भालू का अपहरण Sandeep Shrivastava द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

भालू का अपहरण

रघुवन का भोलू भालू शिकारियों के जाल में फंस चुका था| जैसे ही शिकारियों के लगाए हुए जाल पर उसने पैर रखा एक शिकारी ने अपनी बन्दुक से रंग बिरंगा छोटा सा तीर उसके सीने में दाग दिया। थोड़ी देर के बाद भोलू बेहोश हो गया। शिकारियों ने उसको जाल में कस कर बाँध दिया था। आधा दर्ज़न शिकारी थे और सबके सब बंदूकों से लैस थे। किसी भी जानवर की हिम्मत नहीं हो रही थी कि भोलू की कुछ मदद कर सके। भोलू अब शायद चिड़ियाघर जायेगा या फिर सर्कस जाएगा।


शिकारियों की पिंजरे वाली गाडी रघुवन के कच्चे और घने रास्ते में अंदर नहीं आ सकती थी। शिकारियों को खुद ही भोलू को खींच कर गाडी तक ले जाना था। कच्चा और उबड़ खाबड़ रास्ता होने के कारण शिकारियों को लिए यह काम कठिन था। शायद भोलू भी उनके अनुमान से ज्यादा भारी था। वो रुक रुक कर उसे खींच रहे थे और आस पास भी नज़र रखे हुए थे।


हरी तोते ने एक शिकारी को कहते हुए सुना “हमारे पास ज्यादा समय नहीं है, ज्यादा देर तक दवाई का असर नहीं रहेगा फिर यह होश में आ जायेगा। फिर इसे लेके जाना असंभव होगा। संध्या से पहले ही हमें यहाँ से निकलना है। रात में हिंसक जानवरों का खतरा बढ़ जायेगा।“

यह सुनते ही हरी की आँखों में आशा की किरण जाग गई।


उसने सबको एकत्रित किया और बोला “हमारे पास भोलू को बचाने का एक आखिरी मौका है। हमें तुरंत काम करना होगा। “

मंगलू बोला “पर कैसे ? उनके पास बंदूकें हैं, हम उन्हें हरा नहीं सकते।”

हरी बोला “किसी का शत्रु भले ही उसे एक बार मारे पर शत्रु का भय उसे बार बार मारता है। जितने भयभीत हम हैं उतने ही वह हैं। हमें उन्हें मारना नहीं है बस उन्हें भयभीत करना है। बाकि सारा कार्य समय पर छोड़ दो क्योंकि समय उनके पास कम है। हमें बस उन्हें रघुवन में ही उलझाए रखना है। “

बात सबकी समझ में आ गई। सब काम पर लग गए।


शिकारी भोलू को खींचते हुए थक चुके थे। आसपास से जानवरों की आवाजें बढ़ती जा रहीं थी। इससे उनका भय बढ़ गया था और वो अब ज्यादा ही चौकन्ने हो करा यहाँ वहां देख रहे थे। आवाजें चारों दिशाओं और आकाश से भी आ रहीं थीं।


हाथी और अन्य रघुवन वासी अब तक अपना काम कर चुके थे। चिकनी गीली मिटटी पूरे रास्ते में बिछ चुकी थी। मानवों का उसपे चलना असंभव था। जैसे ही शिकारी भोलू को खींचते हुए उस रास्ते पर पहुंचे सबके सब फिसल कर धड़ाम से गिरे। फिर उठने की कोशिश करी और फिर से गिरे, एक दूसरे का हाथ पकड़ के जैसे तैसे उठे फिर जैसे ही भोलू को खींचा फिर से गिरे। कीचड में लथपथ हो गए थे। आँखों में भी कीचड चला गया था, दिखाई भी कम दे रहा था और जानवरों की बढ़ती हुई दहाड़ें, उनका भय कई गुना बढ़ गया था।


जाल में बंधा हुआ भोलू अब हिल-डुल रहा था। किसी भी समय वो होश में आ सकता था। दोपहर ढल रही थी। शिकारियों का सरदार बोला “अब हम भालू को लेके जाने की कोशिश करेंगे तो फंस जायेंगे। अब जानवरों का खतरा भी बढ़ रहा है। बेहतर होगा की हम इसे छोड़ के निकल लें। “ उसके साथी शायद यही सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे। सारे के सारे भोलू का जाल छोड़ कर कीचड़ में छप छप करके भाग गए।


भोलू अब होश में आ चूका था। उसका जाल भी चूहो और गिलहरियों ने मिल कर काट दिया था। उसने सबको बहुत धन्यवाद दिया। सबकी बहादुरी और हिम्मत की प्रशंसा करी। सब बहुत खुश थे कि भोलू बच गया।


फिर सबने मिलकर पार्टी करी।