आग और गीत - 14 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आग और गीत - 14

(14)

“मैं समझ गया कि तुम क्या जानना चाहती हो ।” राजेश ने बात काटकर कहा “तुम चाहती हो कि मैं अपने बारे में बता दूं और तुम जाकर उस उजली भेड़ को बता दो और वह मुझे पकड़वा कर क़त्ल कर दे, क्यों, है ना यही बात ?”

“ए, यह तुम कैसी बात कर रहे हो ।” निशाता बिगड़ गई “तुमने मेरी इज्ज़त बचाई है और मैं तुमको क़त्ल कराउंगी । तुमने बहुत ख़राब बात कही है । हम लोग किसी को जान से नहीं मारते, मगर...।”

वह रुक गई । राजेश ने उसे टोका ।

“हां हां, कहो, रुक क्यों गई ?”

“मैं यह कह रही थी कि अगर मेरा वश चले तो मैं उस उजली भेड़ का खून पी जाऊं ।”

“वह क्यों ?”

“इसलिये कि वह हम सबको अपना दुश्मन समझती है और हम सब लोग भी उसे अपना दुश्मन समझते हैं ।”

“तब तो तुमको मेरी पूरी पूरी मदद करनी चाहिये ।”

“क्यों ? क्या इसीलिये तुमने मेरी इज्ज़त बचाई थी ?” निशाता ने तीखे स्वर में कहा ।

“नहीं, बल्कि इसलिये कि मैं भी उजली भेड़ का दुश्मन हूं और तुम्हारे ही समान मैं भी उसका खून पीना चाहता हूं ।”

“तब तो मैं ज़रूर तुम्हारी मदद करूंगी ।” निशाता ने हर्षित होकर कहा फिर पूछा “यह बताओ कि तुम किस ओर के हो, दाहिनी ओर के या बांई ओर के ?”

“मैं सब ओर का हूं ।”

“तब तो बड़ी अच्छी बात है ।” निशाता और हर्षित हो उठी ।

राजेश हवन्नकों के समान उसकी ओर देखने लगा । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इस बेढंगी बात का अर्थ निशाता ने क्या लगाया है जो इतनी हर्षित हो उठी है ।

“तुम पहली बार यहां आये हो ?” निशाता ने पूछा ।

“हां ।”

“तुम्हारी शादी हो गई है ?”

“नहीं ।”

“तब तो बड़ा अच्छा है ।” निशाता ने कहा और उसके गले में बाहें डाल कर झूल गई ।

“अरे बाप रे !” राजेश चीख पड़ा ।

“क्या हुआ ?” निशाता ने बौखलाकर उसे छोड़ दिया ।

“पेट में मरोड़ हो रहा है ।” राजेश ने कहा और सर के बल खड़ा हो गया ।

निशाता उसे सर के बल खड़ा देखकर इतनी हर्षित हुई कि प्रेम प्रदर्शन भूल कर तालियां बजाने लगी । फिर बोली ।

“अरे ! तुम तो तमाशा भी दिखाते हो ।”

राजेश सीधा खड़ा हो गया और पूछा ।

“तुमको मेरा यह तमाशा पसंद आया ?”

“हां, हम लोग तमाशा बहुत पसंद करते हैं ।”

“यह तो बड़ी अच्छी बात है ।”

“अच्छा, अब मेरे पास आओ ।”

“नहीं, मुझे डर लग रहा है ।”

“अरे, डर किसका ? मैं अपनी खुशी से तुमसे शादी कर रही हूं ।”

“इसीलिये तो डर लग रहा है ।”

“क्यों ?”

“तुम मुझसे शादी करना चाहती हो ना ?”

“हां ।”

“और हमारी ओर शादी करने का रिवाज ही नहीं है ।”

“फिर तुम पैदा कैसे हुए ?” निशाता ने विस्मय के साथ पूछा ।

“आसमान से टपका था ।” राजेश ने झट से कहा ।

निशाता हंसने लगी ।

“सुनो, यह आदमी तुम्हें फिर परेशान करेगा ।”

“मैं कल मोबरानी से उसकी शिकायत करूंगी ।”

“तुम मोबरानी तक पहुँचोगी कैसे ?”

“अरे ! मैं वहीं काम ही करती हूं ।”

“क्या करती हो ?”

“मोबरानी की भेड़ें चराती हूं ।”

“तो फिर मुझे कब ले चलोगी ?”

“कल रात में, मैं तुम्हें रौशनी से इशारा करूंगी । तुम महल के पीछे मुझे मिलना ।”

“यह महल कहां है ?”

“उसी सफ़ेद इमारत को हम लोग महल कहते हैं ।”

“अच्छा ।”

“मगर तुमको मुझसे शादी करनी पड़ेगी ।”

“अरे बाप रे !” राजेश खोपड़ी सहलाता हुआ भागा ।

मगर निशाता उससे कहीं अधिक फुर्तीली साबित हुई थी । वह भी उसके पीछे दौड़ी थी और थोड़ी ही दूर जाने के बाद राजेश को धर लिया था ।

“कहां भागे जा रहे हो ?” उसने चिढ़ाने वाले भाव में पूछा ।

“उधर – अरे बाप रे !” राजेश ने हिंदुस्तानी में कहा । उसे नहीं मालूम था कि निशाता हिंदुस्तानी भी जानती होगी ।

“आखिर धरे गये ना !” उसने हंस कर कहा “तुम हिंदुस्तानी हो । मैंने सुना था कि हिंदुस्तानी बड़े अच्छे होते हैं और आज देख भी लिया । तुमने अपनी जान पर खेलकर मेरी इज्ज़त बचाई है, मगर एक बात बताऊँ ?”

“राजेश ने उत्सुकता के साथ पूछा ।

“वह लाल कपड़ों वाली उजली भेड़ तुम हिंदुस्तानियों की दुश्मन है ।”

“यह तुमको कैसे मालूम हुआ ?”

“तुम्हारे एक आदमी को उसने पकड़ रखा है । यह दुश्मनी नहीं तो और क्या है ? दूसरी बात यह है कि वह प्रतिदिन रात में तुम्हारी ओर की पहाड़ियों की ओर जाती है । यह तो मैं नहीं जानती कि वह क्या करने जाती है, मगर सुनने में आया है कि कुछ गड़बड़ करने वाली है ।”

“मेरा वह आदमी कहां रखा गया है ?”

“मोबरानी के महल में । बेचारे पर रोज मार पड़ती है ।”

“वहां तक मुझे पहुंचा सकती हो ?”

“क्या तुम कुछ कम सुनते हो ?”

“क्या मतलब ?”

“पहले ही कहा था कि पहुंचा दूंगी, मगर तुम अकेले क्या कर लोगे ? हालांकि हो बहादुर ।”

“यह तो समय ही बता सकेगा कि मैं क्या कर सकता हूं । अच्छा, अब मैं जा रहा हूं ।”

“नहीं ! मैं तुमको नहीं जाने दूंगी । सवेरे चले जाना ।”

“क्यों, उझे क्यों रोक रही हो ?”

“मुझे डर लग रहा है ।”

“कमाल है । यहीं रहती हो, आज तक डर नहीं लगा, फिर आज क्यों डर लग रहा है ?”

“तुम समझते क्यों नहीं ?” निशाता झल्ला कर बोली ।

“अरे तो समझा दो ना ?”

“अस्ल में मुझे एक विदेशी से डर लग रहा है, हो सकता है वह फिर आ जाये ।”

“तो डंडे से मार मारकर उसका भुर्ता बना देना ।”

“यही करूंगी ।” निशाता ने कहा “लेकिन यदि वह अपने हिमायतियों को साथ लाया तो ?”

“यहां कितने विदेशी हैं ?” राजेश ने पूछा ।

“बहुत से हैं । मैंने गिने तो नहीं मगर अनुमान है कि तीस या चालीस होंगे ।”

राजेश बड़े असमंजस में पड़ गया था । एक ओर यह ख्याल बेचैन किये हुये था कि अब तक मदन उस सफ़ेद इमारत को देख कर आ गया होगा, उससे रिपोर्ट लेना आवश्यक था । दूसरे यह कि उसे मोंटे पर विश्वास नहीं था, डर लगा हुआ था कि कही उसने कोई गड़बड़ न कर दी हो । वह इटैलियन के अतिरिक्त दूसरी कोई भाषा जानता नहीं था और उसकी टीम में उसके अतिरिक्त दूसरा कोई इटैलियन जानता नहीं था और तीसरी सबसे बड़ी चिंता निशाता की थी । वह विदेशी फिर आ सकता था । अगर वह निशाता को उठा ले गया तो कठिनाइया भी उत्पन्न हो जायेंगी और सफलता की आशा पर तुषार पात भी हो सकता था । निशाता बड़े काम की की लड़की सिध्ध हुई थी और वह निशाता को गवांना नहीं चाहता था, फिर करे तो क्या करे ।

“आखिर तुम क्या सोच रहे हो ? ” निशाता ने टोका ।

“आयं ! ” राजेश चौंकता हुआ बोला फिर संभल कर कहने लगा “मैं यही सोचने लगा था कि आखिर वह विदेशी यहां क्यों आये हुये है ? ”

“अरे तो मुझसे पूछ लिया होता, इतना सोचने की क्या जरुरत थी ।”

“तुम जानती हो ? ”

“मैं क्या नहीं जानती ।” निशाता ने अकड़ कर कहा “कहो तो बता दूं ।”

“बताओ ? ” राजेश ने कहा ।

“मोबरानी को किसी से ख़तरा है इसलिये उसने उन विदेशियों की सहायता ली है ।” निशाता बताने लगी “मोबरान तुम्हारे देश का दोस्त था मोबरानी उसे नहीं चाहती थी, यह बातें यहां के सब ही लोग जानते है ।”

“क्या तुम लोगों में मेल नहीं है ? ”

“मैं समझी नहीं ? ”

“मतलब यह है कि क्या यहां के कबायली लोग आपस में मिल जुल कर नहीं रहते ? ”

“मिल जुल कर रहते है ।”

“फिर तुम्हारी चीख सुनकर कोई तुम्हारी सहायता के लिये आया क्यों नहीं था ? ”

“ओह ! ” निशाता हंस पड़ी फिर बोली “बात यह है कि हम लोग बहुत दूर दूर रहते है, मेरी आवाज किसी ने न सुनी होगी तो फिर कोई आता कैसे, हां जब घंटा बजता है तो हम सब महल के पास एकत्र हो जाते है ।”

राजेश ने जाने क्यों यह नहीं पूछा कि घंटा क्यों बजता है और घंटे की आवाज सुन कर वह सब क्यों महल के पास एकत्र हो जाते है ।

“तुम फिर चुप हो गये ।” निशाता ने टोका ।

“सुनो, तुम यहीं रहो । मैं अभी आता हूँ ।” राजेश ने कहा ।

“मुझे छोड़ कर न जाओ ।” निशाता ने कहा ।

राजेश को इतनी देर में प्रथम बार निशाता के स्वर में भय का आभास मिला था । उसने कहा ।

“मैं जा नहीं रहा हूँ, बस थोड़ी देर की लिये एकांत चाहता हूँ ।”

“नहीं तुम मुझे बहला रहे हूँ, चले जाओगे ।”

“मुझ पर विश्वास करो निशाता, मैं कही दूर नहीं जाऊँगा । बस यही आस पास ही रहूँगा ।”

“अच्छा, जाओ ।” निशाता ने बड़ी उदासीनता के साथ कहा ।

“डरना नहीं मैं अभी आया ।” राजेश ने कहा और वहां से हट गया ।

थोड़ी ही दूरी पर एक दूसरी चट्टान थी । वह उसी की आड़ में बैठ गया और ट्रांसमीटर निकल कर जोली से संबंध स्थापित करने लगा ।

कुछ ही क्षण बाद जोली की भर्राई हुई आवाज़ सुनाई दी ।

“जोली स्पीकिंग सर ।”

“मदन वापस आया ? ” राजेश ने पवन के स्वर में पूछा ।

“जी हां ।”

“उसने क्या बताया ? ”

“वह सफ़ेद इमारत यहां की मलका या रानी का महल है, इमारत में चारों ओर दरवाजे है और कही कोई पहरे दार नहीं रहता ।”

“इमारत की बनावट कैसी है ? ”

“आधुनिक ढंग की इमारत नहीं कही जा सकती ।” जोली की आवाज आई “लगभग दौ सौ वर्ष प्राचीन ढंग की बनी हुई प्रतीत होती है ।”

“तुम्हारे और साथी क्या कर रहे है ? ”

“सब सो रहे है , मदन और मेकफ जाग रहे है ।”

“और मोंटे ? ”

“वह भी सो रहा है ।”

“उसने कोई संदेह जनक कार्य तो नहीं किया ! ”

“जी नहीं ।”

“अच्छा देखो ! कल सवेरे ही से तुम लोग बनजारों वाले नाच का अभ्यास आरंभ कर दोगे, कल ही तुम लोगों को नाच दिखाना है । अगर राजेश सम्मिलित होना चाहे तो उसे भी शामिल कर लेना ।”

“जी अच्छा ।”

“और कोई खास बात ? ” राजेश ने पूछा ।

“थोड़ी ही देर पहले मेकफ कही से आया है और बहुत सा काठ कबाड़ उठा लाया है ।”

“तुमने उस काठ कबाड़ को ध्यान से देखा है ? ”

“जी हां ।”

“क्या है ? ”

“देखने से किसी टूटे हवाई जहाज के टूकड़े मालूम होते है ।”

“राजेश कहा है ? ”

“पता नहीं कहां है ।”

“अच्छा सुनो, मदन से कहो कि वह मेकफ को लेकर वहां जाये जहां से वह कबाड़ उठा लाया है, और वहां जो कुछ भी मिले वह सब उठा लाये ।”

“इसी समय ? ”

“तुम होश में हो या नहीं ? ” राजेश ने कठोर स्वर में कहा “एक एक सेकण्ड मूल्यवान है, ओवर ऐंड आल ।”

संबंध काट कर उसने ट्रांसमीटर कपड़ों के अंदर छिपाया और फिर उधर ही चल पड़ा जहां निशाता को छोड़ आया था ।

निशाता ने उसे देखते ही लहक कर कहा ।

“तुम आ गये ।”

“तो क्या तुमने यह समझ रखा था कि मैं नहीं आऊंगा !” राजेश ने पूछा ।

“नहीं, यह तो नहीं समझा था मगर सच्ची बात यह है कि यह सोच कर ज़रूर डर रही थी कि कही तुम न आओ ।”

“कल सवेरे तुम मोबरानी और उसके महल में जाओगी ? ” राजेश ने पूछा ।

“तुम बस मोबरानी और उसके महल ही के बारे में बातें कर रहे हो । ” निशाता ने बुरा मान कर कहा ।