भाग रहीं हूं, मैं सीमा कपूर द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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भाग रहीं हूं, मैं


_*_*_*_*_*
मैं सीमा कपूर भाग रहीं हूं ,आखि़र किससे
शायद अपने आप से/शायद अपने डर से/ या फिर यह कहलो अपनो की इमोशनल ब्लैक मेलिंग से।

थक चुकी हूं,हार महसूस कर रही हूंं,
जीना चाहती हूं,खुली हवा में उड़ना चाहती हूं,
पर ना जाने मेरे पर कट गए या कहीं अंधेरे में गायब हो गए हैं।।

अजब-गजब रचनाएं हैं यह जिंदगी
कभी खुशी बेची,
कभी ग़म पाए,
कभी आंसू छीपाए,

जीवन के हजारों तरहां के रंगों में रंग कर अपने हिस्से में केवल काला ही रंग आएं_

कभी-कभी मैं बहुत ही भावुक हो जाती हूं/
जीवन के इन हिस्सों से परेशान हो जाती हूं/

मन मर्ज़ी से जीवन व्यतीत नहीं कर सकती तो जीवन जीने का अर्थ क्या हैं .?

मृत्यु स्थान.?
या
यूंही बेनाम जिन्दगी.?

चलों मान लिया जाए कि हां मैं खुश हूं,
तो क्या सच में मैं खुश हूं,

दिन पर दिन भाग रहे हैं,
बीत रहे हैं,
दौड़ रहे हैं,

परन्तु मैं वहीं के वहीं ही हूं'

आशा भी हैं-
निराशा भी हैं-

हंसना और हंसाना भी हैं_
पर फिर भी खा़मोशियों को अपनी भीतर समेट कर आगे बढ़ने की कोशिश करती हूं।।

यह भली-भांति जानती हूं मेरे रास्ते में अनगिनत कांटे हैं भले रुक रुक कर चलती हूं_परंतु चलती तो हूं।

"मैं यह भी जानती हूं मेरी रुकावटें मेरे साथ साथ ही रहेंगी '
तो क्या करु नहीं जानती हां पर समय का इंतजार ज़रुर करुंगी,

औरत हूं थोड़ी अपने अपनों के हाथों कमजोर हूं_तो क्या मैं सच में कमजोर हूं.?

जिंदगी के किस्सों में ना जाने कितने '?' हैं
___

कितनी जल्दी-जल्दी हालात बदल रहे हैं,हर हर एक घर में न जाने कितने शैतान पल रहे हैं,

कोई नहीं जानता कब किस रूप में सामने वाला अपना शैतानी रुप दिखा दें।
सुन कर भले अजीब लगता है परंतु यह सत्य हैं_
फिर भी ख़ामोश होकर मैं आगे बढ़ने से पीछे नहीं हटूंगी.

━☆゚.*・。゚

((कौशल)) मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली एक लड़की थी।
गुणवान तो थी परंतु उसकी औकात उसके अपनों की नजरों में शून्य थी।

ना माता-पिता/ना भाई बहन/ना पति/ना सांस ससुर/ना ही बच्चों से कभी उसे प्यार या सम्मान मिलता ,वो जीतना उन सबके लिए सोचती करती उतना ही उसे दुःख एवं तकलीफ़ ही मिलती_

उसके जीवन में बस यही समानता थी उसके प्रति किसी के भी मन में प्रेम की भावना नहीं थी'
वह जी तो रहीं थीं परंतु औरों के लिए अपने लिए तो जीना उसने जैसे छोड़ ही दिया था_

जब भी मंदिर जाती भगवान के आगे दिया जलाती प्रभु से यही विनती करती के हे प्रभु सब की खुशियों का ध्यान रख ,अपने लिए कभी कुछ नहीं मांगती थी,
पति ने प्रेम के बदले केवल 2 बच्चे दिए संस्कारी नहीं
घर के संस्कारों की छाप बच्चों पर असर ज़रूर छोड़ती हैं_

अपनों से ही प्रताड़ना झेल रही (कौशल) रोज़ रोज़ मर रहीं थी,
नीरस सा जीवन जीते जीते वह डिप्रेशन में चली गई और माइग्रेन की शिकार हो गई।

उसके सपने उसकी ख्वांहिशे सब अंधकारमय भविष्य में ही मर गई,

परंतु अपनो द्वारा प्रेम कभी ना मिलने से वो अपने आराध्य देव से मौत मांगती _
शायद उसके आंसू बलवान थे इसलिए उसके देव ने उसे इस अंधकारमय जीवन से मुक्ति दे दी।।

यह कहानी यहीं समाप्त।