प्रेम की भावना (भाग-3) Jyoti Prajapati द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम की भावना (भाग-3)

प्रेम : "सुनो!!"

भावना : ..........

प्रेम : "सुन रही हो..!"

भावना : ............

प्रेम : "सुनाई दे रहा है कुछ बोल रहा हूँ मै..!"

भावना : ............

प्रेम : "ऐ मोटी..!"

भावना : "खबरदार जो मोटी बोला है तो.!किस एंगल से मोटी लगती हूँ मै आपको..?"

प्रेम : "तो कब से आवाज़ दे रहा हूँ मै, जवाब क्यों नही देती..?"

भावना : ............

प्रेम : "ले फिर चुप हो गयी..!!कुछ तो बोल यार।गुस्सा कर, चिल्ला ले, रो ले, चाहे तो मार भी ले, पर यूं चुप मत रह मेरी जान। तेरी चुप्पी खलती है मुझे यार।।।"

भावना : ............

प्रेम : "अब हो गयी ना यार गलती। भूल गया एनिवर्सरी। तू याद दिला देती। वैसे तो दिन-रात गीत गाती रहती थी। आज याद नही दिला सकती थी।"

भावना : .............

प्रेम : "अरे बोल ले मेरी माँ... कुछ तो बोल। प्रोमिस करता हूँ आज के बाद कभी नही भूलूंगा। इस बार माफ कर दे सिर्फ।"

भावना : .............

प्रेम : "नही बोलना ना तुझे। ठीक है मत बोल।मैं ही पागल हूँ जो बोले जा रहा हूँ। क्या-क्या याद रखूँ मैं..????बर्थडे, इंगेजमेंट एनिवर्सरी, वेडिंग एनिवर्सरी पता नही क्या-क्या तो दिन सेलिब्रेट करते हैं लोग..? मुझे तो समझ ही नही आ रहा शादी ही क्यों कि मैंने..??अच्छा भला कुवांरा था।चैन से जीता था।"

भावना : "ज्यादा समय नही हुआ है अभी भी गलती सुधार सकते हो..!!"

प्रेम : "कौन सी गलती..?एनिवर्सरी भूलने की.!!"

भावना : "उहूँ..!"

प्रेम : "तो..!!"

भावना : "शादी करने की..!"

प्रेम : "क्या मतलब..?"

भावना : "तलाक़ के पेपर्स तैयार हैं।हस्ताक्षर करिए उसपर। और गलती सुधार लीजिये।"

प्रेम : "तेरी हर बात ले देकर तलाक़ पर क्यूँ अटक जाती है..?तुझे मुझसे दूर जाने का बहाना चाहिए होता है ना बस।इसलिये इतने नाटक करती हो।"

भावना : "मुझे दूर जाने का बहाना चाहिए होता है मतलब..!मैं क्यों आपसे दूर जाने लगी..? मुझे आपसे दूर जाने के लिए बहाने की क्या जरूरत अगर कभी जाना होगा तो सीधे चली ही जाऊंगी।"

प्रेम : " हाँ तो चली जाओ ना..!!"

भावना : .........

बस इतनी छोटी सी बात को लेकर नोकझोक शुरू हुई थी मेरी और भावना की। मुझे नही लगा था कि वो चली जायेगी।लेकिन चली गयी और मैं उसे जाता देखता रह गया।

हमारे विवाह की आठवी वर्षगाँठ थी उस दिन। भावना एक हफ्ते पहले से ही गीत गाये जा रही थी इस दिन के लिए..!!एक रात पहले तक मुझे याद था।लेकिन अगले दिन मैं भूल गया।उसने भी याद नही दिलाया।भावना को लगा मुझे याद है।शायद में कोई सरप्राइज लाया हूँ उसके लिए इसलिये सता रहा हूँ उसे..!!! पर मुझे कुछ याद हो तब तो..!
इन महिलाओं में ये एक विशेष बात होती है। सभी विशेष दिनांक याद रखने की।वर्षगांठ हो, जन्मदिन हो या कुछ और। भावना की भी यही आदत थी।अपने मायके और ससुराल में जितने भी विशेष दिन होते सब की दिनांक याद रखती।किसी की एनिवर्सरी हो, जन्मदिन हो या कुछ और हर दिन याद रखती है।

अब तक ना जाने कितनी बार मैं भावना का पत्र पढ़ चुका था।मुझे अब इंतज़ार ही नही हो रहा था कि कब मुझे उसका अगला पत्र मिलेगा।जब हम किसी का इंतजार करते हैं तो समय बड़ी मंद गति से आगे बढ़ता है।

मेरी भावना, हमेशा पूरी शिद्दत से मेरी भावनाओ का ध्यान रखती आयी है लेकिन शायद मैं उसकी भावना का ध्यान ना रख सका। वो हमेशा मेरे माता-पिता, भाई-बहन का ध्यान रखती। लेकिन,,, मैंने कभी उसके मायके के बारे में सोचा ही नही। ना कभी उसने कहा। 3 महीने पहले मेरी सासू माँ का ऑपरेशन हुआ था।तब भी भावना चार-पांच दिन से ज्यादा अपने मायके में नही रुक पाई। मम्मी को पसंद नही था उसका ज्यादा दिन मायके में रुकना।
और शायद कहीं ना कही मैं भी यही चाहता था कि वो ना जाये वहां। एक कारण तो ये की मैं नही रह नही सकता उसके बिना, और दूसरा मेरे साले साहब। मेरी बिल्कुल नही बनी उसके साथ कभी भी।भावना के दिल के जितने करीब मैं हूँ उतना ही वो। मुझे बिल्कुल पसंद नही मेरे अलावा कोई और शख्स मेरी भावना के दिल के इतने करीब हो।चाहे वो उसका भाई ही क्यूँ ना हो..??!!!!!

रात के बारह-एक बजे तक मैं भावना के बारे में ही सोचता रहा। भावना के बारे में सोचते-सोचते कब सो गया पता ही नही चला।
रात को देर से सोया तो सुबह भी नींद देर से खुली।जैसे ही घड़ी में समय देखा तो साढ़े आठ बजे हुए थे। मैं एक झटके में ही बिस्तर से अलग हो गया।पर आज हड़बड़ाहट की जगह खुशी हुई मुझे। चलो अच्छा हुआ देर से नींद खुली।वरना साढ़े दस बजाना मुश्किल हो जाता मेरे लिए।अब सिर्फ दो घंटे बचे हैं साढ़े दस बजने में।
ब्रश किया,चाय पी, नहाया, तैयार हुआ, खाना खाया उसी में दस बज गए। फिर मैं अपने आफिस के लिए निकल लिया।आफिस में पहुंचते पवन मुझे देख उठ खड़ा हुआ।और मेरी भावना का प्रेम पत्र, जो प्रेम पत्र कम तलाक़ धमकी पत्र ज्यादा था, लहरा दिया मुझे देख कर।

क्या खुशी हुई मुझे पत्र देख कर..?? कोई अंदाज़ा भी नही लगा सकता। मैं तेज़ कदमो से पवन की ओर बढ़ गया।जैसे ही मैंने पत्र लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया कमीने ने ऑफिस का कोई सा लैटर मेरे हाथों में थमा दिया और बोला, "एसडीएम सर ने बोला है ये सूचना सभी तक पहुंच जानी चाहिए।" सूरत उतर गई मेरी वो लैटर देख कर।या यूं कह लो रोना आ गया मुझे। कितनी खुशी से ऑफिस आया था..?? पवन के हाथों में लैटर देख के खून बढ़ गया था मेरा।लेकिन जब पता चला लैटर भावना का नही एसडीएम सर का है सारा खून जल गया।
मेरी शक्ल देख कर पवन को हंसी आगयी शायद फिर तरस।उसने वो लैटर वापस लिया मुझसे और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा।मैंने जब हैरानी से उसकी तरफ देखा तो बोला, "यार मज़ाक कर रहा था ये सर का लैटर तेरे लिए नही मेरे लिए आया था। ये ले भाभी का लैटर।" इतना बोलकर उसने भावना का लैटर मुझे दे दिया और सर का लेटर लेकर चला गया।पहली फुर्सत में मैं भावना का लेटर लेकर सीधे अपने केबिन में घुसा। जल्दी से लैटर निकाला। हमेशा की तरह फिर वही भीनी और प्यारी खुशबू से जिसने फिर मेरी सांसों को महका दिया। मैंने लैटर खोला और पढ़ने लगा,

मेरे प्रिय पतिदेव,

ईश्वर से प्रार्थना है मेरी आप सदैव स्वस्थ और सुखी रहें ।
क्या हुआ जी, आपने मेरे पत्र का जवाब नही दिया....?
नाराज़ हो गए क्या..? या गुस्सा आ गया मेरा पत्र पढ़ कर..!!
हाय मेरी जान....ऐसी छोटी-मोटी बातों पर गुस्सा नही करते।
आपको पता है ना गुस्से में आपकी नाक लाल हो जाती है। अच्छा चलिए ठीक है अब से मैं ऐसी कोई बात नही लिखूंगी जिससे आप नाराज़ हो जाएं या आपको गुस्सा आये। अब रूठना - मनाना तो आजीवन चलता ही रहता है।
अब आप मेरे बारे में ये मत कहिएगा की मैं खुद भी तो रूठ कर मायके में बैठी हूँ। मेरी बात अलग है।
लेकिन अब इन सब बातों को छोड़िए और ऐसे मत रूठियेगा आज के बाद। आप जीने की वजह हैं मेरी। रूठ कर मुझसे मेरा अधिकार मत छीनिये। रूठने का अधिकार सिर्फ मुझे ही है।मुझे अपनी मेरे हर पत्र का जवाब दीजियेगा आज के बाद।अगर आप मेरे पत्र का जवाब नही देंगे तो पता नही कब मेरा पत्र आखिरी पत्र बन जाये......!!!!मुझे पता है आप नही रह पा रहे हैं मेरे बिना। तो फिर पत्र के माध्यम से ही सही, जुड़े तो रहिए ना..!!
और हां, पवन भैया को भी मेरा प्रणाम कहिएगा।बहुत ध्यान रखते हैं वो आपका..!एक दोस्त होने का पूरा उत्तरदायित्व निभाते हैं।
अंगद भैया को भी कहिएगा अपना ध्यान रखे।बताया था उन्होंने मुझे आप रात को लेट सोते हैं।ठंड के मौसम में बाहर घूमते रहते हैं।और कपड़ो का भी सत्यानाश कर चुके हैं।अब से ध्यान रखिएगा।कलर छोड़ने वाले कपड़े अलग, सफेद अलग और पेंट अलग कर के डालना मशीन में एकसाथ नही।
आज के लिए तो इतना ही काफी है। अब कल आप मुझे पत्र लिखेंगे ना...!या परसो मैं पत्र के साथ तलाक़ के पेपर्स भेजूं।
अपना ध्यान रखिएगा....!!

आपकी भावना
अपने प्रेम की भावना

कसम से यार जितना उत्तेजित हो रहा था मैं पत्र पढ़ने के लिए सब हवा हो गया।सच मे ऐसा पत्र कौन लिखता है यार।मैं अपने पत्र में उसको आई लव यू बोलता हूँ, माफी मांगता हूँ उसका तो कोई जिक्र ही नही किया।बस हर पत्र में पवन और अंगद टपक पड़ते हैं कहीं से भी।मुझे तो ये लगता है ये पत्र मेरे लिए लिखती है या इन दोनों के लिए।और वो मेरा सबसे लायक कम नालायक ज्यादा भाई अंगद हर खबर देता है इसे।खबरीलाल कहीं का।और ये कमीना पवन, अंगद के बाद मेरी ज़िंदगी मे सबसे बड़ी पनौती है...! ऐसा कौन सा उत्तरदायित्व निभा दिया इसने..?? जो भावना बिल्कुल ही भावनाओ में बही चली जा रही है इसके लिए..??।दोनो के दोनो विलेन है मेरी ज़िंदगी में। अब मैं क्या लिखूं भावना के लिए कुछ नही सूझ रहा..??? क्यूंकि इसके लिए मेरे मन मे जितना प्रेम का अहसास उमड़ता है ना पत्र पढ़ कर या तो हंसी में बह जाते हैं या हवा में।
और क्या बात है, मैडम ने आज फिर तलाक़ की धमकी दे ही डाली। इसके पत्रों में मुझे प्रेम तो कहीं से कहीं तक नजर आता ही नही...!! धमकियां ही धमकियां नज़र आती है।

कभी-कभी तो मैं सोचता हूँ ये अपने पेशेंट को भी दवाइयां धमकी देकर ही देती होगी।जैसे, "दवाई समय से ले रहे हो या नही..!!वरना लगाऊं जहर वाला इंजेक्शन...!!"
मुझे खुद ही हंसी आ गयी अपनी बात पर।

मुझे ना जाने क्यों थोड़ा गुस्सा भी आया। मैं भावना के पत्र का जवाब आज के आज ही भेजने के मूड में था।लंच टाइम में एक कोरा कागज उठाया और बैठ गया अपना गुस्सा और भड़ास निकालने उस कागज पर।

मेरी प्यारी भावना

मेरी इतनी चिंता करने के लिए थैंक यू पागल..!!

और मेरी जान मुझे ये समझ नही आता तू पत्र मेरे लिए लिखती है या इन दो नमूनों के लिए। कहने को तो तेरा पत्र मेरे लिए आता है लेकिन तेरे इन पत्रों में मैं तो कहीं होता ही नही हूँ।
जब देखो तब इन दो कमीनो के बारे में बोलना शुरू कर देती है। मेरे बारे में भी कुछ लिख दिया कर यार...। ज्यादा नही तो थोड़ा ही सही। पर कुछ तो लिख, ताकि मुझे एहसास हो कि हाँ तू मुझे ही लिखती है पत्र। मेरे लिए ही लिखती है।
तुझे क्या लगता है की तू हमेशा इन दोनों के बारे में लिखती रहेगी ताकि मैं तुझसे गुस्सा हो जाऊं, नाराज़ हो जाऊं...!!!???और तुझे फिर मौका मिल जाये मुझसे दूर रहने का..!!नही अब ऐसा नही होगा। जहां तक इन आठ सालों में मैं तुझे समझ पाया हूँ ना उस हिसाब से तो तू जानबूझकर ही ऐसा पत्र लिख रही है। क्या कारण है जो तेरे इन पत्रों में मैं नही होता हूँ..?? मैं तेरे अहसासों में तो होता हूँ लेकिन लफ़्ज़ों में नही।जहां तक मुझे लगता है ना तू कलम तो मेरे बारे में लिखने को ही उठाती है, लेकिन किसी कारण से खुद को रोक लेती है ..!!
तूने बिल्कुल सही कहा नही था मैं नही रह सकता तेरे बिना। रोज़ कैसे दिन बिता रहा हूँ मैं ही जानता हूँ।उस दिन गुस्सा था मैं इसलिये नही रोका तुझे जाने से।लेकिन जब गलती का अहसास हुआ तब गया तो था तुझे लेने।लेकिन तूने क्या किया मिलने तक से मना कर दिया।एक नही तीन बार आया था मैं तुझे लेने।पर तु तो कसम खाकर गयी थी शायद दोबारा ना आने की।
हमारा प्यार इतना कमजोर तो नही है ना भावना की छोटा सा गुस्सा उस पर हावी हो जाये। उस दिन से पहले भी हमारी कितनी ही बार नोक झोंक हुई, बहस हुई , झगड़ा हुआ लेकिन तूने कभी मुझे छोड़कर जाना तो अलग, दूर जाने की बात तक नही की। क्यों भावना..? अचानक ऐसा क्या हो गया..? जो तू ना मुझसे बात करती है ना मिलती है। तेरा मुझे यूं इस तरह से छोड़कर चले जाना मुझे क्या समझ नही आता..? सब समझता हूँ। तू चाहे कितना भी गुस्सा हो जाए लेकिन जब तक मुझसे बात ना कर ले, मुझे एक झलक देख ना ले तुझे सुकून नही पड़ता था। शायद आज भी नही।फिर क्यों ये सब....!?? मुझे जवाब चाहिए भावना..।

तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा
प्रेम
अपनी भावना का प्रेम

मैंने लैटर को एन्वेलप में डाला और पोस्ट कर आया।
रात को खाना खाते समय भी मैं ये ही सब सोचता रहा। सुधा और मम्मी मुझे गौर से देख रही थी। रात का खाना खाकर मैं अपने रूम में पहुंचा। पहले ये रूम मेरा और भावना का था।लेकिन अब भावना की जगह सुधा आ गयी। जब भावना को सुधा की प्रेगनेंसी का पता चला तभी उसने रूम खाली कर दिया और सुधा का सामान इस रूम में शिफ्ट करा दिया। उस दिन जब मैं सुधा को हॉस्पिटल से घर लेकर आया था, देखा था मैंने भावना का चेहरा। होठों पर मुस्कान। लेकिन आंखों में नमी। मुझसे देखते ही आँसू छलक उठे उसके। उस दिन भावना के आंसू मेरे सीने में तीर की तरह चुभे थे।शायद उसका कारण हम ही थे। मम्मी, मैं और...सुधा।
सुधा मेरी दूसरी पत्नी। भावना के साथ मेरी शादी को आठ साल हो गए थे।और सुधा के साथ मेरे रिश्ते को तीन साल।लेकिन इन तीन सालों में अब जाकर मैंने सुधा को अपनी पत्नी माना था। मैंने अपनी भावना की जगह कभी किसी को नही दी। जो जगह मेरी भावना की है मेरे दिल मे, ज़िन्दगी में वहां कभी कोई नही आएगा।

मैं बिस्तर पर लेटे-लेटे सोच रहा था कि आज कहीं कुछ ज्यादा तो नही लिख दिया मैंने गुस्से में।कहीं भावना को बुरा लग गया तो...!!! पर अब क्या हो सकता था..?? लैटर तो तब तक पहुंच भी गया होगा भावना के पास।
मैं अपनी सोच में इतना मगन था कि मुझे पता ही नही चला कब सुधा मेरे सिरहाने आकर बैठ गयी..??
जब उसने मेरा सिर सहलाया तब ध्यान गया उस पर मेरा। मेरा सिर सहलाते हुए सुधा बोली, "क्या बात है..? आप कुछ परेशान से लग रहे हैं।आज भी ढंग से खाना नही खाया।सुबह भी जल्दबाजी रहती है।कोई परेशानी है आपको।किसी बात की टेंशन है। अगर मुझे बता सकते हो तो...!" इतना बोलकर सुधा चुप हो गयी।
मैंने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया तो वो उठकर जाने लगी।मैंने उसका हाथ थाम लिया और कहने लगा, "नही कोई परेशानी नही है। वर्कलोड ज्यादा है आजकल। इसलिये जल्दी जाना पड़ता है। तुम चिंता मत करो।इस समय तुम्हारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा चिंता करना। ज्यादा परेशान मत हो। वैसे भी बीपी बढ़ा हुआ है तुम्हारा।ये तुम्हारे और बच्चे दोनो के लिए घातक है।" सुधा मुझे देख मुस्कुराई और मेरे बगल में लेट गयी।

मेरा ध्यान अब भावना से हट कर सुधा पर आ गया था। कितना अंतर है सुधा और भावना दोनो में..?? जहां मेरी भावना एकदम शौख और चंचल वहीं सुधा एकदम धीर-गंभीर। सगी बहन हैं दोनो कोई कह ही नही सकता। सुधा भावना से डेढ़ साल बड़ी है और मुझसे 3 महीने छोटी।
पहले मेरी और भावना की शादी मजबूरी थी लेकिन अब सुधा के साथ मेरा रिश्ता मजबूरी है। मेरा रिश्ता पहले सुधा से ही तय हुआ था लेकिन सुधा को आईएएस अधिकारी बनना था। जिस दिन हमारे फेरे थे उसी दिन सुधा का साक्षात्कार था। शादी से जरूरी उसे साक्षात्कार लगा। कहने लगी, "शादी की तारिख आगे बढ़ा दीजिये मैं अपना साक्षात्कार देने जरूर जाऊंगी। चाहे कुछ भी हो जाये। इतने सालों से परिश्रम कर रही हूँ अब अंत समय मे पीछे नही हट सकती जब सफलता सामने है।"
सबने उसे समझाया लेकिन वो मानी ही नही। रात को हमारी शादी थी और दोपहर में उसका साक्षात्कार। सबके मना करने पर भी सुधा साक्षात्कार देने चली गयी। समय ज्यादा हो गया था उसे गए। लोग बातें बनाने लगे थे। इसलिये सबने मिलकर सुधा की जगह भावना से मेरी शादी करवाने का निर्णय लिया था। मैं नही चाहता था ये सब, पर मजबूरी हो गयी थी। मैं भी क्या करता..? जब सबने मिलकर निर्णय ले ही लिया था। उस समय मैं चौबीस वर्ष का था और भावना बाइस से थोड़ी ज्यादा।
बेचारी चंचल सी लड़की हमेशा जो मुझे चिढ़ाया करती थी । कहा करती थी कि, "जीजाजी अब तो आपको मेरी दी के इशारों पर चलना होगा।घर पर भी और बाहर भी। देखना एक दिन आईएएस अधिकारी बन कर आप पर हुक्म चलाएगी मेरी बहना।" अचानक से जीजाजी से पति हो गया था मैं उसका.. !! फेरे होने के लगभग आधे घंटे बाद सुधा खुशी से भागते हुए आयी। साक्षात्कार में शायद उसे अपने चयनित होने की पूरी संभावना थी।
लेकिन जब घर आकर उसने अपनी जगह भावना को देखा सन्न रह गयी। किसी से कुछ नही कहा चुपचाप अपने रूम में चली गयी। किसी ने उससे कुछ पूछना जरूरी भी नही समझा। विदा के समय बहुत रोई थी भावना। सही भी है और, रोना तो आना ही था।
मेरी और भावना की शादी के लगभग छः महीने तक हम दोनों एकदूसरे के साथ काफी असहज रहे। कभी-कभी जब उसे मुझे आवाज़ लगानी होती थी तो उसके मुंह से मेरे लिए जीजाजी संबोधन ही निकलता। आज भी जब हमे याद आता तो मैं और भावना दोनो ही हँसने लग जाते।
कैसे हम एक-दूजे के करीब आये..? इसका पूरा श्रेय भावना को ही जाता है। हमेशा उसका यही प्रयास होता की उससे कोई गलती ना हो। मैं असहज ना होऊँ। धीरे-धीरे एक दूजे की आदत हो गयी थी हम दोनों को।एक अपनेपन का अहसास होने लगा था। जब भावना मेरे आसपास होती तो सब कुछ खुशनुमा सा, प्यारा सा लगता मुझे लेकिन अगर वो नज़र नही आती थी तो मैं बैचेन हो जाता था। उसकी आवाज़ जब तक कानो में नही पड़ती मुझे चैन नही पड़ता था। कब भावना मेरे लिये मेरी सांसो के जितनी जरूरी हो गयी..? मुझे खुद ही पता नही चला।
धीरे धीरे हमारी शादी को दो साल, हुए चार साल हुए। लेकिन इतने सालों में मम्मी कही न कहीं भावना से दुखी रहने लगी।उसका कारण था, भावना का माँ ना बन पाना। मम्मी को लगता था कि मैं और भावना शायद मजबूरी में ये रिश्ता निभा रहे हैं। हम दोनों ने पति-पत्नी के रूप में अब तक रिश्ते को अपनाया ही नही है।लेकिन माँ को कौन समझाता की हम तो कब का एकदूजे को अपना चुके हैं..?? भावना का हर तरह का उपचार करवाया गया। उसमे कहीं कोई कमी नही थी। ना ही मुझमे कोई कमी थी।
थक हार कर हम लोग उसे इंदौर लेकर गए। जहां उसकी जितनी भी हो सकती थी सब जांचे हुई। रिपोर्ट्स में पता चला कि भावना के पेट मे एक गांठ है।डॉक्टर ने बताया कि, "जो गांठ भावना के पेट मे है वो उसकी बच्चेदानी से लगी हुई है।ये गांठ बच्चे के पेट मे गलने से हुई है।"
हम लोगों के लिए ये किसी झटके से कम नही था। बच्चे के गलने से मतलब..!!भावना प्रेग्नेंट कब हुई..?और बच्चा गल कैसे गया..? ना जाने और कितने ही प्रश्न हम सबके दिमाग मे घूमे जा रहे थे।अब तो भावना ही इन सब का जवाब दे सकती थी।


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