टिकैत बाबा और मनचाहे गीत Bhupendra Singh chauhan द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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टिकैत बाबा और मनचाहे गीत


तब रामू की उम्र 13-14 वर्ष रही होगी जब वह अपनी भैंस चराने दूर खेतों में ले जाता था।हर रोज दोपहर 3 बजे स्कूल से आने के बाद वह झटपट खाना खाता और अपनी प्यारी छड़ी(जिसे वह भैंस चराने के लिए उपयोग करता था) लेकर भैंस खूंटे से छोड़ देता।भैंस जिसका नाम उसने सलोनी रखा था उसने 3 महीने पहले एक प्यारी पड़िया को जन्म दिया था जिसे रामू ने मुनिया नाम दिया था।रामू उसे बहुत प्यार करता था।एक तो जानवरों से उसका प्रेम, दूसरा नन्ही मुनिया दिखने में भी खूब आकर्षक थी।काले, मुलायम बालों वाली मुनिया के माथे पर एक सफेद बालों का छोटा सा गुच्छा था जो कि उसे और खूबसूरत बनाता था।रामू ने मुनिया के गले मे छोटी-सी घण्टी बांध दी थी जो उसके चलने या दौड़ने पर टुन-टुन बजती रहती थी।
यह प्रायः रोज का नियम था कि करीब 3.30 बजे वह दूर खेतों पर सलोनी और मुनिया को लेकर पहुंच जाता और एक आम के वृक्ष के नीचे अपना आसन जमा देता।यहीं सामने एक खाली पड़ा मैदान था जिसपर उगी हरी घास को जानवर चरते रहते थे। यहां रामू के गांव के अलावा पड़ोस के गांव से भी लोग अपने जानवर चराने आया करते थे।इन्ही में से एक बूढ़े बाबा थे जिन्हें सब लोग टिकैत कहा करते थे।टिकैत बाबा अपने मोहल्ले सहित गांव के कई लोगों के जानवर चराने लाया करते थे जिन्हें हम लोग "नार "कहते थे।उन्हें इसके लिए पैसा दिया जाता था।
टिकैत बाबा हर रोज 2 बजे उस लंबे चौड़े खाली पड़े मैदान में तमाम गाय,भैंसों को लेकर आ जाया करते थे उनके साथ 2 चरवाहे और आते थे जो कि देखरेख करते थे जबकि टिकैत बाबा उसी आम के पेड़ के नीचे बैठ जाते और गाने सुनते रहते।जी हाँ!उनके पास एक रेडियो था,रामसन्स कम्पनी का।उस पर वह मोटा खद्दर कवर चढ़ाए कंधे में लटकाए रहते थे । रामू की उनसे दोस्ती उसी रेडियो की वजह से हुई।टिकैत बाबा पेड़ के नीचे बैठते,तंबाकू बनाते और रेडियो चालू कर देते।विविध भारती पर दोपहर तीन बजे से 4 बजे तक "मनचाहे गीत"प्रोग्राम आता था।रामू स्कूल की वजह से जब तक टिकैत बाबा के पास पहुंचता आधा प्रोग्राम निकल चुका होता।टिकैत बाबा अनपढ़ थे लेकिन हर प्रोग्राम की जानकारी उन्हें खूब होती थी।मनचाहे गीत रामू को खूब भाता।रेडियो जॉकी महिला जिस अंदाज से लोगों के खत पढ़ती, उनकी फरमाइश के गाने बजाती वह रामू और टिकैत बाबा को बहुत अच्छा लगता था।दोनो चुपचाप पूरा प्रोग्राम सुनते रहते थे।
एक दिन रामू ने टिकैत बाबा से पूछा-
"बाबा,आप भी अपना गाना बाजा में बजवाओ न!"
"उसके लिए चिट्ठी लिखनी पड़ती है, बेटे।और मैं तो पढ़ा-लिखा हूँ नही।" टिकैत बाबा ने कहा।
"बाबा, अगर चिट्ठी मैं लिख दूंगा तब तो आप भेजोगे न!!"रामू ने मासूमियत से कहा।
"बेटे,हमारे गांव में तो डाकखाना भी नही है, न ही यहां चिट्ठी मिलती है।"बाबा ने चिंता प्रकट की।
"अरे बाबा,बस आप हां कर दो हम पूरी व्यवस्था कर लेंगे।हमारे गांव में डाकखाना है वहां अंतर्देशीय और पोस्ट कार्ड मिलते हैं।"
"अरे वाह,फिर तो काम बन जायेगा।"बाबा ने उत्साहित होते हुए कहा।
"लेकिन बाबा!!!"रामू ने वाक्य अधूरा छोड़ते हुए कहा।
"लेकिन क्या बेटे?
"
"बाबा,हमारे पास पोस्टकार्ड खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं."रामू ने दुखी होते हुए कहा।

"पैसे की चिंता न करो बेटे, तुम कल पोस्टकार्ड खरीदकर ले आना।" टिकैत बाबा ने कहा और अंदरूनी जेब से 2 रुपए निकालकर रामू को दे दिए।
रामू अगले दिन जब स्कूल से आया तो रास्ते मे ही डाकखाने से पीला पोस्टकार्ड खरीद लाया था।उसने घर आकर जैसे तैसे खाना खाया और भैंस हांकते हुए उसी आम के पेड़ के नीचे आ गया।वहां टिकैत बाबा पहले से ही पालथी मारकर बैठे हुए थे।
रामू को आता देखकर बाबा ने हल्का मुस्कुराते हुए उसे पास बैठने को कहा।रामू ने बैठते ही झोले से कार्ड निकालकर बाबा को थमा दिया।
"बाबा,आज ही इसे लिखेंगे।आप बोलते जाना हम लिखते जाएंगे।"रामू ने कहा।
"बेटे,चिट्ठी तुम अपनी मर्जी से लिख दो बस गाना हमारी फरमाइश का लिख देना।दुनिया से जाते-जाते एक बार अपनी फरमाइश का गाना रेडियो में सुनना चाहता हूँ।" बाबा ने कहा और भावुक हो गए।
"बाबा,फिक्र न करो हम बहुत सारे खत भेजेंगे और हर महीने अपनी फरमाइश के गाने सुनेंगे।"
रामू ने पेन निकाला और चिट्ठी लिखना शुरू कर दिया उसकी बाल बुद्धि में जो जैसा आया वैसा ही लिखता गया।
अंत मे उसने बाबा से उनकी फरमाइश पूछी तो बाबा ने उसे
"मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा मिल गया होता" लिखने को कह दिया।टिकैत बाबा मोहम्मद रफी की आवाज के दीवाने थे और रेडियो पर उनकी आवाज में आया कोई भी गीत बड़े चाव से सुनते थे।रामू भी नई उम्र का होते हुए भी पुराने गानों को खूब सुनता था।
चिट्ठी पूरी होने के बाद रामू और टिकैत बाबा कान लगाए मनचाहे गीत खत्म होने का इंतजार करते रहे क्योंकि प्रोग्राम के अंत मे ही चिट्ठी भेजने का पता बताया जाता था।उस शाम रामू ने चिट्ठी पूरी कर दी ।अपने पते की जगह उसने टिकैत बाबा का नाम और पता डाला।
अगले दिन स्कूल जाने से पहले रामू चिट्ठी को डाकखाने में रखे लेटर बॉक्स में डाल आया था।
अब तो रोज का ही नियम बन गया था रामू और टिकैत बाबा बड़े ध्यान से हर एक चिट्ठी और उसे भेजने वाले का नाम सुनते थे।रामू जानता था कि कम से कम 7 दिन उसकी चिट्ठी पहुंचने में लगेंगे और उसके बाद पता नही कब नम्बर आये।उसकी चिट्ठी प्रोग्राम में शामिल की भी जाएगी या नही,यह भी पक्का पता नही था।
हर दिन दोनो इस उम्मीद से मनचाहे गीत सुनते कि शायद आज उनकी चिट्ठी पढ़कर उनकी पसंद का गाना बजाया जाएगा लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगती।
चिट्ठी डाले हुए 20 दिन होने को थे ।
"बेटे,तुमने पता सही तो लिखा था न,कहीं गलती तो नही कर दी ?" टिकैत बाबा ने रामू से पूछा।
"हां बाबा,जैसा उन्होंने बताया था ठीक वैसा ही तो लिखा था।पता नहीं क्यों हमारा गाना नही बज रहा!!" रामू ने दुखी होते हुए कहा।
किसी चीज का इंतजार उस चीज की कीमत बढ़ा देता है अब तो मानो बूढ़े टिकैत और किशोर रामू के लिए उनका गाना ही दुनिया की शुरुआत और अंत हो गया था। दोनो की उम्र में 7 दशक से भी ज्यादा का अंतर होने पर भी दोनो का दिल अपनी फरमाइश को लेकर एक जैसा धड़कता था।
एक दिन रामू को स्कूल से आने में देर हो गयी सो वह भैंस लेकर टिकैत बाबा के पास देर से पहुंचा।करीब 3.45 का वक्त था।वह पेड़ के नीचे पहुंच ही रहा था कि टिकैत बाबा ने चिल्ला कर कहा-
"जल्दी आ रमुआ,अरे बाजा में अपना नाम आ गया है...."
रामू ने इतना सुना तो सब छोड़-छाड़ कर टिकैत बाबा की तरफ दौड़ लगा दी।वह जब हांफते हुए रेडियो के पास बैठा तब उससे रेडियो जॉकी महिला की आवाज आ रही थी-
"तो आइए सुनते हैं ग्राम पीतमपुर के रामसजीवन उर्फ टिकैत जी की पसंद का वह गाना जिसे गाया है मोहम्मद रफी साहब और लता जी ने,और फ़िल्म का नाम है "आप आये बाहर आई"।आपके रेडियो सेट्स पर टिकैत जी की फरमाइश का गाना ये रहा.....
"मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा मिल गया होता,
अगर तूफ़ां नहीं आता किनारा मिल गया होता
मुझे तेरी मोहब्बत का....¶¶¶¶¶¶¶"
करीब 5 मिनट बाद जब गाना खत्म हुआ तब रामू ने देखा कि टिकैत बाबा की आंखों से आंसू निकल रहे थे।रामू ने बाबा को कसकर गले लगा लिया।आज बूढ़े टिकैत बाबा की वर्षों की इच्छा पूरी हो गयी थी।