रमाकान्त की मां को दिल का दौरा पड़ने से गुजर गई थीं। कुल पचास की भी नहीं थीं। अभी तक एक पोते का मुंह देख पाई थीं। बेटी मीनाक्षी जिसे प्यार से मिन्नी पुकारते थे, की शादी का सपना लिए ही चल बसी थीं। मिन्नी और भाई रमाकान्त फूट-फूट कर रो रहे थे कि मां कुछ दिन और जी जाती तो मिन्नी का ब्याह देख जाती।
कुछ दिन से रमाकान्त बहन का रिश्ता जोर-शोर से देख रहे थे। उन्होंने पिता का फर्ज़ अदा करने में कोई कसर न छोड़ी थी। रमाकान्त के पिता कई वर्ष पहले ही चल बसे थे और अब मां भी.....। मां के जाने के बाद रमाकान्त अकेले पड़ गए थे। ऐसे में उनकी पत्नी सुजाता ने उनका साथ दिया। अपने एक वर्षीय बच्चे चुनमुन को गोदी लिए सारा काम निबटाती रही थी। रिश्तेदारों का तो घर पे तांता लगा रहता था, ऊपर से खाना बनाना, लगवाना, उठाना सो अलग। महाराज और बाई के लगने के बावजूद भी काम बहुत होता था। चुनमुन ने भी नाक में दम किया हुआ था। मिन्नी अपनी भाभी का हाथ बंटाने में पीछे नहीं रहती थी।
जैसे-जैसे दिन बीतने लगे मिन्नी की शादी की चिंता भैया को परेशान करने लगी। वो अब तक मिन्नी के लिए कई लड़के देख चुके थे। जो लड़का भैया को पसंद आता मिन्नी को नहीं। मिन्नी हर लड़के में नुख्स निकाल देती थी। भैया को शक होने लगा कि मिन्नी किसी लड़के को चाहती है। उन्होंने सुजाता को उस पर नज़र रखने को कहा।
सुजाता अब मिन्नी की हरकतों पर नज़र रखने लगी। मिन्नी अक्सर फ़ोन से चिपकी रहती थी। भाभी के साथ जल्दी-जल्दी काम खत्म कर वह अपने कमरे में चली जाती। चुनमुन को लेकर या कोई सामान लेने के बहाने बाहर निकल जाती। जो काम अब तक सामान्य लग रहे थे। अब प्रयोजनवश किए जाने लगने लगे। चुपके से उसका फ़ोन भी चेक किया गया। एक ही फ़ोन नंबर पर ज्यादा काॅल थे और लम्बे समय तक भी। बात साफ़ हो चली थी, मिन्नी किसी को चाहती थी.....मगर यह बात वो बता क्यों नहीं रही......!!
सुजाता ने रमाकान्त से बात की। रमाकान्त बिफ़र उठे। कुछ दोश अपने सर लिया और ज्यादा पत्नी पर डाल दिया कि मैं काम में व्यस्त था तो वह क्या कर रही थी। ननद की निगरानी ना कर सकी....कितनी फूहड़ औरत है....वगैरह-वगैरह.....। मिन्नी के कृत की डांट उसे सुननी पड़ रही थी। मिन्नी खुद क्यूं नहीं बता देती कि वह किसी के प्रेम में है, उसी से शादी करना चाहती है...अभी मां को गए ज्यादा समय भी नहीं हुआ...आखि़र कब से चल रहा है ये सब....ऐसे बहुत से सवाल सुजाता मिन्नी से पूछने के लिए उत्सुक थी मगर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।
आवेश और क्रोध के मामले में मिन्नी अपने भाई से कुछ कम नहीं थी। वह अपने घर में बड़ी लाड़ली थी, मां-पिताजी और भाई की लाड़ो। उसके नख़रे सारा घर हंसते-हंसते अपने सर उठाता था। सुजाता ने इस घर में आकर इस परम्परा को अच्छी तरह निभा दिया था। सुजाता अपनी ननद की हर पसंद-नापसंद का ख्याल रखती। उसके कहने से पहले ही उसकी इच्छा पूरी कर देती थी।
सुजाता ने अपनी शादी के समय ही उसके नख़रे, उसका रूठना, मानना देख लिया था और समझ गई थी कि घर में शांति से जीना है तो मिन्नी को खुश रखना होगा। सुजाता के कपड़े गहने, दहेज में आए सामान की चेकिंग मां ने नहीं मिन्नी ने की थी और बहुत मीन-मेख निकाले थे, सुजाता का काम भी उसे पसंद नहीं आता था। रमाकान्त ने भी बहन की शिकायत पर कान दिए थे और पत्नी की डांट लगाई थी। सुजाता स्वयं भीरू प्रवृति की थी इसलिए कम बोलकर काम चला लेती थी। वैसे भी अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी थी। अपने निम्न मध्यवर्गीय पिता का सूखा चेहरा याद करती तो उनकी मुस्कुराहट के आगे ये परेशानियां कम लगने लगती।
सुजाता सोच रही थी कि आज मिन्नी के आते ही पूछूंगी...पर क्या पूछूंगी.....तुम्हारे जीवन में कोई है, है तो साफ-साफ क्यूं नहीं बताती.....क्या पूछ भी पाएगी वो....मिन्नी का क्रोध भरा चेहरा देखकर तो सुजाता की चुप्पी बढ़ जाती है...। सुजाता इस उहापोह में लगी थी कि उस रात रमाकान्त ने स्वयं ही बहन से बात कर ली।
मिन्नी के कमरे से रमाकान्त के चिल्लाने की आवाज़ आई। सुजाता दौड़ कर गई। मालूम हुआ कि षक सही निकला, मिन्नी किसी के प्रेम में है.....तो फिर दिक्कत क्या है, कर दो उसी से शादी....ऐसा सुजाता का मानना था। मगर बात सिर्फ प्रेम की नहीं एक ब्याहता और बच्चे के बात से शादी की थी। ये तो रमाकन्त को बिल्कुल गवारा नहीं होगा कि उसकी लाड़ली बहन किसी ब्याहता की दूसरी बीवी बने। सुजाता को भी ये बात नहीं भाई। दोनों भाई बहन में बहस छिड़ गई थी। मिन्नी अपनी बात पे अड़ी हुई थी। रमाकान्त उसे हर तरह के हवाले दे रहे थे। सुजाता हैरान थी कि प्रेम इंसान को कितना बेबाक बेशर्म बना देता है। मिन्नी इस समय नीम चढ़ा करेला हो गई थी।
आखि़र रमाकान्त गुस्से में ये कहते हुए निकले कि इस लड़की से फ़ोन छीन लो सुजाता....इसका बाहर आना-जाना बंद, मैं कल ही इसका रिश्ता तय करता हूं......और उनके कमरे से निकलते ही मिन्नी चिल्ला उठी कि चाहे आप फ़ोन ले लीजिए या मुझे कैद कर दीजिए....मैं किसी और से शादी नहीं करूंगी....और वह ज़ोर से रोने लगी।
रमाकान्त सुजाता पर चिल्ला उठे, कद दो इस से मान जाए वर्ना अच्छा ना होगा....सुजाता आज भर का समय देता हूं......तुम समझा लेना......समझा लेना? कैसे? इस समय मिन्नी समझेगी? सबकी बातें ज़हर लगेेंगी उसे.....। सुजाता अपने कमरे में गई। मिन्नी फफक कर रो रही थी। भाभी को देखते ही वह उनसे लिपट गई और रोने लगी। सुजाता ने उसे चुप कराया और तफ़सील से पूछा....। प्रेम कहानी क्यूं शुरूहई इसका जवाब मिला पर खत्म होने के कोई आसार भी नहीं नज़र आए।
सुजाता को लगा इस मिन्नी को एक दोस्त, सख़ी और हमराज़ की जरूरत थी सो उसने उस तरह ही बात की, ’’कोई बात नहीं प्यार कभी भी किसी से भी हो सकता है....प्यार करना कोई गुनाह नहीं है....पर तुमने इस पर क्या सोचा है....एक ब्याहता से निभा पाओगी? उसके बच्चे को पालोगी? तुम्हारे बच्चे हुए तो क्या दृषिटकोण होगा तुम्हारा......’’ हां, भाभी यही तो मैं भी सोच रही हूं....और इसलिए अब तक रूकी हूं...। मिन्नी ने भाभी से एक सहेली के रूप में बात की।
’’मगर मिन्नी उसकी पत्नी उसका घर परिवार तुम्हारे कारण टूट जाएगा....!!
’’हा भाभी आप ठीक कह रही हैं पर मन है कि बार-बार उसकी तरफ़ चला जाता है...आप क्या समझती हैं मैंने कोशिश नहीं की?....मां के देहांत पर भी उसने मुझे बहुत सहारा दिया....वो एक सच्चा दोस्त है....एक जीवनसाथी को ऐसा ही होना चाहिए.....भाभी क्या मैं उसकी जीवनसंगिनी नहीं बन सकती?....’’ और वह फिर से रोने लगी। क्या जवाब दे सुजाता...यहां प्रेम जितना भी गहरा हो इस बंधन को समाज स्वीकृति नहीं देगा।
सुजाता सोच रही थी कि प्रेम की वजह से मिन्नी शांत दिख रही थी.....प्रेम ने उसे कितना बदल दिया है.....गुस्से से तमतमाई मिन्नी अब माधुरी हो गई है....मिन्नी अब सुजाता को एक छोटी से मासूम लड़की लग रही थी। सुजाता को आज मां बहुत याद आ रही थी। मिन्नी भी मां को याद कर आंसू बहाती होगी।
’’क्या सोच रही हो सुजाता.....? आज मां की बहुत याद आ रही है...वो होतीं तो मिन्नी को समझाती.....रमाकान्त आकर सुजाता के पास बैठ गए थे, ’’तुमने कुछ समझाया या नहीं मिन्नी को?...देखों मैं भी उसका भाई हूं, दुष्मन नहीं...उसके प्रेम से मुझे कोई आपति नहीं पर जिस व्यक्ति से प्रेम है वो आपत्तिजनक है...तुम समझ रही हो ना हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे....उसकी पत्नी और बच्चे का श्राप लें सो अलग....मिन्नी समझ ले तो ठीक नही तो मुझे सख़्ती करनी आती है। रमाकान्त के चेहरे पर चिंता और क्रोध साफ दिख रहे थे....’’और हां कल मिश्रा जी आने वाले हैं अपने बेटे का रिश्ता लेकर.....उससे कहना कोई नाटक न करे.....।
रमाकान्त की बातें मिन्नी सुन रही थी, गुस्से में तमतमाती हुई निकली और कह दिया कि अब शादी करेगी तो दीपक जी से वर्ना यूं ही रहेगी। इतना सुनना था कि रमाकान्त ने आव देख न ताव, मिन्नी का फ़ोन छीनकर दीवार पे दे मारा....फ़ोन के टुकड़े हो गए....वे दनादन मिन्नी को पीटने लगे...मिन्नी भी जिद्द में मार खाए जा रही थी। सुजाता उनके बीच आती तो धकेल दी जाती। रमाकान्त फिर पूछते कि दीपक का भूत उतरा या नहीं....मिन्नी अब अपना सर खुद दीवार पर मारने लगी और दीपक जी की पुकार लगाने लगी, रमाकान्त मिन्नी की जिद्द पे और क्रोधित हो रहे थे। उन्होंने मिन्नी का गला दबाना शुरू कर दिया...सुजाता मिन्नी को बचाने का भरसक प्रयास कर रही थी पर आदमी की ताकत के सामने औरत कमज़ार पड़ जाती है। सुजाता को कुछ ना सूझा....वह रमाकान्त के जूते से रमाकान्त को मारने लगी....कई जूते खाने पर भी रमाकान्त न रूके तो सुजाता चिल्लाई, ’’छोड़ दो मिन्नी को नहीं तो मैं पुलिस को बुलाती हूं....अभी इसी वक्त....अगर मिन्नी को कुछ हो गया तो इस अनहोनी की पहली गवाह मैं बनूंगी तेरे खिलाफ़ याद रखना रमाकान्त....’’और वह मिन्नी को बचाने में जुट गई, रमाकान्त की पकड़ ढ़ीली हुई तो मिन्नी की सांस आई....मिन्नी जोर से खांस रही थी। उसकी आंखें और चेहरा लाल हो गए थे। आंख से आंसू गिर रहे थे। सुजाता अब भी चिल्ला रही थी।
तुम मिन्नी को मार देना चाहते हो.....तो ऐसे क्यूं? एक ही बार ज़हर दे दो, आराम से मर जाएगी.....और हां मिन्नी अब से तुम मेरे पास रहोगी....देखती हूं ये आदमी तुम्हें हाथ भी कैसे लगाता है.....तुम अभी एक चिट्ठी लिखो कि तुम्हें कभी भी एक खरोंच आई तो इसका जिम्मेदार रमाकान्त होगा।’’ रमाकान्त सुजाता को फटी आंखों से देख रहा था। ये सुजाता का एक नया रूप था। मिन्नी भाभी से लिपट कर रो रही थी......’’भाभी मां....।’’