वो रात! BRIJESH PREM GOPINATH द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वो रात!

श्री गणेश आय नम:

वो रात!

उत्तराखंड के चमोली ज़िले की रामगढ़ तहसील.टूटे फूटे बस स्टैंड पर राज्य परिवहन की बस आकर रुकती है, हरिद्वार से आई इस बस का ये आखिरी स्टॉप है.अमूमन शाम चार बजे आने वाली ये बस आज दो घंटे देरी से छे बजे आई है.बस से उतरने वाले बीस यात्रियों में एक 24 साल का युवक सूरज भी है.उसका सफर अभी पूरा नहीं हुआ है.यहां से उसे करीब 20 किमी दूर नरसिंहपुर गांव जाना है.वो पहली बार आया है इसलिए यहां से नरसिंहपुर कैसे जाएगा, इस बारे में उसे कोई जानकारी नहीं.सूरज ने बस कंडक्टर से पूछा तो वो उसे घूरता हुआ बिना जवाब दिए चला गया, मानो उसने कोई गाली दी हो.यही सवाल उसने बस स्टैंड के पास एक चायवाले से किया, "अरे भइया नरसिंहपुर कैसे जाएंगे कोई साधन मिलेगा"? चायवाले ने सूरज को घूरा फिर चाय छानता हुआ बोला, "पहली बार देखा है तुम्हें,नए हो","हां भइया नए हैं,बताओ कैसे जाएंगे", "मत जाओ", "क्या, मैंने तुमसे पूछा कैसे जाएंगे",चायवाला खीजते हुए बोला,"मना कर रहे हैं ना,मत जाओ अंधेरा हो चुका है, कल सुबह जाना, आज यहीं रुक जाओ"चायवाले ने सलाह दी तो सूरज बोला,"देखो मेरा जाना बेहद ज़रूरी है,कैसे जाएंगे ये बताओ", "तुम शहर वाले अपने को बेहद अकलमंद समझते हो, जब कह रहे हैं तो मान जाओ, देखो मौसम भी खराब हो रहा है,हम तुम्हारे भले के लिए ही कह रहे हैं"चायवाले ने फिर समझाया तो सूरज ने आसमान की ओर आंखें घुमाईं,आसमान को काले बादलों ने ढंक लिया था.बारिश कभी भी शुरु हो सकती थी,बीच बीच में बिजली भी कड़क रही थी.चायवाले के मना करने पर सूरज झुंझलाते हुए उसके पास से हटकर आगे गुमटी में परचून की दुकान पर बैठे बुज़ुर्ग के पास नरसिंहपुर जाने का रास्ता जानने पहुंचा, "क्या नरसिंहपुर...इस समय...मरने आए हो क्या...सुबह तो कोई जाना नहीं चाहता, तुम अंधेरा होने के बाद जाने की बात कर रहे हो",बुज़ुर्ग की बात सुनकर सूरज चौंका लेकिन फिर खुद को संभालते हुए बोला, "चाचा आप ये सब छोड़ो मुझे बताओ जाएंगे किधर से,खच्चर गाड़ी नहीं मिलेगी तो पैदल चले जाएंगे, वैसे कितना समय लगेगा".परचूनवाला हंसते हुए बोला, "जब बचोगे तभी तो पहुंचोगे,आगे जाकर बाएं मुड़ जाना, वो रास्ता नरसिंहपुर ही जाता है",तभी ज़ोर से बिजली कड़की,ऐसा लगा पास ही कहीं काल बनकर गिरी है.सूरज नरसिंहपुर के रास्ते पर आगे बढ़ा तो परचूनवाले ने पीछे से आवाज़ लगाई, "पास में ही एक सराय है, चाहो तो रात वहां गुज़ार लो" लेकिन सूरज बिना उसकी बातों पर ध्यान दिए तेज़ी से उस रास्ते पर बढ़ चला जो नरसिंहपुर जाता था, हालांकि उसके मन में ये बात हथौड़े की तरह बज रही थी कि आखिर सभी लोग उसे नरसिंहपुर जाने के लिए मना क्यों कर रहे हैं.सूरज के कंधे पर एक बैग था.ठंड काफी थी इसलिए उसने जैकेट के हुड से कान ढंक लिए थे.उसने खुद को समझाया गांववाले अंधविश्वासी होते हैं, तरह तरह की कहानियां बना लेते हैं, कच्चा रास्ता अब संकरा हो गया था.अंधेरा काफी था इसलिए सूरज को पता ही नहीं चला कि वो जंगल के बीच आ चुका है.पहाड़ी रास्ता था,अंधेरे में कभी चढ़ाई, कभी ढलान पर बिना गिरे संतुलन बनाकर चलना बड़े कौशल का काम था, लेकिन सूरज बढ़ा जा रहा था,जवानी का जोश और नरसिंहपुर में किसी से मिलने की बेकरारी उसके हौसले को ज़िंदा रखे हुए थी,तभी बिजली कड़की तो उसकी रोशनी में झाड़ियों के बीच उसे दो आंखें चमकती नज़र आईं.कौन है,वो सोच ही रहा था कि पत्तों पर किसी के चलने की आवाज़ से वो सहम गया.सड़क किनारे एक बड़े पेड़ की ओट लेकर सांस रोके खड़ा रहा,उसे लगा जैसे कोई उसके बिल्कुल नज़दीक है,सूरज आंखें बंद किए खड़ा रहा.तभी तेज़ हवा का झोंका आया और सूरज की आंख खुल गई,हल्की बारिश शुरु हो गई थी.7 बजे होंगे लेकिन अंधेरा और गहरा गया था, सूरज ने हिम्मत बटोरी और पेड़ की ओट से निकल कर सड़क पर आगे बढ़ने लगा.बारिश की वजह से सूरज को संभल कर चलना पड़ रहा था, अभी वो कुछ ही कदम चला था कि छम छम की आवाज़ सुनकर ठिठक गया,"क क कौन है",बिना मुड़े, हकलाते हुए सूरज ने पूछा,कोई जवाब नहीं मिला तो उसे लगा शायद उसका वहम था.ये सोच उसने फिर कदम बढ़ा दिए,थोड़ी दूर ही चला था कि फिर छम छम की आवाज़ उसके कानों में पड़ी,इस बार वो फौरन पलटा,तभी बिजली कौंधी तो उसे लगा कि पेड़ की ओट में कोई छिपा है, "कौन है वहां",उसने कड़क आवाज़ में पूछा, "चंदा", शहद में घुली आवाज़ उसके कानों में पड़ी,"चंदा, कौन चंदा, और तुम यहां इस समय क्या कर रही हो"."बाबूजी हमें नारायणपुर गांव जाना है,नरसिंहपुर जहां आपको जाना है, उससे थोड़ा पहले ही है,देर हो गई थी,कोई साधन नहीं था, जाना ज़रूरी था,आपको जाते देखा तो पीछे पीछे चल पड़ी".सूरज को लगा चलो ठीक है एक से भले दो और फिर ये लड़की इसी जगह की है तो रास्ता ढूंढने में भी दिक्कत नहीं होगी.सूरज ने कहा," ठीक है चलो".अंधेरे में सूरज को चंदा का चेहरा नज़र नहीं आ रहा था.दोनों धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे."तुम्हें कैसे मालूम कि मुझे नरसिंहपुर जाना है", सूरज ने सवाल किया तो चंदा बोली"अरे बाबूजी जब आप रामाश्रय चायवाले से रास्ता पूछ रहे थे तो हम वहीं थे","क्या लेकिन मैंने तो तुम्हें देखा नहीं".जवाब का इंतज़ार कर रहे सूरज को तभी चंदा ने ज़ोर से पकड़ा और झाड़ियों में कूद गई.इससे पहले सूरज कुछ समझता चंदा ने उसके होठों को अपनी दाईं हथेली से बंद कर दिया.घोड़ों की टाप और लोगों के चिल्लाने के शोर से सूरज चौंक गया.चंदा ने उसे चुप रहने का इशारा किया."ढूंढो उन्हें, यहीं कहीं छिपे होंगे,किसी की आवाज़ उसके कानों में पड़ी,"नहीं हैं हुकुम, सब जगह देख लिया",चलो, आगे देखते हैं.घोड़ों की टाप के साथ लोगों का शोर भी कम होता चला गया.

बारिश थम चुकी थी, "ये क्या था,कौन लोग थे ये और किसे ढूंढ रहे थे",सूरज ने खड़े होते हुए हैरानी के साथ पूछा,तभी बादलों की ओट से चांद निकला और उसकी रोशनी चंदा के चेहरे पर पड़ी,सूरज एकटक उसे देखता रह गया,शायद वो इस चेहरे को पहचानता था, इतनी खूबसूरती उसने पहले नहीं देखी थी,बारिश से भीगे बालों की एक लट निकल कर माथे से होते हुए दाएं गाल और होठों तक पहुंच गई थी, बड़ी और काली आंखों की गहराई में लगा कायनात समाई है.इससे पहले कि सूरज उस सम्मोहित करने वाले चेहरे का भरपूर दीदार कर पाता, चांद फिर बादल के पीछे छिप गया और उसके कानों में चंदा की आवाज़ पड़ी, "ये दुर्जन सिंह के सिपाही थे, और ये हमें ही ढूंढ रहे थे".इससे पहले कि सूरज कुछ समझता चंदा ने उसका हाथ पकड़ा और तेज़ी से आगे बढ़ने लगी.ऐसा लग रहा था जैसे उसे रात में भी सब कुछ साफ दिख रहा है.सूरज को कुछ समझ नहीं आ रहा था, वो बस मंत्रमुग्ध सा उसके साथ चला जा रहा था.उसकी आंखों में बार बार चंदा का चेहरा कौंध रहा था."बाबूजी वो लोग कभी भी आ सकते हैं, इसलिए हमें जल्दी से निकल जाना चाहिए.अचानक सूरज जैसे किसी सपने से जागा.उसने चंदा का हाथ झटका और झुंझलाते हुए बोला, "कौन हो तुम,मैंने तो किसी दुर्जन सिंह के सिपाहियों को नहीं देखा न ही घोड़ों को देखा", "अरे बाबूजी ये सब मैं आपको बाद में बताउंगी, फिलहाल यहां से चलो".सूरज ने लगभग चिल्लाते हुए कहा, "अपना रास्ता पकड़ो, और मेरा पीछा छोड़ो"."रास्ता खराब है बाबूजी और दुर्जन सिंह के सिपाही फिर लौटेंगे", चंदा ने मिन्नत की,"अपना मुंह बंद करो, दुर्जन सिंह से मुझे क्या लेना देना और वो मुझे क्यों ढूंढेगा, प्लीज़ तुम अपने रास्ते जाओ और मुझे मेरे रास्ते जाने दो"सूरज ये कहते हुए आगे बढ़ गया, "बाबूजी उस रास्ते से मत जाओ", चंदा की बात अनसुनी कर सूरज आगे बढ़ा ही था कि उसका पैर फिसला और इससे पहले कि उसे कुछ समझ आता उसका हाथ किसी ने ज़ोर से पकड़ा और ऊपर खींच लिया.ये सब कुछ इतनी तेज़ी से हुआ कि सूरज कुछ समझ ही नहीं पाया. उसी समय ज़ोर की बिजली कड़की और उसकी रोशनी में सूरज ने पलट कर देखा तो हज़ारों फीट गहरी खाई थी जिसमें गिरने पर उसकी हड्डियों तक का पता नहीं चलता.उसने सिर झटका,डर के मारे खून जमता सा महसूस हो रहा था, "Thank you", किसी तरह दबी आवाज़ में उसने कहा,"its ok",सूरज ने हैरान होते हुए कहा,"चंदा तुम्हें अंग्रेज़ी आती है", "मैं चंदा नहीं मोहिनी हूं"."क क क्या मोहिनी, अब तुम कौन हो, और तुम कहां से आ गई".अभी सूरज कुछ और बोलता उससे पहले ही उसे लगा जैसे उसके होठों पर किसी ने अंगारे रख दिए हों और शरीर को किसी ने अपने पाश में बांध लिया है.सूरज ने पूरा ज़ोर लगाते हुए मोहिनी को अपने से अलग किया."ये क्या बदतमीज़ी है, तुम्हें शर्म नहीं आती",सूरज ने झिड़का,"100 साल से तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूं सूरज"मोहिनी की आवाज़ ऐसा लग रहा था जैसे कई मीटर गहरे कुएं से आ रही हो..."क्...क्...क्या..." "सूरज मना किया था मैंने, मुझे छोड़कर चंदा के पास मत जाओ,लेकिन तुम नहीं मानें,और मैंने इसी पहाड़ी से कूदकर अपनी जान दे दी" .सूरज का पूरा शरीर पसीने से तर हो चुका था,उसके पैर जम से गए थे,शरीर ने दिमाग का कहना मानने से इंकार कर दिया था,वो वहां से भागना चाह रहा था लेकिन हिल नहीं पा रहा था, "तब से रोज़ाना मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूं सूरज क्योंकि जब तक हमारा मिलन नहीं होगा, मैं ऐसे ही भटकती रहूंगी, सूरज तुम्हें मेरे लिए मरना होगा", "द द देखो तुम्हें कोई ग ग ग गलतफहमी हुई है,मैं तुम्हारा सूरज नहीं हूं, म म मुझे जाने दो प्लीज़".उसे अपने फैसले पर अब पछतावा हो रहा था,क्यों उसने चाय वाले, परचून वाले की बात नहीं मानी.चांद और बादल के बीच आंख मिचौनी जारी थी.इस बार बादल की ओट से चांद बाहर आया तो सूरज ने मोहिनी के चेहरे को ग़ौर से देखा, गोरा रंग,बड़ी आंखें,ठोड़ी पर तिल और माथे पर लाल बिंदी,गहनों से लदी हुई,कपड़ों से वो किसी राज्य की महारानी लग रही थी लेकिन चेहरे पर मायूसी थी.मोहिनी ने बांहे फैलाईं और बोली "मुझे अपनी आगोश में ले लो सूरज,"मोहिनी सूरज की तरफ बढ़ी तो उसे खतरा महसूस हुआ और पूरी ताकत लगाकर वो पीछे की ओर भागा लेकिन पत्थर से टकराने के साथ ही वो गिर पड़ा.मोहिनी के हाथ सूरज की गर्दन की तरफ बढ़े, सूरज फुर्ती के साथ उठकर खड़ा हो गया था.इससे पहले की मोहिनी सूरज के करीब पहुंचती बीच में चंदा आकर खड़ी हो गई.चंदा को देखते ही मोहिनी का चेहरा काला पड़ने लगा...आंखे लाल हो गईं...नाखून लंबे होने लगे...बाल बिखर गए और दांत होठों से निकल कर बाहर आ गए, मोहिनी बेहद डरावनी लग रही थी.चांद की हल्की रोशनी में सूरज को मोहिनी का ख़ौफनाक चेहरा नज़र आया तो उसे बेहोशी आने लगी,उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था ये सब क्या हो रहा है. "मोहिनी आज तुम अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाओगी".बादल के पीछे से चांद अब पूरा बाहर आ चुका था. मोहिनी आगे बढ़ी और सूरज का गला अपने हाथों में जकड़ लिया,"सूरज तुम्हें मरना होगा...मेरे लिए"."कैसी औरत हो तुम, जो अपने प्यार को ही मार देना चाहती हो, कितनी स्वार्थी हो तुम",मोहिनी का ध्यान भटकाने के लिए चंदा ने कहा और जल्दी से एक लकड़ी उठाई कुछ मंत्र पढ़े और मोहिनी की पीठ में घोंप दिया.मोहिनी का गुस्सा और बढ़ गया उसके निशाने पर अब चंदा थी.मोहिनी और चंदा के बीच मल्ल युद्ध सा शुरु हो गया था.अचानक सूरज को अपने बैग में रखी हनुमान चालीसा की याद आई.चंदा को ज़मीन पर पटक कर मोहिनी अपने नाखूनों से उसका पेट फाड़ने की कोशिश करने लगी, तभी सूरज ने हनुमान चालीसा की चौपाई पढ़ते हुए उससे मोहिनी को छू दिया.असीम शक्ति के आगे प्रेत शक्ति की नहीं चली और वो गुर्राती हुई वहां से काफूर हो गई.

चंदा और सूरज खामोशी से पगडंडियों पर आगे बढ़े जा रहे थे. "बाबूजी सूरज और चंदा एक दूसरे को जान से ज़्यादा प्यार करते थे",चंदा ने कहना शुरु किया.सूरज अब संजीदगी से चंदा की बातें सुनने लगा,"महल में काम करने वाले सूरज से राजा दुर्जन सिंह की बेटी मोहिनी भी एकतरफा प्यार करती थी.दुर्जन सिंह को जब ये पता चला तो उसने सूरज को नौकरी से निकाल दिया लेकिन उनकी इकलौती बेटी मोहिनी ने साफ कह दिया कि वो सूरज से शादी करेगी नहीं तो जान दे देगी",सूरज को कुछ समझ नहीं आ रहा था चंदा कौन सी कहानी सुना रही है,चंदा ने बात आगे बढ़ाई" उधर सूरज ने मोहिनी से कह दिया था कि वो चंदा को प्यार करता है और उसी से शादी करेगा, मोहिनी को अगर सूरज चंदा का प्यार मंज़ूर नहीं था तो उसके पिता दुर्जन सिंह को सूरज बर्दाश्त नहीं था. भले ही वो अपनी बेटी से बेइंतहा प्यार करते थे लेकिन कैसे एक मामूली लड़के से वो अपनी बेटी की शादी करते.एक दिन गांव में नीम के पेड़ से लटकी चंदा की लाश मिली.मोहिनी ने साज़िश कर चंदा को मरवा दिया.सूरज इस सदमे से पागल हो उठा,वो दुर्जन सिंह को इसका ज़िम्मेदार मानता रहा और एक रात बदला लेने उसके महल पहुंच गया लेकिन दुर्जन के सिपाहियों के आगे वो कुछ न कर सका.सूरज को यातना दे देकर मारा गया.सूरज की लाश गांव के तालाब में तैरती मिली.मोहिनी को ये बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने पहाड़ी से कूदकर जान दे दी.बेटी की मौत से दुर्जन सिंह सुध बुध खो बैठा.पागलपन में एक दिन उसने खुद को गोली मार ली", "तुम्हें ये सब कैसे मालूम",सूरज ने पूछा. "मेरे बापू ने बताया", बाबूजी मेरा गांव आ गया है,मैं चलती हूं, इसी रास्ते पर आगे थोड़ी दूर पर नरसिंहपुर गांव है और हां रास्ते में जो भी मिले उससे बिना बात किए और बिना पीछे मुड़े बस आगे बढ़ते जाना",चंदा ने समझाया, इससे पहले कि सूरज संभलता चंदा एक पगडंडी पकड़ कर निकल गई, सूरज सोच रहा था न मैंने चंदा का गांव पूछा न उसके परिवार के बारे में, क्या वो शादीशुदा है,इतने कम समय में चंदा जैसे उसके दिल में बस गई थी.धीरे धीरे सूरज ने कदम आगे बढ़ाए, ऐसा लग रहा था जैसे कोई अनहोनी शक्ति उसे आगे लिए जा रही है, अभी उसने कुछ कदम आगे बढ़ाए थे, तभी एक हाथ में लालटेन और दूसरे में लाठी लिए एक बुड्ढा सामने से आता दिखा,शायद उसकी एक टांग खराब थी, वो भचक कर चल रहा था.सूरज के पास आकर बोला"क्या तुमने किसी लड़की को देखा"? चेहरे पर घनी सफेद मूंछ, अंगारों सी दहकती बड़ी आंखें, गाल पर कटे का निशान, सिर पर पगड़ी.सूरज ने हिम्मत कर जवाब दिया "लड़की"..."हां मोहिनी...तुमने देखी...मुझे छोड़कर चली गई...सौ साल हो गए,ऐसे ही ढूंढ रहा हूं उसे"...सूरज को जैसे सांप सूंघ गया था, मौत सामने नज़र आ रही थी, उसने डरते डरते कहा "क्या...आ आ आप"...इससे पहले कि सूरज वाक्या पूरा कर पाता जवाब आया," दुर्जन सिंह"...सूरज की आंखें बड़ी हो गईं, धड़कन तेज़ हो गई,हिम्मत कर उसने जवाब दिया, "मैंने नहीं देखा और तेज़ी से आगे बढ़ गया, "रुको मैंने कहा रुको, तुम्हारी वजह से मेरी बेटी ने जान दे दी...मैं तुम्हें छोड़ूंगा नहीं"...उसे दुर्जन सिंह की भारी भरकम आवाज़ सुनाई दी लेकिन वो बढ़ता गया उसे चंदा की बात याद आ गई,वो न रुका, न पलटा बस चलता गया चलता गया...

सामने एक मंदिर नज़र आ रहा था.सूरज आखिर नरसिंहपुर पहुंच गया.एक घर के बाहर पहुंच कर उसने दस्तक दी.चरमरा कर लकड़ी का दरवाज़ा खुला लेकिन कोई नज़र नहीं आया, "हरि काका, मैं सूरज...मैं आ गया",उसने आवाज़ लगाई, पूरे घर में शांति थी, एक कोने में दीपक जल रहा था तभी उसकी नज़र दीवार पर टंगी तस्वीर पर गई, वो चौंक गया, अरे ये तो चंदा की तस्वीर है, डर के मारे उसके माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं.तो क्या चंदा... वो अभी इसी उधेड़बुन में था कि तभी उसके कानों में जानी पहचानी छम छम की आवाज़ पड़ी..."बाबूजी"...वही शहद घुली आवाज़..."चंदा"...सूरज ने डरते हुए कहा, उसे लगा मानो तस्वीर से बाहर निकल कर चंदा उसके सामने आ खड़ी हुई हो.मद्धिम रोशनी में चंदा की खूबसूरती को वो एकटक निहारता रह गया, उसका सौम्य चेहरा देखकर सूरज का डर काफुर हो गया, "तुमने पूछा था न बाबूजी कि चंदा का क्या हुआ", देखो तुम्हारी चंदा आज भी तुम्हारा इंतज़ार कर रही है,देखो मैंने शादी की पूरी तैयारी कर ली है, लाल जोड़ा,मंगलसूत्र, सिंदूर सब कुछ है",चंदा ने जल्दी से एक तसले में आग जलाई और सूरज से मंगलसूत्र पहनाने और सिंदूर लगाने को कहा.सूरज बुत बना रोबोट की तरह चंदा की बात मानता जा रहा था.तभी दरवाज़े पर ज़ोर की आवाज़ हुई लगा बम फटा हो.चंदा ने सूरज के साथ अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेने शुरु कर दिए."चंदा मैं तुझे ऐसा नहीं करने दूंगी".मोहिनी अंदर आ चुकी थी, गुस्से में और भी ज़्यादा भयानक लग रही थी, उसकी गुर्राहट और जलती आंखें देखकर सूरज की सांसे बंद हुई जा रही थी.चंदा ने सूरज से फेरे लेते रहने को कहा, तभी मोहिनी ने ज़ोर का हाथ मारा और सूरज दूर जाकर गिरा.चंदा को ये बर्दाश्त नहीं हुआ,उसने मोहिनी के बाल पकड़े और ज़ोर से धक्का दिया, दो प्रेत आत्माओं के बीच संग्राम छिड़ा था."सूरज अगर मेरा नहीं होगा तो तेरा भी नहीं होगा चंदा",मोहिनी ने कहा और सूरज की तरफ लपकी.सूरज का बैग पास नहीं था, हनुमान चालीसा उसी में थी तभी चंदा ने एक खंजर सूरज की तरफ फेंका, "घोंप दो इसके सीने में", डर के मारे खंजर सूरज के हाथ से छिटक गया,मोहिनी ज़्यादा ताकतवर साबित हो रही थी, उसने चंदा को नीचे पटका और उसकी गर्दन पर सवार हो गई, अपने तीखे लंबे नाखून उसके गले में धंसा दिए,चंदा दर्द से छटपटा रही थी, मोहिनी की पकड़ इतनी मज़बूत थी कि चंदा चाहकर भी उसकी जकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पा रही थी, तभी मोहिनी की चीख निकल गई, सूरज ने खंजर का वार मोहिनी की पीठ पर किया था.धीरे धीरे मोहिनी का शरीर धुंए में तब्दील होने लगा,थोड़ी देर में वहां सब कुछ शांत हो गया.चंदा ने सूरज के साथ सात फेरे लिए,सूरज ने चंदा की मांग सिंदूर से भर दी.चंदा अब सूरज की हो चुकी थी, दोनों एक दूसरे की आगोश में थे.सूरज भूल गया कि वो एक आत्मा के साथ है, उसके लिए वो पल ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत पल था, एक स्वर्गीय अनुभूति थी और बरसों के इंतज़ार का अंत था.

वो रात गुज़र चुकी थी, सुबह हो गई थी, सूरज की आंख खुली तो वो अकेला था, उसकी नज़र चंदा की मुस्कराती तस्वीर की ओर चली गई जो शायद कह रही थी, तुमने मुझे मुक्ति दे दी सूरज.

चमोली बस स्टैंड का चायवाला और परचूनवाला अवाक से सूरज को देख रहे थे, उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि कोई नरसिंहपुर से ज़िंदा लौट सकता है.बस में बैठा सूरज शांति से खिड़की के बाहर पहाड़ियों की ओर देख रहा था. मां शादी के लिए पीछे पड़ी थी, गांव की लड़की लाना चाहती थी, सूरज को समझ नहीं आ रहा था कैसे हरि काका से अचानक उसकी मुलाकात हुई, उन्होंने नरसिंहपुर आने का न्यौता दिया और वो मना नहीं कर सका. सूरज ने बैग से एक तस्वीर निकाली, इसी तस्वीर को देखकर ही तो वो नरसिंहपुर खिंचा चला आया था, उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने. तस्वीर देखकर बरबस मुस्कान उसके होठों पर दौड़ गई, वो चंदा ही तो थी. लेकिन चंदा अब उसे कहां मिलेगी वो तो जा चुकी है, ये सोचकर सूरज मायूस हो गया, खिड़की के बाहर उसकी आंखें अब भी उसकी आंखें चंदा को तलाश रही थीं, तभी धचके से बस चल पड़ी."Excuse Me, अपना बैग हटाइए प्लीज़, ये मेरी सीट है", सूरज इस आवाज़ को पहचानता था,वो चौंक कर पलटा तो उस चेहरे को देखता रह गया, अवाक, उसकी चंदा लौट आई थी.

BRIJESH 'PREM' GOPINATH