सुमेधा और संजय की उस आधी अधूरी मुलाकात को हुए आज पूरे पन्द्रह दिन बीत चुके थे। इस बीच उन दोनों में से किसी एक नें भी एक दूसरे से बात करने का कोई भी प्रयास नहीं किया जबकि उस दिन वो दोनों ही एक दूसरे से उनके मोबाईल नम्बर्स ले चुके थे।
इस वक्त घड़ी पूरे दस बजा रही थी।सुमेधा का पति सुकेत बस अभी अभी ऑफिस के लिए निकला ही था जबकि उसका तीन साल का बेटा मयंक सुबह नौ बजे ही अपने प्लेस्कूल जा चुका था जिसे खुद सुमेधा भागते दौड़ते हुए छोड़कर आयी थी।अब पीछे कुछ बचा था तो वो था सुमेधा का बेतरतीब सा पड़ा हुआ घर और उस घर में थकी हारी सी पड़ी सुमेधा जो कुछ देर आराम करना चाहते हुए भी आराम नहीं कर पा रही थी क्योंकि उसके दिन की असली शुरुआत तो अब होनी थी।अभी तो उसे हर रोज की तरह चकरगिन्नी के जैसे नाचते हुए जल्दी जल्दी घर के सारे काम निपटाने के साथ ही साथ अपने बेटे मयंक को भी टाइम से प्लेस्कूल से वापिस लेकर आना था।
रोज़ की तरह आज भी जगजीत सिंह की गज़लों को सहारा बनाते हुए सुमेधा अपनी घड़ी की टिकटिक के साथ कदमताल करने में जुट गई।
तेरे बारे में जब सोचा नहीं था, मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था!जगजीत सिंह की इस खूबसूरत गज़ल के बीच में सुमेधा के मोबाइल पर बजी वाट्सएप की एक छोटी सी नोटिफिकेशन टोन सुमेधा के दिल को बहुत भीतर तक धड़का गयी।न जानें क्यों सुमेधा को इस पल सिर्फ संजय का ही ख्याल आया जो कि सही भी निकला।हाँ ये संजय का ही नम्बर तो था जो उस दिन सुमेधा को सिर्फ एक बार पढ़ने पर ही याद हो गया था।
हाय!
सुमेधा बस उस मैसेज को देखे जा रही थी पता नहीं उसे समझ नहीं आ रहा था या वो समझकर भी समझना नहीं चाह रही थी या फिर समझकर भी नासमझ बनी हुई थी कि उसका अगला कदम अब क्या होना चाहिए !
सुमेधा का धड़कता हुआ दिल,आज किसी भी फैसले तक पहुँचने में नाकाम साबित हो रहा था और सुमेधा आज अपनी धड़कनों के साथ न तो चलना चाहती थी,न हीं उन धड़कती हुई धड़कनों को थामना चाहती थी और न हीं उन्हें अनदेखा कर आगे ही बढ़ना चाहती थी।
हर रोज़ बहुत ही तेज-तेज चलने वाले सुमेधा के हाथ आज बड़े ही सुस्त पड़ गए थे। संजय अभी भी वाट्सएप पर ऑनलाइन था मगर जगजीत सिंह जी की गज़ल अब बदल चुकी थी...उस मोड़ से शुरू करें फिर से ये जिंदगी,हर शय जहाँ हसीन थी हम तुम थे अजनबी। इस बार जगजीत सिंह जी के साथ साथ चित्रा सिंह जी की फीमेल वॉइस भी शामिल थी !!
न जानें इन दोनों का ये सफ़र अब शुरू होगा या खत्म या फिर खत्म होकर शुरू या शुरू होकर खत्म,ये तो इनके साथी बनकर ही जान पायेंगे हम, हैं न !! साथी तो हम बन ही गए हैं इनके, बस अब चलना है हमें इनके साथ साथ 🤝 क्रमशः
निशा शर्मा...