The Author राज कुमार कांदु फॉलो Current Read इंसानियत - एक धर्म - 30 By राज कुमार कांदु हिंदी फिक्शन कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books स्वयंवधू - 27 सुहासिनी चुपके से नीचे चली गई। हवा की तरह चलने का गुण विरासत... ग्रीन मेन “शंकर चाचा, ज़ल्दी से दरवाज़ा खोलिए!” बाहर से कोई इंसान के चिल... नफ़रत-ए-इश्क - 7 अग्निहोत्री हाउसविराट तूफान की तेजी से गाड़ी ड्राइव कर 30 मि... स्मृतियों का सत्य किशोर काका जल्दी-जल्दी अपनी चाय की लारी का सामान समेट रहे थे... मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२ मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२मुनस्यारी से लौटते हुये हिमाल... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास राज कुमार कांदु द्वारा हिंदी फिक्शन कहानी कुल प्रकरण : 49 शेयर करे इंसानियत - एक धर्म - 30 (4) 1.6k 6.5k सिपाहियों ने आकर पांडेय जी को सलूट किया । हल्के से गर्दन हिलाकर पांडेय जी मुनीर के घर से बाहर निकल कर थोड़ी दूर जाकर रुक गए । उनके पीछे दोनों सिपाही भी थे । आसपास कोई भी न था यह देखकर पांडेय जी बोले ” कहो ! क्या खबर लाये हो ! कुछ पता चला ? ”” साहब ! गांव में हमने कई लोगों से पूछताछ की ,मुनीर का पता जानना चाहा लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया । उसके रिश्तेदारों के बारे में भी किसीने नहीं बताया । सबने एक ही बात कही यह छोटे पर से ही इसी गांव में रह रहा है और अनाथ है तो फिर इसके और रिश्तेदार कहाँ से होंगे । किसी से कोई जानकारी नहीं मिली । सबने उसको भला आदमी और सबसे मिलजुल कर रहनेवाला बताया । ” एक सिपाही ने पूरी बात बता दी । दूसरे सिपाही ने भी सहमति में सिर हिलाया । चिंतित से पांडेयजी ने उन्हें बताया ” यहां भी लगभग ऐसा ही है । अब क्या करें ? उसे कहाँ खोजा जाए ? ”” सर् ! उसके मोबाइल का लोकेशन ट्रेस किया जाए , इसके अलावा और कोई विकल्प नजर नहीं आता । ” एक सिपाही ने सुझाव दिया था ।पांडेय जी ने सहमति जताते हुए कहा ” तुम ठीक कह रहे हो । हमें मुनीर और उसकी बेगम दोनों का मोबाइल नंबर अपनी निगरानी में रखना होगा । अब यहां रुकने का कोई फायदा नहीं । चलो चलें । ”कहते हुए पांडेय जी मुनीर के घर के सामने जमा लोगों की भीड़ के बीच पहुंचते हुए रामु काका से बोले ” अभी तो हम वापस जा रहे हैं ,लेकिन मुनीर को हम तलाश करके रहेंगे । अभी भी आप लोगों में से कोई जानता हो मुनीर के बारे में तो कृपया बता दें । याद रखो ! गुनाहगार का साथ देनेवाला भी गुनाहगार होता है । ”रामु काका ने अपनी गंभीर आवाज में जवाब दिया ” हमें कानून की abcd मत पढ़ाओ इंस्पेक्टर ! हमने ये बाल धूप में नहीं सफेद किये हैं । हम गांव वाले सीधे सादे और ईमानदारी का जीवन जीना पसंद करते हैं । ये दांव पेंच की जद्दोजहद भरी जिंदगी तुम शहर वालों को ही मुबारक । अपने देश के कानून का हम सम्मान करते हैं और इतना ध्यान रखो अगर मुनीर दोषी हुआ तो हम गांववाले खुद उसको तुम्हारे हवाले कर देंगे । अब जाओ और अपना काम करो । ”गांव वालों के सख्त तेवर देखकर और मौके की नजाकत को समझकर दरोगा पांडेय जी दोनों सिपाहियों के साथ वहां से खामोशी से निकल आये । रामु काका का व्यवहार अचानक उन्हें बदला बदला सा लग रहा था । उन्हें साहब साहब कहकर सम्मान देनेवाला शख्स जब अचानक उन्हें इंस्पेक्टर और तुम कहकर संबोधन करने लगे तो विचित्र तो लगेगा ही । पांडेय जी की भी यही अवस्था थी । पैदल चलते हुए पांडेय जी गांव के बाहर उस कच्ची सड़क पर आ गए जहां उनकी जीप धूप में ही खड़ी थी । पांडेय जी ने कलाई पर बंधी घड़ी में नजर डाली और चौंक गए । लगभग ग्यारह बज चुके थे और अभी उन्हें बहुत कुछ करना बाकी था । मुख्य अभियुक्त असलम उनकी हिरासत में था और उसे न्यायालय में पेश करके उसे रिमांड पर लेने की कार्यवाही पूरी करनी थी । जीप में बैठते हुए पांडेय जी ने सिपाही को रामनगर थाने की तरफ मोड़ने का निर्देश दिया और कुछ देर बाद उनके निर्देश के मुताबिक जीप कच्ची सड़क पर अपने पीछे धूल का गुबार छोड़ते हुए अपनी मस्तानी चाल से हिचकोले खाते रामनगर थाने की दिशा में बढ़ी चली जा रही थी ।पांडेय जी के जाने के बाद मुनीर के घर के सामने जमा भीड़ कानाफूसी करती अपने अपने घर चली गयी । कुछ गांववालों ने रामु काका से पूरा माजरा समझना चाहा लेकिन कंधे उचकाकर अपनी अनभिज्ञता दर्शाते हुए उन्होंने सभी को वापस भेज दिया । सबके जाने के बाद रामु काका ने शबनम को आवाज लगाई ” बहु ! ”” जी आयी काका ” शबनम ने प्रत्युत्तर दिया था और अगले ही पल वह बाहर के कमरे में बैठे रामु काका के सामने दुपट्टे से सिर को ढंके गर्दन झुकाये खड़ी थी ।” ये क्या हो गया बहु ? क्या सचमुच मुनीर यहां आया था ? ”” जी ! ”” और फिर बिना किसीसे मिले वापस चला भी गया ? ”” जी ! ”” कहाँ गया ? ”” मुझे कुछ नहीं बताया उन्होंने । ”” तो कहां गया होगा वो ? अच्छा ! कुछ हुआ था वह बताया था ? ”” जी नहीं ! एक बार उनके जबान से निकला था मैंने कुछ गलत नहीं किया लेकिन फिर पूछने पर नकार दिया था । कुछ नहीं बताया था । हाँ ! कुछ परेशान जरूर लग रहे थे । ”” परेशान लग रहा था ? तो मुझे क्यों नहीं बताया उसी वक्त ? ”” जब वो आये थे रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे । आधी रात को आपको परेशान करना मुनासिब नहीं लगा । ”” हाँ ! सही कहा तुमने बहु ! अब हम परेशान हो जाते । क्योंकि अब वह हमारा कुछ भी नहीं लगता न ! कितनी आसानी से तुमने हमें पराया समझ लिया बहु । कितनी आसानी से हमें दूर कर दिया । ”” नहीं ! नहीं ! काका ! हमारी ऐसी कोई मंशा नहीं थी । फिर भी अगर आपका दिल दुखा हो तो हम शर्मशार हैं काका ! हमसे गलती हो गयी । हमें माफ कर दो । ”” हाँ ! तुमसे गलती हुई है बहु ! जरूर हुई है लेकिन सवाल ये उठता है कि मुनीर गया कहाँ होगा ? और पता नहीं किस हाल में होगा ? उससे क्या गलती हुई है यह भी तो ठीक ठीक नहीं पता । हम क्या करें बहु ! हम क्या करें ? ”” आप परेशान न होइए काका ! मेरा खुदा में यकीन है । उस परवरदिगार आलम का खेल भी निराला होता है । कभी कभी अपने बंदों का इम्तिहान भी लेता है । मुझे पूरा यकीन है कि वही हमारी बिगड़ी भी संवारेगा और उन्हें दुबारा हमसे मिलवाएगा । जब हमने किसीका कुछ नहीं बिगाड़ा है तो वो भला हमारी क्यों बिगाड़ेगा ? ”” शायद तुम ठीक कह रही हो बहु ! ” कहकर रामु काका मुड़े और अपने घर की ओर चल पड़े । दरवाजे पर पहुंचकर मुड़े और वहीं से बोले ” फिर भी अगर उसका कोई फोन वोन आवे तो मुझे तुरंत बताना । ” कहकर रामु काका घर के अंदर चले गए ।मुनीर बड़ी देर तक सड़क किनारे पड़ी उस बेंच पर बैठा रहा और आंखें बंद किये हुए ही आगे की योजनाओं पर विचार करने लगा । कानून के हाथ से बचे रहना उसकी पहली प्राथमिकता थी । उसे याद आ रहे थे अपने दोनों बच्चे और प्यारी सी बेगम शबनम । मन की तड़प पर काबू पाता मुनीर उठा और आगे की तरफ बढ़ने लगा । समय सुबह के लगभग दस बज रहे थे । वातावरण में गर्मी बढ़ गयी थी और तपती दुपहरिया का आगाज हो गया था । अपनी पहचान छिपाने के लिए उसने गमछे को सिर पर लपेट रखा था जिससे वह निपट देहाती ही लग रहा था , लेकिन अब उसे सिर पर बांधे रखने में उसे बड़ी दिक्कत महसूस हो रही थी । एक तो गर्मी के मारे उसका बुरा हाल था और दूजे इस गर्मी में भी उसका चेहरा ढंका होना किसी के भी मन में संदेह पैदा करने के लिए काफी था । नजदीक ही एक उद्यान का दरवाजा खुला देख मुनीर उद्यान में ही एक पेड़ के नीचे जाकर हरि मखमली चादर सी बिछी घास पर बैठ गया । यहां बैठकर उसे बड़ी शांति मिल रही थी । अब उसने आगे आनेवाली परिस्थितियों पर विचार करना शुरू किया । यह शहर उसके गृहनगर के बिल्कुल पास का शहर होने की वजह से उसके गांव के या पास पड़ोस के गांव वालों के आने की संभावना अधिक थी । इसकी वजह से वह किसी दिन किसीकी निगाहों में भी आ सकता था , पहचाना जा सकता था और फिर पकड़ा जा सकता था । इसका मतलब उसका यहां रहना खतरे से खाली नहीं था । तो फिर कहाँ जाए वो ? क्या करे ? ‹ पिछला प्रकरणइंसानियत - एक धर्म - 29 › अगला प्रकरण इंसानियत - एक धर्म - 31 Download Our App