आंख खुली तो मैं चारपाई पर लेटा हुआ था। और मेरे चारों तरफ परिवार वाले मुझे घेर कर बैठे हुए थे, बाई तरफ चारपाई पर दादी बैठी सिर पर हाथ फेर रही थी, चारपाई के पास ही बाई तरफ कुर्सी पर बाबा बैठे हुए राम राम का जाप कर रहे थे, अम्मा पैरों के पास बैठी थी, बाबूजी कुर्सी पर दाई ओर थे मैंने आंख खुलते ही कहा "मैं कूदा नही था?" बाबू जी ने सजल नेत्रों से कहा - कितना तो मना किया था पर तुम कूद ही गए...
याद है मुझे अभी कल ही शाम को बाबूजी दफ्तर से छुट्टी लेकर गांव आए थे बाबूजी शहर में एक वकील के यहां काम करते थे। जून का महीना था खेत जिसको बटाई पर दिए थे उसने फसल होली से पहले ही काट कर रख ली थी जब बाबूजी होली में आए तो फसल का बंटवारा कर घर ले आए थे और भूसा बेचकर रुपए बैंक में जमा करवा चले गए थे, उस समय मैं नौवीं कक्षा का पेपर दे चुका था और रिजल्ट का इंतजार कर रहा था।
इस बार बाबूजी किसी अन्य कार्य से छः-सात दिनों का अवकाश लेकर आए थे, अगली सुबह हम दोनों ने आम की बाग में जाकर आम का नाश्ता करने का फैसला किया सुबह तड़के-तड़के ही बाबूजी ने आवाज देकर मुझे उठा दिया और झोला लेकर हम दोनों बाग की तरफ चल दिए रास्ते में हमने आम खाने के लिए सरकारी नल से पानी भर लिया बाबूजी और मैं एक लंबा रास्ता तय करते हुए गांव को पार करके खेतों की मेड़ों के किनारे से होते हुए बाग पहुंच गए,
फिर हमने रात भर में गिरे आमो को बीनना शुरू कर दिया आम बीनते-बीनते आसमान में जब भली-भांति प्रकाश छा गया तो हम एक जगह बैठ कर आम का भोग लगाने लगे, बाबूजी हर एक आम उठाते और बताते की यह पेड़ उनके बाबा ने... या उनके पिताजी ने लगाया है और इसके साथ-साथ उसका नाम और उस नाम के पीछे की कहानी भी बताते जैसे एक आम का नाम था सुआखन्ना इसका यह नाम इसलिए था क्योंकि पकने के बाद उस आम का रंग हरे से समुद्री हरे में बदल जाता था जैसे तोते का रंग दुसरा इस नाम की एक वजह यह भी थी की उसके पेड़ पर सुआ मतलब तोते बहुत आते थे इसलिए भी इसका नाम सुआखन्ना हो गया था ईसी प्रकार खरबूजे जैसे मुलायम आम का नाम खरबुजहा और बेल जैसे स्वाद वाले आम का नाम बेलहा आदी रखा गया था।
बाबूजी और मैं आमो से अपनी पेट पूजा करने के बाद उठे और मैं बाबूजी के साथ एक आम के पेड़ के पास पहुंचे, वहां बाबू जी ने कहा कि तेरी मां अचार बनाने के लिए कई दिन से कह रही है। इस पर के आम का बहुत अचार अच्छा बनता है। जरा ऊपर चढ़कर एक झोला कच्चे आम तोड़ ले मैं फटाफट पेड़ के ऊपर जा चढ़ा और लगा आम तोड़ने, एक झोला कच्चे आम तोड़ने के बाद मुझे मस्ती सूझी, मैं आम एक डाल पकड़कर लटक गया बाबू जी मुझे लटकते देखा तो मना करने लगे और कहा खिलवाड़ मत कर अब फटाफट नीचे आजा, पर मुझे बाबूजी को ऐसे चिंता में देखकर मजा आ रहा था सो मैंने थोड़ी देर ऐसे ही लटके-लटके बाबूजी से बार-बार पूछने लगा कि कूद जाऊं कूद जाऊं पर बाबूजी को गुस्सा होते देख मैं पेड़ से उतरने के लिए वापस डाल पर जाने लगा पर नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था, वापस आते समय मेरा पैर डाल पर से फिसल गया और मैं गिर पड़ा।
बाबूजी ने मुझे पेड़ से गिरते देखा तो दौड़कर मुझे उठा लिया और अस्पताल की ओर लेकर भागे, अस्पताल में डाक्टर ने जांच के बाद पाया कि मेरे बाएं पैर की हड्डी टूट गई थी, डाक्टर ने बार पैर में प्लास्टर चढ़ा दिया और कुछ दवाइयां और इंजेक्शन देकर मुझे वापस घर भेज दिया बाबूजी ने बगल वाले चाचा जी को फोन कर के कार अस्पताल में बुला ली थी उससे हम लोग वापस घर की ओर लौटे इंजेक्शन की वजह से मुझे रास्ते में ही नींद आ गई जब आंख खुली तो मैंने खुद को अपने घर के आंगन की चारपाई मे लेटा हुआ पाया। मैंने अपना सिर धीरे से दादी की गोद में रखते हुए कहा कि "दादी मैं कूदा नही था, मेरा पैर फिसल गया था" यह सुन कर बाबू जी बोले कि "चिंता की कोई बात नही है, बस एक डेढ़ महीने में प्लास्टर हट जायेगा। और मैंने सोचा कि मेरी गर्मियों की छुट्टियां लेटकर ही बेकार हो जाएंगी, मैं खेल नही पाऊंगा।