आज मेरे यार की शादी है,
यार की शादी है मेरे दिलदार की शादी है !
आज के खुशनुमा माहौल में सुरेश भी कुछ इस तरह से शामिल हुआ कि जैसे कुछ हुआ ही न हो ! बड़ी ही धूमधाम से आज अनुराधा जी के एकलौते बेटे का विवाह सम्पन्न हो गया ! हालांकि विवाह की सभी रस्मों को सुमित नें बड़े ही औपचारिक ढंग से और अपने चेहरे पर एक बनावटी व बेहद फ़ीकी मुस्कान के साथ निभाया था जिसे उसकी माता जी समेत उसके कई अन्य बेहद करीबी रिश्तेदार,समझकर भी नहीं समझना चाह रहे थे । इन सब में एक उसका दोस्त सुरेश ज़रूर था जिसनें खुद भी सुमित की सिचुएशन को समझा और सुमित को भी इस बाबत समय-समय पर समझाता रहा ।
गाँव में कुलदेवी की पूजा से लेकर अन्य रिश्तेदारों की खचाखच मौजूदगी के चलते सुमित अपनी नई-नवेली धर्मपत्नी पल्लवी से ठीक से मिल भी नहीं पाया और न ही उसने उससे मिलने की अपनी तरफ़ से कोई खास कोशिश ही की। प्राइवेट जॉब में इतनी छुट्टी भी उसे नहीं मिल सकी कि वो कुछ दिन वहाँ ठहर पाता और इस बीच पल्लवी को अपने मायके भी जाना था और अनुराधा जी भी कुछ दिन बहू का सुख उठाने की अपनी प्रबल इच्छा के चलते उसे सुमित के साथ नहीं भेजना चाहती थीं तो बस हमारे सुमित बाबू बेचारे जैसे खाली हाथ बनारस गये थे बस वैसे ही खाली हाथ वहाँ से वापिस भी लौट आये !
सुमित जब भी घर पर फोन करता तो न तो उसकी माता जी ही कभी सुमित से उसकी पत्नी पल्लवी से बात करने के लिए कहतीं और न ही सुमित नें ही कभी ऐसी कोई इच्छा जताई और बेचारी पल्लवी इसे सुमित की नीरसता नहीं बल्कि उसका संकोची स्वभाव व संस्कार मान रही थी ।
दो-चार महीने बाद जब अनुराधा जी को सुमित का रवैया कुछ खटका तो अपने पति देव से सलाह-मशवरा करने के बाद वो इस नतीजे पर पहुंची कि अब बहू को बेटे के पास भेजने में ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि उनकी ये स्वार्थपरता उनके जीवन भर की पीड़ा बन जाये !
पल्लवी अब दिल्ली आ चुकी थी, उसे उसका छोटा भाई रतन यहाँ छोड़कर गया था क्योंकि इस बार भी सुमित नें छुट्टी न मिलने का बहाना बनाकर बनारस जाने से साफ इंकार कर दिया था ।
पल्लवी का भाई दो दिन ठहरने के बाद आज सुबह की ट्रेन से वापिस मिर्जापुर जा चुका था ।
सुमित के ऑफिस जाने के बाद पल्लवी सारा दिन बेतरतीब से पड़े हुए फ्लैट को घर बनाने की कवायद में जी जान से जुट गई । शाम के ढलते-ढलते तो उसनें सुमित के पसंद का सारा खाना वगैरह भी बना लिया था जिसकी जानकारी वो पहले से ही सुमित की माता जी से लेकर आयी थी । अब बाकी था तो बस पल्लवी का बनाव-श्रंगार जिसकी तैयारी भी वो पहले से ही कर चुकी थी । उसनें पहले से ही एक हल्की आसमानी रंग की बेहद खूबसूरत साड़ी अपने पहनने के लिए प्रैस करके रखी हुई थी और उसके साथ की मैचिंग चूड़ियाँ, बिंदिया, कान के झुमके और हाँ हल्की गुलाबी रंग की लिपस्टिक भी ! सचमुच पल्लवी का मैनेजमेंट तो बस कमाल का था । इतना सब इतने परफैक्टली करना उसके कुशल टाइम-मैनेजमेंट की ओर ही इशारा कर रहा था ।
सुमित जब ऑफिस से आया तो उसनें पल्लवी पर पहले तो कुछ खास ध्यान ही नहीं दिया लेकिन फिर जब वक्त के बीतने के साथ उसे चाय के साथ अपना फेवरेट पनीर सैंडविच और रात के खाने में हर एक डिश उसकी ही पसंद के मुताबिक जान पड़ी तो फिर धीरे-धीरे उसका ध्यान पहले करीने से सजे-संवरे उसके घर पर और फिर पल्लवी पर भी गया । इतने दिनों में शायद आज पहली बार सुमित नें पल्लवी को नज़र भरके देखा था, हाँ इससे पहले सुमित नें एक बार जब सरसरी निगाह डाली थी पल्लवी पर तो वो इस निराशा से भर उठा था कि पल्लवी एक इकहरे बदन की स्त्री थी जो कि सुमित की पसंद के बिल्कुल विपरीत थी क्योंकि सुमित को भरे हुए बदन की स्त्रियाँ ज्यादा पसंद थी या कह सकते हैं कि उसे सपना जैसी ही लड़कियां पसंद थीं मगर आज जब सुमित नें पल्लवी को देखा तो अनायास ही उसके मुँह से निकल गया...नॉट बैड! !
"जी...कुछ कहा आपनें", पल्लवी नें इतनी तत्परता से पूछा कि लगा मानो वो बस इसी पल का इंतज़ार कर रही थी कि सुमित उससे कुछ बोले और उसे बात करने का कोई ज़रिया मिले ।
हाँ...वो...नहीं...मेरा मतलब है कि आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं ।
"देखिए आप मुझे, आप न कहें तो मुझे बहुत अच्छा
लगेगा क्योंकि आप में दूरियां बहुत हैं और मैं अब आपसे दूर नहीं रहना चाहती तो आप न मुझे तुम ही कहें !", ये कहते हुए हया की बिखरी हुई लाली से निखर उठे पल्लवी के गोरे गाल !
अब तो सुमित बाबू को पल्लवी की आवाज़ भी दिलकश मालूम पड़ रही थी या शायद इससे पहले तो उन्होंने कभी उसे ध्यान से सुनने की कोशिश ही नहीं की थी ।
खाना खाकर सुमित बेडरूम में जाकर बिस्तर पर लेटकर कोई एक किताब पढ़ने लगा और पल्लवी किचेन समेटने में व्यस्त हो गई । इससे पहले कि पल्लवी रूम में पहुंचती सुमित नींद के आगोश में जा चुका था, अब ये उसकी दिनभर की व्यस्त दिनचर्या का परिणाम था या फिर उसकी पल्लवी से दूर रहने के लिए जानबूझकर आजमायी गई तरकीब ! ! !
मोहब्बत होना तो बहुत
लाज़मी सा है मियां !
क्योंकि ऐसी न जाने
कितनी रातें अभी
आनी बाकी हैं !
होठों से होठों के छलकने
जाम अभी बाकी हैं !
न जाने कितने सवाल
अभी बाकी हैं !
कितने जवाब
अभी बाकी हैं !
महकने बदन के गुलाब
अभी बाकी हैं !
क्योंकि चढ़ना शबाब
अभी बाकी है !
इन सवालों का जवाब अगले भाग में... क्रमशः
लेखिका...💐निशा शर्मा💐