द्वितीय अध्याय
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गतांक से आगे …..
कमरे में आने वाला मनोहर ही था,उसे देखते ही वह भयभीत हिरनी की भांति सहम गई।विदाई के समय दीदी एवं भाभी ने स्पष्ट रूप से सख्त हिदायत दी थी कि पति को नाराज मत करना, उसकी हर इच्छा को पूर्ण करना।सखियों-बहनों से इतनी जानकारी तो मिल ही चुकी थी कि सुहागरात का मतलब न ज्ञात हो।
मनोहर निकट आकर बैठ गया, फिर उसके हाथों में हार का डिब्बा पकड़ाते हुए कहा कि देखकर बताओ,मेरा उपहार कैसा लगा?रेवती ने घबराते हुए उत्तर दिया कि आपने दिया है तो अच्छा ही होगा।
एक पूर्ण व्यस्क पुरुष कहाँ प्रतीक्षा करता है।दो-चार औपचारिक बातों के पश्चात मनोहर ने अपने पति होने का अधिकार प्राप्त कर लिया और मुँह फेरकर सो गया।न कोई प्रेम-प्रदर्शन, न रेवती के रंग-रूप की कोई प्रशंसा।रेवती भी थकी-मांदी शीघ्र ही नींद के आगोश में समा गई।
विवाह के कुछ ही दिनों के पश्चात जिठानी ने रेवती की रसोई अलग कर दिया यह कहकर कि अब सम्हालो अपनी घर- गृहस्थी, अपना पति,बहुत दिन कर ली मैंने चाकरी।क्योंकि जिठानी कुछ ही दिनों में समझ चुकी थीं कि रेवती घर-गृहस्थी के मामले में पूर्णतया अनाड़ी है।जिठानी चाहती थी कि रेवती अपनी त्रुटियों से मनोहर के मन से उतर जाय।
वैसे तो प्रेम-प्रदर्शन में मनोहर भी पूरा अनाड़ी था।उसे नहीं समझ आता था कि स्त्री को थोड़ी तारीफ चाहिए, उसके मन को कोमल भावनाओं की थोड़ी अभिव्यक्ति चाहिए।शारीरिक प्रेम से पूर्व मन का जुड़ाव एक स्त्री के लिए अत्यंत आवश्यक होता है।औरत की मानसिक क्षुधा की तृप्ति उसके लिए उतनी ही महत्वपूर्ण होती है जितनी पुरूष के लिए उसकी शारीरिक संतुष्टि।सम्भवतः पुरुष-स्त्री की यही वैचारिक-शारीरिक भिन्नता उनके जीवन को भी अलग अलग संचालित करती है और शायद यही अपूर्णता एक दूसरे के साथ पूर्ण भी होती है।
मनोहर ने खाने में या घर के रख-रखाव में हुई कमियों के लिए रेवती को कभी कुछ नहीं कहा।धीरे धीरे करते-सीखते रेवती निपुण तो नहीं हुई, लेकिन अपनी गृहस्थी को सम्हाल ही लिया।एक वर्ष बीतते-बीतते रेवती गर्भवती हो गई।इस खबर को सुनकर मनोहर खुशी से फूला न समाया।रेवती को आराम देने के लिए एक पूर्णकालिक सहायिका की व्यवस्था कर दी।यथासमय उनकी प्रथम संतान ने जन्म लिया।बेटे के पैदा होने के समय रेवती ने बेटा-बेटी नहीं पूछा, पूछा तो सर्वप्रथम कि बच्चा किसपर गया है।रेवती की हार्दिक इच्छा यही थी कि जो भी हो, लेकिन हो बिल्कुल मेरे रँग-रूप वाला।खैर, ईश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली एवं खूब गोरा-चिट्टा बेटा उसकी गोद में दे दिया।जिठानी रेवती की खुशी देखकर ईर्ष्या से जल-भुनकर खाक हो गई, जो उनकी आंखों में साफ नजर आ रहा था।रेवती के मायके वाले आकर रेवती एवं उसके बच्चे को देखकर निहाल हो गए।सबसे छोटी बहन जो अभी 12 साल की थी,उसे रेवती ने अपनी सहायता के लिए रोक लिया।
अगले वर्ष रेवती से छोटी बहन का भी विवाह मनोहर की मदद से ठीक-ठाक खाते-पीते परिवार में हो गया।रेवती के बड़े भाई को भी एक फूलों की ही पक्की दुकान खुलवा दी,जो धीरे धीरे अच्छा चल निकला।रेवती के मायके वालों के लिए मनोहर भगवान हो गया था।
रेवती भी अब अपनी गृहस्थी में पूर्णतया मगन हो गई।अगले छः सालों में वह एक बेटे और एक बेटी की माँ और बन गई।बेटी के बार में उसकी तबियत काफी खराब रहने लगी थी, प्रारंभिक गर्भावस्था में ब्लीडिंग हो जाने के कारण डॉक्टर ने पूरे समय बेड रेस्ट बता दिया था।चूंकि छोटी बहन रेखा पहले बच्चे के समय से ही उसके पास रहने लगी थी, अतः सहायिका काकी की मदद से सब सम्भाल लिया था उसने।
बेटी बड़े ऑपरेशन से हुई थी, अतः साथ ही साथ नसबंदी भी करा लिया था क्योंकि दो बेटे एवं एक बेटी के साथ परिवार पूर्ण हो गया था।पूरे एक सप्ताह बाद वह अस्पताल से घर लौटी थी,अपने घर वापस आकर वह बेहद खुश थी।लेकिन उसे कहाँ पता था कि उसके ऊपर वज्रपात होने वाला है।उसके अपनों ने ही उसके पीठ में धोखे का खंजर घोंप दिया है।विश्वास के पीछे ही विश्वासघात होता है।
अभी 25-30 दिन ही तो बीते थे रेवती को अस्पताल से आए हुए।एक दिन रेखा को उल्टी होने लगी तो रेवती ने सोचा कि अपच हो गया होगा।घरेलू दवा के बाद भी जब दो-तीन दिन में आराम नहीं मिला तो अस्पताल ले कर गई।जांच के बाद डॉक्टर ने जो बताया तो उसके पैरों तले से जमीन ही खिसक गई।रेखा को पूरे दो माह का गर्भ था।घर आकर रेवती ने पूछा कि बच्चे का पिता कौन है?पहले तो रेखा खामोश रही,बहुत पूछने पर जब मनोहर का नाम लिया तो वह बर्दाश्त नहीं कर सकी एवं जोर का तमाचा जड़ दिया।वह मनोहर के बारे में ऐसा सोच भी नहीं सकती थी।
लेकिन जब रेखा ने रोते -रोते सारी बात बताई तो रेवती की आँखों के सामने पिछले 6-7 महीनों की सारी घटनाएं नाचने लगीं।वैसे तो रेखा रूप-रंग में रेवती से काफी कम थी,परन्तु थी बेहद चुलबुली।जब शुरू में आई थी तो कुल 12 वर्ष की अबोध बालिका ही तो थी।कभी जीजाजी के गले में बांहे डालकर लटक जाती,तो कभी मनोहर के बालों को बिगाड़कर भाग जाती।कभी जीजाजी की थाली से रोटी निकालकर खाने लगती।रेवती उसकी हरकतें देखती तो कभी मुस्कुराकर रह जाती, कभी प्यार से झिड़क देती कि जीजाजी नाराज हो जाएंगे, तब मनोहर कह देता कि क्यों डांटती हो,बच्ची ही तो है।फिर यहीं पास के स्कूल में एडमिशन करा दिया था।तीज-त्यौहार पर रेखा के लिए भी मनोहर कपड़े ले आते।हाई स्कूल पास करने पर मोबाइल उपहार में दिया था।इस साल रेखा बारहवीं में आई थी।इसी बीच रेवती तीसरी बार गर्भवती हुई थी तो परेशानी के कारण डॉक्टर ने पति से सम्बंध बनाने से मना कर दिया था।क्या पुरुषों के लिए औरत सिर्फ़ एक शरीर होती है, प्यार,विश्वास सब धोखा है क्या?
क्रमशः ……..
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