"तुम्हारा बाहर जाना मुझे अच्छा नही लगता"निशा रोते हुए बोली।
"क्यों?देवेन प्यार से निशा के गाल थपथपाते हुए बोला।
"अकेले मेरा मन नही लगता।बोर हो जाती हूं।अकेली"।
"तो यह बात है।डार्लिंग मेरी नौकरी ही ऐसी है।"देवेन ने पत्नी को गोद मे उठा लिया,"तुम ही बताओ अगर बाहर नही जाऊंगा तो काम कैसे चलेगा?"
"तुम कोई दूसरी नौकरी क्यों नही कर लेते।"
"दूसरी नौकरी।"देवेन पत्नी की बात सुनकर हंसा था।
"हंस क्यों रहे हो?"पति को हंसता देखकर निशा बोली थी
"बात हंसने की ही है।आजकल नौकरी मिलना इतना आसान नही है।"
"मुश्किल है लेकिन असम्भव नही।"निशा बोली,"नेगेटिव सोच मत रखो।गीता का ज्ञान याद रखो।कर्म करो।फल की चिंता नही।"
"मेरी प्यारी मैडम।न मैं कृष्ण हूँ,न ही अर्जुन
"माना लेकिन--
"लेकिन क्या?"देवेन पत्नी की बात बीच मे काटते हुए बोला।
"माना कि न तुम कृष्ण हो न ही अर्जुन।कृष्ण के उपदेश को भी हज़ारो साल हो गए है।फिर भी आज वह उपदेश उतना ही सत्य है।जितना पहले था।जिंदगी भी कुरुक्षेत्र ही है।अगर जिंदगी में भी आदमी गीता के उपदेश को याद रखे तो वह हार नही सकता।
निशा ने शादी के बाद नौकरी छोड़ दी थी।लेकिन पति को ऐसे पढ़ा रही थी मानो क्लास में स्टूडेंट को।
"तुम्हारी बातो से सहमत हूँ।लेकिन आज यह बात क्यों ले बैठी?"
"बैंक में प्रोबेशनरी अफसर की वेकैंसी निकली है।मैं चाहती हूँ,तुम फॉर्म भरो।"
"परीक्षा कठिन होती है।पास होना आसान नही है।"देवेन ने शंका प्रकट की थी।
"फॉर्म तो भरो।मेहनत कभी बेकार नही जाती।"निशा ने पति को प्रोत्साहित करते हुए बोली,"अब तुम अकेले नही हो।नतुम्हारे साथ मेरा भाग्य भी जुड़ा हुआ है।'
"जैसा तुम कहती हो वैसा ही करूँगा।"
पत्नी की सलाह पर देवेन ने बैंक का फॉर्म भरा था।फॉर्म भरने के बाद निशा पति के साथ जाकर प्रतियोगी परीक्षा की किताबें ले आयी।
और देवेन परीक्षा की तैयारी करने लगा।जब भी उसे समय मिलता।वह किताबे पड़ता।निशा उसकी पूरी सहायता करती।परीक्षा की तारीख आने पर देवेन ने दस दिन की छुट्टी ले ली।
निशा,देवेन की प्रेरणा का सोत्र थी।वह लगातार पति का उत्साह बढ़ाती रहती।
नारी शक्ति है।उसको देवी के रूप में पूजा जाता है।नारी पुरुष के जीवन मे उत्साह और स्फूर्ति का संचार करती है।
नारी की प्रेरणा और साथ मिलने पर हर मुसीबत से आफ्मी पार पा सकता है।इतिहास में ऐसे उद्धरणों की कमी नही है।
औरत का साथ मिलने पर कठिन काम भी सरल नज़र आने लगता है।नारी पुरुष की शक्ति है।निशा की सलाह पर देवेन ने पूरे मन और मेहनत से परीक्षा की तैयारी की थी।
युद्ध भूमि में पति के जाने पर पत्नियां जैसी मंगल कामना करती थी।वैसी ही निशा ने की थी।जब पति परीक्षा देने के लिए गया।देवेन परीक्षा देकर लौटा तब बहुत खुश था।उसने घर मे घुसते ही निशा को गोद मे उठा लिया।
"पतिदेव बड़े खुश नजर आ रहे है।क्या बात है?"निशा ने मुस्कराकर पति की तरफ देखा था।
"बात खुशी की है।पेपर बहुत ही अच्छा हुआ है।"
"तुम वैसे ही घबरा रहे थे।"
"हां।लेकिन मेरी प्रेरणा तुम हो।"
"मैने तो कहा था और अब भी उस बात पर कायम हूँ।मेरा पूर्ण विश्वास है तुम जरूर सफल होओगे।"
पत्नी की बात सच निकली थी।देवेन बैंक की प्रतियोगी परीक्षा में पास हो गया था।वह ट्रेनिंग को चला गया।निशा अकेली क्या करती ।वह आगरा आ गई।ट्रेनिंग के बाद उसकी पोस्टिंग दिल्ली में ही हो गई थी।