मौत का खेल - भाग-3 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मौत का खेल - भाग-3




फ्लर्ट


होटल का डायनिंग हॉल धीरे-धीरे भरता जा रहा था। नहीं आ रहा था तो उस लड़की का कोई अपना, जिसके लिए वह इस कदर बेचैन थी। उसने एक बार फिर गेट की तरफ देखा और अपनी कलाई घड़ी पर भी तुरंत ही नजर डाली। फोन करने के लिए उसने अपना मोबाइल उठाया फिर झुंझला कर उसे रख दिया।

सलीम उठ कर लड़की के पास से गुजरा और फिर लौटकर मेज के पास आकर खड़ा हो गया। लड़की ने तुरंत ही चौंक कर उसकी तरफ देखा। शायद उसे लगा था कि जिसका उसे इंतजार है, वह शख्स आ गया है। सलीम ने बड़ी बेतकल्लुफी से पूछा, “पहचाना?”

लड़की ने उसे अजीब सी नजरों से घूरते हुए जवाब दिया, “नहीं... कौन हैं आप?”

“मुझे नहीं पहचाना... अरे अभी तो मैं आपके सामने से गुजरा था।” सलीम के लहजे में बेतकल्लुफी कायम थी।

लड़की ने बेसाख्ता हंसते हुए कहा, “फ्लर्ट कर रहे हो?”

सलीम ने तुरंत ही जवाब दिया, “नहीं... मैं बस आपको हंसता हुआ देखना चाहता था। परेशानी में आप एक दम खूबसूरत नहीं लगती हैं। आप हंस दीं अब मैं जा रहा हूं।” यह कहने के साथ ही उसने मुड़ने की अदाकारी की।

“आ ही गए हैं तो बैठ जाइए।” लड़की ने हंसते हुए कहा, “दिलचस्प आदमी मालूम होते हो।”

“दोनों हूं।” सार्जेंट सलीम ने पूरी गंभीरता से जवाब दिया।

“मतलब।” लड़की ने आश्चर्य से पूछा।

“मतलब दिलचस्प भी हूं और आदमी भी हूं।” सलीम ने चेहरे पर मासूमियत लाते हुए कहा।

लड़की हंसने लगी। सलीम ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा, “मेरा नाम डॉक्टर नो है। मैं उदासी पर रिसर्च कर रहा हूं।”

“यह कैसा नाम है?” लड़की ने ताज्जुब से पूछा। फिर उसने हंसते हुए कहा, “मुझे बना रहे हैं... है न!”

“सचमुच मेरा नाम डॉक्टर नो ही है।” सार्जेंट सलीम ने जेब से विजिटिंग कार्ड निकाल कर उसे देते हुए कहा, “दरअसल जब मैं हॉस्पिटल में पैदा हुआ तो नो-नो करके ही रोया था। इससे लेडी डॉक्टर बहुत खुश हुई। उसने मेरा नाम डॉक्टर नो रख दिया।”

लड़की ने विजिटिंग कार्ड देखते हुए कहा, “लेडी डॉक्टर ने नाम रख दिया! यह कुछ ज्यादा नहीं हो गया!”

“यह हमारे परिवार की परंपरा है। हमारे यहां बच्चे की पैदाइश कराने वाले डॉक्टर ही बच्चों के नाम रखते हैं।” सलीम ने पूरी गंभीरता से लड़की को बताया।

लड़की उसे ताज्जुब से देखने लगी। जैसे वह तय करना चाहती हो कि सामने बैठा आदमी सच बोल रहा है या फिर वह क्रैक है। उसे अपनी तरफ देखता पाकर सलीम ने ऐसी सूरत बना ली, जैसे अभी रो देगा।

उसकी ऐसी सूरत देख कर लड़की की हंसी छूट गई।

“आपने अपना नाम नहीं बताया अब तक।” सलीम ने लड़की की तरफ देखते हुए पूछा।

“ओह हां... मेरा नाम शनाया है।” लड़की ने सलीम की तरफ हाथ बढ़ा दिया।

सलीम ने उससे हाथ मिलाते हुए पूछा, “आप किसका इंतजार कर रहीं थीं।”

“उसे छोड़िए।” शनाया ने कहा, “क्या आप वाकई उदासी पर रिसर्च कर रहे हैं।”

“जी बिल्कुल।” सलीम ने उसे यकीन दिलाते हुए कहा, “तभी तो आपको उदास देख कर आपके पास चला आया... और देखिए आपकी उदासी भी दूर कर दी।”

“इसीलिए पूछा आपसे।” शनाया ने कहा।

डायनिंग हाल से लोग उठ कर बालरूम की तरफ जा रहे थे। सलीम भी उठ कर खड़ा हो गया। लड़की ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा, “कहां जा रहे हो?”

“आप भी चल रही हैं मेरे साथ।” सलीम ने उसकी तरफ झुकते हुए रूमानी आवाज में कहा।

“लेकिन कहां?” शनाया ने फिर पूछा।

“बालरूम चलते हैं। मुझे बहुत जोर की डांस आई हुई है।” सलीम ने चेहरे पर तकलीफ के भाव पैदा करते हुए कहा।

उसकी इस बात पर शनाया हंसने लगी और उठकर खड़ी हो गई। सार्जेंट सलीम शनाया के साथ बालरूम की तरफ बढ़ गया।

यहां मधुर संगीत बज रहा था। कुछ जोड़े डांस फ्लोर पर फॉक्सट्राट डांस कर रहे थे। सार्जेंट सलीम और शनाया भी उनमें शामिल हो गए। सलीम काफी अच्छा डांस करता था। शनाया उसे तारीफी नजरों से देखे जा रही थी। अब उसे याद भी नहीं था कि वह यहां किसके इंतजार में बैठी हुई थी। कुछ देर बाद पहला राउंड खत्म हो गया। सलीम और शनाया वापस डायनिंग हाल की तरफ लौट आए।

सलीम ने कुर्सी पर बैठते हुए शनाया से कहा, “हमारे पीछे अगर आपका ब्वाय फ्रैंड आया होगा तो वह लौट गया होगा।”

“आपको कैसे पता कि वह मेरा ब्वायफ्रैंड ही होगा?” शनाया ने उसके सामने बैठते हुए पूछा।

“कोई अपने भाई या अब्बा का तो इस बेसब्री से इंतजार करेगा नहीं।” सलीम ने यह बात मुस्कुराते हुए कही।

जवाब में लड़की कुछ नहीं बोली। बगल से गुजर रहे वेटर को सलीम ने रोक लिया। उसके बाद उसने शनाया से पूछा, “कॉफी का कौन सा टेस्ट लेंगी आप?”

“आइरिश।” शनाया ने बताया।

सलीम ने वेटर से कहा, “एक आइरिश और एक अमेरिका-नो।”

शनाया ने मुस्कुराते हुए कहा, “अपने नाम के मुताबिक कॉफी भी पसंद करते हो।”

“अफकोर्स।” सलीम ने हंसते हुए कंधे उचका दिए।

रात के दस बज गए थे। डायनिंग हाल के स्टेज पर रोशनी हो गई थी और आर्केस्ट्रा बजने लगा था। आज यहां अफ्रीकन डांस रक्स शरकी पेश किया जाने वाला था। धीरे-धीरे बजते आर्केस्ट्रा के बीच नर्तकी स्टेज पर थिरकते हुए आ गई थी। सार्जेंट सलीम के अंदाजे के मुताबिक नर्तकी अफ्रीकन न होकर मिस्र की थी। वह काफी खूबसूरत थी।

उसने लाल रंग का खास डिजाइन का लहंगा पहन रखा था। यह लहंगा बाईं टांग पर कमर तक खुला हुआ था। उसने एक छोटा सा टॉप पहन रखा था। टॉप इस तरह से डिजाइन किया गया था कि इसमें पूरी पीठ दिख रही थी।

नर्तकी स्टेज पर परफार्म करने लगी। यह एक तरह का अफ्रीकन बैले था। कह सकते हैं कि फ्यूजन था। बैले में जहां सिर्फ कमर को थिरकन दी जाती है। इस डांस में पूरा शरीर ही थिरकता है। हाथों को बैले की स्टाइल में हिलाते हैं। इस डांस की खास बात यह भी है कि इसमें हर कुछ सेकेंड के बाद एक राउंड लगाते हैं।


वनिता की गुमशुदगी


फार्म हाउस के बड़े से हाल में अचानक अंधेरा हो जाने की वजह से सन्नाटा छा गया था। यकबैक लोगों की समझ में नहीं आया कि लाइट कैसे चली गई। कुछ सेकेंड के बाद हाल के स्टेज पर गोले की शक्ल में रोशनी पड़ने लगी। यह रोशनी धीरे-धीरे रेंग रही थी। रोशनी के गोले के बीच में एक बड़ी सी गेंद सरकती हुई स्टेज के बीच में आ गई। लोगों ने ध्यान से देखा तो उस पारदर्शी गेंद के भीतर एक लड़की थी।

संगीत धीरे-धीरे बजने लगा था। साथ ही लड़की के हाथ-पैर थिरकने लगे थे। संगीत के तेजी पकड़ते ही लड़की के डांस की स्पीड भी तेज होती जा रही थी। काफी खूबसूरत डांस था। कुछ नौजवान सीटियां बजाने लगे। बिग बॉल्स डांस की यह परफार्मेंस एक घंटे तक जारी रही। रात के बाहर बजने से दस मिनट पहले लड़की का डांस खत्म हो गया।

जिन मेहमानों के जाम खाली हो गए थे, उन्होंने नये पैग थाम लिए थे। घड़ी की सुई धीरे-धीरे सरकती जा रही थी। कुछ सेकेंड बाद ही घड़ी की सुई अगले साल में प्रवेश करने वाली थी। वह सेकेंड भी पूरे हो गए और हाल हैप्पी न्यू इयर के गीत से गूंज उठा। लोग एक-दूसरे को नये साल की मुबारकबाद दे रहे थे।

इस बीच एक अजीब बात हुई थी। हाल में सभी मेहमान मौजूद थे, सिवाए वनिता के। ऐसी पार्टियों में कौन इतना ख्याल रखता है कि कौन पार्टी में नहीं दिख रहा है। हालांकि इस बात का एहसास डॉ. वरुण वीरानी को हुआ था। डांस खत्म होने के बाद जब हाल में फुल लाइट जल गई तो उन्हें वनिता कहीं नजर नहीं आई थी। उन्होंने सोचा था कि वाशरूम गई होगी। जब ठीक बाहर बजे न्यू इयर का उल्लास शुरू हुआ तब भी वह मौजूद नहीं थी।

रात के साढ़े बारह बज रहे थे। मेहमान अब धीरे-धीरे डायनिंग टेबल की तरफ जा रहे थे। डिनर शुरू होने वाला था। यह एक बड़ी सी मेज थी। खाना सज चुका था और एक बार में ही सारे मेहमान बैठ चुके थे। डॉ. वीरानी को आश्चर्य हुआ कि डायनिंग टेबल पर वनिता मौजूद थी। एक बार डॉ. वीरानी की उससे आंखें भी मिली थीं। वनिता ने तुरंत ही दूसरी तरफ मुंह फेर लिया था।

डिनर शुरू हो चुका था। यहां भी हंसी-ठिठोली जारी थी। कुछ लोग एक-दूसरे का मजाक बनाने में भी मसरूफ थे। डिनर के दौरान एक खास तरह की व्हिस्की परोसी गई थी। मैक्लन इन ललीक नाम की यह व्हिस्की तीन करोड़ रुपये कीमत की थी। मेहमानों को इसका स्वाद काफी पसंद आया।

डिनर खत्म होने के बाद मेहमानों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि अब क्या किया जाए। रात के डेढ़ बज रहे थे। सर्दी शबाब पर थी और कोहरा भी जबरदस्त था। ऐसे में घर जाने का सवाल ही नहीं था। हालांकि कोठी में सभी के लिए सोने का इंतजाम था, लेकिन कोई भी सो कर रात गुजारने के हक में नहीं था। तभी एक मेहमान ने मशवरा दिया कि क्यों न ‘मौत का खेल’ खेला जाए।


*** * ***


आखिर वनिता कहां गायब हो गई थी?
‘मौत का खेल’ कैसे खेला जाने वाला खेल था?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...