Ahsaas pyar ka khubsurat sa - 17 books and stories free download online pdf in Hindi

एहसास प्यार का खूबसूरत सा - 17




सुबह - सुबह देवेश जी बाहर टहलने के बाद बालकनी में आकर अपनी फेवरेट चेयर पर बैठे न्यूज पेपर पढ़ रहे थे । तभी मालती जी उनके लिए चाए लेकर आयीं और देवेश जी को चाए देकर बोली ।

मालती जी - जी....!!! लीजिए आपकी सुबह की चाए ।

देवेश जी न्यूज पेपर को साइड में रखी टेबल में रखते हैं, और मालती जी के हाथ से चाए का कप ले लेते हैं । मालती जी चाए देने के बाद वापस जाने के लिए कुछ कदम बढ़ाने लगती है, तो देवेश जी पीछे से उनका हाथ पकड़ लेते है और उनसे कहते है ।

देवेश जी ( प्यार से मालती जी को निहारते हुए ) - अरे भाग्यवान !!!!! कहां जा रही हैं आप ???? बैठिए थोड़ी देर हमारे पास ।

मालती जी ( वापस मुड़ कर देवेश जी की ओर आते हुए ) - आप सभी के लिए नाश्ता बनाने जा रहे हैं । आज त्यौहार है ना , तो सोच रहे हैं कई सारे पकवान बना लें , हर दिन तो आप सभी को जल्दी रहती है । बस सन्डे और त्यौहार में ही ऐसा रहता है के आप सभी आराम से बैठ कर बातें करते हुए खाना खाते हैं ।

देवेश जी ( दूसरे हाथ में पकड़ी चाए को टेबल पर रखकर पास रखी चेयर को खुद के पास खींचते हुए कहते हैं ) - अरे भाग्यवान !!!! बैठिए यहां , जरा हमसे भी तो बतिया लीजिए ।

मालती जी ( चेयर पर बैठ कर शरमाते हुए ) - क्या जी !!! आप भी !!! बच्चे हमारे इतने बड़े हो गये है , तब भी उनकी उम्र का रोमांस आपको सूझ रहा है ।

देवेश जी ( मालती जी का हाथ छोड़ देते हैं , और चाए की एक सीप लेते हुए कहते है ) - आह ....., आपकी हाथों की चाए सुबह - सुबह पी कर हमारा तो दिन बन जाता है । ( मालती जी शर्मा जाती हैं ) हाय!!! आपकी ये अदाएं आज भी हमें आपके साथ बिताया हुआ पुराना समय याद दिला देती है ।

मालती जी ( अपने ही सिर पर हल्की सी चपत मार कर शरमाते हुए ) - धत...... जी...... !!!! आपने ये क्या लगा रखा है , बुढ़ापे में भी जवानी चढ़ी है, आज आपको ।

देवेश जी ( अपनी तारीफ करते हुए ) - अरे.... देखिए ......,
आप हमें ..., हम कहां से आपको बूढ़े लग रहे हैं , अरे हम तो आपके लिए अभी भी जवान हैं।

मालती जी - बस कीजिए जी , सुबह - सुबह पता नहीं क्या खा लिया है आपने, के सुबह से पागलों जैसी हरकतें कर रहे हैं ।

देवेश जी ( चाए ख़तम करते हुए ) - अरे मोहतरमा इसे पागलपन नहीं रोमांस कहते है ।

मालती जी ( उठकर , देवेश जी के हाथ से चाए का कप लेते हुए ) - आप ही करीये खुद के साथ बुढ़ापे में रोमांस , हम तो जा रहे हैं , बहुत काम है हमें ।

देवेश जी - अरे मालती जी ! क्या आप भी !!!! डेली तो हम बिज़ी रहते हैं , सुबह से शाम तक , बस छुट्टी के दिन ही तो मिलते हैं आपसे बतियाने के लिए , उसमें भी आप काम का बहाना बना कर चल देती हैं।

मालती जी ( मुड़ते हुए, देवेश जी के सामने आकर ) - अरे…......., हमें नाश्ता बनना है आप सभी के पसंद का, जिसमें बहुत समय लगेगा , त्यौहार है आज , और अगर समय से नाश्ता नहीं बना तो मां जी को दवाई लेने में लेट हो जायेगा ।

देवेश जी - बहुत सारे पकवान बनाने की जरूरत नहीं है आपको ।

मालती जी ( कमर पर हाथ रखते हुए ) - क्यों भला ???? बताएंगे आप !!!

देवेश जी - अरे !!! खाने के किए सिर्फ चार लोग ही तो है और आपको मिला कर पांच । इतने कम लोगों के लिए इतना सारा नाश्ता बनाने की क्या जरूरत है ।

मालती जी - पर आप सभी.........।

देवेश जी ( बीच में ही मालती जी की बात काटते हुए ) - हमने कहा न , इतना सारा नाश्ता बनाने की जरूरत नहीं है ।

मालती जी ( फिर से चेयर पर बैठते हुए ) - अच्छा ठीक है , नहीं बनाते । अब खुश .....!!!???

देवेश जी ( मुस्कुराते हुए ) - जी , अब हम भी खुश ।

इतना कह कर देवेश जी फिर से पेपर हाथ में लेकर पढ़ने लगते हैं और मालती जी से बातें करने लगते हैं । कुछ मिनट्स के बाद मालती जी देवेश जी से कहती हैं ।

मालती जी ( हिचकिचाते हुए ) - सुनिए..... !!!!

देवेश जी ( पेपर में आंखे गड़ाए हुए ) - हां कहिए ना मालती जी ।

मालती जी - वो हमने आपसे एक बात छुपाई है ।

देवेश जी ( पेपर टेबल पर रखते हुए ) - क्या बात है मालती जी ??? क्या हुआ ??? आप इतना घबरा क्यों रही हैं हमें बताने में ???

मालती जी ( अपने हाथो को घबराहट के साथ मलते हुए ) - वो ......, वो ........., कल कायरा ने कॉफी पी ली थी ।

देवेश जी ( हैरानी के साथ ) - क्या........... ??? पर कब ??? और क्यों ????

मालती जी - वो कल गलती से कायरा ने कॉलेज में कॉफी पी ली थी और उसकी तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई थी । इतनी की हॉस्पिटल तक ले जाना पड़ा ( फिर मालती जी देवेश जी को कल की दारी बात बताती हैं, जो रूही ने उन्हें कल बताई थी ) और फिर रूही बिटिया और उन दोनों के दोस्त आरव ही हमारी कायरा को यहां, घर तक छोड़ने आए थे ।

देवेश जी ( हल्की नाराज़गी के साथ ) - और आप हमें अब बता रहीं हैं मालती जी !!!!!?????

मालती जी - जी !!! आप कल बहुत थके हुए, कॉलेज से वापिस आए थे । और कल आपकी तबियत भी थोड़ी ठीक नहीं लग रही थी । इसी वजह से मैंने आपको सुबह ही बताने का सोचा था । पर जब से आप उठे है , तब से लेकर मुझे, अब मौका मिला, आपको बताने का ।

देवेश जी ( शांत होते हुए ) - अच्छा ठीक है मालती जी !! पर अब हमारी बच्ची कैसी है , ( चेयर से उठते हुए ) हम उससे मिल कर आते हैं।

मालती जी ( देवेश जी का हाथ पकड़ कर वापस चेयर पर बैठाते हुए ) - जी !!!! वह अभी सो रही है । ( मालती जी की बात सुनकर देवेश जी चेयर पर बैठ जाते हैं ) डॉक्टर ने उसे दो दिन रेस्ट करने के किए कहा है । कल रात जब उसे खाना खिला कर दवाई दी थी , तब उसकी तबीयत दोपहर से ठीक थी । अब जब वह उठेगी तब ही पता चलेगा के वह अब कैसा फील कर रही है ।

देवेश जी - हम्ममम।

मालती जी ( मुस्कुरा कर आंखे चमकाते हुए ) - वैसे , आपसे एक बात कहूं ।

देवेश जी - जी कहिए ।

मालती जी - हमारी कायरा के जो बॉस है ना , जो हमारी कायरा को हॉस्पिटल लेकर गए थे , और सही सलामत घर भी छोड़ कर गए ।

देवेश जी - जी , जिसके बारे में आपने अभी थोड़ी देर पहले बताया था।

मालती जी - जी हां , वहीं ...। वह ना बहुत प्यारा बच्चा है , उसे देख कर लग ही नहीं रहा था के वह इतनी बड़ी कंपनी का मालिक है । उसके संस्कार , उसका स्वभाव , उसका बात करने का तरीका , मुझे बहुत ही अच्छा लगा । सच कहूं तो आजकल के समय में भी इतने अच्छे इन्सान का होना मेरे लिए तो किसी चमत्कार से कम नहीं है । साथ ही उसका अपने दोस्तों के किए प्यार देख, मुझे तो बहुत अच्छा लगा और कायरा की भी चिंता से मुक्त हो गई मैं तो। सच मे उसे बहुत अच्छे संस्कार मिले हैं , बेहद ही शांत और सुलझा हुआ लड़का है वह, और बड़ों से कैसे पेश आना है ये उसे बखूबी पता है । वरना हमारे अंश के दोस्तों को देखा है आपने , कभी ऐसा नहीं होता के हाथ जोड़ कर नमस्ते भी कर लें । हमेशा हाय हैलो बोलकर जाते हैं हमसे । हमारा अंश तो कम से कम नमस्ते ही बोल देता है और हमारे रिश्तेदारों के हमेशा पैर छू कर ही प्रणाम करता है।

देवेश जी - आप भी क्या सोच रही है मालती जी । अंश और अंश के दोस्त अभी नादान है । और अंश वहीं करता है जो हम सभी को करते देखता है। और रही बाकी बच्चो की बात , तो वे सब भी जब मैच्योर हो जायेंगे तो ये सारी चीजें , और संस्कार समझने लगेंगे और उसे अपनाएंगे भी।

मालती जी - आप सही कह रहे हैं ।

देवेश जी - वैसे क्या नाम बताया आपने , कायरा के बॉस का???

मालती जी - जी , आरव शर्मा नाम बताया था एक बार कायरा ने ।

देवेश जी ( सोचते हुए ) - कहीं वह , शर्मा इंडस्ट्रीज के मालिक , मिस्टर राजेश शर्मा का बेटा तो नहीं ???!!!!

मालती जी - वो तो मुझे नहीं पता , ये सब आप कायरा से ही पूछ लीजिएगा । पर सच कहूं, तो मैं अपनी कायरा के लिए ऐसा ही जीवन साथी चाहती हूं । जो परिपक्व हो , शांत स्वभाव का हो , सभी से आदर सम्मान से बात करे , अपने आस - पास के लोगों का बखूबी खयाल रखें और सबसे बड़ी बात , वह हमारी कायरा के कदमों में सारे जहां की खुशियां बटोर कर रख दे ।

देवेश जी ( मुस्कुराते हुए ) - बहुत आगे का सोच रही हैं आप मालती जी । ( मालती जी मुस्कुरा देती है ) सच कहूं तो आपने जितना भी उस लड़के के बारे में बताया , उसकी खूबियों ने मुझे भी बहुत प्रभावित किया , और ये बात भी सच है के मैं भी अपनी बच्ची के लिए ऐसा ही जीवन साथी चाहता हूं । पर उससे पहले मैं चाहता हूं के मेरी बच्ची , पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो और अपने सपनो को पूरा करे । एक अच्छे मुकाम में पहुंचे जहां उसका नाम हो । और फिर जब वह यह सब अपनी मेहनत से पा लेगी , तब मैं खुद अपनी बच्ची के लिए ऐसा ही जीवन साथी ढूंढूंगा ।

मालती जी ( देवेश जी की आंखो मे झांकते हुए ) - और अगर हमारी बच्ची ने खुद ही अपने लिए जीवन साथी चुन लिया तो ????

देवेश जी ( चेहरे के भाव को चेंज कर एक लम्बी सांस लेते हुए ) - देखिए मालती जी , मैंने अपने बच्चो को हर बात के लिए छूट देकर रखी है । वे खाए - पियें , दोस्तों के साथ मौज - मस्ती करें , जो भी पढ़ना हैं उन्हें, उसके लिए मैं खुद खर्च करने के लिए तैयार हूं , उनके सारे सपने पूरे करूंगा , पर आप भी जानती है, ये नहीं हो सकता । मां का स्वभाव आपको अच्छे से पता है , और मेरे लिए बच्चे भी उतने ही जरूरी है जितनी कि मां । साथ ही बच्चो की खुशियां भी मुझे बहुत प्रिय है , पर मैं इस बात के लिए कभी राज़ी नहीं हो पाऊंगा के मेरे बच्चे मेरी मां के खिलाफ जाकर इतना बड़ा फैसला खुद से लें । मुझे अपनी मां के इच्छा के विरुद्ध जाना कतई गंवारा नहीं है । ये आप भी बहुत अच्छे से जानती है । ( चेयर से उठते हुए ) मैं नहाने जा रहा हूं , कृपया मेरे कपड़े निकाल कर बिस्तर पर रख दीजिएगा ।

इतना कह कर देवेश जी पेपर लेकर नीचे चले जाते हैं , और लिविंग रूम में पेपर को रख कर अपने कमरे के बाथरूम मे चले जाते हैं। मालती जी बालकनी में बैठे बस उन्हें भीगी पलकों से जाते हुए देख रही होती है और मन ही मन खुद से कहती हैं ।

मालती जी - पर मेरे लिए बच्चो की खुशियां और उनकी जिंदगी ज्यादा मायने रखती है । जी.....!!! अगर हमारे बच्चो ने अपनी ज़िन्दगी का ये अहम फैसला खुद से लिया, तो ये मेरे लिए सबसे ज्यादा खुशी की बात होगी । पर अफसोस के मैं आपको ये बात समझा नहीं पा रही हूं के आजके जमाने में बच्चो को ये छूट देना भी उतना ही जरूरी है, जितना के पढ़ाई के किए सब्जेक्ट सेलेक्ट करने की छूट देना । अगर बच्चे बिना जाने - समझे किसी भी अनजान रिश्ते में बांध दिए जाएंगे , तो वे कभी - भी खुश नहीं रह पाएंगे । मैं आपके फैसले के चलते अपने बच्चों का साथ तो नहीं दे पाऊंगी , क्योंकि मैं एक पतिव्रता स्त्री हूं , जिसके लिए पति की इच्छा ही सर्वोपरि होती है , लेकिन मैं अपने बच्चो को इतने अच्छे संस्कार दूंगी, के वे अपनी जिंदगी के अहम फैसले खुद कर सकें । साथ ही हर संभव प्रयास करूंगी आपको समझाने का, के बच्चो की खुशी में ही, हम माता - पिता की खुशी होती है ।

इतना कह कर मालती जी अपने आंखों में आए आंसुओं को अपने साड़ी के पल्लू से साफ कर , चाए का खाली कप लिए नीचे किचेन में चली जाती है , और वहीं सभी के लिए नाश्ता तैयार करने लगती हैं ।

कायरा की नींद सुबह के आठ बजे खुलती है । वह उठते ही अपने पैरों से चादर को हटाती है और खिड़की के पास आकर खड़ी हो जाती है । अब वह कल से बेहतर फील कर रही थी, इसी लिए वह किसी सहारे के बिना ही खिड़की तक आ चुकी थी । वहीं कायरा की नज़र आसमान पर जाती है, जहां सूरज बादलों को चीरकर अपनी रोशनी बिखरने की नाकाम कोशिशें कर रहा होता है, पर बादल हैं के सूरज को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे होते हैं । प्रकृति की ये अठखेलियां देख, कायरा को बड़ा सुकून मिलता है और वह मुस्कुरा देती है । तभी कायरा की नजर रोड पर चल रहे वाहनों और लोगों पर जाती है । आज कितनी चहल - पहल दिख रही थी उसे रोज की अपेक्षा सड़कों पर । तभी कायरा की नज़र नीचे चल रहे लोगों पर जाती है, जिनकी कलाई में ढ़ेरो राखियां बंधी हुई थी । राखियों को देख कर कायरा को ध्यान आता है, के आज तो रक्षाबंधन है , वह तुरंत पलट कर घड़ी की ओर देखती है जिसमे सवा आठ बज रहे थे । कायरा जल्दी से अलमारी से बहुत ही सुन्दर पिंक कलर का सूट निकालती है, और फिर उसे लेकर नहाने चली जाती है । थोड़ी देर बाद कायरा नहाकर पिंक कलर का सूट पहने, शीशे के सामने बैठकर, आंखों में गहरा काजल लगाती है , माथे पर छोटी सी लाल बिंदी लगाती है और होठों पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक लगा कर बालों को क्लचर से हाफ बांधती है और सूट के साथ लाल कलर का दुपट्टा एक साइड से पिन - अप कर नीचे मंदिर में आती है ।

नीचे मंदिर में आकर वह सबसे पहले पूजा की थाल में रखी राखी भगवान को चढ़ाती है और फिर आरती करती है । आरती करके अपने माथे पर लाल टिका लगाती है और भगवान के सामने झुक कर उनका आशीर्वाद लेती है । टीका लगाने की आदत कायरा की बरसों से थी । वह बिना भगवान के पास से टीका लगाए कहीं भी नहीं जाती थी । अब इसे कायरा की आस्था कह लें या फिर उसका अपने भगवान पर विश्वास । कायरा घर के मंदिर से लिविंग रूम मे आती है जहां पर देवेश जी टीवी देख रहे थे तो दादी पेपर पढ़ रही थीं । दादी को पढ़ने का बहुत शौक था , पर पढ़ी हुई चीज़ों को और लेखों को खुद के जीवन में उतारना उन्हें कतई पसंद न था । कायरा ने नजरें घुमाई , उसे अंश कहीं नहीं दिख रहा था । वह बिना किसी से कुछ बोले सीधे किचेन में आ गई और मालती जी से बोली ।

कायरा - गुड मॉर्निंग मम्मा !!!

मालती जी ( काम करते हुए ) - गुड मॉर्निंग बेटा ।

कायरा - मम्मा अंश कहां है ??? कहीं दिखाई नहीं दे रहा ।

मालती जी ( मूंग के हलवे में ड्राई फ्रूट्स डालते हुए ) - बेटा , अंश नहाने गया है ।

कायरा - ओह !! तभी कहीं नहीं दिख रहा था ।

तभी मालती जी की नजर कायरा के ऊपर जाती है और वे अपने आंख से काजल ले कर कायरा के गर्दन में लगाते हुए कहती हैं।

मालती जी - आज मेरी बच्ची बहुत प्यारी लग रही है , किसी की नजर न लगे मेरी गुड़िया रानी को ।

कायरा ( मुस्कुराकर गले लगाते हुए ) - थैंक्यू मम्मा ।

इतना कह कर कायरा मालती जी की हेल्प करने लगती है । जब मालती जी उसे काम करते देखती है तो उसके हाथ से प्लेट और चाकू लेते हुए कहती हैं ।

मालती जी - ये क्या कर रही हो बेटा??? अभी तुम पूरी तरह ठीक नहीं हुई हो , याद नहीं है रूही ने बताया था, के डॉक्टर ने रेस्ट के लिए कहा है तुम्हें ।

कायरा ( मुंह बनाते हुए ) - कल से जब से घर में आई हूं , रेस्ट ही तो कर रही हूं मम्मा ।

मालती जी - तो और रेस्ट करो , जाओ बाहर जा कर बैठो।

कायरा ( रिक्वेस्ट करते हुए ) - प्लीज ना मम्मा, करने दो ना मुझे आपकी हेल्प , बाहर बैठ कर मैं बोर हो जाऊंगी और फिर दादी भी तो है , वे मुझे खाली बैठे देखेगी तो सुनाएंगी।

मालती जी ( उपमा के लिए सुजी कढ़ाई में डालते हुए ) - तेरी दादी कुछ नहीं बोलेंगी बेटा , उन्हें पता है के तुम्हें रेस्ट की जरूरत है ।

कायरा ( मस्का लगाते हुए ) - प्लीज न मम्मा , वैसे भी आप इतना काम कर रही हो सुबह से उठ कर, कोई हेल्प करने वाला भी नहीं है , लाओ न मम्मा मैं ही हेल्प करा देती हूं आपकी।

मालती जी ( मुस्कुराते हुए ) - मुझे पता है, तुम्हारी बातों का मतलब क्या है । ज्यादा मस्का मत लगाओ अपनी मम्मा को ।

कायरा ( मिमियाते हुए ) - प्लीज न मम्मा ...... ।

मालती जी ( कढ़ाई में चम्मच चलाते हुए ) - अच्छा ठीक है । बाहर से चेयर ले आओ और उसी में वहां पर बैठ कर ( किचेन की दूसरी साइड इशारा करते हुए ) करो मेरी हेल्प।

कायरा एक फिर मुंह बना कर मालती जी को देखती है , और फिर बाहर लिविंग रूम से प्लास्टिक की चेयर लाकर बैठ जाती है और नाश्ते के लिए फल काटने लगती है । मालती जी उसकी हरकतों को मुस्कुराते हुए देख रही होती हैं ।

आरव अरनव से बात कर रहा होता है तभी सुनयना जी दोनों के पास आती है और कहती हैं ।

सुनयना जी - यहां क्या बैठे दरबार कर रहे हो दोनों भाई !!! चलो जल्दी से रेडी होकर घर के मंदिर में आओ , आज मैंने घर के सदस्यों की सलामती के लिए शिवार्चन रखवाया है, जिसमें घर के शादी - शुदा जोड़े बैठ कर पूजा करेंगे ।

आरव ( मुंह बनाते हुए ) - तो फिर मेरा वहां क्या काम मम्मी ???

सुनयना जी - अरे पूजा में बैठ कर आशीर्वाद लेगा के नहीं???? के भगवान खुद आएंगे तुझे आशीर्वाद देने???!!! ( अरनव से ) जा बेटा खुशी को भी ले आ , और तू भी तैयार हो जा , ( आरव से ) तुम भी जाओ आरव ,रेडी होकर आओ ।

आरव ( खीझते हुए ) - मम्मी मैं रेडी तो हूं , और कितना रेडी होऊं ???!!!!!

सुनयना जी ( फरमान सुनाते हुए ) - तो फिर चल मेरे साथ पूजा स्थल में , वहां मेरी मदद करवा , पंडित जी आते ही होंगे ।

आरव ( मासूमियत से ) - मम्मी प्लीज ना, अंशिका से करवा लो ।

सुनयना जी ( हल्के गुस्से के साथ ) - मैंने कहा ना , तुझे हेल्प करवाने के लिए , जब अंशिका फ्री होगी तो वह भी आ जायेगी ।

इतना कह कर सुनयना जी घर के मंदिर की और मुड़ जाती है , बेचारा आरव मन मार कर उनके पीछे - पीछे मुंह लटकाए चला जाता है और मन ही मन खुद को गाली दे रहा होता है के " क्यों उसने आज जल्दी नहाया और नहाया भी तो अपनी मम्मी को क्यों बता दिया 😐😑☹️।"

असल में आरव जितना पढ़ाई, ऑफिस और बाकी के कामों में एक्सपर्ट था , यहां तक कि उसे खाना भी बनाना आ जाता था , पर उसे पूजा में बैठना , पूजा की तैयारी वगेरह करना उतना ही बोरिंग लगता था । उसका कहना था के भगवान तो कण - कण में निवास करते हैं , फिर उन्हें मनाने के लिए पूजा घर में ही क्यों जाते हैं लोग ??? और जितना भगवान को खिलाने - पिलाने में खर्च किया जाता है , अगर उसका दस पर्सेंट भी भूखे और बेसहारा बच्चो में और इंसानों में बांट दिया जाए तो , भगवान को ज्यादा खुशी होगी । उसे ये पूजा पाठ वगेरह ढोंग लगता था , इसी लिए वह हर पूजा में बैठने के लिए आना - कानी करता था । ऐसा नहीं था के उसे भगवान पर विश्वास नहीं था , पर उसे ये सारे पूजा के नाम पर किए गए काम, अंधविश्वास ही लगते थे । पर अब जब उसकी मम्मी ने आदेश दिया था , तो वह उन्हें भला मना कैसे कर सकता था । थोड़ी ही देर में पंडित जी आ जाते हैं , और घर के सभी लोग पूजा में बैठ जाते हैं ।

यहां मालती जी का नाश्ता तैयार हो जाता है , कायरा और मालती जी मिलकर सभी के लिए डाइनिंग में नाश्ता लगाती है , तब तक अंश भी रेडी होकर आ जाता है । मालती जी कायरा का नाश्ता लगाती है, तो कायरा उन्हें रोकते हुए कहती है ।

कायरा - मम्मा मेरे किए नाश्ता मत लगाइए । आपको तो पता है, मैं अंश को राखी बांधे बिना कुछ नहीं खाती हूं ।

मालती जी ( कायरा की नाश्ते की प्लेट में , एक बाउल में थोड़ा ज्यादा सा उपमा, और प्लेट के दूसरी साइड पर ज्यादा सा पोहा रख कर कहती हैं ) - राखी का मुहूर्त ग्यारह बजे का है , तब तक तुम्हें भूखे रहने की कोई जरूरत नहीं है ।

राधा जी ( मालती जी की बात काटते हुए कड़क आवाज़ में ) - लेकिन बहु, ये बहन का कर्तव्य है , और हमारे घर की परंपरा भी , के बिना भाई को राखी बांधे , बहन पानी तक नहीं पीती है ।

राधा जी की बात सुनने के बाद मालती जी देवेश जी की ओर देखती हैं और देवेश जी आंखों के इशारों में ही उन्हें आगे बोलने को कहते हैं । देवेश जी की आज्ञा पाकर , मालती जी राधा जी से कहती है ।

मालती जी ( राधा जी की प्लेट पर सूखा नाश्ता रखते हुए ) - मां जी !!!! कायरा कल ही हॉस्पिटल से आई है , और उसकी हालत हम सभी से छुपी नहीं है , उसे सुबह की दवाई लेनी है , इस वजह से उसका नाश्ता करना बेहद जरूरी है ।

राधा जी - लेकिन बहू , ये बहन का......!!!!

राधा जी इतना ही बोल पाती हैं , के इतने देर से शांत बैठा अंश , जिससे अपनी दादी की बातें बर्दाश्त से बाहर हो रहीं थी, वह अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहता है ।

अंश - मम्मा, दीदी को भूखा रहने की कोई जरूरत नहीं है , किसी भी शास्त्र में ऐसा नहीं लिखा है के सेहत से ज्यादा, रीति रिवाज़ जरूरी है , और फिर अगर दीदी खाकर मुझे राखी बंधेगी, तब भी उसका उतना ही महत्व होगा जितना , बिना कुछ खाए होता है । मेरे हिसाब से, इन्सान की सेहत से बड़ा कुछ नहीं होता है । और मेरे लिए मेरी दीदी की सेहत ज्यादा मायने रखती है , ये रीति - रिवाज़ और कर्तव्य नहीं ।

अंश की बार सुनकर एक तरफ देवेश जी को थोड़ा बुरा लगता है , के अंश ने उसकी मां की बात काटी , पर उन्हें इस बात कि खुशी होती है , के अंश को रीति - रिवाज़ से ज्यादा अपनी बहन की फिक्र है । मालती जी और कायरा को अंश की बातों पर गर्व होता है । तो वहीं दूसरी तरफ राधा जी मुंह बना कर अपना नाश्ता करने लगती है , उन्हें बुरा तो लगता है , पर अंश की बातों का उनके पास कोई तोड़ नहीं था, इस लिए वे आगे कुछ नहीं कहती हैं । देवेश जी माहौल को बदलने के लिए कायरा की तबीयत से लेकर अंश की पढ़ाई तक का पूछ डालते हैं , और सभी नॉर्मली बात कर नाश्ता करने लगते हैं ।

आरव के घर में शिवार्चन संपन्न होता है , और पंडित जी मिस्टर शर्मा से कुछ बात कर रहे होते हैं , तभी सुनयना जी आरव और अंशिका की जन्मकुंडली पंडित जी के सामने लाकर रख देती है और कहती हैं ।

सुनयना जी - पंडित जी , हमारा अरनव तो अपने जीवन में सेटल हो चुका है , अब अगर हमारा आरव और हमारी बच्ची अंशिका भी अपने जीवन में सेटल हो जाती तो अच्छा रहता । ( जन्मकुंडली की ओर इशारा करते हुए ) आप इनकी जन्म पत्रिका देख कर बताइए ना , के हमारे बच्चो का आनेवाला जीवन कैसे होगा ।

तभी अरनव किसी से फोन पर बात करने के लिए मिस्टर शर्मा को ले जाता है , उनके जाने के बाद पंडित जी अंशिका की जन्मकुंडली देखते हुए कहते हैं ।

पंडित जी ( आंखों में चमक लाते हुए ) - आपकी बच्ची तो बहुत होनहार है , वह अपने जीवन में बहुत नाम कमाएगी, और आपके परिवार का नाम रोशन करेंगी। बस एक चीज ही है, जो शायद आपको अच्छी न लगे ( सुनयना जी हैरानी से पंडित जी को देखने लगती है , तो पंडित जी आगे कहते हैं ) चिंता मत कीजिए , ज्यादा बड़ी बात नहीं है , पर आपकी बेटी अपने जिस सपने को पूरा करेगी, उसमें वह आपकी मदद लेना बिल्कुल भी पसंद नहीं करेगी , उसे खुद से अपने बलबूते पर अपने सपने पूरे करना मंज़ूर होगा ।

सुनयना जी ( मुस्कुराते हुए ) - पंडित जी , हमारी बच्ची खुश रहे , बस हमें तो उसी में संतुष्टि है ।

पंडित जी अंशिका की जन्मकुंडली साइड मे रख कर आरव की कुंडली देखते हैं। आरव की कुंडली देखते हुए पंडित जी के चेहरे के भाव बार - बार बदल रहे थे , और सुनयना जी उनके चेहरे के भावों से अच्छा या बुरा समझने की कोशिश कर रही थी । जब बहुत देर तक पंडित जी किसी गणना में व्यस्त रहते हैं , कुछ नहीं बोलते हैं , तो सुनयना जी बेसब्र होकर कहती है ।

सुनयना जी - पंडित जी , क्या हुआ ? सब ठीक तो है ना आरव की जन्मकुंडली में ????

पंडित जी ( गहन सोच से बाहर निकल कर सुनयना जी से कहते है ) - अभी तक तो सब ठीक था सुनयना जी , पर आने वाले कुछ समय में सब ठीक हो, उसकी उम्मीद रखना शायद गलत होगा ।

सुनयना जी ( अधीर होकर ) - आपके कहने का आशय क्या है पंडित जी ????

पंडित जी ( शांत स्वर में ) - सुनयना जी !!! आपके बेटे की ग्रह दशा कुछ ही दिनों में बदलने वाली है । आरव के ग्रहों में राहु का प्रवेश होने वाला है । जब किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली में राहु प्रवेश हो जाता है, तो उस अंतराल में चलने वाला समय , राहुकाल कहलाता है । ये राहुकाल किसी भी व्यक्ति के किए शुभकारी नहीं होता है ।

सुनयना जी - पंडित जी , इससे आरव के जीवन पर कोई दुष्प्रभाव तो नहीं होगा ????

पंडित जी - जैसे कि मैंने बताया के यह काल किसी भी व्यक्ति के किए शुभकारी नहीं होता है , उस हिसाब से आपके बेटे के जीवन में भी बहुत सी विपत्तियां घर करने वाली है। जिसके बहुत से दुष्प्रभाव होंगे । आपके बेटे को आने वाले समय में बहुत सी कठिन परिस्थितियों का सामना करना होगा , जिससे उन्हें काफी तकलीफ भी उठानी होगी ।

सुनयना जी - इसका कोई उपाय है पंडित जी ????

पंडित जी - इसका कोई भी उपाय अभी तो मुझे मालूम नहीं पड़ रहा है , पर इनकी विपत्तियों को कम करने के किए इनके जीवन में किसी ऐसे व्यक्ति का प्रवेश होगा , जिनके वजह से आपके बेटे का जीवन पूर्णतः परिवर्तित हो जाएगा । जब वो दोनों साथ होंगे , तब वे एकसाथ भविष्य में आने वाली सभी मुसीबतों को हंसते हुए पार कर जायेंगे ।

सुनयना जी - वह कौन होगा पंडित जी , जो मेरे बेटे के साथ उसकी मुसीबतों में साथी होगा ।

पंडित जी - ये तो वक्त ही बताएगा सुनयना जी के वह कौन होगा या कौन हो..... , उसका रिश्ता आपके बेटे के साथ दोस्त का होगा या जीव........, ( अपनी बात को पंडित जी अधूरा ही छोड़ देते हैं और फिर आगे बोलते हैं ) पर इतना समझ लीजिए सुनयना जी , आपके बेटे के जीवन में वह अहम भूमिका अदा करेगा । राहुकाल का प्रभाव कम से कम आपके बेटे के जीवन में दो से तीन साल के बीच रहेगा । पर अगर उस व्यक्ति का, जिसका मैंने आपसे अभी जिक्र किया है , उसका साथ आपके बेटे से छूट गया , तब राहुकाल अपना प्रभाव कब तक दिखाएगा , इस बात की समय सीमा निश्चित नहीं है ।

सुनयना जी ( शांत भाव से ) - ठीक है पंडित जी , अगर हमारे बेटे के जीवन में यही लिखा है, तो उसे हम बदल तो नहीं सकते , पर हां उसके साथ खड़े होकर, अपने बेटे को हौसला तो दे ही सकते हैं ।

पंडित जी ( अपना सामान उठाते हुए ) - माफी चाहूंगा सुनयना जी , मैं ज्यादा वक्त यहां नहीं रुक सकता । रक्षाबंधन का मुहूर्त ग्यारह बजे का है , ( अपनी हाथ में बंधी घड़ी को देखते हुए ) और अभी सवा दस हो चुके हैं । मुझे निकलना चाहिए ।

सुनयना जी ( उठते हुए ) - पर पंडित जी , भोजन तो ग्रहण कर लेते, तो हमें भी अच्छा लगता।

पंडित जी ( मुस्कुराते हुए, शांत भाव से ) - माफ कीजिएगा सुनयना जी , पर हमारे यहां जब तक बहन - भाई को राखी नहीं बांध देती, तब तक घर का कोई भी सदस्य अन्न का एक भी दाना ग्रहण नहीं करता है । ( हाथ जोड़ते हुए ) मेरी बहनें मेरा इंतजार कर रही होंगी , इस लिए आप मुझे जाने की आज्ञा दीजिए ।

सुनयना जी कुछ गिफ्ट्स पंडित जी को देती हैं और फिर घर के सभी सदस्य उनके चरणस्पर्श करते हैं । और पंडित जी सभी को आशीर्वाद देकर अपने घर की ओर चले जाते हैं ।

कायरा के यहां , सभी नाश्ता कर रक्षाबंधन की तैयारी में लग जाते हैं । उन्हें तैयारी करते हुए ही ग्यारह बज जाते हैं । टाइम देखते ही मालती जी अंश को कायरा से राखी बंधवाने बोलती हैं । कायरा आरती की थाल में राखियों को रख कर लिविंग रूम में आ जाती है , मालती जी किचेन से एक बड़ी सी प्लेट में सजाकर ढेर सारी मिठाई ला देती है ।
अंश सोफे पर बैठ जाता है और वही पर राधा जी और देवेश जी भी बैठे होते हैं। कायरा अंश के सिर में सफेद रुलाम डालती है , और फिर उसे हल्दी कुमकुम का तिलक कर , उसके दाहिने हाथ में राखी बांधती है। फिर अंश की आरती कर , उसे मिठाई का टुकड़ा खिलाती है, जिसे खाने के बाद आधा टुकड़ा अंश प्यार से कायरा की ओर बढ़ा देता है और कायरा उसे होठो में मुस्कान लिए खा लेती है । फिर कायरा अंश को नारियल देती है और अंश कायरा के चरणस्पर्श करता है । कायरा आरती की थाल को साइड मे रख कर देवेश जी से कहती है ।

कायरा ( देवेश जी की ओर हाथ बढ़ाते हुए ) - पापा ! दीजिए अंश को रखी बांधने का शगुन ।

अंश ( देवेश जी से , कायरा की फिरकी लेते हुए ) - हां पापा , शगुन का एक का सिक्का दे दीजिए इन्हें , खुश हो जाएंगी ये ।

कायरा ( अंश को आंख दिखाते हुए ) - एक तो तूने खुद पापा से नहीं कहा के वे मुझे गिफ्ट या राखी का शगुन तेरे तरफ से दें , और अब मैं खुद से मांगा रही हूं , तो तू ज्यादा होशियार बन रहा है !!!!!

अंश ( बेपरवाही से ) - मैं कहां होशियार बन रहा हूं दीदी ??? मैंने तो कहा न पापा से, के आपको शगुन के रूप में एक का सिक्का दे दें।

देवेश जी ( कायरा की साइड लेते हुए ) - खबरदार जो मेरी बेटी को परेशान किया तो , ( जेब से एक हजार का नोट निकालते हुए ) लो बेटा , तुम्हारा शगुन ।

अंश ( देवेश जी के हाथ से नोट लेकर वापस उसके हाथ में पकड़े हुए पर्स में डालते हुए ) - ये अपने पास रखीए आप पापा , दीदी के लिए मैं खुद गिफ्ट लेकर आया हूं ।

कायरा ( आंखे चमकाते हुए ) - अरे वाह.....। क्या लाया है तू मेरे लिए , दिखा तो सही ।

अंश ( अपनी जेब से चांदी का पतला सा, बहुत सुंदर सा ब्रेसलेट कायरा की ओर बढ़ाते हुए ) - ये रहा दीदी आपका गिफ्ट , आपको पसंद तो आया ना????

कायरा ( प्यार से ब्रेसलेट को अपने हाथ में लेकर , अंश के गले लगते हुए ) - बहुत सुंदर है अंश । अभी तक के मेरे रक्षाबंधन का सबसे अच्छा गिफ्ट है ये ।

मालती जी ( हैरानी के साथ अंश से कहती हैं ) - पर बेटा , तुम्हारे पास इतने पैसे कहां से आए ???

अंश ( मुस्कुराते हुए ) - मम्मा , जब पापा हमें पॉकेट मनी देते थे , उससे कुछ पैसे मैंने दीदी को गिफ्ट देने के लिए बचा कर रखे थे । गिफ्ट शॉप पर मुझे कुछ पसंद नहीं आया, तो मैं सोनार की दुकान जाकर दीदी के लिए ये ब्रेसलेट ले आया ।

अंश की बात सुनकर सभी को बहुत खुशी होती है , कायरा अंश को एक बार फिर गले लगा कर कहती है ।

कायरा ( अपने पलकों पर खुशी के आंसू लिए ) - मेरा छोटा सा भाई इतना बड़ा हो गया , के वह अपनी जरूरतों को अधूरा छोड़ कर मेरे लिए गिफ्ट ले आया । सच मे अंश , आज तूने बता दिया , के तू मुझसे कितना प्यार करता है । लव यू मेरे छोटे से भाई ।

अंश ( प्यार से ) - लव यू टू मेरी प्यारी दीदी ।

दोनों भाई बहनों का प्यार देख मालती जी की आंखें भर आती है , और देवेश जी भगवान से यही प्रार्थना करते हैं , के इस घर में ऐसे ही खुशियां बनी रहें । दादी भी आज दोनों भाई बहन का प्यार देख खुद को नहीं रोक पाती और अपने दोनों हाथ आगे कर दोनों बच्चो की बलैयां लेती हैं।

उधर अंशिका , अरनव और खुशी को राखी बांध कर जैसे ही आरव को राखी बांधने को होती है के दरवाज़े से आदित्य , नील और राहुल उसे आते हुए दिखाई देते हैं , वह दौड़ कर उन तीनो के गले लगती है और उन्हें ताना मारते हुए कहती है ।

अंशिका ( मुंह बनाते हुए ) - बड़ी जल्दी याद आ गई आप लोगों को, अपनी इकलौती बहन की ।

नील ( अंशिका के गाल खीचते हुए ) - हां , तभी तो हम इतनी जल्दी आए है । ( घड़ी की ओर इशारा करते हुए ) देखो मुहूर्त से सिर्फ आधा घंटा पीछे ही हुए हैं ।

नील की बात पर सभी खिलखिलाकर हंस देते हैं , पर अंशिका फिर से मुंह बनाते हुए कहती है ।

अंशिका - वेरी बेड जोक नील भाई ।

अंशिका की बात पर एक बार फिर सभी हंस देते हैं। नील , राहुल और आदित्य सभी के साथ सोफे पर आकर बैठ जाते हैं , सर्वेंट उन्हें पानी देकर चले जाते हैं । राहुल अंशिका से कहता है ।

राहुल - अरे हमारी इकलौती , छोटी सी, प्यारी सी बहना , हमें भी राखी बांधो ।

राहुल के कहने पर अंशिका सबसे पहले आदित्य को, फिर राहुल को , इसके बाद नील को और सबसे लास्ट में आरव को राखी बांधती है । आदित्य, नील और राहुल कि कोई बहन नहीं होती , इस लिए वे अंशिका से ही रखी बंधवाते थे और उसे छोटी बहन जैसा ही प्यार देते थे। तीनों ही आरव की फैमली का हिस्सा बन चुके थे , इस लिए जब चाहे घर आते जाते रहते थे और आरव के घर वाले , खास कर अंशिका तीनों को बहुत मानती थी । जब भी आरव उसकी कोई बात नहीं मानता था, तो वह अपनी बात मनवाने के लिए इन्हीं तीनों का सहारा लेती थी । आरव के राखी बांधते टाइम नील और राहुल को कुछ सूझता है और वो लोग राहुल के मोबाइल में एक गाना लगा देते हैं, " बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है ,प्यार के दो तार से, सँसार बाँधा है ,रेशम की डोरी से, रेशम की डोरी से , रेशम की डोरी से सँसार बाँधा है ।" गाना सुन का बाकी सब मुस्कुरा देते हैं तो वहीं अंशिका को ये सारे पुराने गाने बहुत बोरिंग लगते थे , तो वह चिढ़ते हुए कहती है ।

अंशिका - क्या भाई , आप लोग मुझे तंग करने का एक भी मौका नहीं छोड़ते हो । ये कैसा इमोशनल टाइप का गाना लगा दिया है , बंद करिए ना इस गाने को।

सभी अंशिका के चिढ़ने से हंस देते हैं और नील गाना बंद कर देता है । अंशिका राखी बांधने के बाद सभी से कहती है ।

अंशिका ( अपना हाथ आगे कर ) - लाओ , सभी अपना - अपना गिफ्ट चुप - चाप मेरे हाथों में रखो।

नील ( अपने हाथ ऊपर करते हुए ) - पर हम सभी ने तो कोई गिफ्ट ही नहीं लिया , ( अरनव की तरफ देख कर आंखें मटकाते हुए ) है न अरनव भैया..... ।

अरनव ( भी नील की हां में हां मिलाते हुए कहता है ) - हां ....., हमने तो कोई गिफ्ट ही नहीं खरीदा तेरे लिए।

अंशिका ( उदास सा चेहरा बनाते हुए ) - कैसे भाई हो आप लोग , राखी बंधवा ली और गिफ्ट भी नहीं लाए ।

खुशी ( अंशिका का उदास चेहरा देखती है, तो सभी को डांट लगाते हुए कहती है ) - खबरदार, जो किसीने मेरी अंशिका को रुलाया तो। ( अंशिका के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए ) मेरी प्यारी सी बहन को अगर कोई भी परेशान करोगे तो फिर तुम सबकी खैर नहीं । ( सभी खुशी की बात सुन मुस्कुरा देते है , तो खुशी अरनव से कहती है ) अरनव जी , लाइए हमारी अंशिका का गिफ्ट उसे दीजिए ।

खुशी की बात सुन कर मुस्कुराते हुए अरनव अंशिका को गिफ्ट देता है और उससे कहता है ।

अरनव - ओपन करके नहीं देखेगी, के हमने तुझे क्या गिफ्ट दिया है !!!!

अंशिका अरनव के कहने से गिफ्ट खोलती है, उसमें अच्छी कंपनी का लैपटॉप होता है । उसे देखते ही अंशिका खुशी से फूले नहीं समाती है , और लेपटॉप को टेबल पर रख कर खुशी और अरनव के गले लग कर चहकते हुए कहती है ।

अंशिका - वाव भैया - भाभी , आप दोनों ने तो मुझे बहुत अच्छा गिफ्ट दिया है, ( फिर दोनों से अलग होकर लेपटॉप की ओर देखते हुए ) वैसे भी मेरा पुराना लैपटॉप बहुत ज्यादा हैंग हो रहा था , इस लिए मैं दूसरे लैपटॉप के लिए पापा को बोलने ही वाली थी , पर आपने पहले ही मुझे गिफ्ट कर दिया ।

अरनव - पसंद आया ???

अंशिका ( खुशी से चहकते हुए ) - बहुत , बहुत , बहुत पसंद आया भैया । ( आरव के पास जाकर ) अब आप मेरा गिफ्ट देंगे, के मैं पापा को बुलाऊं ???

आरव ( मुस्कुराते हुए ) - अरे नहीं मेरी मां , ( अपने पीछे छुपाया हुआ गिफ्ट निकाल कर अंशिका को देते हुए शरारत से ) ये ले तेरा गिफ्ट , तेरा गिफ्ट लेकर आखिर मैं जाऊंगा कहां ।

अंशिका ( आंखें बड़ी करते हुए ) - मतलब क्या है आपका !!!????

आरव ( मुस्कुराते हुए ) - कुछ मतलब नहीं है माता जी , अब अपना गिफ्ट ओपन कर और बता के कैसा है ।

अंशिका आरव का दिया हुआ गिफ्ट ओपन करती है । गिफ्ट देखकर अंशिका के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ जाती है क्योंकि , गिफ्ट के रूप में आरव ने उसे एमबीबीएस का एग्जाम फाइट करने की बुक्स दी थी । अंशिका आरव को गले लगाते हुए कहती है ।

अंशिका ( आरव को गले लगाकर उछलते हुए ) - थैंक्यू.... , थैंक्यू सो मच भाई , ( बुक्स को देख कर ) इन बुक्स को मैने कहां - कहां नहीं ढूंढ़ा , पूरा मुंबई शहर का मार्केट छान मारा , पर ये बुक्स मुझे कहीं नहीं मिली ।

आरव - क्योंकि ये बुक्स मुंबई में अवेलेबले ही नहीं थी। और हम सभी जानते हैं , के तेरे लिए ये बुक्स और डॉक्टर बनने का सपना, कितना मायने रखता है। बस इसीकारण, ये बुक्स मैंने तेरे लिए दिल्ली से मंगवाई है ।

अंशिका - थैंक्यू भाई ।

आरव ( अंशिका को साइड से हग करते हुए ) - योर मोस्ट वेलकम माय सिस्टर ।

अंशिका बुक्स को टेबल पर रख कर आदित्य की ओर जाती है और आदित्य प्यार से एक गिफ्ट देते हुए अंशिका से कहता है ।

आदित्य - लाडो , ये है तेरा गिफ्ट ।

आदित्य प्यार से अंशिका को हमेशा लाडो बुलाता था । राहुल और नील प्यार से अंशिका को स्वीटी बुलाते थे । अंशिका आदित्य का गिफ्ट देखती है और पाती है के उसमें बहुत ही प्यारी बेबी पिंक कलर की सुंदर सी लॉन्ग ड्रेस थी ।
अंशिका आंखे फाड़े आदित्य से कहती है ।

अंशिका - वाव आदि भाई , ये तो बहुत ही सुन्दर ड्रेस है , ये आपने खुद मेरे किए चूज़ की ???

आदित्य ( मुस्कुराते हुए ) - ये ड्रेस तेरी होने वाली भाभी , सौम्या ने पसंद की है ।

अंशिका ( मुस्कुराते हुए ) - बहुत प्यारी है भाई , भाभी की पसंद बहुत अच्छी है , ( आदित्य को ताना मारते हुए ) तभी तो मैं कहूं के मेरे सीधे - साधे भाई को इतनी अच्छी ड्रेस कहां से मिल गई ।

सभी अंशिका की बात सुनकर हंस देते हैं और आदित्य अंशिका की बात पर हल्का शर्मा जाता है । अंशिका , ड्रेस को सोफे पर रख कर राहुल के पास जाती है और राहुल उसे प्यार से गिफ्ट देकर कहता है ।

राहुल - ये रहा स्वीटी तेरा गिफ्ट , बहुत मेहनत करनी पड़ी है मुझे तेरा गिफ्ट ढूंढ़ने में ।

सभी राहुल की बात सुन हंस देते हैं और अंशिका राहुल का गिफ्ट खोलती है , उसे भी देख अंशिका की आंखे फटी की फटी रह जाती है , क्योंकि राहुल ने उसे बहुत ही सुन्दर हीरे का प्यारा सा ब्रेसलेट दिया था । उसे अपने हाथ में पहन कर अंशिका राहुल से कहती है ।

अंशिका - बहुत प्यारा गिफ्ट है भाई आपका , मैं इसे हमेशा अपने पास संभाल कर रखूंगी ।

इतना कहकर वह राहुल को साइड से हग करती है फिर नील की तरफ जा कर हाथ बढ़ा कर कहती है।

अंशिका - नील भाई , मेरा गिफ्ट दीजिए ।

नील ( मासूम बनते हुए ) - पर स्वीटी, मैं तो सच में तेरा गिफ्ट लाना भूल गया ।

अंशिका ( आंखे चढ़ाते हुए ) - क्या.......???? आप ऐसे कैसे मेरा गिफ्ट भूल गए , ( फिर छोटी बच्ची की तरफ मचलकर झूठ - मूठ का गुस्सा दिखाते हुए ) मुझे अभी गिफ्ट चाहिए , आप जाओ और मेरा गिफ्ट लेकर अभी आओ ।

नील ( बाकी के गिफ्ट्स की ओर इशारा करते हुए ) - पर इतने सारे गिफ्ट्स तो हैं तेरे पास , और गिफ्ट का क्या करेगी ???

अंशिका - मुझे नहीं पता , पर मुझे आपका गिफ्ट चाहिए ।

नील सोफे से उठता है और सोफे के पीछे जो उसने सभी की नज़रों से बचा कर बड़ा सा गिफ्ट छुपाया हुआ था , उसे निकाल कर अंशिका को देता है ।

नील - ये ले स्वीटी तेरा गिफ्ट । चल - चल ज्यादा आंसू मत बहा । ( अपने बालों में हाथ फिराते हुए ) तू भी क्या याद रखेगी , जा दिया तुझे तेरा गिफ्ट ।

अंशिका घूरकर नील को देखती है फिर गिफ्ट ओपन करती है और आंखें चमकाते हुए कहती है ।

अंशिका ( मुंह में पानी लाते हुए ) - वाओ , माय फेवरेट, चॉकलेट्स , वो भी इतनी सारी 😋😋😋😋😋😋🥳🥳🥳🥳🤗🤗🤗। ( नील की ओर मासूमियत से देखते हुए ) ये सब मेरे लिए है ???

नील ( उसकी मासूमियत पर हंसते हुए ) - हां मेरी स्वीटी , ये सारी चॉकलेट्स तेरे लिए ही है , और उसे ध्यान से देखेगी तो इतनी सारी चॉकलेट्स के बीच तुझे एक और गिफ्ट दिखेगा ।

नील के कहने पर अंशिका उस बड़े से बॉक्स में झांकते हुए देखती है तो उसे बहुत ही प्यारी सी एक जोड़ी पायल मिलती है। अंशिका उसे अपने हाथों में लेकर बड़े ध्यान से उसकी खूबसूरती को देखती है , वह पायल अंशिका के हाथों में आते ही छन - छन की आवाज़ करते हुए बजने लगती है, जिससे अंशिका किसी छोटे बच्चे की तरह खुशी से उछलने लगती है , और उसे तुरंत अपने पैरों में पहनती है । उसकी इस तरह की मासूमियत भरी हरकतें देख सभी को उस पर बहुत प्यार आ रहा होता है और सभी उसे मुस्कुराते हुए देख रहे होते है । अंशिका पैरों में पायल पहन का चलते हुए ।

अंशिका - ये मेरे पैरों में कैसी लग रही हैं ???

सभी एक साथ कहते है - बिल्कुल हमारी प्यारी सी अंशिका जैसी ।

अंशिका सबकी बात सुन हंस देती है, नील उससे कहता है ।
नील - पसंद आया तुझे तेरा गिफ्ट ???

अंशिका ( खुशी से नील को गले लगाते हुए ) - बहुत ही ज्यादा पसंद साया भाई , आप सच में बहुत अच्छे हो ।

नील ( अंशिका का मजाक उड़ाते हुए ) - अरे ... अरे बस कर स्वीटी , मेरे गले से लटककर मेरी जान ले लेगी क्या ?? अभी तो तेरे भाई की शादी भी नहीं हुई है ।

नील की बात सुन अंशिका नील से अलग हो जाती है , और घूर कर उसे देखने लगती है फिर सभी की तरफ देख कर जोर से हंसने लगती है , बाकी सब भी ठहाका मार कर हंस देते हैं तभी सुनयना जी सभी को आवाज़ देते हुए कहती हैं ।

सुनयना जी ( डाइनिंग में खाना रखवाते हुए ) - चलो बच्चों , तुम सभी की मस्ती हो गई हो तो, खाना लग गया है, आकर खा लो।

सुनयना जी की बात सुन कर सभी उनके पास आते हैं , और डायनिंग में बैठ कर हंसी मजाक करते हुए खाना खाते हैं । कुछ ही पल में मिस्टर शर्मा भी उन्हें ज्वाइन कर लेते हैं , फिर सभी मस्ती करते हुए अपना - अपना खाना फिनिश कर , आरव के रूम मे चले जाते हैं , और वहीं बैठ कर बातें करने लगते है .....।

क्रमशः

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