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मेरे पिता मेरे पुण्य

मेरे पिता मेरे पुण्य।

सुबह सुबह ये डाकिया भला न जाने किस का खत हमारे घर पे दे गया। कितना रुकने को बोला सुना ही नहीं, हद है। लक्ष्मी(जो की श्रीकांत जी पत्नी थी। सालों पहले गुजर गई उनकी बस तस्वीर है घर पे और बहुत सी यादें ) तुम्हे तो पता हैं न मुझे पढ़ना नहीं आता।

चलो छोड़ो रमन से पढ़वा लूंगा अभी जल्दी से नहाना है, फिर खाना भी बनाना है। रोज रोज देर से ऑफिस जाओ तो बड़े बाबू से रोज बहस हो जाती है।

श्रीकांत ऑफिस पहुंचते ही श्रीकांत ने रमन को चिटठी दी तो पता चला कि गांव से हैं।

गांव वाला घर टूट गया है। श्रीकांत ने इसे नजरअंदाज कर दिया। बड़े बाबू की टेबल पे कपड़ा मरते हुए (बड़े बाबू का कमरे में प्रवेश)

नमस्ते बड़े बाबू कैसे है आप?

मैं ठीक हु तुम अपना बताओ आज तो टाइम पे आए हो ना।

जी बड़े बाबू सब काम हो गया है पीने का पानी भी रख दिया। अगर आपकी इच्छा है तो आपके लिए चाय ले आऊं।

हां हां ले आओ मेरे से ज्यादा तो तुम्हारा गला सूख रहा होगा। जाओ ले आओ

ठीक है साहब।

श्रीकांत कोलकाता शहर के डाकघर के हेड क्वार्टर में चपरासी था । ऐसे तो बहुत चपरासी थे वहा लेकिन श्रीकांत थोड़ा अलग था पढ़ा लिखा नहीं था सायद इसलिए। जिसका जैसे मन होता वैसा काम भी करवा लेता था। श्रीकांत को किसी से कोई गिला शिकवा नहीं था। काम ही तो करना है समय निकल जाय और क्या चाहिए।

एक दिन तो बड़े बाबू से मिलने कोई दिल्ली आया था। और बड़े बाबू ने सबको तैयार रहने के लिए बोला था। हालंकि जिस दिन दिल्ली से बड़े अफसर आए थे, उस दिन श्रीकांत पता नही कहा था। अगले दिन आते ही बड़े बाबू ने उसे खूब डांटा की तुम कल पूरा दिन गायब थे फोन भी नहीं उठाया तुमने। अनपढ़, गवार आदमी बाहर से लोग आए थे और तुम तफरी मारने निकाल गए। समझ क्या रखा है तुमने अभी यहां भगा दूंगा फिर ढूंढना मुफ्त की नौकरी । वो धन्य है तुम्हारी बीवी को जाते जाते तुम्हे नौकरी दे गई वो भी तुमसे ठीक से नहीं होती।

श्रीकांत को खरी खोटी सुनते सब को मजा आ रहा था। सब छुप छुप के खिलखिला रहे थे। थोड़ी देर बाद श्रीकांत बड़े बाबू के कमरे से बाहर आए और सीधा वाशरूम की तरफ चला गया। खुद को संभालने के बाद ऑफिस का काम निपटा के ऑफिस बंद करके घर चला गया। घर पहुंचते लक्ष्मी की फोटो को सीने में लगाए खूब देर तक रोता रहा । ऐसा नहीं की किसी से उसे पहले डांटा न हो लेकिन पहली बार किसी ने उसकी बीवी का ताना दिया था।

दरअसल एक समय की घटना थी जब श्रीकांत ,लक्ष्मी और उनका बेटा रोहन( 13 साल का ) एक शादी से लौट रहे थे। रिक्शे वाले ज्यादा पैसे मांगे तो श्रीकांत ने कह दिया हम गरीब आदमी है कभी काम मिलता कभी बिना काम के भी रहना पड़ता है अगर बीस रुपए में चैक के उस तरफ छोड़ दो ठीक है नहीं तो सामने गलियारे में उतार देना हम चले जायेंगे हमे नजदीक पड़ेगा। हालंकि लक्ष्मी की हालत चलने वाली नहीं थी वहा बेहद थक गई थी और फिर से मां जो बनाने वाली थी। सो थोड़ा जोर देने लगी। दे दो थोड़े पैसे मेरे शरीर में जान नहीं बची है, चल नहीं पाऊंगी।

श्रीकांत, रोहन और लक्ष्मी वही उतार गए। बड़ा झोला श्रीकांत ने अपने कंधे पे और एक छोटा झोला जिसमे सिर्फ कपड़े थे वो बेटे रोहन को थमा दिया। रोहन आगे चलने लगा अपने पिता से नाराज और श्रीकांत बड़े आराम से लक्ष्मी को सड़क पार करवा के दूसरे किनारे पे ले आए । किनारे पहुंचते ही लक्ष्मी ने दुकान से चावल लाने को कहा तो श्रीकांत ने रोहन को लक्ष्मी के पास बुला लिया। दुकान से चावल लेते जेब में हाथ डाला तो पैसे पूरे नहीं है तुरंत रोहन को आवाज लगाई की झोला इधर लेके आ रोहन ने मां को अकेला छोड़ने से मना कर दिया । तभी मां ने जोर दिया और रोहन दुकान की तरफ जाने लगा तभी पीछे से किसी के टकराने की आवाज आई।

थोड़ी ही देर में अफरा तफरी मच गई ।

अरे ये क्या हो गया!

किसके साथ है !

हे भगवान ये तो पेट से थी!

जोर जोर आवाजे आने लगी। श्रीकांत और रोहन तेजी सी उस तरफ भागे तो देखा भीड़ लगी है। लक्ष्मी भी दिखाई नहीं दे रही है। भीड़ में अंदर घुसकर देखा तो लक्ष्मी गाड़ी के नीचे खून से लथपथ बेसुध पड़ी थी। रोहन की चीख निकल पड़ी और वो बेहोश हो गया। श्रीकांत भी बेसुध हो गया था।

किसी तरह से लोगों ने उसे संभाला । गाड़ी का मालिक भाग गया था। सड़क पे जाम लग गया था। किसी तरह पुलिस ने लक्ष्मी को अस्पताल पहुंचा दिया और साथ साथ गाड़ी के मालिक का भी पता लगा लिया था। गाड़ी का मालिक कोई मामूली आदमी नहीं था बहुत पैसे वाला आदमी था। कुछ घंटों बाद वह भी कुछ लोगों के साथ अस्पताल पहुंच गया। लेकिन तब तक देर हो गई थी डॉक्टर ने कहा लक्ष्मी ने तो उसी समय दम तोड दिया था। और उसके साथ ही उसके गर्भ में पल रहे बच्चे ने भी। ये एक्सीडेंट मामला है इसलिए आप लोग देख लो कैसे क्या करना है।

हालंकि गाड़ी वाले की ऊपर तक पहुंच थी। इसलिए पुलिस वाले श्रीकांत को अस्पताल के बाहर ले आए और कहा देखो जो हो गया सो हो गया अब कुछ भी तो नहीं कर सकते। पूरी कोशिश की हमने भी और डॉक्टर्स ने भी अब इस सब से निपटने का एक ही रास्ता है सुलह कर ली जाय। देखो ये जो साहब है वो बहुत बड़े आदमी है और जिस गाड़ी से तुम्हारी पत्नी का एक्सीडेंट हुआ वो इनके बेटे की है। ये बस तुम्हारी मदद करना चाहते है । बाकी तुम देख लो तुम्हारे पास इतने पैसे तो है नहीं की तुम इनपर केस कर सको या कोट कचहरी के चक्कर लगा सको भलाई इसी में है की ये जो कह रहे है मान जाओ।

गाड़ी वाला आदमी आया और एक चिट्ठी देते हुए कहा मुझे बड़ा अफसोस है इस बात का ये लेटर शहर के डाकघर मुख्यालय में सीताराम(बड़े बाबू ) को दे देना तुम्हारा काम हो जायेगा। और ये लो पैसे इससे तुम्हारे महीने दो महीने आराम से चल जायेगा बाकी अस्पताल का बिल मैने भर दिया है और तुम्हारा बेटा भी ठीक है।

श्रीकांत चिट्ठी और पैसे लेकर चुपचाप अंदर अस्पताल में आ गया। फिर थोड़ी देर श्रीकांत के रिश्तेदार भी आ गए रोहन अपनी मौसी से लिपट के रो रहा था । फिर लक्ष्मी को शमशान घाट में अंतिम संस्कार कर दिया गया। श्रीकांत अंदर ही अंदर बहुत टूट चुका था ।

तेहरवी के बाद सब लोग जाने लगे मौसी कुछ दिन के अभी तो रुक गई थी, लेकिन उसे भी जाना था वो दिल्ली में रहती थी । रोहन ने भी तय किया की वह अब अपने पिताजी के साथ नहीं रह पाएगा हमेशा मां की वो बात आएगी की कैसे पिताजी ने कुछ पैसे के लिए मां की जान ले ली। ये सब उनकी वजह से ही हुआ दे देते थोड़े ज्यादा पैसे रिक्शे वाले को क्या होता । आज मां तो हमारे साथ होती।

अगले कुछ रोज वहा अपनी मौसी अनिता के साथ दिल्ली चला गया। श्रीकांत के लिए यहां घाव को कुरेदना जैसा रहा। लेकिन अनिता के समझाने से वह उसे भेजने के लिए तैयार हो गया। श्रीकांत हर साल रोहन के जन्मदिन में उसे अच्छे अच्छे उपहार भेजता था कभी साइकिल कभी वीडियो गेम वगैरह वगैरह, लेकिन कभी पता नही चलने दिया अनिता को कहता था की उसे कभी बताना मत नहीं तो वो लेने से इंकार कर देगा। हालंकि रोहन को कभी कभी लगता था की उसकी मौसी कैसे ये सब करती है । अच्छा स्कूल, कपड़े ये सब इतना आसान नहीं है।

जब भी श्रीकांत दिल्ली जाता तो रोहन देर रात तक घर नहीं आता था और आता भी तो जब सब सो जाते या सोने का नाटक करते वो श्रीकांत से बात भी नहीं करता था। धीरे धीरे श्रीकांत दिल्ली जन छोड़ दिया बस फोन पे ही हाल समाचार जान लेता था। रोहन के बहरवी में अच्छे नबर आए थे । तो उसने कोचिंग ज्वाइन कर लिया। साथ ही साथ ग्रेजुएशन में भी एडमिशन ले लिया।

कुछ चार साल बाद उसका सिलेक्शन कलेक्टर पोस्ट पर हो गया। श्रीकांत को जब ये बात पता चली तो वहा बहुत खुश हुआ अनिता ने श्रीकांत को दिल्ली आने के लिए कहा मगर उसने कुछ बहाना बनाकर टाल दिया। शायद वो नहीं चाहता था की उसका इतना अच्छा दिन बेकार में उसके वजह से खराब हो। समय बीतता गया

एक रोज रोहन आॅफिस से जल्दी घर आ गया और तभी उसने देखा कि घर में कोई आया हुआ हैं। देखा तो रोहन के पिता श्रीकांत आये हुये थे। पिता को देखते ही रोहन बाहर जाने लगा तभी मौसी ने उसे रोक लिया कहा बहुत हुआ रूठना मनाना चलो अपने पिता से मिलो।

उन्होंने जो कुछ भी तुम्हारे लिए किया हैं शायद ही कोई पिता कर पाये। तुम्हे अहसास भी तुम कितनी बडी गलती कर रहे हो। आज अगर लक्ष्मी दीदी होती तो वो ये सब सहन भी ना करती। बहुत समझाने पर भी वह नही रूका।

अगले दिन रोहन को एक सरकारी कार्यक्रम के लिए वृद्धाश्रम जाना पड़ा। वहा जाके उसने वहा लोगो के विचार सुने की कैसे बच्चे अपने माता पिता के बलिदानों को भुलाकर उन्हें अकेला छोड़ देते है जब उन्हें उनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। रोहन पर उन विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा। घर आकर मौसी से बात की की वहा अब अपने पिताजी से मिलना चाहता है। जो भी मन मुटाव था सब भुला देना चाहता है।

अगले दिन ही रोहन को हेड ऑफिस बुलाया गया। काम की तारीफ सुनकर खुश भी बहुत था। उसका प्रमोशन हो गया था अब वहा डीएम बन गया था। रोहन ने कहा की अगर किसी तरह से उसका ट्रांसफर कोलकाता हो जाता तो उनकी बड़ी मेहरबानी होती। बचपन से सपना था वहा पे काम करने का। बड़े अधिकारियों ने कुछ दिन का समय दिया और कहा देखते है क्या हो सकता है।

कुछ दिन बाद खुसखबरी मिली की रोहन का ट्रांसफर कोलकाता में हो गया है ये उनकी काम की प्रति ईमानदारी से हुआ है।

मौसी सुनकर बहुत खुश हुई और कहा की वो अभी श्रीकांत को फोन करके बता देती हु खुश हो जायेंगे।

रोहन को कुछ अलग करना चाहता था तो इसलिए उसने तय किया की वहा अभी किसी को कुछ नहीं बताने वाला वहा बिना बताए अपने पिता से मिलना चाहता था उन्हें वो खुशी देना चाहता था जिसके वो हकदार है। और वहा बिना खबर किए कोलकाता में ड्यूटी ज्वाइन कर ली ।

महीना भर हो गया था। अगले दिन मौसी से पता चला कि श्रीकांत रिटायर होने वाले है और सरकार ने एक योजना का शुभारंभ करना था। इसके जिम्मेदारी जिले के डीएम को दी गई थी की वहा लोगो तक ये बात पहुंचाए। यह योजना(एक पेंशन की शुरुआत जो हर कोई अपने पिता के लिए करना चाहे आधे पैसे बच्चे आधे सरकार देगी ) फादर्स डे पे शुरू होनी थी।तो रोहन ने तय किया की इसकी शुरुआत डाकघर से शुरू करेंगे।

सुबह पहुंचते ही डाकघर में खबर कर दी गई की आज कोई बड़े साहब आने वाले है लेकिन किसी को नही पता था की नया डीएम कौन है।

सुबह से डाकघर में बड़ी तैयारियां चल रही थी साफ सफाई हो रही थी बहुत बड़े गेस्ट आने वाले थे।

कही किसी कोने में श्रीकांत की रिटायरमेंट की भी खुसुर फुसुर हो रही थी की आज उसका आखिर दिन भी काम में ही निकल जायेगा।

आज श्रीकांत बड़ा उदास था मन मान ही नहीं रहा था की अब ऑफिस छूट जायेगा। तभी उसके पीछे से किसी ने उसके कांधे पे हाथ रखा। उसने पीछे देखा तो हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए अंकिता(रोहन की मौसी) खड़ी थी। श्रीकांत को बहुत अच्छा लगा ये जानकर की अंकिता आई है उसने पूछा की क्या रोहन भी आया है?

लेकिन मौसी नजरे नीचे करते हुए कहा नहीं आपको तो पता ही है उसका काम।

श्रीकांत अरे हां में भी न बस । अच्छा ठीक तो है न वो ।

ठीक है और तुम्हे बहुत याद करता है शायद मिलने भी आ जाय l

श्रीकांत का मन फिर उदास हो गया को बेटा कभी बात नहीं करता वो क्या मिलने आएगा।

मौसी ने हस्ते हुए कहा अब आपका रोहन बदल गया है बहुत जल्द आपकी मुलाकात

खैर सभी मेहमानों की आने का इंतजार कर रहे थे लोग खुर्सियों में बैठे नजरे दरवाजे पर टिकाए हुए थे।

थोड़ी देर गाड़ियों का काफिला देख लोग खड़े हो गए। स्टेज से आवाज आई सब लोग बैठ जाइए अभी डीएम साहब को कुछ जरूरी काम है तब तक है आज के कार्यक्रम को आगे बढ़ते है। सभी लोग बारी बारी से फादर्स डे पर अपनी राय, विचार और अपनी बातें रखी। अंत में स्टेज से कहा गया की आज हमारे एक कर्मचारी है आज उनका रिटायरमेंट भी है तो वो स्टेज पर आए और हमारे मुख्य अधीक्षक साहब से भेट स्वीकार करे।

श्रीकांत श्रीकांत जाओ भाई तुम्हे बुला रहे है।

श्रीकांत गया और बड़े साहब से फूल और एक शॉल मिला, डीएम की इच्छानुसार उन्हें कुछ बोलना भी था सो बड़े साहब ने कहा आज स्टेज तुम्हारा है दो शब्द अपने बिताए समय के बारे में प्लीज।

श्रीकांत को हिचकीचाहट सी हुई लेकिन अंकिता ने कहा यहीं मौका है फिर नही मिलेगा।

श्रीकांत ने बड़े साहब का आभार जताते हुए अपनी बात शुरू की।

वैसे तो आज फादर्स डे है लेकिन मैं अपनी बीवी का दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू आज जो कुछ भी ही जैसा भी हूं सभी उसी की देन है। जब तक जिंदा थी हर हाल हर परस्तिथि में साथ दिया और जाने से पहले भी जीने का रास्ता दिखा गई। ये नौकरी ही मेरा जीने का सहारा थी। पता ही नहीं चला की कब इतने साल हो गए। सबका साथ रहा , बहुत कुछ सीखने को मिला।

बोलते बोलते श्रीकांत भावुक हो गए। और नीचे आकर कुर्सी पर बैठ गए। अंकिता ने पानी दिया और कहा हमे बहुत नाज है आप पे।

कुछ देर बाद डीएम साहब स्टेज पे आ गए सभी ने तालियों से उनका स्वागत किया। श्रीकांत ने देखा ये तो रोहन है बड़ा आश्चर्य हुए मेरा बेटा डीएम बन गया है। उन्होंने अंकिता से पूछा । अंकिता की आंखे भर आई।

रोहन ने बोलना शुरू किया आप सभी को मेरा नमस्कार।

बहुत बहुत धन्यवाद की आप लोगो यह पर आए। जैसा कि आपलोग जानते है की आज फादर्स डे है और सभी लगभग अपने पिता के साथ पहुंचे हुए है। अच्छा लगा जानकर की आप उनकी फिकर करते है उनकी कद्र करते है।

लेकिन मेरे साथ थोड़ा उल्टा है। मैने कभी अपने पिता को समझने की कोशिश ही नहीं की

जब उन्हें मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी मैने उनका साथ नहीं दिया बल्कि उनसे दूर चला गया उनको उनके हाल पर छोड़ के।

वो तो पिता है ना वो थोड़े ना अपने बेटे से अपने बच्चों से दूर रह पाते है आ जाते थे मुझसे मिलने लेकिन मैंने भी जिद्द, ये ठाना था की नहीं मिलना मतलब कभी नहीं। बिना सोचे समझे सारे इल्जाम उनके ऊपर डाल दिए ।

लेकिन वो भी कम जिद्दी नहीं हैं हार नहीं मानी और आज भी वो मुझसे बात करने के लिए बेचैन है। क्यो हमारे मां बाप हमारी हर इच्छा को पूरा करते है या करने का प्रयास करते है। और हम बदले में कह देते है की ठीक है सभी करते है इसमें क्या है। करना पड़ेगा ये उनका फर्ज है। और जब बात उनकी जिम्मेदारी उठाने की आती है तो बेसहारा छोड़ देते है। अब कोई रिश्ता भी बचता, फिर भी माता पिता को अपने बच्चे की भले की ही चिंता होती है। आज भी मेरे पिता अपने रिटायरमेंट के पैसे से मेरे लिए नया घर खरीदना चाहते है। आखिर क्यों भगवान ने इन्हे ऐसा बनाया की ये सिर्फ हमारे लिए ही जीते है। लेकिन आज इस आयोजन के माध्यम से और सभी लोगों के सामने में अपने पिताजी से माफी मांगना चाहता हु। हालकी मुझे पता है एक छोटी से बात से वो दिन, वो समय जो उन्होंने अकेले बिताया है वो वापस नहीं आयेगा। मैने जो किया वो कभी माफ नहीं किया जा सकता लेकिन अब एक नई शुरुआत करनी है। अगर आपको मंजूर हो तो पिताजी।

सभी लोगों की नजरे नम आंखों से उस व्यक्ति को ढूंढ रही थी जिसके लिए अभी अभी डीएम साहब ने बोला था।

अंकिता उठी और जोर जोर से तालिया बजाने लगे सभी लोग खड़े होकर तालिया बजाने लगे।

फिर अंकिता ने श्रीकांत को उठाया और स्टेज की तरफ ले जाना शुरू किया ।

फिर सब देखते रह गए की डीएम के पिता एक मामूली 3rd क्लास चपरासी है।

रोहन श्रीकांत के गले लग गया और रोने लगा और कहने लगा मुझे माफ कर दीजिए पिताजी में आपको कभी समझ नही पाया।

श्रीकांत भी भावुक हो गए।

कुछ देर बाद डीएम साहब ने कहा इस धरती पर पिता वो शक्ति है जो अपनी संतान को हर प्रकार से सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। पिता केवल शब्द नहीं केवल एक रिश्ता नही बल्कि आपकी पहचान भी है। में बस इतना कहना चहुता हु की हमारे मां बाप जो भी करते है उसमे केवल हमारा भला ही छिपा होता है। उनका सम्मान करे आदर करे और उन्हें वैसा ही वातारण दे जैसे उन्होंने आपको दिया।

कार्यक्रम खत्म होते ही रोहन ने घर जाने की इच्छा की तो श्रीकांत ने कहा वो तुम्हारा ही घर है जब चाहो जा सकते हो।

घर पहुंचते ही रोहन ने मां की तस्वीर को अपने दिल से लगाकर कहा मुझे माफ कर देना।

श्रीकांत ने रोहन के कांधे पे हाथ रखा और कहा सब समय की बात है।

कोलकाता में रहते हुए रोहन ने घर में रहकर ही नौकरी की अब वहा अपने पिता के साथ ही रहता है और उसके पिता सरकार की उस योजना के ब्रांड एंबेसडर भी बन गए जो गांव गांव जाकर लोगो को जागरूक करते है।

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