हारा हुआ आदमी (भाग 26) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (भाग 26)

"चाय,"निशा ने पति को जगाया था।
"अरे चाय बना लायी?सब सामान किचन में मिल गया तुम्हे?
"मिल गया तभी तो चाय बनाई है"
"आज मुझे ऑफिस जाना है।"चाय की चुस्की लेते हुए देवेन बोला।
चाय पीकर निशा किचन में चली गई।देवेन बाथरूम में चला गया।निशा ने सफाई करके सब सामान तरीके से जमाया था।देवेन बाथरूम से निकला तब निशा ने पूछा था,"वापस कब आओगे?"
"बस प्रोग्राम पता करके आता हूँ।"
निशा ब्रेड,मख्खन और चाय ले आयी। देवेन नाश्ता करके चला गया।पति के जाने के बाद निशा घर की सफाई में लग गई।
शादी से पहले देवेन अकेला रहता था।वह ज्यादातर खाना होटल में खाता था।फिर भी उसने घर मे सारा सामान रख रखा था।अकेले रहने के बाद भी घर ज्यादा गन्दा नही था।लेकिन गृहणी की पसंद अलग ही होती है।
हमारे यहां आज भी औरते ही घर की मालिक होती है।इसलिए घर को भी वे अपने तरीके से सजाती सँवारती है।निशा भी घर की सफाई करके उसे अपने तरीके से सजाने,सँवारने में जुट गई।सारा काम निपटाकर वह नहाने चली गई।तभी देवेन आ गया।
"अरे अब नहाई हो?"निशा को देखकर वह बोला।
"घर की सफाई करने में देर हो गई।"
"तभी घर बदला बदला सा नज़र आ रहा है।सच मे घर तो पत्नी के आने पर ही बनता है।"देवेन ने पत्नी के काम की तारीफ की थी।
"रात की ट्रेन से मुझे जयपुर जाना है।"
निशा किचन में चली गई।देवेन सामान अटैची में जमाने लगा।देवेन ने एक महीने की छुट्टी मांगी थी।लेकिन उसे पन्द्रह दिन की छुट्टी मिली थी।
निशा ने खाना बनाया।दोनो ने साथ बैठकर खाया था।रात को देवेन जाने लगा तब निशा ने पूछा था,"वापस कब लौटोगे?"
"सोमवार को"
देवेन घर से बाहर निकल गया ।सामने ही सड़क थी।उसने टैक्सी रोकी।अटैची और बेग रखकर तेजी से आया था।
"क्या भूल गए?"उसे तेजी से आता देखकर निशा ने पूछा था।
"एक चीज।अंदर आओ।"निशा पति के पीछे कमरे में चली आयी।देवेन ने फुर्ती से पत्नी कक बांहो में भरकर अपने होठ उसके अधरों पर रख दिये।
"यह क्या करते हो?"
"इसे ही तो भूल गया था।"
"शरारती।"देवेन हंसता हुआ चला गया।
देवेन का टूरिंग जॉब था।निशा ने शादी से पहले सेल्स एजेंट के जॉब के बारे में सुना था।देवेन से दोस्ती होने के बाद उससे सेल्स एजेंट के जॉब के बारे में काफी जानकारी मिली थी।देवेन जब भी निशा से मिलता अपने काम के बारे में उसे कुछ न कुछ जरूर बताता।लेकिन सेल्स एजेंट की वास्तविक जिंदगी का अनुभव उसे देवेन से शादी के बाद हुआ था।
देवेन महीने में दस दिन घर पर रहता और बाकि के दिन दिल्ली से बाहर।देवेन के बाहर चले जाने पर निशा घर मे अकेली रह जाती।
विवाहित औरत का पति घर पर न हो तो उसके पास करने के लिए रह ही क्या जाता है।चाय पीना,खाना बनाना।मन न हो तो जब तक काम चले भूखे रहना।भूख सताये तो कुछ भी बनाकर खा लेना।
देवेन दिल्ली से बाहर जाता तब उसके किसी न किसी दोस्त की पत्नी घर आ जाती।निशा के कुछ घण्टे हंसते खिलखिलाते गुज़र जाते।दोस्तो की पत्नियां उसे भी अपने घर बुलाती।लेकिन अकेली उसे किसी के भी घर जाने का मन नही करता।दूर जाने की बात तो दूर वह आस पास भी अकेली जाने से कतराती थी।


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