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अस्तित्व

नमस्ते। आशा करती हु इस covid महामारी मे आप सब सुरक्षित और कुशल होगे।
ये मेरी पहली लघुकथा है जो में मातृृृभारती में प्रकाशित करने जा रही हूँ। आशा करती हूँ ये लघुकथा आपको पसंद आएगी।
इस कथा का शब्द-विन्यास मेरी दोस्त खुश्बू ने किया है। इसका में तहदिल से शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ।
घर मे जोर जोर से आवाज आ रही थी। नई बहू को घर मे आए अभी ६ महीने ही हुए थे। चुन्नी बाबू अपनी पूरी ज़िंदगी बैंक में नोकरी करके रिटायर्ड हो चुके थे। उन्हें अपने पैसे और दो लड़के होने का बड़ा घमंड था, और ऊपर से लड़के भी पूरी तरह से उनके कहने में थे। उन्होंने अपने बड़े लड़के की शादी एक मध्यम परिवार की सामान्य दिखने वाली लड़की से करवाई थी। हालाँकि उन्हें ओर उनकी श्रीमती को ये विवाह प्रस्ताव कुछ अच्छा नहीं लगा था, पर क्या करते अपने गोरे चिट्टे और पढ़े लिखे लड़के का तलाक जो हो चुका था। बहोत बेइज्जती हुई थी उनकी, उनके सारे रिश्तेदार ने समजाया भी था लेकिन, अपनी ज़िद्द में लड़के का तलाक करवा दिया। और लड़का भी कैसा, बिना कुछ सोचे समझे माँ बाप की बात मान ली, और तलाक देने को राज़ी हो गया।
आखिरकार २ साल के बाद दोनों का तलाक हो गया, और नई बहु को ब्याहके घर ले आये। सब ने सोचा था नई बहु दहेज लेके आएगी, पर ऐसा हुआ नहीं। उन्होंने ने भी इस बहु को पहनावे में कुछ नहीं दिया।

इस बहु जिसका नाम रमा है। सास हमेशा ताना देती रहती थी। तुम्हारे माँ बाप ने क्या दिया है जो यहाँ रह रही हो। घर मे किसी भी चीज को हाथ लगाने से पहले पूछ लिया करो। ये घर मेरा है। रमा बिचारी को समझ नही आता था करे तो क्या करे? क्या कपड़े धोने का पावडर लेने के लिए भी सास की इजाजत लेनी पड़ेगी? अपने पति को कुछ कहती तो एक ही जवाब मिलता माँ जो कहती है वो करो।

बिचारी रमा को दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता था। पढ़ी लिखी होने के बावजुद उसे घर से बाहर जाने नहीं दिया जाता। उसकी सहनशिलता ने भी जवाब दे दिया था लेकिन कही से भी उम्मीद की कोई किरण दिखाई नहीं दे रही थी।

एक दिन उसके पति ने देख लिया उसकी माँ ने रमा को गुस्से में आकर बेलन मार दिया, और रमा रो रही थी और साथ मे बोल भी रही थी ---

रमा:- माजी अबतक नहीं बोली लेकिन आज चुप नहीं रहूँगी। क्या एक बहु तभी अच्छी होती है जबतक वो ससुराल वालों के ताने और ज़ुल्म चुपचाप सहती रहे? क्या वो इंसान नहीं है? उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है? क्या सारे फर्ज़ एक बहु के लिए ही होते है? क्यों वो घुटघट के जिए? अबतक चुप इसलिए थी कि शायद आप की सोच में परिवर्तन आएगा। लेकिन आज तो आप ने हद कर दी।

बेटा:- माँ ये क्या कर रही हो?
माँ:- तुम क्यों बीचमे बोल रहे हो? अपनी बीबी की तरफदारी कर रहे हो। अभी की आई छोकरी और तुम्हारे कान भर रही है।
बेटा:- माँ छ महीने हो गए अब तक तो कुछ नहीं बोला, ये भी मेने देख लिया।
चुन्नी बाबू:- माँ से ज़बान लड़ा रहे हो बीवी के गुलाम।

चुन्नी बाबू के बोलते ही बेटा तो चुप हो गया लेकिन
रमा जो अबतक कभी कुछ नहीं बोली थी आज उसके बोलते ही सारे घर वाले उस पर टूट पड़े। ये सब जानते हुए के ये गलत हो रहा है पति ने भी अपने माँ-बाप का साथ दिया।
रमा ने अपने पति से कहा अगर तुम मेरी रक्षा, सुरक्षा और मेरे आत्मसन्मान का खयाल नहीं रख सकते तो कोई बात नहीं। लेकिन में कोई भी रिश्ता अपने आत्मसम्मान को ठेस पोंहचाकर नहीं निभा सकती।
रमा ने अपना बैग पैक किया और घर से निकल पड़ी।
तीसरी मंज़िल की लिफ्ट से उतरकर वो सोच रही थी अब क्या करूँगी। उसके दिमाग में बहुत द्वंद्व चल रहा था।
लिफ्ट से उतरकर वो बिल्डिंग के नीचे तो आ गयी पर अब जाएगी कहाँ यही सोचकर वह बस स्टैंड की और चल पड़ी। रात के करीब साढ़े आठ बज गए थे। ये शहर भी उसके लिए नया था। और यँहा वो किसी को जानती भी नहीं थी। अभी ६ महीने तो हुए थे उसकी शादी को। कहते है ना शहर में खाना तो मील जाता है पर रहने को घर बड़ी मुश्किल से मिलता है।

इसी बीच वो कब बस स्टैंड के पास आ गयी उसे पता ही नही चला। वही पे उसे मिसिस शर्मा आँटी मिल गयी।
आँटी:- अरे रमा इतनी रात गए अकेले सूटकेस लेके कहाँ जा रही हो?
रमा:-अरे कुछ नहीं आँटीजी बस ऐसे ही, बोलते उसकी आँखों मे आंसू आ गए।
कितना जानती थी वो शर्मा आँटी को बस एक दो बार ही तो मुलाकात हुई थी। क्या बताती?
आँन्टी:- अरे रमा क्या हुआ क्यो रो रही हो? बताओ क्या बात है?
रमा:- कुछ बोल नहीं पाई बस उनके कन्धे पे सर रख कर रो पड़ी।
आँन्टी:- उसके कँधे पे हाथ फिरा कर उसे शांत कराने की कोशिश कर रही थी।
कुछ देर बाद रमा थोड़ी स्वस्थ हुई और सारी बात उन्हें बता दी।
आँन्टी:- तुम इतनी रात कहा जाओगी, अभी मेरे घर चलो सुबह कुछ सोचते हैं।
रमा को जैसे माँ का स्पर्श मिला हो ऐसा महसूस हुआ, और वह उनके साथ चलने को राज़ी हो गई।

आँन्टीजी उसी बिल्डिंग में चौथी मंज़िल पे रहती थी, इसलिए उसे वहाँ जाने को संकोच हो रहा था। लेकिन अब कोई और रास्ता भी नहीं था, सो उनके घर जाने को राज़ी हो गए।
आँन्टी जी अकेली रहती थी। उनके पति का स्वर्गवास हो चुका था। और एक बेटा था जो केनेड़ा में सेटल हो चुका था। आँन्टी जी को रमा से पूछने पर पता चला उसने सुबह से कुछ नहीं खाया तो उन्होंने बड़े प्यार से उसे खिलाया। सुबह बात करेंगे अभी सो जाओ। आँटीजी तो सो गये लेकिन रमा की आँखों में नीदं कहा, उसे तो बस सब याद आ रहा था। वो अहमदाबाद का घर, उसकी सहेलियाँ, माँ, पिताजी, सब कुछ उसे याद आ रहा था। छ: महीनों में उसने अपना सब कुछ खो दिया था। ३० की हो गई थी फिर भी शादी नहीं हो रही थी। जबकि उसकी सारी सहेलियों की शादी हो चुकी थी। चाची जी जहाँ जाती बस यही बात बोलती , महारानी को कोई पसंद ही नहीं आता। माँ का देहांत तो वो जब कॉलेज के आखरी साल में थी तब ही हो गया था। सारा कारोबार चाची ने अपने हाथो ले लिया था। जब चाचा जी ये रिश्ता लेके आये थे तो पिताजी ने उन्हें डाँट दिया था।
तुम्हें और कोई नहीं मिला जो ये रिश्ता लेके आये हो।

चाची:- क्या खराबी है इस रिश्ते मे? लड़के का तलाक ही तो हुआ है।
पिताजी:- मेरी बेटी सारी
जींदगी कँवारी रहेगी तो भी में उसका ब्याह वहाँ नहीं करूँगा।
लेकिन पिताजी की तबियत दिन ब दिन और खराब होती जा रही थी। इसलिए रमा को भी चाचा की बात मान नी पड़ी और ये शादी करनी पड़ी।

शादी के दो महीने बाद ही पिताजी चल बसे। उसे याद आ रहा था, कैसे चाची ने उसे तीन दिन में ही ससुराल वापस भेज दिया था। हम है ना यहा सबकुछ संभालने के लिए तुम चिंता मत करो, अपने पिताकी १३ वी तक भी वो वहाँ रूक नहीं पायी थी। पुंरखो का घर था लेकिन उसका आधा हिस्सा चाचा जी के पास था, और आधा उसके पिता का। लेकिन पिताके जाने के बाद वो हिस्सा भी अब चाची ने कब्ज़े कर लिया था। रमा उसके मा - बाप की एक ही सँतान थी, इसलिए अब इस दुनिया मे उसका कोई नहीं था।

यही सब सोचते कब नींद आ गई पता नहीं चला। जब अगले दिन सुबह आँटीजी ने उसे पुकारा तब आँख खुली।
रमा:-आँटीजी में यहाँ रहके आप पे बोझ नहीं बनना चाहती।
आंटी:- कहा जाओगी रमा?
रमा:- पता नहीं।
आंटी:- कुछ सोचने के बाद---
कितना पढ़ी हो तुम?
रमा:- बी.ए तक की पढ़ाई की है।
आंटी:- गाँवमें मेरे एक रिश्तेदार है जो गरीब बच्चो का स्कूल चलाते हैं। तुम कहो तो उनसे बात करूं? तुम पढ़ीलिखी हो। बच्चोंको पढ़ा सकती हो। तुम्हारा मन भी बहल जाएगा।
रमा:- मैंने कुछ सोचा तो नहीं है। लेकिन में नौकरी करके अपने पैरों पे खडा होना चाहती हुँ।
जो रमा सब पर बोझ थी वही रमा ने गाँवमें जाके गरीब बच्चों को पढ़ाया। ख़ुद भी आगे पढ़ी। और अपना सारा जीवन उसने बच्चों को समर्पित कर दिया। ज़िंदगी के ५० साल उसने उस गाँव को दीया। कई बच्चोंको शिक्षा दी। गाँवमें नई स्कूल बनवाई। उसके इस कार्य को लेकर उसे देशके सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उसे राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से नवाज़ा गया। उसने अपने अस्तित्व को एक नई पहचान, और नई दिशा दी।









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