इंसानियत - एक धर्म - 34 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इंसानियत - एक धर्म - 34

अचानक खांसी आ जाने की वजह से असलम की बात अधूरी रह गयी थी । कुछ देर खांसने के बाद असलम थोड़ा सामान्य हो पाया था । उसकी आंखें सुर्ख हो गयी थीं । रजिया भागते हुए जाकर पानी ले आयी थी । पानी का गिलास असलम के होठों से लगाते हुए बोली ” या अल्लाह ! ये अचानक आपको क्या हो गया ? अब आप ठीक तो हैं ? ” उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ झलक रही थीं ।
आंखें बंद कर खामोशी से थोड़ा पानी हलक के नीचे उतारने के बाद असलम ने रजिया को सब ठीक है का इशारा किया और पानी का खाली गिलास उसे पकड़ाते हुए रहमान चाचा से मुखातिब होते हुए बोला ” हाँ ! तो रहमान चाचा ! मैं बांगी साहब से यही समझना चाहता हूं कि इस्लाम की ठेकेदारी करने का जिम्मा इनको और इनके जैसे मौलानाओं को किसने दिया ? क्या इस्लाम सिर्फ आप लोगों की रहनुमाई में ही हिफाजत से है ? क्या इस्लाम का वजूद आप जैसे लोगों से ही है ? हमारी कोई कीमत नहीं ? हंसी आती है आप जैसे इस्लाम के रहबरों पर । लेकिन चाचा अब आप लोगों को समझना होगा कि यह इक्कीसवीं सदी का हिंदुस्तान है जो अब पहले से ज्यादा समझदार , जागरूक व अपने मफात के लिए मर मिटने वाला है । आज आप अपनी दलीलें देकर लोगों को बहला नहीं सकते । मोबाइल हाथ में रखकर घूमनेवाले पूरी दुनिया की किताबें अपने हाथ में रखने का हुनर रखते हैं । आप लोगों की उलजुलूल तकरीरें सुनकर अब उन्हें भी हंसी आने लगी है । अब उन्हें भी किताबों की दुनिया और हकीकत का फर्क समझ में आने लगा है । आप लोगों की दोगली नीतियों का पर्दाफाश आज के युवा खुद ही करने लगे हैं । ”
कहते हुए असलम ने बांगी साहब की तरफ देखा ” आपको शायद मेरे अल्फाज चुभ रहे होंगे लेकिन मुझे यह कहने से कतई गुरेज नहीं है कि बदकिस्मती से मैंने जो कहा वह सच है । न आप सच जानते हैं और न ही जानना चाहते हैं । और सच ये है कि आप लोग अपनी अपनी सुविधा के अनुसार इस्लाम का इस्तेमाल करते हैं । आप निकाह , तलाक वलीमा या हक ए मेहर हो सब के लिए शरीयत के नियमों की दुहाई देते हो लेकिन जब किसी अपनों के किसी गुनाह में फंसने और उनको सजा मिलने की बारी आती है तब आप लोग उस गुनहगार का नाम लेकर छाती पीटने लगते हो , मातम मनाने लगते हो । खूंखार से खूंखार गुनहगार भी आपकी नजरों में मासूम दिखने लगते हैं । वहीं कुछ देशद्रोही बंदों की जमात ऐसे गुनाहगारों का हौसला अफजाई करते दिखती है और पूरी दुनिया को यह समझाने की बेइंतहा कोशिश करती है कि ‘ वह तो बेचारा मासूम था बस यह सरकार उस बेगुनाह बंदे को मुस्लिम होने की सजा दे रही है । ‘ तब तुम्हें शरीयत के कानूनों की याद नहीं आती ? शरीयत के उसूलों के मुताबिक जो भी मादरे वतन का गद्दार होगा उसको सरे आम किसी चौराहे पर फांसी दे देनी चाहिए । चोरी साबित होने पर आप किसी अपने का हाथ कटवाना पसंद करेंगे ? क्या आप अपनी किसी बहन बेटी के साथ संगसार होता देखना पसंद करेंगे ? ”
एक पल के लिए असलम रुका था । फिर रहमान चाचा के चेहरे पर बदल रहे भावों को देखते हुए बोला ” नहीं ! मैं जानता हूँ ! इनमें से किसी भी सजा का समर्थन आप लोग नहीं करेंगे । तब आप लोगों को यह फैसला बाबा आदम के जमाने का कानून लगने लगेगा । इक्कीसवीं सदी की याद दिलाने की भी कोशिश की जाएगी । इंसानियत के शर्मसार होने की दुहाई दी जाने लगेगी सो अलग , क्योंकि आप लोगों को तो न इस्लाम से कुछ लेना देना है और न ही शरिया के कानूनों से और न ही इंसानियत से । आप लोगों को तो लेना देना है सिर्फ और सिर्फ इन भोले भाले अनपढ़ गरीब मुस्लिमों को बरगलाने से , । आप जैसे लोगों की दिली तमन्ना होती है कि इस्लाम ,खुदा और शरिया का डर इन आम लोगों के दिलोदिमाग में इस कदर ठूंस दिया जाए कि इनमें से कोई भी कभी भी आप लोगों के खिलाफ कुछ भी कहने की जुर्रत न कर सके । एक बड़े जमात को अपने साथ जोड़े रखने का फायदा भी तो आप लोगों को ही मिलता है । धर्म के नाम पर सियासतदानों से सौदेबाजी भी बखूबी होती है । अपने रसूख का इस्तेमाल करके आप लोग सरकार से अपनी हर जायज ,नाजायज मांग पूरी करवा ही लेते हो और फिर भी दोष सरकारों का ही देते हो । अल्पसंख्यक के नाम पर सरकारों से आपको तमाम रियायतें तो मिलती ही हैं इसके अलावा हमारा मुल्क एक ऐसा मुल्क है जहां के गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है । यही वह मुल्क है जहां बिना किसी भेदभाव के मुस्लिम को बड़े से बड़ा पद व सम्मान देकर उनको इज्जत बख्सी जाती है । डॉ जाकिर हुसैन , डॉ फखरुद्दीन अली अहमद ,डॉ अब्दुल कलाम जैसे सबसे ऊंचे पदों तक पहुंचनेवाले इन मुस्लिमों को कौन नहीं जानता ? इनके देशभक्ति की लोग मिसालें देते हैं । सिनेमा के शौकीन लोग भी सलमान , आमिर और शाहरुख की बेमिसाल अदाकारी के कायल हैं और उनके कद्रदान भी । इनके चाहनेवालों की संख्या भी करोड़ों में है जब कि यहां हिंदुओं की संख्या सबसे ज्यादा है । कोई हिन्दू इन मुस्लिमों से नफरत नहीं करता मुस्लिम होने के नाते तो फिर हम ही अपने लोगों को यह क्यों समझाते हैं कि काफिरों से मोहब्बत नहीं नफरत करनी चाहिए ? क्यों इन्हीं नफरतों को बढ़ाने की तकरीरें करते रहते हैं ? न जाने कब आप लोग अपनी तकरीरों में लोगों को यह समझाने की कोशिश करोगे कि यह मुल्क तो हमारा है ही इस मुल्क में रहनेवाले सभी लोग हमारे हैं । यह कैसे हो सकता है कि मुल्क तो आप लोग अपना कह लेते हो लेकिन यहां के लोगों को अपना कहने से मानने से परहेज करते हो ? क्यों इस्लाम के अलावा बाकी धर्म को माननेवाले आपकी नजरों में काफ़िर हो जाते हैं ? काफिरों से नफरत को इस कदर हवा क्यों दी जाती है ? क्या अमन और भाईचारे की बातें करनेवाला कमजोर होता है ? नहीं !

इस्लाम और इस्लामियत का दम भरनेवाला मामूली सा मुल्क पाकिस्तान यदि हमारे मुल्क को नुकसान पहुंचाने की सोचता भी है तो सिर्फ और सिर्फ यहां इस मुल्क में छिपे हुए गद्दारों की वजह से जिन्हें धर्म की आधी अधुरी जानकारी है । पाकिस्तान में अपने आपको मौलाना कहनेवाले कुछ इंसान जो इंसानियत के नाम पर कलंक हैं अनपढ़ गरीब व भोले भाले बेगुनाह मजबूर नौजवानों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए उनको जिहाद की घुट्टी पिलाते हैं और इस्लाम के नाम पर कुर्बान होने पर कब्र में 72 हूरों का लालच दिलाते हैं । बार बार अपनी तकरीरों में यही सब बताते हैं कि हिंदुस्तान में हमारे भाई बहुत ही तकलीफ में हैं और उनकी मदद करना ही जिहाद है ……..”
असलम की बात काटते हुए बांगी मियां चीख पड़े ” और कुछ तो पता नहीं लेकिन काफिरों की बात सुन सुनकर तेरा भी दिमाग खराब हो गया है । अभी चंद लम्हों में ही तू दो बार इसका जिक्र कर चुका है । तुझे पता भी है जिहाद क्या है ? ”
असलम मुस्कुराया ” मुझे तो पता है बांगी मियां कि जिहाद क्या है लेकिन मुझे यह भी पता है कि आप जिहाद के बारे में कुछ नहीं जानते । आप वही जानते हैं जो आप जैसे इस्लाम के ठेकेदार दुनिया को बताते हैं । मैं आपको बताता हूँ जिहाद के असली मायने …” कहते हुए असलम ने रजिया को कुछ इशारा किया ।


क्रमशः