दूसरी औरत.. - 6 निशा शर्मा द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दूसरी औरत.. - 6

मिले हो तुम हमको बड़े नसीबों से,चुराया है मैंने किस्मत की लकीरों से...

हैलो!

हाय,कैसी हो?

ठीक हूँ!

कॉलर ट्यून बड़ी अच्छी लगाई है!

तुम्हें अच्छी लगी?

हाँ! "तेरी मोहब्बत से साँसें मिली हैं,सदा रहना दिल के करीब होके",संजय ने गुनगुनाते हुए जवाब दिया!

संजय,उस दिन मेरी बात अधूरी रह गई थी।

याररर,सुमि प्लीज़! अब तुम फिर से मत शुरू हो जाना और फिर ऐसा तो नहीं है न कि हम पहली बार इस टॉपिक पर बात कर रहे हैं। अरे! इससे पहले भी कई बार हमनें इस विषय पर बात की है मगर पता नहीं क्यों थोड़े-थोड़े दिनों में तुम्हें वापिस से वो एक ही सही-गलत वाला बुखार चढ़ जाता है।

संजय,संजय मैं कुछ भी तय नहीं कर पा रही हूँ। हमारा ये रिश्ता...

तुम्हें कुछ भी तय करने की कोई जरूरत नहीं है,सुमि! मैं हूँ न जान,संजय ने सुमेधा को समझाते हुए कहा। अच्छा चलो एक बात बताओ मुझे!

हम्म!! पूछो...

मुझे ये बताओ कि क्या खुद के लिए सोचना पाप है? क्या इस भागदौड़ और तनावभरी जिंदगी में अपने लिए थोड़ा सा समय,थोड़ी सी खुशी ढ़ूंढ़ लेना गुनाह है? बताओ सुमि,क्या तुम किसी का बुरा कर रही हो,अपने लिए थोड़ा सा अच्छा सोचके? बोलो,जवाब दो!!

"हाँ,तुम शायद ठीक ही कह रहे हो संजय", एक लम्बी साँस लेते हुए सुमेधा नें संजय से कहा!

शायद नहीं,मैं वाकई ठीक कह रहा हूँ! अच्छा चलो अब ये सब छोड़ो,मेरे पास तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है! मैं परसों वापिस आ रहा हूँ!

ओह्ह!! संजय,कितने दिनों बाद...कहते हुए सुमेधा की आँखें छलछला गयीं। मैं तुम्हें एयरपोर्ट पर रिसीव करने आऊँँ??

श्योर,डियर!

अरे नहीं,रहने दो। मैं भी न,बस पागल ही हूँ।

क्यों? क्या हुआ? आओ न जान।

तुम पागल हो क्या संजय? वहाँ तुम्हारी बीवी...कहते-कहते बिल्कुल चुप हो गई सुमेधा।

अरे याररर...मेरी बीवी के पास इतना फालतू समय नहीं है कि वो मुझे लेने एयरपोर्ट आये। अरे यार शी इज़ वैरी बिज़ी पर्सन,यू नो?

तो फिर पक्का रहा जान,तुम एयरपोर्ट आ रही हो और वो ब्लैक साड़ी जो मैंने तुम्हें वैलेंटाइन्स डे पर दी थी,तुम वो ही पहनकर आ रही हो,ओके...डन!!

डन!! सुमेधा नें मुस्कुराते हुए कहा!

"अच्छा हाँ,एक और ज़रूरी बात! तुम्हें वो मुझे रिटर्न गिफ्ट भी तो देना है न,अरे भईया बकाया हम किसी पर नहीं छोड़ते", शरारतभरे अंदाज में संजय बोला!

हाँ जी पता है और हम भी सूद समेत वापिस लौटाने वालों में से हैं, मिस्टर संजय कोहली!

अच्छा जी! याद रखिएगा अपना वादा,मिस सुमेधा खन्ना!

और दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े!!

मयंक को बहुत तेज बुखार है।

हाँ तो उसे दवा दो न!

"हाँ दवा तो मैंने दे दी है मगर तुम कहाँ जाने के लिए तैयार हो रहे हो", सुमेधा नें सुकेत से पूछा।

मैं,अरे सॉरी मैं तुम्हें बताना भूल गया। आज वो सिंह साहब के प्रमोशन की ऑफिशियल पार्टी है,पैराडाइज़ में!

सुकेत तुम अभी-अभी तो ऑफिस से आये हो और आते ही फिर चल दिये। प्लीज़ सुकेत आज मत जाओ,देखो मयंक की तबियत भी ठीक नहीं है न!!

"अरे यार जाना तो जरूरी है मगर हाँ मैं जल्दी वापिस आने की कोशिश करूँगा", कहते हुए सुकेत कमरे से बाहर निकल गया।

सुमेधा,मयंक के सिर पर पट्टियां रखती रही और जब मयंक को कुछ आराम मिला तो वो संजय से वॉट्सऐप चैट करने लगी! कुछ देर बाद संजय भी उसे गुडनाइट मैसेज करके सो गया और सुमेधा अपने बेटे मयंक को अपनी गोद में लिटाये सारी रात बस यूं ही बुत बनी बैठी रही,कभी वो मयंक को छूकर उसका टैम्परेचर चैक करती तो कभी उसके कुनमुनाने पर उसे थपकियाँ देती! इस बीच सुकेत का एक भी फोन नहीं आया और सुमेधा नें चाहकर भी उसे कोई फोन नहीं किया।

सुबह के तीन बजे सुकेत नशे में धुत्त होकर लौटा। अगले दिन सुकेत सोकर भी बहुत देर से उठा। तबतक तो सुमेधा मयंक को बच्चों के डॉक्टर के पास से विजिट कराके ले भी आयी और उसनें मयंक को हल्का सा नाश्ता कराने के बाद दवा देकर सुला भी दिया।

सुकेत उठकर चुपचाप तैयार होकर ऑफिस चला गया। उसनें न तो सुमेधा से कुछ कहा और न ही अपने बेटे मयंक की तबियत के बारे में ही कुछ पूछा।

हे! संजय नें सुमेधा को देखकर अपना हाथ हवा में लहराया और दो फ्लाइंग किस भी हवा में सुमेधा की तरफ़ उछाल दीं।

इधर से सुमेधा नें भी बड़े ही हर्ष के साथ अपना हाथ उसकी तरफ़ लहराया और फ्लाइंग किस के जवाब में सुमेधा के गोरे गाल शर्म से लाल हो गए और उसनें अपनी पलकें मींच लीं!!

सुमेधा को इसके बाद पता ही नहीं चला कि कब संजय,सुमेधा के एकदम नजदीक आकर खड़ा हो गया।

कैब आ चुकी थी और संजय-सुमेधा एक-दूसरे के बिल्कुल करीब बैठ चुके थे।

उफ्फ़!! संजय नें एक लम्बी आह भरते हुए कहा।

"क्या हुआ संजय? कुछ भूल गए क्या?", सुमेधा नें संजय की तरफ़ देखते हुए पूछा।

नहीं जान,कुछ याद आ गया। तुम्हारे इस गोरे बदन पर इस काली साड़ी को देखकर!!कसम से कमाल लग रही हो!

सुमेधा नें अपनी नज़रें झुकाकर,शर्माते हुए,अपने काँपते होठों से कहा...क्या याद आ गया?

अपना रिटर्न गिफ्ट और इतना कहकर संजय नें अपनी एक आँख दबा दी।

सच,गोरी-चिट्टी,गुलाबी होठों और चमकीली आँखों वाली सुमेधा और लम्बा-चौड़ा,जबरदस्त एवं आकर्षक पर्सनैलिटी का संजय, दोनों एक साथ बैठे हुए यूं लग रहे थे कि जैसे वो एक-दूजे के लिए ही बने हों।

अब ये सच है या छलावा? इसका फैसला तो होगा इस सफर के अगले और अंतिम पड़ाव में,तो फिर मिलते हैं हम अब अगले और अंतिम भाग में,तब तक के लिए बाय-बाय!

क्रमशः...

निशा शर्मा...