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रसोईघर

नए घर में शादी के बाद आज रचना का चौथा दिन था।अब तक तो सब ठीक ही था।रचना को मायके की ही तरह प्यार और दुलार यहाँ भी मिल रहा था आज रचना का रसोई पूजन थाजिससे रचना कुछ डरी हुई थी। हाथों में मेहंदी, बालो में गजरा लगाए महकती हुई रचना को जब उसकी दोनों जेठानियाँ रसोईघर की ओर ले जाने लगीं तो घबराहट के मारे रचना काँप उठी और एक पल को ठिठक गई । दोनों जेठानियाँ ज़ोर से हँसते हुए बोलीं अरे घबराने की ज़रूरत नहीं है बस घर के ही लोग होंगे। रचना भारी मन से रसोईघर की ओर चल पड़ी अपनी दोनों जेठानियों के साथ, वह मन ही मन अपनी माँ को याद करने लगी साथ ही माँ पर नाराज़ भी होने लगी मैं तो नादान थी माँ को तो मुझे खाना बनाना सिखाना चाहिए था,अब क्या होगा ? शादी के बाद आज पहली बार मुझे खाना बनाना है कल तक तो सब मेरी सुंदरता , पढा‌‌ई-लिखाई , कपड़ों आदि की बहुत तारीफ कर रहे थे जब सबको पता चलेगा कि मुझे खाना बनाना नहीं आता तब क्या होगा? नई नवेली दुल्हन रचना सिर से पैर तक सिहर उठी।उसने खुद को रसोईघर में पाया। बड़ी जेठानी बोली, बताओ रचना क्या बनाओगी? छोटी जेठानी तुरंत बोली क्यों दीदी? ये तो हम बताएँगे। अच्छा मंझली तो तू ही बता क्या बनवाएँ इससे ? अब तो रचना की आँखों से आँसूं निकल पड़े और वो सुबकने लगी।बड़ी और मँझली दोनो एक साथ बोल उठीं अरे.. रचना हम तो मज़ाक कर रहीं थी तुम तो हमारी छोटी बहन हो जो जी चाहे बना लो ।रचना सुबकते हुए बोली दीदी मुझे खाना बनाना नहीं आता और रोने लगी ।दोनो जेठानियों ने एक दूसरे का मुँह देखा और हँस पड़ीं। बस इतनी सी बात; तुमने तो हमें डरा ही दिया था। हम दोनों तुम्हारी बड़ी बहने हैं और आज तो तुम्हारे चूल्हा पूजन की रस्म है चलो चूल्हा पूज कर तुम एक तरफ बैठ जाना, हम तुम्हारी तरफ से सूजी का हलवा बनाएंगे , पर हाँ जितनी देर हलवा बनेगा तुम्हे रसोई में ही रहना होगा। रचना का हृदय कुछ शांत तो हुआ वह सोचने लगी जब भी माँ मुझे खाना बनाने को कहती तो मै अपनी किताबें लेकर भाग जाती और कहती मुझे थोड़ी ना ज़िंदगी भर तुम्हारी तरह खाना बनाना है।काश मैंने माँ की बात मान ली होती खैर अब जब मै घर जाऊँगी तो पूरा खाना बनाना सीख कर आऊँगी।रचना को अपनी दोनो जेठानियों के व्यव्हार में इतना अपनापन लगा कि उसके अंदर का सारा डर छूमन्तर हो गया।उसने मन ही मन निश्चय किया कि जब ईश्वर ने मुझे इतना अच्छा ससुराल दिया है तो क्या मै अपनी एक छोटी सी कमी को पूरा नहीं कर सकती।तभी बड़ी जेठानी की आवाज़ आई रचना हलवा बन गया है चलो अब तुम चल कर सबको परोस दो।रचना ने अपनी दोनों जेठानियों के पैर पकड़ते हुए कहा दीदी मैं आपसे वादा करती हूँ इस बार जब मायके से आऊँगी तो सच में सबको अपने हाथ से बनाकर पूरा खाना खिलाऊँगी। दोनो जेठानियों ने रचना को प्यार से उठाया और उसे आशीर्वाद देते हुए गले लगा लिया फिर तीनों एक साथ डाइनिंग रूम की ओर बढ़ चलीं। टेबल पर जब रचना ने हलवा परोसा तो ननद ननदोई दोनोजेठजी और बड़ी बुआ जी सभी ने रचना को आशीर्वाद के रूप में रूपए और उपहार दिए और हलवे की खूब प्रशंसा कीरचना ने भी अपने सभी उपहार अपनी जेठानियों को देते हुए कहा दीदी जिस दिन मैं सच में इनके योग्य हो जाऊँगी आपसे ले लूँगी।

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