The Author Dave Vedant H. फॉलो Current Read जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!! By Dave Vedant H. हिंदी फिक्शन कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books मैं, तुम और हमारी कहानियाँ सबसे समर्थ और सबसे सच्चा साथीएक छोटे से गाँव में एक व्यक्ति... नफ़रत-ए-इश्क - 4 तपस्या के बारेमे सोच कर विराट एक डेवल स्माइल लिऐ बालकनी से न... Revenge by Cruel Husband - 3 तभी अभिराज ने चित्रा की तरफ देखते हुए कहा कि मुझे कौन सा शाद... स्पंदन - 7 ... शायराना फिज़ा... 3 - इत्तेफ़ाक o o o o o o o o o o o o o o o o o o o o o o o o o o o~तेरा ज... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी शेयर करे जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!! (10) 2.2k 8.9k कोरोना!! ये शब्द सुनते ही डर लगता है,ना! भविष्य में जब ये कोरोना-काल की बाते निकलेगी, तब हम फकॅ से कह शकेंगे की हम कोरोना-काल में से पसार हो चुके है, जो तब तक जिंदा होंगे तो ह! ये इक्कीसवीं सदी की शुरुआत नें तो दो युगों के दर्शन कराये, पहला कोरोना के पहले का और दूसरा कोरोना के बाद का। चलो, आज एक बात करते हैं कोरोना के बाद के युग की। को - कोई रो - रोक ना - ना पायें, एसी परिस्थितियों का निर्माण,कोरोना ने पलक जपलते कर दिया। आज बात करते हैं ईस कोरोना के कपरे समय में हमारे देश के मजदूर की। मजदूर, जिसका उपनाम 'मजबूर' ही रख देना चाहिए ईस देश में। आज एक नयी कहावत शिखते है: 'Once a मजदूर, will always be a मजदूर!!' सब कुछ बदला......क्यूकी ये समय कहाँ है अटका!! कोरोना के आने के बाद पूरी दुनिया बदल गई, मगर भारत का मजदूर कोरोना के पहले हो या उसके बाद, 'लाचार का लाचार!', 'बेचारा का बेचारा!', 'गरिब का गरिब!' ओर 'मजबूर का मजबूर!'....हा मगर कहि ना कहि कोरोना के पहले मजदूरो के पास कुछ रोजी तो थी ओर रोजी थी तो माथे पे छत थी, जीने के लिए उम्मिद थी, खाने के लिए सूखी तो सूखी मगर रोटी तो थी! पर ये कोरोना ने तो ये रोजी ही छीन ली, जीने की उम्मिद ही छीन ली, एक तो पहले से ही रोटी सूखी थी लेकिन अब तो रोटी ही छीन ली। 'अहमदाबाद', गुजरात ओर हिन्दुस्तान का एक काफी चहिता शहर। ईसी शहर का एक मजदूर जिसकी भी कोरोना के कारण ना तो रोजी रही है ओर ना तो माथे पे छत, भद्रेश। भद्रेश ओर उसका छ साल का बच्चा, बिन माँ का......बिट्टू। भद्रेश हमेशा बिट्टू को अपने पास ही रखें ओर जहा भी जाये उसे तो साथ ही लेकर जाये। भद्रेश ओर बिट्टू......दोनों के कपड़े फटे-फटे, नंगे पाँव, ना माथे पे छत ओर सबसे अहम् की दोनो पिछ्ले कुछ दिनों से बिलकुल भूखे......मगर वो भी तो आखिर उस खुदा के ही बच्चे हैं!! सुबह का समय है। पिछ्ली रात कहि रास्ते पे बिताने के बाद भद्रेश ओर उसकी गोद में अभी भी गहरी नींद में तल्लीन बिट्टू, फिर से शहर में दरबतर भटकने के लिए तैयार हो गए हैं। साबरमती रिवरफ्रन्ट, काफी राहत बक्षने वाले मौसम में दो लड़के आपसमें बाते करते करते वॉक ले रहे हैं...... जय धार्मिक से कहता है, "अरे भाई। कल तूने क्या वो वोट्सएप पे कोई कहानी श्येर की थी?....मेने देखा मगर पढ़ी नहीं। तू तो जानता है ना, मुझे पढ़ने में बोहोत कंटाला आता है।" (जय धार्मिक के सामने मुस्कुराकर बोला।) "सही है। पढ़ने का तो मुझे भी कोई शोख़ नहीं। मगर, मुझे मेरी मुबोली बहेन प्रिया ने ये 'मातृभारती' एक्सक्लूसिव कहानी श्येर की थी ओर बोला था की जरूर से पढ़ना। ये तो कुछ नहीं, प्रिया तो कहानी के लेखक 'वेदांत दवे' की बोहोत बड़ी चाहक हो गयी है।" (धार्मिक ने जवाब दिया।) जय कहता है, "अरे वाह! एसा तो क्या है उस कहानी में? धार्मिक, तुने पढ़ निकाली?" धार्मिक : "अरे भाई, पढ़ निकाली क्या! बार-बार पढ़ने का मन करता है। सच में, क्या कहानी है.......कलयुग के कृष्ण ओर उनके दोस्त सुदामा की मित्रता की.....ओर कहानी का अंत तो रुला दे पढ़ने वाले को, बिलकुल एसा।" "अब तो पढ़नी ही पड़ेगी।"(जय ने दिलचस्पी दिखाई।) धार्मिक : "तू केवल पढ़ना शुरु करना....आगे तू अपने आप पढ़ता ही जायेगा.....ओर मेरी ओर प्रिया की तरह 'वेदांत दवे' का चाहक बन जायेगा!" जय : "जरूर। आज अभी घर पे जाकर सबसे पहले में पढूंगा, मेरे दोस्तों ओर रिश्तेदारों से श्येर करूंगा। आज का माहोल बनेगा, 'वेदांत दवे' की मशहूर कहानी 'कानजी ए करावी चोरी!!' से।" वो मजदूर जय ओर धार्मिक के पास आ पहुँचता है ओर अपनी बात बता कर, कुछ खाना पाने की चाह दिखाता है। दोनो लड़के तुरंत अपनी जेब में से कुछ पेसे निकाल कर भद्रेश को देते है ओर भद्रेश चहेरे पर बड़ी सी मुस्कान लेकर बिट्टू के सर पे हाथ फिरो कर कुछ खाना खरीदने निकल पड़ता है। अंदर से तो भद्रेश बोहोत शरम महसूस कर रहा है की अब तक महेनत कर के उसने रोटी तोडी है ओर उसी सक्षम हाथों को अपने मासूम बिट्टू के लिए फेलाने पड़ रहे हैं। भद्रेश वहा से निकल गया। खुदा की कसौटी भी देखो!!, एक छोटा सा बच्चा, फटे हुए कपड़ों में, नंगे पैरो में, बिलकुल सूखा-सूखा सा भद्रेश के पास आकर बोला, "चाचा, कुछ खाने को दे दो।.......बोहोत तेज़ भूख लगी है!" भद्रेश स्तब्ध रह गया.....मगर उस बच्चे में अपने बिट्टू को देखकर तुरंत वो सारे पैसे दे देता है ओर प्यार से उस बच्चे पे हाथ फिरा कर कहता है, "जा बेटे......ईस पैसो से कुछ खाना खरीद कर खाले।" [भद्रेश ने तो अपनी भूख मिटा दी, किसी ओर की भूख मिटा कर......पर बिट्टू का क्या?] भद्रेश को रास्ते में एक मंदिर दिखा। वो वहा प्रसाद पा कर बिट्टू को खिलाने की चाह में अंदर प्रवेशता ही है ओर उसका हुलिया देखकर बहार से ही उसे निकाल दिया जाता है। भद्रेश दर्दनाक आवाज़ में गुजारीश करता है, "अरे भैया। थोड़ा प्रसाद तो दे दो। मेरे बच्चे को खिलाउँगा.......भगवान आपको खुश रखेंगे......" मंदिर का आदमी भद्रेश से पचास रुपये की मांग करता है, प्रसाद देने के लिए..........भद्रेश भगवान की मूर्ति के सामने कटाक्ष से हस कर चला जाता है ओर मंदिर का मुख्य प्रवेशद्वार ही भद्रेश के आँसुओसे भिग जाता है....... अब आ गया वखत, जब एक लाचार मानवी ने भगवान को धमकी दी। पूरे दिन फिर से वो ही दरबतर भटकने के बाद, रात के दो बजे भद्रेश बिट्टू को गोद में उठा कर उसी मंदिर में आता है। घनघोर रात......गमगीन वातावरण.......भद्रेश, उसकी गोद में बिट्टू......ओर सामने भगवान की मूर्ति........ ........तेज हवा चल रही है.......दुनिया जेसे थम सी गयी है........ आज एक बेटा अपने ही पालनहार से तंग आकर शिकायत करने आया है....... भद्रेश ने जो कहा, वो सुन कर तो शायद वो खुदा भी रो पड़ा होगा......... एसा तो क्या कहा भद्रेश ने? तो आखिर, आ गया समय। जब एक बच्चा अपने पालनहार से शिकायत करने आया है, उसका गम बाटने आया है, ईस जहाँ की सच्चाई बयान करने आया है। भद्रेश : "ए ऊपरवाले.....खुदा.....भगवान..... इतना कठोर क्यू बना बेठा है? जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!! माना, माना कि काफी हद तक कच्चे है। मगर....... जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!! तूने ही, हम इन्सानो को बनाया; कडवा है पर मानता हूँ की, आज हम ही तुझे बना रहे है। मगर रूठना छोड़ अब, सब मिल कर तुझे मना भी तो रहे है।। जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!! मेरा काम मजदूरी है; लेकिन आज, यही बनी मेरी मजबूरी है। अरे, घी वाली रोटी की किसे पड़ी है..... मुझे ओर मेरे ईस मासूम बच्चे को तो खाना सूखा ही चलेगा; रहेम कर मेरे मौला, वरना ये तेरा बच्चा आज भी भूखा ही मरेगा! ....... जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!! माथे पे छत ओर दो वक्त का खाना, इतना ही केवल सपना मेरा। पूरी दुनिया तो धिक्कार ती है ही..... पर क्या तू भी अब ना रहा मेरा!! मै ओर मेरा बच्चा, आज अकेले है। जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!! लूँट-फाट, भ्रष्टाचारी, काला-बाजारी, चोरी.... ये सब करने वाले तो आज भी मजा ही कर रहे है। महेनत-मजदूरी कर के गलत तो हमने ही किया है ना, इसिलिए तो हम ही भोगत ये सजा रहे है।। अब तो अनदेखा ना कर...... जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!! आत्महत्या!!......केसी आत्महत्या!?...... मर तो चुका हूँ; मेरे छ साल के मासूम को भूखा रख कर। ......... अब तुझ पर से भरोसा उठ रहा है! क्यूँकी, ये मासूम अब तक भूखा मर रहा है!! .......... चल, अब तो सब ठीक कर दे। जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!! गजब है ना.... एक गरिब ईस देश में, हमेशा ही रह जाता है केवल बन के एक गरिब; बिचारे के पास, है भी तो नहीं ओर कोई तरकीब; हमेशा अकेला ही खड़ा, कोन आता है उसके करीब? ........ तुझे जरा भी शरम नहीं आती! ... तेरे पास सब कुछ है, फिर भी तेरी दान-पेटी हमेशा भरी की भरी.... क्यूँ?..... ओर तेरा ये बच्चा, तडप रहा है फिर भी उस गरिब की झोली हमेशा खाली की खाली.... क्यूँ?.... ..... तेरा आशीर्वाद, हा......हा.......ये ही तेरा प्रसाद! चलो, उसके दो दाने खिलाकर भी पेट को खाना क्या होता है? उसकी कुछ अहमियत का दिलासा दे शकु। मगर, तेरे ये लोग तो उस प्रसाद की भी किंमत लेते है!! फिर, वो भी तो केसे मैं पा शकु? जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!! अंतिम बार कह रहा हूँ, अभी भी जो तू रहेगा मौन.... तो अब जब भी, मेरा ये मासूम मुस्कुरा कर मुझ से कहेगा, "पापा, सब ठीक हो जाएगा। उपर भगवान बेठे है! वो स......ब देख रहे है.......वो बोहोत अच्छे है।" तब मैं उससे पूछूँगा, "बेटा, ये भगवान कौन?" ....... चल, सब कुछ वापस से ठीक कर दे। मुझे भी तो यहीं कहना है, "हा बेटा.....भगवान बोहोत अच्छे है!!" ............ जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!! 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