रिस्की लव - 22 Ashish Kumar Trivedi द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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रिस्की लव - 22



(22)

निर्भय अपने कमरे की खिड़की से समुद्र की बहती हुई लहरों को देख रहा था। अभी उसे खबर मिली थी कि अंजन उसकी और मानवी की तलाश करते हुए लंदन पहुंँच गया है। जैसे समुद्र की लहरें किनारे पर आकर टकरा रही थीं वैसे ही उसके मन में यादों की लहरें शोर मचा रही थीं।

उसके पैर में गोली लगी थी। बहुत दूर तक भाग सकना संभव नहीं था। घायल मानवी का भी यही हाल था। अंजन का भेजा हुआ आदमी यमदूत की तरह उन दोनों के पीछे लगा हुआ था। उसके हाथों मौत पक्की थी। भागते हुए निर्भय ने नीचे बहती इंद्रयाणी नदी को देखा। उसकी गोद में जीवन बचाने की कोई उम्मीद थी। उसने मानवी की तरफ देखा। वह उसका इशारा समझ गई। दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और नीचे बहती नदी में कूद गए।

उसे जब होश आया तो वह अस्पताल में था। उसे होश में आया देखकर नर्स ने फौरन डॉक्टर को सूचना दी। डॉक्टर ने आकर उसे चेक किया। निर्भय ने उनसे पूँछा,
"डॉक्टर मैं किस अस्पताल में हूँ ? कितने समय से यहाँ पर हूँ ?"
डॉक्टर ने जवाब दिया,
"यह जिला अस्पताल है। परसों देर रात कुछ गांव वाले आपको यहाँ लेकर आए थे। आपके पैर में गोली लगी थी। हमने ऑपरेशन करके गोली निकाल दी। पैर को कोई नुक्सान नहीं हुआ है। घाव भरने में कुछ दिन लगेंगे। आप आसानी से चल फिर सकेंगे। किस्मत अच्छी थी कि उस रात एक गांव वाले को आप नदी के किनारे मिल गए। वो लोग आपको सही समय पर अस्पताल ले आए।"
निर्भय को उस दिन की घटनाएं याद आईं। उसे मानवी की याद आई। उसने पूँछा,
"मानवी कहाँ है ?"
डॉक्टर ने आश्चर्य से कहा,
"कौन मानवी ?"
निर्भय ने समझाया,
"उस दिन मेरे साथ एक औरत भी मिली होगी। हम दोनों एक साथ ही नदी में गिरे थे।"
"जी नहीं....गांव वाले सिर्फ आपको लेकर आए थे। आपके साथ कोई नहीं था। अब आप आराम कीजिए।"
कहकर डॉक्टर चला गया। निर्भय सोच में पड़ गया। दोनों एक साथ हाथ पकड़कर नदी में कूदे थे। उसे याद था कि दोनों एक साथ ही पानी से टकराए थे। कुछ देर एक साथ बहे भी थे। उसके बाद क्या हुआ उसे कुछ याद नहीं आ रहा था। वह मानवी को लेकर परेशान हो गया।
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उस गांव में गया जहाँ लोगों ने उसे नदी के किनारे पाया था। उसने गांव वालों का शुक्रिया अदा किया। गांव वालों से पूँछा कि उन्हें आसपास किसी औरत के पाए जाने की कोई सूचना मिली है। पर आस पास के गांव से ऐसी कोई सूचना नहीं मिली थी।
उसने अपनी तरफ से मानवी को तलाश करने की कोशिश की थी। पर कोई सफलता नहीं मिली। उसे लगा कि शायद मानवी बच नहीं पाई। वह मुंबई वापस नहीं जाना चाहता था। इसलिए वहाँ से अपने एक दोस्त के पास औरंगाबाद चला गया। वहाँ उससे मदद लेकर सिंगापुर चला गया। वहाँ उसकी बहुत जान पहचान थी। उनकी सहायता से उसने वहाँ एक छोटा सा बिज़नेस शुरू कर दिया। इस बार उसे सफलता भी मिली।

मानवी ने आकर उसके कंधे पर हाथ रखा। यादों की उठती हुई लहरें शांत हो गईं। निर्भय वर्तमान में लौट आया। मानवी ने कहा,
"यहाँ खड़े क्या कर रहे हो ?"
"यादों के समंदर में गोते लगा रहा था।"
कहकर वह जाकर कुर्सी पर बैठ गया। मानवी उसके पास बैठते हुए बोली,
"अंजन छटपटा रहा है। जो हम चाह रहे थे वही हुआ।"
निर्भय के चेहरे पर कठोरता आ गई। उसकी आँखों में गुस्सा था। वह बोला,
"अभी तो बहुत छटपटाना है उसे। वह जितना छटपटाएगा उतना ही मेरे दिल को तसल्ली मिलेगी।"
मानवी की आँखों में भी चिंगारियां थीं। अंजन ने उसे धोखा दिया था। उसके प्यार को छला था। उसका सबकुछ हड़प लेने के बाद उसने उसे और निर्भय को जान से मारने की कोशिश भी की थी। उसने कहा,
"तड़पेगा वह। अभी तो उस पर बहुत चोट करनी है।"
"करेंगे.... उसकी वजह से हमने बहुत कुछ सहा है।"
मानवी ने उसका हाथ पकड़कर कहा,
"अगर तुम्हारा साथ ना होता तो मैं कुछ ना कर पाती।"
"किस्मत हमारे साथ है तभी तो हम एक दूसरे से दोबारा मिल पाए।"
निर्भय उठते हुए बोला,
"सोच रहा हूँ कि बीच पर टहल आऊँ। चलोगी।"
"नहीं... तुम जाओ।"
निर्भय चला गया। मानवी बाहर गार्डन में जाकर बैठ गई। उसके मन में भी वह सारी घटनाएं चल रही थीं जो उस दिन जंगल में उसके साथ घटी थीं।

वह निर्भय के साथ जान बचाकर भाग तो रही थी पर कुछ दूर चलने के बाद हिम्मत जवाब देने लगी थी। वह हिम्मत हारने वाली थी तभी निर्भय ने उसकी तरफ देखा। उसने अपना हाथ बढ़ाकर नदी की तरफ इशारा किया। वह समझ गई। कोई और रास्ता नहीं था। उसने निर्भय का हाथ पकड़ लिया और दोनों ने इंद्रयाणी नदी में छलांग लगा दी।
नदी में गिरने के बाद उसने होश खो दिया।
बहती हुई वह रामोशीवाडी पहुँच गई थी। नदी में स्नान करने गए पास के एक मंदिर के पुजारी ने उसे बेहोशी की हालत में नदी के किनारे पड़े देखा। कुछ लोगों की मदद से वह उसे अपने घर ले गया। उसने और उसकी पत्नी ने मानवी की सेवा की।
जब वह ठीक हुई तो उन्होंने मानवी से उसके बारे में पूँछा। मानवी समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहे। वह उन्हें अपनी सच्चाई बताना नहीं चाहती थी। क्योंकी उससे उसे कोई फायदा नहीं होने वाला था। इसलिए उसने ऐसा दिखाया जैसे उसकी याददाश्त चली गई हो।
बुजुर्ग पुजारी और उसकी पत्नी की कोई संतान नहीं थी। वह उसे अपनी बेटी की तरह रख रहे थे। लेकिन मानवी को इस तरह रहने की आदत नहीं थी। वह बहुत ऐशो आराम में पली थी। पुजारी ने उसे दो जोड़ी साधारण से कपड़े लाकर दिए थे। दोनों वक्त खाना भी बहुत सादा ही मिलता था। एक छोटे से कमरे में पुजारी, उसकी पत्नी और मानवी रहते थे।
एक महीने का समय बीत गया था। मानवी के लिए उन हालातों में रहना संभव नहीं था। पर वह मजबूर थी। पुजारी ने दया करके उसे अपने पास रखा था। अगर वह आसरा ना देता तो सड़क पर मारे मारे फिरने के अलावा कोई चारा ना रह जाता। अपनी इस हालत में यह सोचकर कि अंजन उसकी ही दौलत पर ऐश कर रहा है उसका खून खौल उठता था।
एक दो बार उसने सोचा कि पुलिस के पास जाकर सारी बात बता दे। पर तरुण के मुंह से उसने सुना था कि उसके भाइयों की मौत के पीछे अंजन का ही हाथ था। फिर भी वह सारी पुलिस जांच से बाहर निकल आया था। इसका मतलब था कि पुलिस में उसकी गहरी जान पहचान है। यह सोचकर उसने इरादा बदल दिया।
पर वह मन ही मन सुलग रही थी। चाहती थी कि कुछ भी करके अंजन से बदला ले। यह आसान नहीं था‌। अंजन से बदला लेने के लिए उसे किसी के साथ की ज़रूरत थी। अभी तो उसका अपना ही कोई ठिकाना नहीं था। उसका साथ कौन देता। निर्भय के बारे में उसे कुछ नहीं पता था। वह नहीं जानती थी कि वह ज़िंदा है या मर गया। ना ही वह पता करने की स्थिति में थी। अभी तो उसके लिए इस स्थिति से निकालना बहुत ज़रूरी था। लेकिन उसकी कोई सूरत उसे नज़र नहीं आ रही थी। इस विषय में सोच सोच कर वह परेशान थी।
अंजन के प्यार ने उसे बर्बाद कर दिया था। उसके प्यार में पड़कर उसने फैशन हाउस खोलने का अपना सपना तक छोड़ दिया था। उसके लिए अपने पिता समान भाई से झूठ बोली थी। बदले में उसे सिर्फ दगा मिला। अभी वह किसी भी लायक नहीं रह गई थी। उसके पास कुछ भी ऐसा नहीं था कि वह नए सिरे से अपना जीवन शुरू कर सके।
मन ऊबने पर वह नदी के किनारे आकर बैठ जाती थी। इस समय भी वह वहीं बैठी थी। उसका मन इस कदर परेशान था कि वह सोच रही थी आगर जल्दी ही कोई रास्ता नहीं मिला तो वह पागल हो जाएगी। उसे यहाँ से आगे बढ़ना होगा। अपने जीवन निर्वहन के लिए कुछ करना होगा। तभी वह अंजन से बदला लेने के विषय में कुछ कर पाएगी। पर वह रास्ता उसकी समझ नहीं आ रहा था।
वह बहती हुई नदी को ताक रही थी। तभी पीछे से पुजारी की आवाज़ आई,
"क्या अपने बीते हुए जीवन को याद करने की कोशिश कर रही हो। कुछ याद आया ?"
मानवी ने हर बार की तरह ऐसे देखा जैसे कि कुछ याद ना आने के कारण बड़ी परेशान हो। पुजारी ने तसल्ली देते हुए कहा,
"विठ्ठल सब ठीक कर देंगे। परेशान ना हो।"
पुजारी उसके पास बैठते हुए बोला,
"मैं और तुम्हारी काकी हर साल देहू संत तुकाराम जी के दर्शन करने गाथा मंदिर जाते हैं। वहीं जाने की सोच रहे थे।"
मानवी पुजारी की मनोदशा समझ रही थी। उसे लगा था कि शायद कुछ दिनों में उसे उसकी पुरानी ज़िंदगी के बारे में याद आ जाएगा और वह उसे उसके घर छोड़कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएगा। पर मानवी को सबकुछ याद था। लेकिन उसे क्या बताती। वह खुद भी वहाँ से निकलने का कोई रास्ता ढूंढ़ रही थी। वह बोली,
"कोशिश कर रही थी कि कुछ याद आ जाए। वैसे आप दोनों को कब जाना है ?"
"अगले हफ्ते निकलने की सोच रहे थे। कोई बात नहीं है। तुम भी हमारे साथ चलना।"
मानवी हल्के से मुस्कुरा दी। पुजारी ने उठते हुए कहा,
"अब घर चलो। शाम ढल रही है।"
मानवी उठी और उसके साथ चल दी। रास्ते में वह सोच रही थी कि अब जल्द ही कोई ना कोई राह निकालनी होगी। वह भी अब इस तरह और नहीं रह सकती है।
पर उसके दिमाग में कुछ भी नहीं आ रहा था। वह हताश हो रही थी।