूं, ना ही किसी प्लानिंग के तहत यहां आई हूं। हां मैं मानती हूं कि पहले तुम्हें पाने के लिए मैं किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थी मगर धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि जो लड़का मुझसे प्यार करता ही नहीं है, उसके लिए मैं क्यों परेशान रहूं? इसीलिए मैं भी अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गई। हर्षवर्धन जब तुम्हारा और मेरा ब्रेकअप हुआ था उसके बाद से हम दोनों के बीच में जब कोई रिश्ता ही नहीं है तो अब मुझे क्या फर्क पड़ता है कि तुम त्रिधा के साथ रहो या किसी और के साथ रहो?" वर्षा ने इस बार सामान्य तरह से कहा। इस समय उसकी आवाज में ना ही कोई गुस्सा था और ना ही कोई अकड़ थी उसे देखकर हर्षवर्धन को लग रहा था कि वह वाकई में बदल चुकी है मगर फिर भी वह इतनी जल्दी वर्षा पर विश्वास नहीं कर सकता था।



"यही बेहतर होगा कि तुम मुझसे और मेरे दोस्तों से दूर रहो।" हर्षवर्धन ने कहा और वहां से जाने लगा मगर वर्षा ने उसे रोकते हुए कहा - "एक मिनट रुको हर्षवर्धन, मैं यहां किसी को परेशान नहीं करने आई हूं और ना ही किसी प्लानिंग के तहत यहां आई हूं मगर इसका मतलब यह नहीं है कि मैं किस से बात करूंगी और किससे नहीं यह फैसला तुम लोगे, यह सिर्फ मेरा फैसला है कि मुझे किससे बात करनी है और किससे बात नहीं करनी है। मुझे नहीं पता कि पूरे कॉलेज में तुम्हारे दोस्त कौन हैं और कौन नहीं। मेरा जिससे बात करने का मन होगा, मैं उससे बात करूंगी, अगर किसी को मुझसे कोई परेशानी हो तो वह बेशक मुझसे बात ना करे।" वर्षा ने इस बार भी सामान्य लहजे में कहा और इतना कहकर वह वहां से चली गई।



हर्षवर्धन, वर्षा से बात करने के बाद बहुत इडियट इरिटेट हो चुका था और चुपचाप आकर कैंटीन में बैठ गया। उसका चेहरा देखकर प्रभात और संध्या तो समझ गए थे कि वह काफी परेशान है हालांकि त्रिधा भी समझ रही थी मगर वह अब वर्षा और हर्षवर्धन के मामले में नहीं पड़ना चाहती थी इसलिए उसने चुप रहना ही बेहतर समझा।



"क्या हुआ हर्ष?" प्रभात ने उससे सामान्यता ही पूछ लिया क्योंकि वर्षा हर्षवर्धन की एक्स गर्लफ्रेंड है यह बात त्रिधा ने संध्या को तो बता दी थी मगर प्रभात को नहीं बता पाई थी क्योंकि उस दिन प्रभात कॉलेज ही नहीं आया था वह संध्या के साथ अपनी डेट प्लान कर रहा था इसीलिए त्रिधा उस दिन प्रभात को वर्षा के बारे में कुछ नहीं बता पाई थी। इसके बाद से प्रभात को कभी कुछ बताने का मौका भी नहीं मिला और त्रिधा ने भी वर्षा के कॉलेज में आने को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था।



"वर्षा थी, मेरी एक्स गर्लफ्रेंड।" हर्षवर्धन ने छोटा सा जवाब दिया।



"वाह! एक्स भी यहीं है और नेक्स्ट भी यहीं है।" संध्या हंसते हुए बीच में बोल पड़ी तो हर्षवर्धन ने उसे घूर कर देखा क्योंकि वह नहीं चाहता था कि संध्या की बात सुनकर त्रिधा अब फिर से उसके बारे में कुछ और उल्टी सीधी राय बना ले और उससे और दूर होती जाए। बहुत मुश्किल से तो त्रिधा उसके पास आने लगी थी, उससे अपनी बातें शेयर करने लगी थी, उसे अपने प्लांस में शामिल करने लगी थी, मगर संध्या की इस हरकत से वह उससे दूर जा सकती थी, इसी डर से हर्षवर्धन ने संध्या को घूर कर उसे चुप करा दिया।



"संध्या कभी तो समझदारी से काम लिया करो।" प्रभात ने भी संध्या को टोका।



"इट्स ओके गाइज़।" त्रिधा ने उन सबको सहज करने के लिए कह दिया हालांकि एक पल के लिए तो अपने लिए 'नेक्स्ट' शब्द सुनकर वह असहज हो गई थी।



"सॉरी… आय'म गोइंग होम…" इतना कहकर हर्षवर्धन कैंटीन से उठ गया और अपनी कार की चाबी लेकर पार्किंग की तरफ चला गया। वर्षा को वहां देखकर वाकई में उसका बहुत दिमाग खराब हो चुका था।



"मुझे तुम दोनों से कुछ बात करनी है।" त्रिधा ने कठोर आवाज में कहा तो संध्या और हर्षवर्धन को लगा कि जैसे आज तो उनकी शामत आ गई त्रिधा ने कभी भी उनसे इतने कठोर लहजे में बात नहीं की थी।



"क्या हुआ त्रिधू?" प्रभात और संध्या ने एक साथ पूछा।



"तुम लोग भी बहुत अच्छे से जानते हो कि क्या हुआ है मगर फिर भी मुझसे पूछ रहे हो तो सुनो, जब तुम लोगों को पता है कि मैं हर्षवर्धन से दूर रहना चाहती हूं, उसके बिल्कुल पास नहीं जाना चाहती, मैं तो उससे बातें भी कम से कम करती हूं, तो क्यों बार-बार तुम दोनों उससे मेरे बारे में बातें करते हो? आखिर क्यों हम दोनों को साथ लाने की कोशिश करते हो तुम दोनों? तुम दोनों जानते हो ना कि वह फ्लर्ट है, न जाने कितनी गर्लफ्रेंड्स हैं उसकी! क्या तुम लोग चाहते हो कि मेरा भी उसकी बाकी गर्लफ्रेंड्स जैसा ही हाल हो? जैसे कुछ वक्त साथ बिताने के बाद वह अपनी गर्लफ्रेंड्स को छोड़ देता है क्या तुम लोग यही चाहते हो कि मेरे साथ भी कुछ वक़्त बिताने के बाद वह मुझे छोड़ दे?" त्रिधा ने गुस्से में कहा।



संध्या कुछ कहने ही जा रही थी कि इससे पहले ही प्रभात बोल पड़ा - "ऐसा नहीं है त्रिधा। क्या तुम्हें नहीं दिखता कि तुम हर्षवर्धन के लिए क्या मायने रखती हो? तुम अपने आपको उसकी उन टाइम पास गर्लफ्रेंड्स से कंपेयर भी कैसे कर सकती हो? हर्षवर्धन तुम्हारे लिए कितना सीरियस है, यह उसके चेहरे पर साफ नजर आता है। जिस तरह से वह तुम्हारा ध्यान रखता है, तुम्हारी परवाह करता है, तुम्हारे बारे में बातें करता है, हमेशा तुम्हारे साथ खड़ा रहना चाहता है, क्या तुम्हें नहीं दिखता कि तुम उसके लिए क्या मायने रखती हो? और रही बात हम दोनों की तुम दोनों को मिलाने की कोशिश की, तो हां हम लोग कोशिश करते हैं कि तुम दोनों मिल जाओ क्योंकि सिर्फ हर्षवर्धन ही है जो तुम्हारा ख्याल रख सकता है, तुम्हें समझ सकता है। जैसे यहां आने के बाद मैं और संध्या तुम्हें इतना चाहते हैं, तुम्हारा ध्यान रखते हैं, उतना ही चाहने वाला, उतना ही ध्यान रखने वाला कोई लड़का मैं तुम्हारे लिए चाहता था त्रिधा। संध्या भी हर्षवर्धन को इसीलिए पसंद करती है क्योंकि वह तुम्हारे लिए बहुत सीरियस है, बहुत प्यार करता है तुमसे, तुम्हें समझता है इसीलिए तुम्हारे लिए ही वह तुमसे दूर है। उसे पता है कि तुम उसके साथ सहज नहीं हो इसीलिए वह तुम्हारे पास आने की भी कोशिश नहीं करता मगर मुझसे पूछ कर देखो त्रिधा कि वह कितना तरसता है तुम्हारे लिए। क्या तुम्हें उसकी तरस, उसकी लाचारी नहीं दिखती? अगर हम लोग अपनी दोस्त के लिए कुछ अच्छा सोच रहे हैं तो इसमें गलत क्या है?" प्रभात ने त्रिधा को समझाने की कोशिश की।



"मुझे तुम लोगों से इस बारे में कोई बात नहीं करनी है और प्लीज मुझे और हर्षवर्धन को मिलाने की कोशिश करना बंद कर दो। हम लोगों का साथ में कोई फ्यूचर नहीं है। मैं खुद तो अकेली हूं ही, अपने साथ-साथ उसे भी अकेला कर दूंगी। इसलिए हम दोनों का अलग रहना ही बेहतर है और वैसे भी किसी भी रिश्ते के लिए प्यार होना बहुत जरूरी है मैं हर्षवर्धन से प्यार नहीं करती हूं प्रभात।" त्रिधा ने शांत रहते हुए कहा मगर उनके पास से उठकर जाने लगी।



संध्या ने त्रिधा हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए कहा - "तुम्हें... तुम्हें याद है त्रिधा, जब मैं प्रभात को लेकर कन्फ्यूजन में थी तब तुम ही थीं जिसने मुझे समझाया था कि अगर दो लोगों के रिश्ते में कोई एक प्यार ना करे तो एक अकेले का प्यार ही दोनों के रिश्ते के लिए काफी होता है मगर जहां विश्वास न हो, आपसी समझ न हो, वहां कोई रिश्ता नहीं टिक पाता। मुझे तुम में और हर्षवर्धन में कंपैटिबिलिटी नजर आती है। तुम दोनों ही बहुत समझदार हो, दोनों एक दूसरे को, एक दूसरे की परिस्थितियों को, एक दूसरे के व्यवहार को बहुत अच्छे से समझते हो, हां, मुझे पता है तुम भी हर्षवर्धन को समझती हो और यह तो झूठ है कि तुम हर्षवर्धन से प्यार नहीं करती, तुम हर्षवर्धन से प्यार करती हो त्रिधा मगर मानती नहीं हो। तुम बस शायद अपने अतीत की वजह से किसी भी रिश्ते में आने से डरने लगी हो। थोड़ा वक्त लो त्रिधा और फिर ही कोई फैसला करो। एक मौका तो सभी को मिलना चाहिए न… जिस तरह से तुमने हम लोगों से दोस्ती की है, दोस्ती भी तो एक रिश्ता ही है न त्रिधू… जब यह रिश्ता तुम बना सकती हो, तो प्यार का रिश्ता क्यों नहीं बना सकती? एक मौका हर्षवर्धन को भी देकर देखो... प्लीज मेरे लिए।"



"संध्या सही कह रही है त्रिधा।" प्रभात ने भी संध्या की बात पर सहमति जताई।



"मैं पहले अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं, अगर तब तक हर्षवर्धन मेरे लिए इंतजार कर सकता है तो मुझे कोई परेशानी नहीं है मगर जब तक मैं अपने पैरों पर खड़ी नहीं हूं, मैं हर्षवर्धन के साथ कोई भी रिश्ता नहीं रख सकती। तुम लोगों के परिवार और पारिवारिक पृष्ठभूमि समान है, इसलिए तुम लोगों की शादी में कोई परेशानी नहीं होगी। जबकि मेरी और हर्षवर्धन की पारिवारिक पृष्ठभूमि में बहुत अंतर है और इसीलिए मैं इस रिश्ते के लिए उतनी श्योर नहीं हूं। तुम लोग थोड़ा वक्त लो और समझने की कोशिश करो कि सिर्फ प्यार, विश्वास और आपसी समझ ही सब कुछ नहीं होता है, दो परिवारों के बीच में भी तो ज्यादा फर्क नहीं होना चाहिए, जबकि मेरे और हर्षवर्धन के केस में तो सिचुएशन बिल्कुल उलट है, एक तरफ हर्षवर्धन है जिसके पापा भोपाल के सबसे बड़े बिजनेसमैन हैं और एक तरफ मैं हूं जो जिसको कुछ हजार रुपये कमाने के लिए भी पूरे एक महीने बच्चों को लगातार पढ़ाना पड़ता है। समझने की कोशिश करो प्रभात, हम दोनों बहुत अलग-अलग हैं और इसीलिए मैं थोड़ा वक्त लेना चाहती हूं। हां मैं तुम्हारी बातों को मान रही हूं और मैं हर्षवर्धन को समझने की कोशिश करूंगी, उसे एक मौका भी दूंगी मगर इसके लिए मुझे थोड़ा वक्त लगेगा।" त्रिधा ने प्रभात और संध्या को समझाते हुए कहा।



"ठीक है त्रिधा, तुम अपना वक्त लो और फिर कोई फैसला लो मगर जहां तक बात तुम्हारे और हर्षवर्धन के पारिवारिक पृष्ठभूमियों के अंतर की है, तो मुझे नहीं लगता कि हर्षवर्धन इतना नासमझ है कि उसने यह सब नहीं सोचा होगा।" प्रभात ने त्रिधा को समझाना चाहा, तब त्रिधा कहने लगी - "प्रभात, हो सकता है जो तुम कह रहे हो वही हो मगर फिर भी प्रभात, यह जिंदगी भर का फैसला है, थोड़ा वक्त तो लेना ही चाहिए और अभी हम लोगों की उम्र ही क्या है! हो सकता है हम लोग कोई गलत फैसला ले लें और आगे जाकर पछताएं, इससे बेहतर यही है कि हम अभी ही जो फैसला ले वह सोच समझ कर लें, जिससे आगे जाकर पछताना नहीं पड़े।" त्रिधा ने प्रभात को समझाने की कोशिश की तब प्रभात और संध्या दोनों एक साथ सहमति में सिर हिलाते हुए मुस्कुरा दिए।



"चलो बहुत समझदारी हो गई कुछ खा लेते हैं।" इतना कहकर संध्या ने कैंटीन के छोटू को बुलाया और चाय और समोसे का आर्डर कर दिया।



शाम को त्रिधा हॉस्टल के अपने कमरे में थी। आज उसका पढ़ाने जाने का बिल्कुल भी मन नहीं था इसीलिए उसने बच्चों के घर पर फोन करके उन्हें कह दिया था कि आज वह पढ़ाने नहीं आएगी। उसने अपने लिए एक कप कॉफी बना ली और अपने कमरे में बाहर पार्क की तरफ बनी हुई बालकनी में जाकर खड़ी हो गई। वहां पार्क में खेलते हुए छोटे-छोटे बच्चों को देखकर उसे बहुत सुकून मिल रहा था, वह याद कर रही थी कि कभी बचपन में वह भी अपने पैरंट्स के साथ ऐसे ही खेला करती थी, उसकी एक आवाज पर उसके पेरेंट्स उसके लिए दौड़े चले आते थे, जिस चीज पर भी उंगली रख देती थी वह चीज उसके हो जाती थी मगर वक्त ने सब पलट कर रख दिया था, अब तो कुछ हजार रुपे कमाने के लिए भी उसे इतनी मेहनत करनी पड़ रही थी अपनों के नाम पर अब उसका खून का कोई भी रिश्ता उसका अपना नहीं रहा था बल्कि उसके अपने ही घर वालों ने उसके साथ कभी भी अपने जैसा बर्ताव नहीं किया बस एक विशाल ही था जो उसे समझता था। अपनों के नाम पर अब कोई भी तो नहीं था उसके पास सिवाय प्रभात, संध्या और उसकी रोशनी मैडम के, जो हालांकि अभी कटनी में थीं मगर फिर भी वह सबसे ज्यादा उनके करीब थी। आज उसे सच में रोशनी मैडम की बहुत जरूरत थी जो उसे सही रास्ता दिखा पाती, उसे समझाती कि उसे हर्षवर्धन के मामले में क्या करना चाहिए। वह खुद को दोराहे पर खड़ा महसूस कर रही थी, उसे संध्या और प्रभात की बातें भी सही लग रही थी मगर उसे अपनी बात भी सही लग रही थी कि उसका और हर्षवर्धन का कोई भविष्य नहीं है। आखिर में उसने रोशनी मैडम को फोन करने का फैसला लिया और अंदर आकर अपना फोन उठाकर रोशनी मैडम का नंबर डायल कर ही रही थी कि इससे पहले ही उसके फोन पर एक अनजान नंबर का कॉल आने लगा। त्रिधा ने गौर किया कि यह वही नंबर है जिसके उसके फोन पर कई सारे मिस्ड कॉल्स पड़े हुए थे मगर वह अपनी व्यस्तता के चलते कभी भी इस नंबर पर कॉल बैक नहीं कर पाई थी। आज मौका था तो त्रिधा ने तुरंत कॉल रिसीव कर लिया।



"हेलो, हूज़ दिस?" त्रिधा ने कॉल रिसीव करते ही पूछा।



"मैं माया, त्रिधा। तुम कैसी हो त्रिधा? न जाने मैंने तुम्हें कितने कॉल किए पर तुमने किसी भी कॉल को रिसीव नहीं किया, तुम ठीक तो हो ना? मुझे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही थी, मैं घर जाने के बाद से ही तुमसे बात करना चाहती थी मगर किसी ना किसी वजह से यह हो ही नहीं पाया।" माया ने एक साथ ही कई सारे सवाल त्रिधा से पूछ लिए।



"मैं ठीक हूं माया, मुझे भी तुम्हारी बहुत याद आती थी मगर तुमने बताया था कि तुम्हारे घर में यह सब, दोस्तों से मिलना, बातें करना उतना कॉमन नहीं है इसीलिए मैंने तुम्हें कॉल नहीं किया था, तुम कैसी हो?" त्रिधा ने जैसे ही यह कहा उधर से माया के सिसकने की आवाजें आने लगी।



माया की सिसकियों को सुनकर त्रिधा घबरा गई और उससे पूछने लगी - "सब ठीक तो है ना माया? तुम रो क्यों रही हो? बताओ तो आखिर बात क्या है? और तुम अभी तक कॉलेज क्यों नहीं आई हो?"



कुछ देर तक माया रोती रही और त्रिधा उसे चुप कराने की कोशिश करती रही।



"कुछ भी ठीक नहीं है त्रिधा, मैं अब कभी कॉलेज नहीं आ पाऊंगी।"



"क्यों माया? तुम ऐसा क्यों कह रही हो?"



"त्रिधा, मेरे और राजीव के बारे में घर पर सब को पता चल गया था और इसीलिए मैं कई दिनों से कॉलेज नहीं आई हूं अब शायद कभी कॉलेज आ भी नहीं पाऊंगी क्योंकि मेरे घर वालों ने मेरी शादी तय कर दी है।"



माया ने जो कहा उसे सुनकर त्रिधा सन्न रह गई। उसे समझ में नहीं आया कि उसे क्या कहना चाहिए या क्या करना चाहिए। यह पहली बार था जब त्रिधा ने किसी के साथ ऐसा होते हुए देखा था। अब तक तो त्रिधा ने सिर्फ सुना ही था कि जब किसी परिवार को अपने ही बच्चों के प्रेम प्रसंग के बारे में पता चलता है तो वे जल्द से जल्द उनकी शादी करवा देते हैं मगर आज पहली बार त्रिधा प्रत्यक्ष रूप से यह सब देख रही थी, सुन रही थी और उसे समझ में नहीं आ रहा था कि जब किसी की शादी करवानी ही है तो उससे क्यों नहीं जिससे वह इंसान प्यार करता है।



"कब हुआ यह सब और कैसे हुआ?" त्रिधा ने बिल्कुल धीमी आवाज में पूछा। उससे कुछ भी बोलते न बन रहा था।



"तुम्हें याद होगा न त्रिधा, राजीव ने मुझे एक लड़की वर्षा के लिए छोड़ा था, कुछ समय पहले ही राजीव का वर्षा से ब्रेकअप हो गया। शायद वर्षा के जाने के बाद राजीव को एहसास हुआ होगा कि मैं उसके लिए क्या मायने रखती थी और उसके लिए क्या कुछ नहीं किया था। उसने वापस मुझसे बात करने की कोशिश की, यह उस समय की बात है जब हमारे एग्जाम खत्म हो चुके थे और मैं अपने घर पर थी। राजीव मुझे हर दिन फोन करता था शुरुआत में तो मैं भी मजबूत बनी रही और मैंने उसके फोन नहीं उठाए मगर धीरे-धीरे मैं भी हार मानने लगी आखिर यह भी एक सच था कि भले राजीव ने ना सही मगर मैंने जरूर उससे सच्चा प्यार किया था इसीलिए मैं अपने प्यार के आगे अपने आत्मसम्मान को भूल गई और राजीव से बात करने लगी। धीरे धीरे वापस सब कुछ पहले जैसा होने लगा था। एक दिन शाम को मैं हमेशा की तरह राजीव से बात कर रही थी और तभी मेरी मम्मी मेरे कमरे में आ गई। उन्होंने मुझे राजीव से बात करते हुए सुन लिया था और उस दिन उन्हें पता चला कि मेरा और राजीव का अफेयर चल रहा है उन्होंने मुझे अपनी कसम खिला दी और मुझे अपनी मां और राजीव में से किसी एक को चुनने को कहा, साथ ही मां की शर्त यह थी थी कि अगर मैं राजीव को चुनती हूं तो मेरी मां अपनी जान दे देंगे। जानती हो त्रिधा, एक लड़की चाहे किसी लड़के से कितना भी प्यार कर ले मगर अपने मां-बाप से ज्यादा प्यार वह कभी किसी को नहीं कर सकती, मेरे साथ भी यही था, मैंने अपनी मां को चुन लिया और राजीव को छोड़ दिया। उस दिन के बाद से मैंने राजीव के कोई फोन कॉल नहीं उठाए और उससे बात करने की भी कोई कोशिश नहीं की। मगर अबकी बार मैं कमजोर नहीं पड़ी थी क्योंकि इस बार एक प्रेमिका नहीं एक बेटी थी। पर मेरे बात ना करने से राजीव बौखला उठा था। उसने मुझे लगातार कई फोन किए लेकिन जब मैंने उसका कोई भी फोन नहीं उठाया तो राजीव सीधे घर पर आ गया और मेरी और उसकी कुछ फोटोज दिखाकर मेरे मम्मी - पापा को यह यकीन दिला दिया कि मेरे और उसके बीच काफी समय से एक गहरा रिश्ता रहा है। उन फोटोज को देखकर मम्मी पापा को बहुत सदमा पहुंचा था, हालांकि मम्मी इस बारे में पहले से ही जानती थीं मगर उन्हें मुझ पर यकीन था कि मैं उनकी कसम खाने के बाद दोबारा ऐसी हरकत कभी नहीं करूंगी, और वाकई मैंने ऐसा कुछ किया भी नहीं था मगर जैसे ही पापा को पता चला कि मेरा और राजीव का कोई रिश्ता था तो पापा ने तुरंत ताऊ जी को बुलाया और उनकी पसंद के एक लड़के से मेरा रिश्ता तय कर दिया। अब तो इस बात को एक महीना भी बीत चुका है त्रिधा। जल्दबाजी में सारी रस्में भी पूरी हो चुकी हैं। आज रात ही मेरी शादी है। मैंने सोचा था आज एक और बार तुम्हें फोन करके तुम्हें सब कुछ बता दूं। एक बार फिर मेरे ही प्यार ने मुझे धोखा दिया त्रिधा।"



"मैंने तुम्हें पहले भी समझाया था माया और मैं आज भी तुम्हें वही समझाऊंगी। जो इंसान तुम्हें एक बार किसी और के लिए छोड़ सकता है वह कभी तुमसे प्यार नहीं कर सकता, तुमने उसे दूसरा मौका देकर गलती की थी माया मगर अब तुम्हें उस गलती को सुधारने का एक मौका मिला है। तुम्हें एक नया जीवन साथी मिलने वाला है अपने अतीत के कारण अपने भविष्य को मत बिगाड़ना माया।"



"तुम सही कह रही हो त्रिधा, गलती मेरी ही थी जो मैंने राजीव पर दोबारा भरोसा किया जबकि मुझे पहली बार में ही समझ जाना चाहिए था कि वह मुझसे प्यार करता ही नहीं है , मैं तो बस उसकी एक आदत थी जो वर्षा के जाने के बाद उसे वापस याद आने लगी।"



"यह सब बातें अब भूल जाओ माया, अब अपने भविष्य को देखो। मुझे बताओ वह लड़का कैसा है जिससे तुम्हारी शादी होने वाली है।"



"ब्रांच मैनेजर हैं आशीष जी। मेरी एक बार बात हुई थी उनसे, बातचीत में सही लगे वे। खैर…. भविष्य के हाथों में क्या छिपा है, कोई नहीं जानता त्रिधा।" माया ने शांत आवाज में कहा।



"अब अपने अतीत को भूल जाओ और वर्तमान को खुले दिल से स्वीकार कर लो माया, अगर पुराने लोगों को, पुरानी बातों को याद रखे रहोगी तो नए रिश्ते खराब होते जाएंगे।" त्रिधा ने माया को समझाते हुए कहा हालांकि आशीष के बारे में बताने पर माया के बात करने का लहजा उदासी भरा नहीं था जिससे त्रिधा को अंदाजा हो गया था कि माया का भविष्य अच्छा रहेगा, वैसे भी प्यार में धोखा खाया इंसान किसी और के प्यार को ठेस नहीं पहुंचा सकता।



"तुमसे बात करके मन हल्का हो गया त्रिधा। एक लंबे समय से मैं इस बोझ को अपने दिल पर लिए हुए थी। आज तुमसे बात की तो मेरा सारा बोझ उतर गया त्रिधा। मुझे अपने आने वाले भविष्य से कोई भी परेशानी नहीं है क्योंकि जो कुछ भी हो रहा है उसमें कहीं ना कहीं मेरी भी गलती है। रही बात आशीष जी के साथ मेरे रिश्ते की और मेरी आगे की पढ़ाई की, तो अब मैं अपने भविष्य को किस्मत के हाथों छोड़ती हूं पर अब से मैं हर रिश्ता अपनी पूरी ईमानदारी के साथ निभाऊंगी। मैं आज से और अभी से भूल जाऊंगी कि कोई राजीव मेरी जिंदगी में कभी आया था। अब मेरी जिंदगी में सिर्फ आशीष जी ही होंगे।" माया ने थोड़ी उदासी के साथ कहा।



"अपना ध्यान रखना माया। हर बात को भूलने में समय लगता है और साथ ही हर नए रिश्ते को मजबूत होने में भी समय लगता है मगर इस समय सबसे ज्यादा कोशिशें तुम्हें ही करनी होंगी, क्योंकि एक तरफ तुम्हें अपने अतीत को भूलना है और दूसरी तरफ अपने वर्तमान को सुधारना है इसीलिए इस चीज के लिए तैयार रहना माया कि आगे थोड़ी परेशानियां जरूर आएंगी मगर यह तुम्हारे अच्छे भविष्य की एक शुरुआत होगी।"



"तुम भी अपना ध्यान रखना त्रिधा, संध्या और प्रभात को बता देना। संध्या और प्रभात दोनों बहुत अच्छे हैं त्रिधा, तुम्हारा बहुत ध्यान रखते हैं कभी उनकी किसी गलती को दिल से मत लगाना। हर्षवर्धन भी बहुत अच्छा है अपने और उसके प्यार को एक मौका जरूर देना। तुम्हारे और हर्षवर्धन के बीच क्या परेशानी है, मैं नहीं जानती त्रिधा और अब शायद जानने का समय भी नहीं है, मगर एक बात हमेशा ध्यान रखना कि हर्षवर्धन जिस शिद्दत से तुम्हे चाहता है, उतना शायद ही कोई दोबारा तुम्हें चाह पाएगा इसीलिए हर्षवर्धन के प्यार को मत जाने दो त्रिधा, इस रिश्ते को एक मौका जरूर देना। तुम्हारा अतीत तुमने अकेले गुजारा है मगर अपना भविष्य तुम्हें किन लोगों के साथ गुजारना है इसका फैसला भी तुम्हें ही करना होगा।"



"थैंक्स माया।"



"अब रखती हूं त्रिधा, बारात आने का समय हो गया है। अपना ध्यान रखना अगर कभी भविष्य में बातें हो पाई तो जरूर तुमसे बात करूंगी।"



इसके बाद दोनों सहेलियां चुप हो गई। कुछ देर तक दोनों तरफ से एक दूसरे की सिसकियों की आवाज आ रही थी। हालांकि त्रिधा को कभी माया से उतना लगाव नहीं हो पाया था मगर वह उसके चले जाने से और जो कुछ भी माया के साथ हुआ उसे काफी दुखी थी दूसरी तरफ माया के जीवन में जो कुछ भी हुआ था, उस सब के कारण वह काफी उदास थी, साथ ही उसकी इकलौती दोस्त त्रिधा ही थी जिससे अब वह कभी मिल भी पाएगी या नहीं, वह नहीं जानती थी। इसीलिए माया बहुत उदास थी।



माया से बात करने के बाद त्रिधा का मन काफी भारी हो चुका था और अब उसे कहीं भी अच्छा नहीं लग रहा था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे एक साथ उसकी जिंदगी में इतनी सारी परेशानियां, इतने सारे सवाल आकर खड़े हो गए थे, जिनका जवाब उसके पास नहीं था उसके पास तो क्या, शायद किसी के भी पास नहीं था। उसका मन हो रहा था वह तुरंत अपना फोन उठाए और संध्या से बात करने लगे, मगर आज सुबह कॉलेज में जो कुछ भी हुआ था उसके बाद उसका संध्या और प्रभात से बात करने का भी बिल्कुल मन नहीं था क्योंकि वे दोनों उसे बार-बार सिर्फ हर्षवर्धन के बारे में ही सोचने के लिए कह रहे थे और अभी वह उसके बारे में सोचना नहीं चाहती थी। परेशान होकर त्रिधा ने अपना सिर पकड़ लिया।



थोड़ी ही देर बीती थी कि तभी त्रिधा के फोन पर प्रभात का फोन आने लगा।



"कैसे पता कि मैं तुमसे बात करने के बारे में ही सोच रही थी?" त्रिधा ने आश्चर्य से पूछा।



"क्योंकि मेरी सबसे अच्छी दोस्त जो हो तुम, जिसके मन की हर बात समझता हूं मैं।" प्रभात ने मुस्कुराते हुए कहा।



"परेशान हूं।"



"क्या हुआ?"



"माया का फोन आया था…" इतना कहते हुए त्रिधा ने माया से उसकी जो भी बातें हुई थी वे सारी बातें उसने प्रभात को बता दी।



"बहुत अजीब सी परिस्थिति है त्रिधा।"



"नहीं प्रभात, माया के साथ जो कुछ भी हुआ उसका मुझे भी दुख है मगर मैं उसके लिए खुश हूं कि अब उसे एक अच्छा जीवन साथी मिलने वाला है। माया ने बताया था कि उसकी एक बार आशीष से बात हुई थी, अच्छा लड़का है वह। वैसे अच्छा ही है न प्रभात कि जिस इंसान ने उसे धोखा दिया उसे भूलने के लिए उसके पास अभी दूसरे इंसान का साथ होगा, उसका प्यार होगा, जिसके साथ वह जल्द ही सब कुछ भूल जाएगी।"



"तो फिर तुम्हारे परेशान होने की वजह क्या है त्रिधू?"



"हर्षवर्धन…"



"क्या बात है आराम से बताओ। तुम जानती हो ना त्रिधू चाहे कोई तुम्हारे साथ हो या ना हो, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं, तुम्हारे हर सही - गलत फैसले में भी, अब बताओ बात क्या है त्रिधा?"



"तुम और संध्या प्लीज़ मुझे हर्षवर्धन के बारे में सोचने के लिए फोर्स मत करो, मैं अभी वक्त लेना चाहती हूं। अगर तुम और संध्या मुझे हमेशा हर्षवर्धन के बारे में सोचने के लिए ही कहते रहोगे तो मैं तुम लोगों से अपनी परेशानियां कैसे बांट पाऊंगी? मेरे जीवन में और भी बहुत परेशानियां रही हैं और आगे भी रहेंगी। हर्षवर्धन तो मेरी जिंदगी का बस एक हिस्सा ही है ना, मेरी पूरी जिंदगी तो नहीं है।"



"चिंता मत करो हम लोगों में से कोई भी तुम्हें फोर्स नहीं करेगा, आज सुबह भी किसी ने तुम्हें फोर्स नहीं किया था, हम बस तुम्हें समझाने की कोशिश कर रहे थे कि अगर तुमने उन पहलुओं को नहीं सोचा हो तो हम समझा देते।"



"तब तो ठीक है, अब बात करके अच्छा लग रहा है।"



"अपने मन में कोई बोझ मत रखा करो त्रिधा। कभी भी कोई बात हो, कोई सवाल, हो कोई कंफ्यूजन हो, उसे बांट लिया करो वरना यह गलतफहमियां रिश्ते खराब कर देती हैं। तुम्हें पता है न, मैं हमेशा तुम्हें सपोर्ट करूंगा तो बेफिक्र रहा करो।"



"ठीक है मेलोड्रामैटिक बेस्ट फ्रेंड।" इतना कहकर त्रिधा ने हंसते हुए फोन रख दिया।



***



अगले दिन त्रिधा संध्या और प्रभात के साथ कॉलेज कैंटीन में बैठी हुई थी। उसने संध्या को माया के बारे में सब कुछ बता दिया था क्योंकि माया ने उन दोनों को बताने के लिए कहा था। माया के बारे में जानने के बाद संध्या भी काफी उदास हो गई थी, एक पल के लिए तो उसकी आंखों में आंसू भर आए और वह अपने चेहरे पर डर के भाव लिए प्रभात को देखने लगी। उसके चेहरे को देखकर प्रभात और त्रिधा दोनों ही समझ गए थे कि संध्या को डर है कि कहीं वह भी प्रभात को खो ना दे।



"तुम डरो मत संध्या, तुम्हारे प्रभात को तुम से कोई नहीं छीन सकता। जब तक मैं हूं, तब तक कोई ऐसा नहीं कर पाएगा, न ही मैं किसी को ऐसा करने दूंगी, कभी भी नहीं।" त्रिधा ने संध्या के हाथ पकड़ कर कहा, तब संध्या हल्के से मुस्कुरा दी।



"मुझे पता है त्रिधा, जब तक तुम मेरे साथ हो, तब तक कोई भी मुझे व प्रभात को अलग नहीं कर सकता है।"



तीनों अभी आपस में बात कर ही रहे थे कि तभी वर्षा वहां आ गई और उन तीनों को देखकर पूछने लगी - "क्या मैं यहां बैठ सकती हूं?" संध्या और प्रभात ने त्रिधा को देखा। त्रिधा वर्षा को देखकर कहने लगी - "हां बिल्कुल वर्षा तुम यहां बैठ सकती हो।"



"सॉरी त्रिधा, फर्स्ट डे जब हम मिले थे तो हमारे बीच कुछ ज्यादा अच्छी कन्वर्सेशन नहीं हुई थी। एक्चुअली उस वक्त मैं हर्षवर्धन की गर्लफ्रेंड थी और हमारे पर्सनल मोमेंट को किसी का देखना मुझे अच्छा नहीं लगा था फिर उसके बाद उसका किसी लड़की के लिए किसी और से झगड़ जाना मुझे पसंद नहीं आया था लेकिन अब मैं हर्षवर्धन की गर्लफ्रेंड नहीं हूं तो अब आई थिंक अब हम लोगों के बीच कोई भी गलतफहमी या कड़वाहट नहीं रहनी चाहिए।" वर्षा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।



"इट्स ओके वर्षा, मैं पुरानी बातों को भूल चुकी हूं और तुम भी भूल जाओ। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। वैसे तुम फर्स्ट ईयर में कैसे? आई मीन तुम तो शायद लास्ट ईयर भी, फर्स्ट ईयर में ही थी तो अब वापस फर्स्ट ईयर में कैसे?" त्रिधा ने बात बदल दी क्योंकि उसे संध्या की बात सही लगी थी कि हो सकता है वर्षा एक गर्लफ्रेंड के रूप में भले ही जैसी भी हो पर एक इंसान के रूप में वे सब लोग वर्षा के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे।



"मैं फेल हो गई हूं और वापस उसी कॉलेज में पढ़ना मेरे लिए बहुत मुश्किल था इसीलिए मैंने कॉलेज चेंज कर दिया।"



"ओह… कोई बात नहीं जिंदगी हमेशा एक नई शुरुआत का एक मौका देती है तुम अच्छे से पढ़ाई करो।" त्रिधा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।



"हां त्रिधा, तभी तो मैं यहां तुम लोगों के पास आई हूं, एक्चुअली मुझे संध्या से पढ़ने के ही टिप्स लेने थे क्योंकि उसने कॉलेज टॉप किया है तो शायद वह मुझे भी कोई टिप्स दे दे।" वर्षा ने जैसे ही इतना कहा, प्रभात और त्रिधा एक दूसरे को देखने लगे और मन ही मन अपनी हंसी रोकने की कोशिश करते हुए चुपचाप वहां बैठे रहे पर जब उनसे बहुत देर तक वहां बैठा नहीं गया तो वे दोनों उठकर बाहर निकल आए और एक साथ जोर से हंस पड़े। वर्षा अब भी संध्या से बातें कर रही थी।



"वैसे शायद उतनी भी बुरी नहीं वर्षा।" प्रभात ने त्रिधा को देखकर कहा तब त्रिधा ने कुछ नहीं कहा बस हल्के से मुस्कुरा दी।


क्रमशः


आयुषी सिंह