प्रायश्चित - भाग-13 Saroj Prajapati द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रायश्चित - भाग-13

शाम को कुमार, किरण के साथ शिवानी के यहां पहुंचा।
शिवानी ने उसे बैठने के लिए कहते हुए , उसके सामने सारे गहने रख दिए , कुछ नगदी के साथ ही उसे दो चेक काट कर देते हुए बोली " कुमार ₹200000 नगद है गिन लो और 200000 का यह चेक । हां, यह गहने देख लो। मैं समझती हूं, बाकी रूपयों की पूर्ति इन गहनों से हो जाएगी।" कहकर शिवानी चुप हो गई।
कुमार ने गहनों पर सरसरी निगाह डाली और रुपयों को अपने हाथ में लेकर तौलते हुए बोला "शिवानी जी, गिनने की क्या जरूरत है। किसी और को हो ना हो मुझे आप पर
पूरा विश्वास है।" फिर उसने चेक को गौर से देखते हुए अपनी जेब में रख लिया।
गहनों को अच्छे से जांच परखकर बैग में रखते हुए कुमार बोला "शिवानी जी, मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा आपसे यह सब लेते हुए लेकिन क्या करूं बताया ना मैंने, मेरी मजबूरी है। वरना मैं दूसरों की तरह इतनी नीचता पर ना उतरता।" दिनेश की ओर व्यंग भरी नजरों से देखता हुए उसने कहा।
'सारा सामान रखने के बाद कुमार ने कहा "अब आप बताइए शिवानी जी, मुझे क्या करना है। मैं आपकी कैसे मदद कर सकता हूं।"
"बस आप और आपकी पत्नी अभी और इसी वक्त यह घर और शहर छोड़कर चले जाओ। जैसे कि मैंने सुबह कहा था और आज के बाद मुझसे व मेरे परिवार से मिलने की कोई जरूरत नहीं। ना मैं आपको जानती हूं ,ना आप मुझे!"

"जी बिल्कुल, मैं अभी यह घर खाली कर जा रहा हूं। मैंने अपना पूरा बंदोबस्त कर लिया है।
लेकिन आपकी सहेली का मुझे नहीं पता। यह चलना चाहेंगी या !!!!!!!
बताओ किरण तुम मेरे साथ चलोगी या यही रुकोगी!!!"

"कुमार, तुम्हारी फालतू बातें सुनने के लिए मैंने तुम्हें यह पैसे नहीं दिए हैं। तुम दोनों को ही यहां से साथ निकलना होगा।"

"नहीं शिवानी जी, आप तो बुरा मान गई। मैं तो कह रहा था आप इसकी बड़ी बहन हो शायद आपको जरूरत हो इसकी तो मैं कुछ दिन इसको यहीं छोड़ सकता हूं!!"

शिवानी ने कुमार की और गुस्से से घूरकर देखा तो उसने नजरें नीची कर ली।
"चलो, क्या खड़ी रहोगी अभी यहां पर! तुम्हारे कारण जिस दिन से आया हूं, यहां पर जलील ही हो रहा हूं और रही सही इज्जत जो बची थी, वह तुमने अपनी अय्याशी के कारण चौराहे पर टांग दी।"
किरण कुछ नहीं बोली। बस चुपचाप एक कोने में खड़ी आंसू बहाती रही ।
"अब चलोगी भी या यूं ही आंसू बहाती रहोगी। अब तुम्हारे त्रिया चरित्र का जादू मुझ पर नहीं चलने वाला।" कुमार गुस्से से उसे घूरता हुआ बाहर निकल गया।
किरण भी चल दी। फिर कुछ सोच कर वह रुक गई और शिवानी से बोली "दीदी, हो सके तो मुझे माफ कर देना ।
मैं आपको कोई सफाई नहीं दूंगी। बस इतना ही कहूंगी यह सब मेरी मजबूरी थी। विश्वास करो और मेरी मजबूरी को समझो। वरना मैं कभी भी!!!!"
"चुप हो जाओ तुम! तुम्हें शर्म नहीं आती। अपनी वासना को मजबूरी का नाम देते हुए।
मैंने तुझ पर इतना विश्वास किया और तूने मेरे ही घर में डाका डाल दिया। शर्म नहीं आई तुझे। छोटी बहन से बढ़कर माना मैंने तुझे। तेरे हर दुख में तेरा साथ दिया और तूने मेरा ही घर उजाड़ दिया।
कितनी पागल थी मैं। कहती थी कि तू कितनी प्यारी है। कोई तुझे एक बार देख ले, वह तुझे अपना बना लेगा। मुझे यह नहीं पता था, वह कोई मेरा अपना ही निकलेगा!"
कहते हुए शिवानी सिसक उठी।
वैसे तुझे क्या दोष दूं। तुझे तो मेरे जीवन में आए कुछ ही दिन हुए हैं । जो जीवनसाथी था, उसने ही मेरे विश्वास को छलनी कर दिया।
जा तू अब यहां से और फिर कभी अपना मुंह मत दिखाना! तेरे लिए तो मैं भगवान से बद्दुआ भी नहीं मांग सकती। छोटी बहन जो तुझे माना था। तू नीच हो सकती है लेकिन मैं नहीं!
तेरा इंसाफ तो भगवान ही करेगा!"
कहकर शिवानी अंदर जाने लगी तो किरण उसके पैर पकड़ते हुए बोली "दीदी मुझे जितनी चाहे बद्दुआ दो । आपकी बद्दुआ भी मेरे लिए आशीर्वाद ही होगी।
मैं हूं ही इतनी अभागन जिसकी जिंदगी में जाती हूं ,उसकी जिंदगी बर्बाद कर देती हूं।
बस एक बार मुझे रिया और रियान से मिलने दो। फिर मैं चली जाऊंगी।"
"खबरदार, जो तूने मेरे बच्चों का नाम लिया। तेरे काला साया भी मैं उन पर नहीं पड़ने देना चाहती। निकल जा तू यहां से।"
"ठीक है दीदी, जा रही हूं । बस एक ही बात कहना चाहती हूं। अपना घर बिखरने मत देना। परायों पर नहीं लेकिन अपनों पर विश्वास जरूर रखना।"
"चली जा तू । मुझे कुछ नहीं सुनना ।"कहकर शिवानी रोते हुए अंदर चली गई।

किरण भी रोते हुए बाहर निकल गई।
और दिनेश किंकर्तव्यविमूढ़ हो वहीं पर बैठ गया। उसे अब भी कुछ समझ नहीं आ रहा था ।
कैसे समझाएं शिवानी को! क्या कहे उससे! खुद उसे समझ आ रहा हो , तब तो वह शिवानी को समझाएं!
हे भगवान, यह क्या चक्रव्यूह रचा तूने! मेरी हसती खेलती दुनिया पल भर में ही उजाड़ दी।
दिनेश वही निष्प्राण सा सोफे पर ही बैठा रहा ।

उसने खिड़की से बाहर झांका तो कुमार और किरण अपने सामान के साथ उसे जाते हुए दिखाई दिए।
पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था‌। ऐसा लग रहा था, मानो एक तूफान गुजर गया हो । दूसरे तूफान के आने से पहले की यह शांति हो।
कमरे में अंधेरा घिर आया था‌‌। उसने उठकर लाइट जलाई। तभी रिया भी बाहर आ गई और उससे बोली "पापा भूख लग रही है।"
"ठीक है बेटा!" कहकर उसने रसोई में जाकर दूध गर्म किया और ब्रेड सेंककर रिया को दी। फिर दो कप चाय बना कर वह शिवानी के पास गया।
शिवानी अभी भी कमरे में बैठी रो रही थी।
दिनेश ने जैसे ही प्यार से उसके चेहरे पर हाथ रखना चाहा, शिवानी ने उसे जोर से झटकते हुए कहा "खबरदार दिनेश जो अपने गंदे हाथों से मुझे छुआ तो!
घिन आ रही है, मुझे तो अपने आप पर। वह हर पल सोच कर जो मैंने तुम्हारे साथ बिताया। नफरत हो गई है, मुझे तुमसे। यह सब करने से पहले एक बार भी तुम्हें मेरा ख्याल नहीं आया। अरे, मेरा तो छोड़ो, अपने मासूम बच्चों के बारें
में तो कुछ सोच लेते!
देवता की तरह पूजती थी तुम्हें मैं! सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि तुम ऐसा भी कर सकते हो !
क्या कमी थी मेरे प्यार में! क्यों फिर तुम इतना गिर गए कि नीचता की सारी हदें तुमने पार कर दी!
क्यों !
बोलो दिनेश चुप क्यों हो मुझे जवाब चाहिए!"

"शिवानी तुम पहले चुप हो जाओ और चाय पी लो। अभी तुम गुस्से में हो। जब तुम्हारा गुस्सा शांत हो जाएगा। तब तुम अपने दिल पर हाथ रख कर सोचना और मुझे बताना क्या, मैं इतना बुरा हूं। क्या मैं ऐसा कुछ कर सकता हूं ! उस एक वीडियो को मेरे चरित्र का प्रमाण मान लिया तुमने!!
मैं तुम्हें पहले भी कह चुका हूं, यह सब झूठ फरेब है। मुझे फंसाने की साजिश है। मुझे नहीं पता कब और कैसे यह सब हुआ। अब मैं तुम्हें कैसे विश्वास दिलाऊं ।
मेरा यकीन करो, मैं अपने बच्चों की!!!!"

"चुप हो जाओ दिनेश! खबरदार, जो तुमने मेरे बच्चों की कसम खाई!
मेरे बच्चों को अपने इस नीच कर्म का साक्षी मत बनाओ।
कौन फंसाएगा तुम्हें! किसी को क्या हासिल होने वाला है तुमसे। अरे, तुम्हारी तो किसी से दुश्मनी भी नहीं थी, फिर कैसे मान लूं कि ये तुम्हारे किसी दुश्मन का काम होगा!"

"मुझे नहीं पता शिवानी। मैं बार-बार यही कह रहा हूं, मुझे नहीं पता! यकीन करो मुझ पर और अपनी गृहस्ती बर्बाद मत करो। तुम्हारे इस अविश्वास से हमारे घर की नींव हिल जाएंगी।"
"वह तो कब की हिल चुकी लेकिन दिनेश वह मेरे कारण नहीं तुम्हारे कारण हिली है!
और एक बात बताओ जो तुम बार-बार यकीन करने की बात कह रहे हो। उस वीडियो में अगर मैं होती तो तुम यकीन कर लेते कि मैंने वह जानबूझकर नहीं किया या मैं नहीं जानती कि यह सब कैसे हुआ। बताओ क्या तब भी तुम मुझे इतना ही चरित्रवान मानते!
मुझे अपना लेते! बोलो, चुप क्यों हो ! अब तुम जवाब दो!

दिनेश चुप हो गया उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था।

शिवानी अपनी आंसू पोंछते हुए फीकी सी हंसी हंसते हुए बोली "क्यों जुबान बंद हो गई। जवाब नहीं सूझ रहा ना दिनेश। नारी के चरित्र पर तो पुरुषों को एक छींटा भी बर्दाश्त नहीं‌। चाहे खुद का दामन कितना ही दागदार क्यों ना हो!
यह आज की नहीं बरसों से चली आई प्रथा है। हम नारियों को तो हर हाल में अग्नि परीक्षा देनी ही होती है। चाहे वह कितनी ही सती सावित्री क्यों ना हो लेकिन तुम पुरुषों के लिए चरित्रवान होने का कोई मापदंड नहीं। तुम्हारे लिए कोई परीक्षा नहीं!"

क्रमशः
सरोज ✍️