अरविंद सिंह, आज आप लोगों को कुछ अपने अंदर के विचारों एवं परिकल्पनाओं को आप सभी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने जा रहा हूं। तो चलिए शुरू करते हैं -
इंसान जब जन्म लेता है तब वह अबोध रहता है। उसको जीवन के बारे में कुछ पता नहीं रहता। लेकिन जैसे जैसे वह बड़ा होता है। धीरे-धीरे उसको हर चीज का ज्ञान होता है। उसको हर रिश्ते की समझ होती है और वहां अपने जीवन में आगे बढ़ता है।
बोलते हैं ना! निस्वार्थ भाव से किया गया प्रेम सच्चा प्रेम होता है। मगर आजकल के रिश्तो में यह बहुत कम देखने को मिलता है।
जिंदगी और रिश्ते के बीच में कहीं ना कहीं, एक इंसान स्वार्थ के संसार में फंस जाता है उस समय हम स्वार्थी हो जाते हैं हम धीरे-धीरे अपने आप लोगों से दूर होते चले जाते हैं कोई भी रिश्ता हो छोटा या बड़ा हो सभी में हमारा कोई ना कोई स्वार्थ छिपा रहता है। हम किसी रिश्ते में रहते हैं तो किसी स्वार्थ से ही रहते हैं। किसी से उम्मीद रखते हैं कि हां हमारे लिए वह करेगा, हम उसके लिए करेंगे। दुनिया में कोई ऐसा रिश्ता नहीं है जो निस्वार्थ है।
ज्यादातर हमारे मां-बाप कभी हमसे कोई स्वार्थ नहीं रखते। लेकिन हां जब हम को जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं तो हमें अपनी जिम्मेदारियां पूरी करनी होती है। उसमें भी हमारे मां-बाप का स्वार्थ नहीं छुपा होता है। बल्कि वह चाहते हैं कि हमारे बच्चे कामयाब हो। फिर भी हमको लगता है कि हमारे मां बाप हमसे कुछ चाहते हैं। लेकिन नहीं, एक हमारे मां-बाप ही हैं जो दुनिया में हमसे निस्वार्थ प्रेम करते हैं।
इनमें भी सबसे ज्यादा मां का प्रेम होता है। मां सभी अपने बच्चे से स्वार्थ के लिए प्रेम नहीं करती वह तो यही चाहती है कि मेरा बच्चा हमेशा खुश रहे हमेशा नाम शोहरत और दौलत कमाए।
दुनिया स्वार्थी है। उसने हम भी आते हैं हम हर रिश्ता किसी न किसी वजह से निभाते हैं उसमें कुछ ना कुछ स्वार्थ का होता है। कोई भी रिश्ता हो बिना स्वार्थ के नहीं चलता। हर इंसान किसी ना किसी से कोई ना कोई उम्मीद लगाए बैठा है।
वहां हमारे लिए करेगा तो हम उसके लिए करेंगे। जब एक लड़की ससुराल जाती है तो ससुराल वाले यही चाहते हैं कि यह हमारे लिए काम करे। पति चाहता है यह मेरे मां-बाप को खुश रखे मुझे खुश रखे पूरे घर का काम करो तो ही उसको पत्नी का दर्जा दिया जाता है। अगर एक दिन वह सर पकड़ कर बैठ जाए तो उसको कोई नहीं पूछता। सब बोलते हैं यह नाटक कर रही है। यह झूठ बोल रही है लेकिन उसका दर्द कोई नहीं देखता। क्योंकि सब लोग स्वार्थ में डूबे हुए हैं। अगर उनको मिला तो वह खुश। अगर ना मिला तो वही उसको कोसने बैठ जाते हैं।
नि:स्वार्थ प्रेम होता है क्या?
निस्वार्थ भाव से किया गया प्रेम ही, सबसे सच्चा प्रेम होता है, ऐसा कई दफा बोला गया है। इसके अलावा दुनिया में हर प्रेम स्वार्थी होता है। झूठा होता है। जब हम लोग दूसरे के लिए करते हैं। तभी दूसरा हमारे लिए करता है। यह संसार का नियम है। लोग बुरे नहीं होते, लेकिन जब उनका मतलब निकल जाता है, तब वह हमारी जिंदगी से निकल जाते हैं और हम सोचते हैं कि वह हम से प्रेम करते हैं। वह तो सिर्फ, हम से उम्मीद लगाए बैठे है़ं। जब तक हम उनके लिए काम करेंगे जब तक हम उनकी मनोकामनाएं पूरी करेंगे। तब तक वह हमसे खुश रहेंगे और हम से प्रेम होने का नाटक करेगें। हम उसमें ही उलझते जाते हैं। हम उस इंसान के लिए अपना जीवन त्याग देते हैं। अपनी पूरी जमा पूंजी लगा देते हैं, लेकिन जिस दिन उसका स्वार्थ पूरा हो जाता है, उस दिन वह हमसे दूर भागने लगता है। हमारी अच्छाई में बुराई गिनता है।
निस्वार्थ प्रेम, वह है जिस प्रेम में कोई स्वार्थ ना हो। जैसे कि निस्वार्थ भाव से की गई सेवा। अगर हम किसी की सेवा करते हैं और उसमें हमारा कोई स्वार्थ नहीं है। हम किसी से कोई उम्मीद नहीं रखते कि हम इसके लिए करेंगे तो ही वह हमारे लिए करेगा या वह हमारे लिए करेगा तो ही हम उसके लिए करेंगे यह एक स्वार्थी होने का प्रमाण है।
निस्वार्थ भाव से किसी की भक्ति करते हैं। किसी को प्रेम करते हैं। किसी की मदद करते हैं। किसी को अपना होने का अनुभव कराते हैं। हर रिश्ता ऐसा बनाते हैं, जिसमें कोई स्वार्थ नहीं हो तो भगवान बोलते हैं, “तुम कर्म करो फल की चिंता ना करो।” लेकिन हम सोचते हैं, नहीं। हम किसी का भला कर रहे हैं तो हमारे साथ भी भला होना चाहिए। पर ऐसा नहीं होता, इसलिए हम दुखी हो जाते हैं और हम सोचते हैं कि हमने क्यों किया? हमने उस इंसान की मदद क्यों की? जब हमारे साथ अच्छा नहीं हो रहा है।
जब हमारी मदद भी कोई नहीं करता। हम अगर किसी की मदद करेंगे तो हमारी मदद भगवान करेगा। हमेशा यह सोच कर चलो कि हमको भगवान ने सब की सेवा मदद करने के लिए भेजा है। मेरा मानना है कि जैसे हम भगवान से निस्वार्थ प्रेम करते हैं। हम को इंसान से भी निस्वार्थ प्रेम करना चाहिए।