अध्याय 19
विवेक की नजरें कमरे के अंदर सीधी देखते देख सेंथिल परेशान होकर पूछा। "क्या सर?"
"यह आपके ब्रदर कुमारन का कमरा है ?"
"हां..."
"देखें ?"
"दे... देखिए सर....!"
विवेक अंदर घुसा।
सीधे कांच के अलमारी के पास जाकर..... उसके स्लाइडिंग डोर को हटाकर एक फीट ऊंची, लंबी गत्ते के डिब्बे को निकाला।
गत्ते के डिब्बे के साइड में अंग्रेजी में एल.एस.डी. लिखा हुआ लाल रंग का साफ दिखाई दे रहा था।
उसके नीचे छोटे अक्षरों में अंग्रेजी में वह पता लिखा था।
'वाइटल पावर फार्मास्युटिकल्स
579, हाई पार्क सर्किल
सिंगापुर।'
विवेक उस गत्ते के डिब्बे के ऊपर जो फोल्डर था उसे खोला। उसके अंदर रंग-बिरंगे गोलियों के पत्ते थे।
विवेक ने सेंथिल और कुमारन को मुड़कर देखा।
"घर में किस की तबीयत खराब है ?"
"मे..मे... मेरी ही!" -कुमारन बोलकर.... अपने पसीने से भीगे चेहरे को रुमाल से पोछने लगा।
"आपको क्या प्रॉब्लम है ?"
"स्टमक पेन।"
"सर्जरी कुछ करवाया क्या ?"
"ना.... न.... नहीं...!"
विवेक की निगाहें कुमारन के ऊपर तीव्रता से गई।
"क्यों ऐसे नर्वस हो रहे हो ? झूठ बोले तो ही ऐसे पसीना आता है। गत्ते के डिब्बे पर एल.एस.डी. लिखा है.... लाइफ सेविंग ड्रग्स इसका मतलब है।
"अर्थात् जीवन को बचाने वाली दवाइयां। इन दवाइयों की कीमत बहुत ज्यादा होगी। कभी-कभी लाखों में भी। आपकी सचमुच में सर्जरी हुई होगी। क्यों नहीं करके झूठ बोल रहे हो ?"
सेंथिल बीच में बोला।
"सॉरी.... सर! मेरे भाई कुमारन की सर्जरी हुई यह सच है। लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी। यह बाहर किसी को भी नहीं पता। मालूम भी नहीं होना चाहिए यह अप्पा का हुकुम था!"
"क्या कारण ?"
"मालूम हो तो.... उसे कोई लड़की देने आगे नहीं आएगा ऐसे अप्पा ने सोचा। ऐसा एक ऑपरेशन हुआ है ऐसे बाहर किसी को पता ना चले।"
"ऑपरेशन किस डॉक्टर ने किया ?"
"चेन्नई में रहने वाले एक डॉक्टर उनका नाम अमरदीप। सर्जिकल गैस्ट्रोलॉजी स्पेशलिस्ट। अप्पा के पहचान वाले डॉक्टर...."
"कब ऑपरेशन हुआ ?"
"छ: महीने पहले...."
विवेक कुमारन की तरफ मुड़े... "परंतु.... अब आपके लिवर की कंडीशन कैसी है ?"
"पहले जैसे नॉर्मल ही हूं। परंतु यह एल.एस.डी. (लाइफ सेविंग ड्रग्स) को एक साल बिना छोड़ें खाना है। हर महीने सिंगापुर से फ्लाइट कोरियर सर्विस के द्वारा ऐसे एक गत्ते का डिब्बा आ जाता है। यह दवाई लास्ट एक्सपायरी डेट एक महीना ही है ! यह डिब्बा दो दिन पहले ही आया है....."
कुमारन के कहते समय ही..... एक आदमी अंदर आया। सेंथिल के सामने जाकर घबराया हुआ सा खड़ा हुआ।
"साहब....!"
"क्या बात है वेलू ?"
"अम्मा दोबारा बेहोश होकर गिर गई। चेहरे पर पानी छींटें मारे फिर भी नहीं उठी...."
सेंथिल और कुमारन दौड़े।
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