मित्रता का कर्त्तव्य Sandeep Shrivastava द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मित्रता का कर्त्तव्य



रघुवन के दो बंदर, सोनू और मोनू बहुत अच्छे मित्र थे | दोनों हमेशा साथ साथ रहते थे| उनका खाना पीना, घूमना फिरना, सोना जागना सब साथ में ही होता था| सोनू बहुत शांत और संयमित व्यवहार का था| उसके विपरीत, मोनू बहुत तेज और नटखट स्वभाव का था| मोनू शरारतें करता और सोनू मित्र होने के नाते उसका साथ देता| शरारतें करने का सोनू का स्वभाव तो नहीं था, पर अपने मित्र मोनू से वो अलग नहीं रहना चाहता था| इसी कारण कभी कभी वो मोनू के साथ विपत्ती में भी फंस जाता था|

एक दिन मोनू पास के खेत में चने के पौधे खाने के लिए गया| उसके साथ सोनू भी गया| दोनों ने मिलकर पेट भरकर चने खाये| फिर मोनू शरारतें करने लगा और मजे के लिए पौधे उखाड़ कर फेंकने लगा| उसने कई सारे पौधे नष्ट कर डाले| सोनू स्वयं तो कुछ नहीं कर रहा था, परन्तु अपने मित्र मोनू को रोक भी नहीं रहा था| किसानों ने अपने खेत में बंदर देखे और दूर से ही गुलेल और लकड़ी के तीरों से उनपे हमला कर दिया| दोनों को बहुत सारी चोटें लगीं| दोनों दुम दबा के भागे और सीधे रघुवन आए|

उनकी हालत देख कर सारे बंदरों ने उनको घेर लिया| बाबा वानर ने उनसे पूछा “क्या हुआ बच्चों तुम दोनों को? कहाँ गए थे तुम दोनों?”
मंगलू बंदर बोला “जरूर मोनू ने कोई शरारत करी होगी, सोनू बस मित्रता के चक्कर में फंसा होगा|”
मोनू बोला “हाँ, हम लोग खेत में चने खाने गए थे| उधर मैंने शरारत करी, फिर किसानों ने हम दोनों पर ही हमला कर दिया|”
सभी लोग फिर सोनू मोनू दोनों को ताने मारते हुए चले गए|

बाबा वानर ने सोनू को अकेले में बुलाया और कहा “तुम अपने मित्र मोनू के कारण बिना किसी गलती के ही मार खाते हो| तुम्हें उसके साथ शरारतों में शामिल नहीं होना चाहिए| तुम उससे मित्रता तो रखो पर इतनी दुरी भी रखो कि स्वयं किसी विपत्ति में ना फंसो|“
सोनू ने कहा “बाबा आपका कहना सही है| पर मित्र को संकट में छोड़ना तो मेरे लिए पाप है| मेरे’लिए मित्र का संकट में साथ देना ही कर्तव्य है|”
बाबा वानर बोले “बहुत अच्छी बातें करते हो तुम| पर क्या मित्र को संकट से बचाना तुम्हारा कर्तव्य नहीं है? अगर मित्र बोलेगा कि मैं प्रचंड अग्नि में कूद रहा हूँ तो तुम उसका साथ देने के लिए उसे धक्का दोगे या उसको रोकोगे? तुमने कभी मोनू को शरारतें करने से रोकने का प्रयास किया?”
सोनू हकलाता हुआ बोला “वो..... मममम मैं मस्ती … “
बाबा वानर बोले “हाँ मस्ती ही तो करते हो| तुम्हारा परम कर्त्तव्य मित्रता निभाना नहीं बल्कि मस्ती करना है| तुम भी मोनू की शरारतों में मूक भागीदार हो| तुम्हें अगर अपने मित्र का इतना ध्यान होता तो तुम उसे संकट में पड़ने से बचाते नाकि बाद में उसके साथ मार खाते|”
सोनू बोला “नहीं...ऐसी बात नहीं...मोनू भी मुझसे प्रेम करता है...हम लोग साथ में ही रहना....”
बाबा वानर उसकी बात काटते हुए बोले “अगर, मोनू को तुम से इतना प्यार है तो क्या उसने कभी तुम्हें मार पड़ने पर दुःख व्यक्त किया है?”
सोनू के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था|
बाबा वानर बोले “स्वयं को और अपने मित्र को संकट में पड़ने से बचाना भी तुम्हारा परम कर्त्तव्य है| अगर तुम्हारा मित्र संकट में पड़ने जा रहा है तो तुम्हें उसे समझा कर रोकना चाहिए नाकि खुद भी उसके साथ संकट में फंस जाओ|”
सोनू की बात समझ में आ गई | वो बाबा वानर को धन्यवाद करके चला गया|

उसके बाद सोनू, मोनू के साथ तो रहता था पर उसको शैतानी करने से रोकने लगा था| मोनू को भी शरारत करने को होता तो सोनू उसको समझा कर रोकने की कोशिश करता| धीरे धीरे मोनू की शरारतें बंद हो गईं| सोनू ने अपना मित्रता का कर्त्तव्य अच्छे से निभाया| सभी लोग अब बहुत खुश थे|
फिर सबने मिलकर पार्टी करी|