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मैं तो ओढ चुनरिया - 14

मैं तो ओढ चुनरिया

अध्याय - चौदह

अभी तक आप पढ रहे थे , मेरे होने के बाद माँ की जिंदगी में व्यवस्था आने लगी थी कि अचानक पिताजी की नहर वाली नौकरी में छँटनी शुरु हो गयी । एक महीना तो जैसे तैसे निकल गया पर बकरे की माँ कब तक खैर मनाती । जिस दिन पगार मिली , उसी दिन काम पर से जवाब मिल गया । कुछ दिन जमा पुंजी से काम चला पर यह लंबे समय तक चलने वाला नहीं था इसलिए दम्पति ने फैसला किया कि एक बार फिर से सहारनपुर जाकर किस्मत आजमाई जाय । कुछ सामान बेच दिया गया । बाकी सामान बाँध कर हम तीनों सहारनपुर आ पहुँचे । माँ ने मायके इस हाल में न जाने का फैसला किया और जिस मकान में पहले मेरी नानी रहती थी , उसी मकान को दो रुपये महीना पर किराये से ले लिया ।

जो पैसे हम फरीदकोट से लेकर चले थे , उन्हीं से जैसे तैसे गाङी खिंच रही थी । अक्सर हम शाम को टहलते हुए नानी के घर निकल जाते तो रात का खाना खाकर ही लौटते । मेरा यहाँ दिल लग गया था । तीनों मामा , नानी , नानी बेबे सब मुझे बहुत प्यार करते । मैं कभी बङे मामा के साथ उनके अखाङे चली जाती । कभी मझले मामा मुझे घुमाने ले जाते और छोटे मामा वे तो मेरे हीरो थे । मुझे मेरा मन भरने तक कुलफी या आइसक्रीम खिलाते । मेरी तो मौज ही मौज थी ।

बेबे नानी अपने लिए हंदे लाती थी । एक दिन उसे हमारी हालत का पता चला तो उसने माँ को अपने हंदे लाने भेजा और दान में मिला सारा सामान हमें ही दे दिया । इसके बाद तो यह अक्सर होने लगा । बेबे हमारे घर आती और कहती – मेरा तो सिर दर्द करने लग पङा है । तुलसी की चाय पिला दो और चाय पीकर सो जाती । हंदे लेने माँ को जाना पङता । वापिस आती तो कई फुल्के , परोंठे और सब्जियाँ लेकर आती । साथ में फल भी और तीज त्योहार होता तो पैसे या रुपये भी होते । बेबे अपने लिए दो रोटी रख कर सारा सामान माँ को दे देती । उस दिन हम दावत खाते । तीन चार तरह की सब्जी और रोटी ।

इस बीच पिताजी की नौकरी लग गयी थी और वे सुबह साढे आठ अपना टिफन लेकर निकल जाते तो रात को आठ बजे से पहले न लौटते । कभी कभी तो नौ भी बज जाते । आकर वे पहले नहाते फिर माँ के मंदिर में सिर झुकाते तब रात का खाना खाते और सो जाते । मैं पूरा दिन उनका इंतजार करती रहती कि कब पिताजी लौटें तो मैं उन्हें पूरे दिन के किस्से सुनाऊँ । माँ हमें खाना एक ही थाली में डाल देती और मैं पिताजी के साथ बैठी छोटे छोटे कौर तोङ कर मुँह में डाल कोई बात सुनाने लगती कि माँ की डाँट सुनाई देती - मुँह में रोटी डाल कर कोई बात नहीं करनी । पहले रोटी खाओ फिर दुनिया जहान की बातें सुनाना । और मैं चुपचाप मुँह में डला रोटी का टुकङा निगलने की कोशिश करने लगती ।

शुक्रवार पिताजी की छुट्टी होती , उस दिन हम खूब मस्ती करते । कभी लालजी दास के बाङे में नहाने चले जाते । कभी हरिद्वार गंगा नहान को । नानी का घर तो था ही मस्ती मारने के लिए । वहाँ भी हम जरुर जाते । इस बीच बङे मामा को उनके दफ्तर की ओर से किसी कोर्स के लिए चुन लिया गया था और वे कोर्स करने आगरा चले गये । तार बाबू का कोर्स था जिसको पूरा करने के बाद मामा का तार बाबू होना तय था । घर भर के लोग बहुत खुश थे । सबने मामा को दुआएँ दी । अकेली मामी बहुत उदास दिखाई दे रही थी । मामी की माँ मिलने आई । उन्होंने मामी को समझाया कि सिर्फ एक साल की ही तो बात है । उसके बाद तो मामा ने घर ही आना हुआ । वो भी बङा अफसर बन के । तुझे तो खुश होना चाहिए ।

मामी ने अपनी माँ को क्या बताया , यह तो मुझे पता नहीं पर उस नानी ने तुरंत छोटे मामा को भेज के लड्डू मंगवाए और सबका मुँह मीठा करवाया । मामी एक बेटा लाने वाली थी । पूरे घर की खुशियाँ इस खबर से दुगनी हो गयी । बेटी अभी सिर्फ सात महीने के हुई थी और मामी फिर से उम्मीद से थी पर यह सब तो होता ही रहता है । उस दिन से मामी का खास ख्याल रखा जाने लगा । उन्हें क्या पसंद है , क्या खाना चाहती हैं , वही सामान आता । नीलम का दूध छुङवा दिया गया । वह सारा दिन रोती रहती । उसे ऊपर का दूध दिया गया पर वह शायद हजम नहीं कर पाई । उसका पेट खराब रहने लगा । दुबली पतली तो वह पहले से ही थी और भी ज्यादा मरगिल्ली हो गयी ।

फिर एक दिन घर में बेटा पैदा हुआ । माँ ने उस दिन गली में खङे होकर थाली बजाई थी । मामी अब अंदर लेटी रहती । सात में इनका बेटा लेटा रहता । बेहद दुबला पतला । नीलम से भी पतला । मामा एक दिन की छुट्टी लेकर आये थे । बेटे की पूजा करवा कर उसका नामकरण करवा कर लौट गये । अभी उन्हें वापिस लौटने में चार महीने बाकी थे ।

बच्चे का नाम राम रखा गया लेकिन बेबे कहती नटवर । माँ ने तेरह दिन कटवा दिये थे और घर लौटना चाहती थी । नानी ने इजाजत देदी इस शर्त पर कि रात का खाना खाकर जाना । माँ ने जल्दी जल्दी खाना बनाया । मुझे खिलाकर अपनी और पिताजी की रोटी बाँध ली । मझले मामा हमें छोङने आये थे । अभी हम घर पहुँचे ही थे कि छोटे मामा लगभग साइकिल भगाते हुए हमारे पीछे पीछे आ पहुँचे ।

उनकी हालत देखकर माँ घबरा गयी – क्या हुआ किशन ?

वो बेबे !

क्या हुआ बेबे को ? अभी तो भली चंगी छोङ कर आई हूँ । जब मैं निकली , आरती करने के लिए जोत बना रही थी ।

बहन तू जल्दी चल ।

हम उलटे पैर लौट गये थे । बेबे जमीन पर लेटी हुई थी । एक चादर बिछाकर । नानी ने मामा को उनके सिरहाने दिया जलाने और कुछ अनाज रखने को कहा । माँ का रो रोकर बुरा हाल था ।

तुरंत पास पङोस को खबर की गयी । लोग आने लगे थे । सुबह तक बेबे की जेठानी , उनके बच्चे , मामी के माँ बाप मामा मामी , माँ की मौसी उनके बेटे सब आ गये थे । सब रो रहे थे ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...

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