हारा हुआ आदमी (भाग27) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (भाग27)

दिन में निशा बिस्तर पर पड़ी करवटे बदलती रहती।पर उसे नींद नही आती।नींद की भी एक सीमा होती है।आखिर आदमी कब तक और कितना सो सकता है।
घर मे अखबार और मैगज़ीन्स आती थी।निशा पढ़कर मन बहलाने का प्रयास करती।लेकिन ज्यादा देर उसका मन पढ़ने में नही लगता।कुछ देर पढ़ने के बाद ही वह बोरियत महसूस करने लगती।वह रेडियो पर गाने सुनकर बोरियत दूर भगाने का प्रयास करती।लेकिन उन गानों को बार बार कब तक सुने।
टी वी पर सीरियल का समय होने पर वह टीवी चलाती।लेकिन उसमें भी मन नही लगता।बिस्तर पर लेटे लेटे उसकी कमर दर्द करने लगती।तब वह बिस्तर छोड़कर कमरे में घूमने लगती।
शाम होने पर निशा का मन करता तैयार होकर घर से निकले और कंही घूम आये।दिल्ली के बाजारों की रौनक और चहल पहल देखने को मन करता।वह मन मे सोचती जरूर लेकिन अकेली घर से बाहर जाने का साहस न जुटा पाती।निशा सोचती उसे क्या हो गया है?
शादी से पहले उसे अकेले जाते हुए कोई डर,झिझक महसूस नही होती थी।बी एड करने के बाद वह अकेली प्रयाग और लखनऊ जाकर इन्टरव्यू दे आयी थी।कुंवारी थी तब उसे अकेले जाते हुए कहीं भी डर नही लगा।वह निड़र होकर चाहे जहां चली जाती थी।
लेकिन शादी के बाद न जाने उसे क्या हो गया था।देवेन हर बार उससे कहता,"घर मे पड़ी बोर हो जाती होगी।कहीं घूम आया करो।"
लेकिन शादी होने के बाद शिक्षित होकर भी वह अनपढ़ औरतो की तरह दकियानूसी हो गई थीं।अब पति के बिना उसके पैर घर से बाहर न पड़ते।
पति के बाहर चले जाने पर उसे घर खाली खाली और सूना सूना सा लगता।दिन जैसे तैसे गुज़ारती तो रात भयानक रूप मे सामने आ खड़ी होती।वह तन्हाई मे अकेली बैडरूम में बिस्तर पर करवटे बदलती रहती।कभी कुछ घण्टो को नींद आ जाती।कभी पूरी रात करवटे बदलकर ही बीत जाती।
देवेन घर पर रहता तो उसे बहुत अच्छा लगता।पति के पास रहने पर उसे लगता मानो वह दुनिया की सबसे सुखी औरत है।पति के रहने पर घर का सूनापन न जाने कहाँ गायब हो जाता।पति के घर मे रहने पर पत्नी कितना परिवर्तन महसूस करती है।
पति के साथ रहने पर औरत प्रफुल्लित रहती है।जब तक औरत माँ न बन जाये तब तक जिंदगी का लुत्फ ही कुछ और होता है।दिन इतने छोटे लगते है,मानो घण्टे मिनटों मे सिमट गए हो।पति के पास रहने पर दिन चांदी के और राते सोने की होती है।
पति के बाहर चले जाने पर यही समय आकाश की तरह फैल जाता है।पति के रहने पर उसे कम ही काम नज़र आते है।पति नही हो तो खाली महसूस करती है।
पति पास होता तो निशा फूल सी खिली रहती।वह नही चाहती थी,पति उसे अकेला छोड़कर कहीं जाए।
देवेन दिल्ली में ही होता,तब कुछ घण्टे बाद कंपनी से लौट आता।फिर वह निशा को घुमाने के लिए ले जाता।कभी वे अक्षरधाम,कभी बिड़ला मन्दिर कभी इंडिया गेट कभी कुतुब मीनार जाते।कभी पिक्चर देखते।कभी बाजार में खरीददारी करते।
एक बार देवेन टूर पर गोहाटी गया।वहाँ पर बन्द की वजह से जन जीवन ठप्प हो गया।देवेन न समय पर लौट स्का,न ही निशा को फोन कर सका।वह घर लौटा तो निशा रोने लगी।
"रोती क्यो हो पगली।"देवेन ने उसे बांहो में भर लिया