वो रेलगाड़ी का सफ़र!! जीवन का अनुपम प्रहर!! Gautam Kothari sanatni द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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वो रेलगाड़ी का सफ़र!! जीवन का अनुपम प्रहर!!

💥☀️वो रेलगाड़ी का सफ़र☀️💥
☀️💥 जीवन का है अनुपम प्रहर💥☀️
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ये रचना रेलगाड़ी में मुसाफ़िर के रुप में सयोंग
से मिले दो पात्रो जो अपनो के षड्यंत्रों का
शिकार हुए है, उनकी व्यथा को अल्फाज़ो
में काव्य की शब्दमंज़री में गहन गुढार्थो को भरके विशिष्ट अलंकारों से सजा के मेरे ज्ञान के मुताबिक प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयास किया है।

लिखने की सुरुआत की तो छोटी सी रचना लिखना चाहता था, पर मन में वो रचना का पात्र चित्रण किया तो शब्द अपने आप जुड़ते गए, शब्दो के अनेरे संगम से गूढार्थ रचते गए। रचना लिखते लिखते आज का पूरा दिन व्यतीत हो गया फ़िर भी रचना पूर्ण नहीं कर पाया। बहोत समय सोचकर 1 से 17 भाग रचना लिखकर पूरी की है। ये रचना प्रतिलिपि पर पोस्ट की थी। जो आज आप सब मित्रो के सामने फेसबुक पे प्रस्तुत कर रहा हु। मेरी इस रचना के सभी भागों को आप सभी पूरा अवश्य पढ़ना ऐसी आप से आशा रखता हूं। अपना प्रतिभाव अवश्य देना।

💥☀️वो रेलगाड़ी का सफ़र☀️💥
☀️💥 जीवन का है अनुपम प्रहर💥☀️
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💥☀️[[ भाग ~1 से 17 ]]☀️💥

वो रेलगाड़ी का सफ़र बन गया
मेरे जीवन का एक भवँर
आज भी वो अतीत के पल मेरे
जीवन का है अनुपम प्रहर

एक दिन ज़ब में किसी दूर
टहलने रेलगाड़ी से निकला था
बड़ी सुरीले स्वर भोंपू के सुन
सफ़र मेरा तब गुज़र रहा था

कई अनजानें चहरे, कई मासूम
परिंदे, कई भागदौड़ से तो
कई प्रसंगों की भरपाई पे,
रेलगाड़ी में आज सफ़र करते थे

में ठहरा अकेला, मायूस जीवन
के अतीत से मुझे निकलना था
कोई दूर अज्ञात जगह पर
पहुँचने ट्रैन से अकेला में निकला था

लम्बा सफ़र था, सब अनजाने
पथिक यहाँ आज सज रहे थे
बड़ी विनम्रता से सब देख,
ज़रा मीठी मुस्कान दे तब रहे थे

पूरा दिन आज का यू ही निकल गया,
जहाँ ज्यादातर मूक बनके बैठे थे
रात्रि का अंधकार अब घोर छाया,
ज्यादातर तब गहरी नींद में सो रहे थे

जोर से ट्रेन का विसल बजा,
रेलगाड़ी की रफ़्तार थोड़ी कम हुई,
लोह पथ गामिनी अब वहां
धीरे धीरे से एकदम सी रुक गई

में सहसा तब ज़रा विचलित हुवा,
ना जाने ट्रैन अब क्यों कहा रुकी
वो देखने उत्सुकता मे तब में
तुरंत ही वो बंध दरवाजे पे गया

पूरा रेलमथक बड़ा ही सुमशाम था,
जैसे गाढ़ निंद्रा में वो सोया हुवा था
ना कोई वहाँ मुसाफ़िर दिख रहा था,
ना कोई आवाज़ को में सुन रहा था

केवल लाल लिली बतिया बड़ी
दूर सिग्नल पर तब वहां जल रही थी
देख उस नज़ारे को वो भयावह
फ़िल्म का एक द्र्श्य मुझे याद आ रहा था

मन मस्तिष्क की वो भयावह कल्पना से
में तब सहसा बहुत ही डर से डर गया
तब दूर से एक हरी बती का प्रकाश आया,
रेलगाड़ी को जाने का अब सिग्नल आया

अब जोर से आगगाड़ी के एंजिन से
भोंपू की बड़ी सी आवाज आई
भाक छुक भाक छुक करती रेलगाड़ी
वहा से चलने की धीरे से शुरुवात हुई

धीरे धीरे भयावह स्टेशन अब छूट रहा था,
तब दूर से किसी की जोर से आवाज़ आई
दौड़ती अन्जानी एक परछाई ने दौड़ लगाई,
ट्रैन में चढ़ने उसको बड़ी तब मैंने आतुर पाई

तब में सहसा कुछ पक्का सोच ना पाया,
वो परछाईं को दरवाजे के समीप दौड़ते पाया
उसकी आवाज़ को सुन में जरा प्रभावित हुवा,
हाथ लंबा के उसको चढाने को प्रतिसाद दिया

जैसे ही मैंने हाथ किया उसे पकड़ने जरा लम्बा,
तब उसने मुझको बड़ी ही जोर से जकड़ लिया
चलती ट्रेन के अति आवेग में वो दरवाजे पे
चढ़के मुज से एकदम सहसा तब चिपक गया

गाड़ी अब तीव्र रफ्तार में आ गई थी,
सुमशाम वो द्र्श्य अब गुजर गया था
में अब सहमा वो चिपकी अनजान से
जरा सा ज्यादा ही तब गभरा गया था

इस अद्भुत धरातल के अंतिम छोर पर
कहीं शांति का आभाश तो मुजे होगा
जहाँ रिश्तो की अहेमियत का मंत्र
सत्यता से गूँजता बड़े ही जोर से होगा

जहां समर्पण के भाव से उत्कट प्रेम
की सच्ची अभिव्यक्ति होती होगी
जहां रिश्तो में स्वार्थ की कोई रंजिश
या प्रपंच की गर्दिश ना रची होगी

में आज ख़ुद को पहचानना सही से
लगभग बिल्कुल ही भूल गया हूं
भ्रमित हूं, अचंबित हूं, बड़ा ही ख़ुद से
नाराज़ हु, की मै ऐसा क्या हो गया हूं

एक हमराज़ की तलाश में हूं,
जो मेरा मेरे जज्बातों का सम्मान करें
जो मुझको अपना समझकर मुजसे
बेतहाशा सा सदा ताउम्र प्यार करें

मेरा ये अनभिज्ञ सत्य परिचय है,
यही मेरी सत्य मिथक कहानी है
सबंधो में खोया अपनो के लिए रोया,
यहीं मेरे जीवन की गढ़ी रवानी है

मेरा परिचय सुनकर वो बड़ी ही
मूक बनकर सहसा सिसक गयी
मेरी वेदना की किताब को पूरी
जैसे उसने मेरे परिचय से ही पढ़ ली

मैने अब उनसे कहा कि आप
क्यों मेरी कहानी पे सिसक रही हो
मेरी वेदना को तुम अपनी समझ
कर क्यों यू बेअदब से रो दिए हो

आप अब अपना परिचय दीजे,
अपनी भी कुछ मुजे बात आप करे
मेरे व्यग्र जीवन को भूल अपने
सुखी जीवन की मुजे अब बात करे

मन उच्छित भावो में यू खो गया,
शुक्रिया का ज़वाब देना भी में भूल गया
मुजे यू टकटकी आँखों से देखता देख,
वो जरा सी सहसा सी तब शर्मा गई

मुजे देखता देख वो मुझे जगाने फ़िर से
एक मीठी सी मंदमंद आवाज़ लगाई
शुक्रिया ज़नाब शुक्रिया कहकर मेरी
टकटकी तोड़ने कोयल सी टहुक लगाई

उसकी टहुकार से में अब टकटकी
नज़र से जरा विस्मृत हुवा
सुन उसकी मीठी आवाज़ फिर से
में पूरा ही अब मदहोश हुवा

अब उनको जाता देख में डब्बे में
अपनी जगह की और चला
वो अपनी आरक्षित जगह को ढूंढते
ढूंढते नम्बरो पे नज़रे दौड़ाने लगी

उनको यू परेशान होता देख मुझे उनको
मदद करने का मन में नेक विचार आया
उनको कहूँ तब तक में मेरे पास उनिको
मैंने पाया, उनका आरक्षण सामने ही आया

सामान अपना उपर रखकर, मीठी
मुश्कान भरे मेरे सामने ही वो बैठ गए
तिरछी नज़र से वो मुझको और में
उनको बारबार देखते सहसा रह गए

भाक छुक भाक छुक सी आवाज़ करती
रेलगाड़ी मंज़िल की और दौडती थी
वो चलती लोह गाड़ी से मन के निर्मम
भाव भविष्य के सपनो को जोड़ती थी

उसको पहली नज़र में देख के मेरी
बेज़ान जिंदगी में पहली बार बहार आई
बर्षो से सुकी, तरसी उज्जड जीवन की
धरातल पे लगता वसंत की बहार छाई

में भी सहमा था, वो भी सहमी थी,
लगता था आज चंद लब्ज़ों से गुहार है आई
कई जन्मों से बिछड़े दो दिलो की
ज़ुस्तज़ु ए बेताब की आज अंतिम पल आई

वो मुजे देख के जरा सी मुश्कुराती थी
तो में उसे देखकर मुस्कुराता था
एक दूजे से बात करने को दोनों
के मन वो पल बड़े ही तड़पते थे

शब्दो से मन के निश्छल भावो को
कौन पहले यहां आज प्रकट करेगा
वो साहजिक द्वंद्व में दोनों के मन थे,
अंतर्मन की उर्मियों को कौन भरेगा

रेलगाड़ी का सफ़र आगे बढ़ता था,
मनमें दोनों के आज द्वंद्व बड़ा चलता था
कुछ सोचे तब तक में वहां मोटा सा
टिकिट परीक्षक धड़ाम सा डब्बे में आया

उसने सब के टिकट को मांगकर,
आरक्षण अपनी सूची में चिह्नित किया
मेरे पास आके भी दोनों की टिकट का
परीक्षण करने के लिए माँग किया

वो सामनेवाली सुंदर मूरत को देखकर
" Hello Mem " से अभिवादन किया
मुझको टकटकी सा देखता देखकर
टिकिट दिखावो कहकर रुआब से लत्तार दिया

देख उसकी अज़ब सी हरकत मन में
मेरे बड़ी ही उसके प्रति तब खुन्नस आयी
अकेला में चढ़ा था सफ़र करने में फ़िर भी दोनों
को पतिपत्नी समझकर उस ने टिकिट मांग डाली

टिकिट परीक्षक के शब्दों पर मन
मेरा विचलित और बड़ा व्यग्र हुवा
मुझको डाँटता परीक्षक को देख, वो फूल
सी कली के मुँह पे हँसी का फूवार आया

परीक्षक का रूवाब पल भर में
मेरी आवाज को सुन बरसाती
बर्फ की तरह पानी हो गया
मेरी डाट सुनकर सहसा वो
मुख गम्भिर करके टिकट माँगे बिन
सूची में चिह्नित कर तुरंत चल दिया

टिकिट परीक्षक को भागता देख
वो सहसा जोर से अब हँस ही पड़ी
मुजे लड़ता देख़ कर मुजसे अब
वो निर्भय हो बात करने के लिए बोल पड़ी

ज़नाब आप कौन है, आप कहा जा रहे है,
आपका मुजे अब परिचय दीजिये
कब से बात करने को आप चाह रहे है,
अब आप का बंध मुख अब खोल दीजिये

उनकी ये बात की शुरुआत से मेरी
जान में फिर एकदम सहसा जान आई
अपना परिचय उनको देकर जीवन भर
साथ रखने की मन में मेरी आश छाई

मैंने सबसे पहले सुरुआत की मेरा
अनभिज्ञ परिचय उनको अच्छे से देने की...
ठीक है महोदया ये कहकर मिठाश से
मुस्कुराके मैंने उनका भी अभिवादन किया

मेरा अनभिज्ञ परिचय उनको अच्छे से
सही सही देने की मैने ठान ली
अभिवादन अच्छे से करकर उनकी
अभिलाषा तृप्त करने परिचय की शुरूआत की

में एक इस धरातल का नश्वर मनुष्य हु,
आज अनाथ सा सहमा एकदम अकेला हु
रिश्तो से बंधा क़भी मेरा आँगन रहा था,
सबंधो की भरमार से मेरा दामन रहा था

ज़ब धन संपति वैभव मिलक़त थी,
मेरे यहाँ चींटियों की तरह रिश्तों की भरमार रहती थी
आज जब बिल्कुल खाली हु, तो मुजे
हमदर्दी देनेवालों की बिल्कुल कमी नज़र आती है

जिन्हें अपना समझकर जीवनभर
मैंने साथ दिया, सदा ही संगाथ दिया
उनका स्वार्थ निकलते ही उन्होंने
मुझको रिश्ते से दरकदर कर दिया

जीवन में बहोत की धन कमाया,
जीवन में बहोत लोगो के काम में आया
मुजे समझ नहीं आया कि फ़िर मेरे
जीवन में रिश्तो का क्यों ऐसे दुष्काल आया

जीवन से में अब जरा थक सा गया हूं,
अपनो की साज़िशों से डर गया हूं
मन मष्तिष्क से व्यग्र बड़ा हूं,
मुख पर हँसी का मुखोटा पहन थक गया हूं

मैंने छोटे से जीवन में थोड़ी सी खुशी
की चाह में बहोत गम है पाया
ज़ब भी संकटो में घिरा तब मैंने सदा ही
यहाँ खुदको अकेला ही पाया

धन सम्पति आज भी बहुत है,
जिसका मुजे कोई अभिमान नहीं है अभी
सच्चे रिश्तों की, एक हमराज की कमी है,
जिसकी हताशा आज भी है सही

इन छद्मि रिश्तो की दगाबाजी से,
मुखोटे पहने अपनो की साज़िश से खिन्न हूं
प्रपंची मनुष्यो की मायाजाल में फंसा
बन बैठा आज निसहाय सा जीन हूं

जीवन में अपनो की दूषित मनोकामना
का में सदा खुल्ला बड़ा शिकार हुवा
अपनो ने रची शतरंज की रमत में
महाराजा हो के भी आज मात हुवा

शांति की तलाश में उनके बीच
लगातार बड़ा ही सदा तड़पता ही रह गया
जीवन में शांति पाने को में आज
"आर्यवर्त "अनजानें सफर पे निकल गया

इस अद्भुत धरातल के अंतिम छोर
पर कहीं शांति का आभाश मुजे होगा
जहाँ रिश्तो की अहेमियत का मंत्र
सत्यता से गूँजता बड़े ही जोर से होगा

जहां समर्पण के भाव से उत्कट प्रेम
की सच्ची अभिव्यक्ति होती होगी
जहां रिश्तो में स्वार्थ की कोई रंजिश
या प्रपंच की गर्दिश ना रची होगी

में आज खुद को पहचानना सही से
लगभग बिल्कुल ही भूल गया हूं
भ्रमित हूं, अचंबित हूं, बड़ा ही ख़ुद
से नाराज़ हु, की मुजे क्या हो गया हूं

एक हमराज़ की तलाश में हूं,
जो मेरा मेरे जज्बातों का सम्मान करें
जो मुझको अपना समझकर मुजसे
बेतहाशा सा सदा ताउम्र प्यार करें

मेरा ये अनभिज्ञ सत्य परिचय है,
यही मेरी सत्य मिथक कहानी है
सबंधो में खोया अपनो के लिए रोया,
यहीं मेरे जीवन की सत्य रवानी है

मेरा परिचय सुनकर वो बड़ी ही
मूक बनकर सहसा सिसक गयी
मेरी वेदना की किताब को पूरी
जैसे उसने मेरे परिचय से ही पढ़ ली

मैने अब उनसे कहा कि आप क्यों
मेरी कहानी पे सिसक रही हो
मेरी वेदना को तुम अपनी समझकर
क्यों यू बेअदब से रो रहे हो

आप अब अपना परिचय दीजे,
अपनी भी कुछ मुजे बात आप करे
मेरे व्यग्र जीवन को भूल अपने
सुखी जीवन की मुजे अब बात करे

वो अब ज़रा सी स्वस्थ हुई, नैनो के अटके
अश्रुओं को पौछ अपना परिचय देने को राजी हुईं
उसके इस व्यथित भाव को देखकर मुजे भी
उसके व्यतीत पल में दुःख का आभास हुवा

वो बोली मे अपनो के कुंठित मन के
भावो से पूरी तरह ग्रसित हूं
में हँसता मुखोटा पहनी अति व्यग्र,
अति दुखी इस धरातल की नारी हूं

आज में बिल्कुल ही अनाथ हूं,
मेर माँ बाप की एक मात्र जीवित संतान हूं
भ्राता भी थे, बहने भी थी, पर
आज इस धरातल पे अकेली सहमि नादाँन हूं

मेरे माँ बाप मुजे और मेरे भाई बहन को
बहुत ही प्यार से पालकर रखते थे
हमको और मेरे माँ बाप के इस लालन
पालन और नेक विचारो से कई जलते थे

इस संसार में अपनों के प्रपंच के
बलि मेरे माँ बाप एक क्षण में बन गए
पीछे पीछे मेरे भाई और बहन भी
सहसा एक खूनी हादसे की भेंट चढ़ गए

आज में बिल्कुल ही अकेली हूं,
दर्द में बहती अश्रुधार सी पगली हूं
मिलक़त के प्रपंच के लिए अपनो के
लिए में केवल एक बगली हूं

समय वसीयत का ज़ब पूरा होगा तो
मिलक़त पाते ही मुझे पल में ख़तम कर देंगे
मिलक़त की लालच में आज तक में अभी जिंदा हु,
ना जाने अब वो मुझे कब दुर्घटना से मार देंगे

अब वो समय का अंतिम दिन था,
मुज पर बड़ा ही कड़क पहरा बिठाके उन्होंने रख दिया
एक अनजान नेक औरत ने मुझको साथ दिया,
वह कोठरी से भागने का सहसा मौका दिया

इस लिए में स्टेशन पे गाड़ी के इंतज़ार में
बबूल की काँटेदार झाडी में छुप के बैठी रही
गाड़ी आने पर भी में काँटेदार झाडी छुपी रही,
गाड़ी चलने पर में दौड़ के गाड़ी पे चड़ गई

आपने मुजे एक हमदर्द बनकर हाथ दिया,
गिरते मेरे शरीर को हमदर्द बनकर साथ दिया
आज आपने मुजे केवल अपना हाथ नहीं,
एक नया मुक्त जीवन का पूर्ण आयाम है दिया

इतनी व्यथा को कहते कहते उसकी
आँखों से अश्रुधार लगातार बहने लगी
मुजसे ये बात कहते कहते वो एकदम
सी सिसक के जोर जोर से रडने लगी

उसकी व्यथा सुनकर में एकदम सा
सिसक गया, देख़ गमगीन चहेरा व्यथित हूं
अब तक में समझता था में ही सब से दुःखी हूं,
सबसे ज्यादा में ही अपनो से ग्रसित हूं

मेरा दुःख तो कुछ भी नहीं था,
उस नादाँन के गहरे सिसकते दुःख के आगे
उसकी ओर मेरी कहानी सुन सोचता हूं
कि क्यों हम से जीवन में सुख है भागे

जीवन में कितने पल ग़मगीन होके
मैने अकेले ही तड़पते बिताए थे
आज सच्चा हमराज़ मिला है जिसके
संग हमने एक दूसरे के दर्द बताए थे

ये पल बड़े ही गमगीन थे,
जो जीवन भर मुजे बड़े ही याद रहेंगे
खुशी भी तीव्र वो बात की है,
की जो मन में व्यग्रता थी दोनों का वो कम हुवा

मैंने अब उसको तसल्ली दी,
आंसू उसके पोछने को मेरा एक रुमाल दिया
जो घटित हुवा वो अब भूल जाओ,
आज से फ़िर से जीवन जीने का संज्ञान लिया

मैंने उसको सत्य व्यथा कहीं,
उसने मुझको अपनी सत्य व्यथा कहीं
जो सत्य था एक-दूसरे का वो
कहकर दिया परीचय एकदूसरे को सही

एक दूसरी की व्यथा कहने में
हम चलती रेलगाड़ी को ज़रा भूल गए
उसकी जोर से विसल बजी तो
हम दोनों सहसा जोर से अब हँस दिए

पेट में अब मेरे बड़ी ही भूख लगी थी,
मैंने उसको मेरे साथ ख़ाने का तब न्योता दिया
लगता था व्यथा में वो भी भूखी थी,
जरा रुक के फ़िर हँसकर न्योता कबूल किया

मेरे ठेले से मैंने ख़ाने का मेरा डब्बा
और बाज़ार से लिये पकवान निकाले
उसने भी अपने ठेले से कुछ अपने
बग़ीचे से तोड़े हुवे पक्के फल निकाले

अब हमारे दोनों का छोटा सा आहार
कार्यक्रम हँसकर मुश्कुराते हुवे सुरु हुवा,
भूख बड़ी ही लगी थी दोनों को, ख़ाने से
ज्यादा एकदूसरे को खिलाने में आंनद हुवा

लगता था दोनों को ईश्वर ने भले ही
सयोंग से रेलगाड़ी में मिलाया था,
पर एक दूसरे संग व्यथित जीवन को
आंनद से गुजारने के लिए ही मिलाया था

एक दूसरे का साथ पाकर लगता था
आज बड़े ही दिन बाद खुशी का माहौल छाया था
उसको जीवनसाथी बनाने का मनोमन दिल से
पक्का निर्णय मैंने और शायद उस ने कर डाला था

उसकी मदहोश अदाओं का में
अब पक्का दीवाना सा हो गया था
उसके बिन जीवन जीने का
विचार भी करना दुष्प्राण हो गया था

मन ही मन दोनों एक दूसरे को
देखकर मंद मंद मुश्कुराते थे
एक दूसरे के भाव छुपाने पर भी
मुख पर अच्छे से उभर आते थे

जीवन में पहली बार इस क्षण
एक अद्भुत सुखद अनुभूति स्फुरित हुई
अपना भविष्य सुखद होने की
एक दिव्य सहानुभूति की स्मृती हुई

मैंने पूछा आप इस रेलगाड़ी में
किस स्टेशन तक जाओगे
उसने कहाँ की में भी आप के
स्टेशन तक ही गाड़ी से जाऊंगी

वो बोली में जब निकली घर से
तब कहाँ जाना है उसका कोई मुकाम नहीं था
किस्मत मेरी मुझे जहाँ ले जाएगी
वो स्थल ही मेरा अब शायद अंतिम पड़ाव होगा

में कहा जाऊंगी वो तब सोचा नहीं था,
दुश्मन तो मेरे अपने घर में ज़हरीले पड़े थे
सुना था किसी अच्छे मनुष्य से की
धरातल पे बहोत अच्छे हमदर्द भी पनपते है

रिश्तो की रिश्तेदारी मेरे अपनो से
में बहोत अच्छी तरह में समझ गयी हूँ
आज तुमसे मिलके रिश्तो की अच्छी
अहेमियत का पहलू भी समझ गयी हूं

में भले ही सहमी सी नारी हूं,
मेरी जिंदगी भले दुःख की कटारी है
मेरा जुस्सा जीवन जीने का अब भी
बड़ा ही तीव्र प्रज्वल्लित है

आज तक मेरे जीवन में भले
दुःख का बड़ा पहाड़ टुटा हो
आज तक मेरे जीवन मे भले
अपनोने मुझको निर्मम लुटा हो

सुख दुःख जीवन का पहलू है,
जो सबको भुगतना ही होग़ा
सुख के बाद दुःख और दुःख के
बाद सुख का आना तय होग़ा

लगता है मेरा बुरा वक़्त शायद
अब पूर्ण रूप से गुजर ही गया है
बहोत सहा बीना गुनाह दर्द
अब सुख मिलने का आभास छाया है

उसका मुझको ये अपना समझकर
कहना वो केवल कोई बात नहीं थी
उस शब्दो मे गहनता से मुजसे जुड़ने
का गहन गूढार्थ की बात छुपी थी

ये अपनी बातें अब बिना ज़ीज़क के
मुझे अपना हमदर्द समझकर कर रही थी
में भी जो उसको कहना चाहता था,
वो बात पे जैसे वो हामी विश्वास से भर रहीं थी

उसने अपनी बात करके मेरे सामने
मुजे स्वीकार करती हँसी से नवाज़ दिया
उसकी ये हामी और मंद मंद मुश्कान
देखकर लगता था आज ईश्वर ने मुजे नवाजा था

जीवन मेरा भी बड़े ही दुःख से गुजरा था,
अपनो ने मुझको निलज्ज होकर सदा लुटा था
अपने स्वार्थ के प्रपंचों को मुखोटे पहन कर
पीठ पे कटारों से तीक्ष्ण वार किया था

मेरा भी अबतक जीवन दुखों में गुजरा था,
उसका भी जीवन दुखों में गुजरा था
दोनों को अपनो ने स्वार्थ की रंजिशों से लुटा था,
व्यथित जीवन जीने की और मोड़ा था

अब मैने भी सोचा क्यों ना उससे
मेरे मन की में खुल कर बात कहुँ
मौका सयोंग से आज ईश्वर ने मुजे दिया है
तो क्यो ना बयाँ मेरे जज़्बात करू

मन में पूर्ण विश्वास था कि मेरी इच्छा को
वो जरूर ही अच्छा प्रतिसाद देगी
मेरे संग आगे का जीवन जीवनसाथी
बनकर गुजारने के लिए रजामंदी देगी

मनोमन अब में दृढ़ता से, मेरे ईश्वर को याद करके
उससे प्रस्ताव रखने का पक्का दृढ़ निर्णय लिया
मन की उर्मियों से उभरते मेरे मन के जज्बात अब उसके सामने अल्फाज़ो से रखने का जैसे समय हुवा

कैसे अपने मन की बात कहुँ, किस अलंकारिक
शब्दो में उसके पास में प्रस्ताव रखूँ
आज उभरती खुशियों को, मन के मीठे पार्दुभाव
को सरल सीधे शब्दों में उसके पास रखूँ

मैने अब थोड़ी हिम्मत कर उसको पूछा कि
आगे का जीवन कैसे तुम व्यतीत करोगी
इस छद्मियो से भरी मोहमायावी दुनिया में
तुम अकेली किस पर विश्वास कर पावोगी

मेरा ये प्रश्न सुनकर वो थोड़ी दुःखी हुई,
थोड़ी देर मूक होकर ना कुछ मुख से बोली
उसको सहमा और मूक देखकर में भी
थोड़ा परेशान हुवा जैसे लगी हो मुझको गोली

मैंने भी बोला में कुछ कहकर तुम्हारे
पुराने ज़ख्मो को खुदेड़ना नहीं चाहता हूं
पर तुम्हारी अतीत की व्यथा सुनकर आगे
तुम दुःखी ना हो में केवल ये चाहता हूं

मेरे अनभिज्ञ शब्दो को बड़ा ध्यान से वो सुन रही थी,
शब्दो को सुन वो अब सहज धीरे धीरे हो रही थी
उसके बदलते मुख के भाव से मेरे शब्दों अब थोड़ा
सा बल मिला जैसे अंधेरे में एक दिए का प्रकाश मिला

उसने अब मेरे प्रश्न जीवन व्यतीत करने का चंद
लब्ज़ों में नम्न आंखोसे थोड़ा आवेश में जवाब दिया
जिंदगी जहाँ मुझे ले जाएगी, वहां में चली जावूंगी,
ना घर है ना ठिकाना पर कहीं ना कहीं तो बस जाऊंगी

में समझ गया उसके आवेश में
छुपे मर्म अनभिज्ञ भावो को,
में समझ गया उसके नम्न आँखों
मे छुपे इच्छाओं के गहरे इशारों को

अब मैन ज्यादा समय गवांना
बिल्कुल ही उचित ना समज़ा
मौका मिला है तो मेरे मनकी
बातों को वाचा देनेको सही समज़ा

मैंने बोला "क्या तुम मेरे संग जीवन
आगे का व्यतीत करना चाहेगी"
मैंने बोला " मेरी जीवन संगिनी बनकर
मेरा जीवन महकाना चाहेगी"

मेरे शब्दों को सुन वो बिना बोले ही
इशारे से हँसकर मुख हिलाक़े हामी भर दी
उसका ये इशारा पाकर मेरे मन तन में
जैसे एक अद्भुत सी आंनद की लहर दौड़ गई

अब मैं खुद को ज्यादा देर रोक ना पाया,
रेलगाड़ी में सफ़र कर रहे है ये याद ना ऱख पाया
उसके पास में सहसा उठकर के चला गया,
उसके माथे को मेरे अधरों को चूमने से रोक ना पाया

मेरे अतरंगी चुम्बन से वो सहसा मुजे लिपट गईं,
मुजे बाहों से जकड़कर उफ़लते अश्रुबिंदु बहाने लगी
में भी उसको अपने हाथों से मंदमंद थपथपाने लगा,
उसके अश्रुओं को बहता देख में भी तो अब रो पड़ा

ये पल मेरे जीवन की सबसे सुखद अनुभूति थी
किये जीवन के पुण्यकर्मों की सबसे बड़ी सुखद फलश्रुति थी
वो भी मुजसे अनभिज्ञ थी, में भी उससे अनभिज्ञ था
आज अनभिज्ञ हम दोनों सहसा ही एकदम से भिज्ञ हो गए थे

अश्रु दोनों ने सदा दुःख से, व्यथा से,
अपनो के ज़ख्मो से, गमगिनी में बहाए थे
अश्रु आज भी दोनों ने एकदूसरे के मिलने
की फलश्रुति पे अति आंनद में बहाए थे

आज हम दोनों को बाहों में लिपट
कर एक अद्भुत सा आंनद मिला
जन्मों से बिछड़े हमराही को मिलने
का ग़जब सा चमत्कार का अनुभव हुवा

धरातल पे मनुष्यो के लिए आज
हमारी पूरी द्रष्टि बदल गई,
कुछ बुरे तो कुछ अच्छे भी है ये
बात अब हमको समझ आ गई

कई जन्मों के बाद मिले हो,
ऐसे हम दोनों कुछ समय तक लिपटे रहे
कोई स्टेशन नया आने पे रेलगाड़ी का
भोंपू जोर से बजा तो हम सहसा अलग हुए

दोनों के दिल मे बड़ा ही आंनद था,
मन मस्तिष्क आज बड़ा निर्मल था
व्यथित मन से व्यथा चली गई,
दुख की पृष्ठभूमि अब पूरी सुख से भर गई

रेलगाड़ी रुकी तो कुछ मुसाफ़िर उतर गए,
तो कुछ नए मुसाफ़िर अपनी मंज़िल जाने को चड़ गए
हम दोनों अंतिम स्टेशन तक जाने के लिए
अपनी जगह पर हँसते हुवे ही गड़े रह गए

फ़िर से रेलगाड़ी का भोंपू बजा,
फिर रेलगाड़ी दौड़ने लगी
स्टेशन की छोड़ के आगे जाने
भाक छुक भाक करती दौड़ गई

दोनों ने किए इस निर्णय से दोनों के
मन में बड़ी ही सुखद अनुभूति थी
लगता है ये रेलगाड़ी का सफ़र ही ह
मारे जीवन की सबसे बड़ी लब्धि थी

उसके बाद मेरे अतीत के बारे में
उसने भी कोई सवाल ना पूछा
उसके बाद उसके अतीत के बारे में
मैने भी कोई प्रश्न ना पूछा

ये रेलगाड़ी का सफ़र सबके लिए
अपनी मंज़िल तक पहुँचने का साधन मात्र है
रेलगाड़ी का ये सफ़र आज हमारे लिए
व्यथा को छोड़ सुख का अद्भुत नज़ारा है

रेलगाड़ी का पहिया अंतिम स्टेशन
तक पहुचने के लिए दौड़ता रहता है
जीवन यात्रा में भी समय का पहिया
लगातार बिना रुके चलता ही जाता है

रेलगाड़ी के सफर में जो स्टेशन निकल
गया वो आगे नहीं देखने को मिलता है
जीवनचक्र में भी इस धरातल पे गुजरा
हुआ समय कभी फिर से वापस ना आता है

रेलगाड़ी हो या जीवन आएंगे मोड़ अनेकों
और मिलेगी ऊची नीची पथरीली ज़मीन
हिचकौले खाए बिना ये सफर बनता नहीं
हसीन फिर क्यों ना हो रेलगाड़ी या जीवन

जीवन में पीड़ा का अनुभव किए बिना
सुख का ना होता है कोई मोल,
जीवन में हर चुनौती को स्वीकार कर
क़भी भी आप मत करो टालमटोल

जीवन में सयोंग से मिला अवसर यदि
गंवाएगा तो कुछ भी कर ना पाएगा,
जीवनभर पछतावे के आंसू बहाकर
केवल हाथ मलता ही रह जाएगा।

जीवन में निष्क्रिय होकर मत बैठ
सदा अपने कर्मक्षेत्र पर उतरता चल,
जीवन में तेरे अच्छे कर्मों से बड़ा
सुखमय बनेगा तेरा आने वाला कल

बड़ा सुखद रहा है ये रेल गाड़ी का
अद्भुत सा अमूल्य सा सफ़र
आज भी याद है " आर्यवर्त " मुझे
वो जीवन का अनुपम प्रहर

~●◆■♊♌🌷🌿 समाप्त 🌿🌷♌♊■◆●~

~●◆■☀️💥✴️[[ आर्यवर्त ]]✴️💥☀️■◆●~

फ़ोटो क्रेडिट ~ गूगल & पिंटरेस्ट सोर्स
संकलन एवं रचनाकार ~ गौतम कोठारी "आर्यवर्त" ©®