Atit ke chal-chitra - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

अतीत के चल चित्र - (5)


अतीत के चलचित्र (5)

मैं बाज़ार में गई तो मेरी मुलाक़ात, मेरी कक्षा में पढ़ने वाले बालक की मॉं से हो गई ।औपचारिक बातचीत होने के बाद मैंने उनके घर आकर बालक के संबंध में कुछ बातें करने की बात कही ।


उनसे मैंने कहा—आप समय बता दीजिए ।
उन्होंने कहा—आप किसी भी समय आ सकती हैं ।आपको घर खुला हुआ मिलेगा ।मुझे जानकारी थी कि वह स्कूल में अध्यापिका है ।जब उन्होंने कहा आप दिन में किसी भी समय अपने अनुसार आ सकती हैं तो मुझे कुछ अजीब लगा ।


एक दिन मैं उनकी ही कालोनी में गई तो उनके घर जाने का निर्णय लिया ।


मैंने दरवाज़े पर जब दस्तक दी तो एक महिला ने दरवाजा खोला-
महिला स्वभाव से हंसमुख थी,देखने में भी आकर्षित करने वाला व्यक्तित्व था।


घर में दो बच्चों के साथ थीं ।बड़ा बेटा था और छोटी बेटी थी ।बच्चे मेरे पास आये और नमस्ते करके मेरे पास ही खड़े हो गये ।

मैंने कहा —अमूल्य अपनी माता जी को बुलाकर लाइये मुझे उनसे बात करनी है ।अमूल्य ने बताया—माता जी बाज़ार गई है पिताजी के साथ ।घर पर नहीं है ।


मैंने अमूल्य से कहा—जिन्होंने दरवाज़ा खोला वह कौन है ।उसने बताया कि वह मौसी है ।

मौसी क़रीब आकर बोली—आप मुझे बता दीजिएगा ।


मैंने अमूल्य को कमरे में जाने को कहा और कुछ शिकायतें अमूल्य की मुझे करनी थी मैंने उन्हें बताई।
कुछ दिनों से अमूल्य का व्यवहार विद्यालय में ठीक नहीं था।उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि मैं समझा दूँगी,आप निश्चिंत रहिए ।मैं अपने घर आ गई ।


कुछ दिनों बाद अमूल्य बड़ी ही गंदी गाली अपने सहपाठियों को कह रहा था,मेरे पास शिकायत आई तो मैंने प्यार से उसे समझाया ।


अगले दिन फिर शिकायत मिली तो मैंने अमूल्य से कहा—तुम कहाँ से सीखते हो यह सब ?
उसने कहा—मौसी जब खाना देर से बनाती है तो मम्मी गाली सुनाती है ।पापा मम्मी को गाली सुनाते हैं ।


मैं कुछ समझ नहीं पाई,मैंने सोचा कि अगली बार मैं घर जाकर इसकी माता जी को समझाऊँगी कि बच्चों के सामने ग़लत व्यवहार न करें ।बच्चे बताने से नहीं देख कर और सुनकर अधिक सीखते हैं ।उनके सामने ग़लत व्यवहार न किया जाए ।


मेरी कालोनी से नज़दीक ही उनका घर था।मैं एक दिन उनके घर गई तो मौसी ने मुझे बैठाकर बताया कि मैं इन बच्चों की मॉं हूँ ।पहली पत्नी के बच्चे नहीं थे तो वकील साहब ने साधारण तरीक़े से मुझसे शादी की ।मेरे यह दो बच्चे हैं ।बड़ी दीदी नौकरी करतीं हैं मैं घर का काम करती हूँ ।बच्चे मुझसे भी अच्छा व्यवहार नहीं करते मुझे मौसी कहते हैं ।मम्मी के कहेनुसार ही व्यवहार करते हैं ।


एक दिन मैंने अख़बार में ख़बर सुनी कि वकील साहब की कोर्ट से आते हुए मोटरसाइकिल से टक्कर होते ही उनका शरीर शांत हो गया ।


दुखद घटना को सुनकर मन बहुत ख़राब हुआ।कुछ दिनों बाद अमूल्य की मौसी को मॉं ने घर से निकाल दिया ।वह दुबारा रोते हुए घर पहुँच गई ।बच्चों से बात नहीं करने दी।बच्चे भी मौसी को बुरा-भला कहते ।


नई उम्र की मौसी की हालत देख एक व्यक्ति ने अपने साथ लगा लिया ।प्यार का झाँसा देकर अपने साथ रखने की बात कही ।उसका भरपूर परिवार था,घर में न ले जाकर दूसरी जगह रखने की बात कही ।


मौसी एक जगह धोखा खा चुकी थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।मॉं के परिवार में उसके लिए स्थान नहीं था ।उसने कुछ दिनों तक इसी व्यक्ति के साथ रहने का सोचा क्योंकि पेट भरने का सवाल था ।


जितने दिन उस व्यक्ति ने सहायता की अपने घर से छिपा कर ही की ।मॉं का घर छूटा ,बच्चों का प्यार छूटा,समाज में इज़्ज़त छूटी।सभी नफ़रत भरी नज़रों से देखते थे सब।वकील साहब को भी नहीं पता था कि वह इतनी जल्दी अचानक चले जायेंगे ।जिसे प्यार से अपनी पत्नी और बच्चों की मॉं बनाया था उसके नाम कोई संपत्ति या मकान भी नहीं किया ।


महिला प्यार में सब कष्ट भूल जाती है लेकिन उसके पास वह भी नहीं था ।पेट भरने के लिए समाज के गिद्ध उसके साथ थे,लेकिन कोई इज़्ज़त का स्थान नहीं....


क्रमश:✍️



आशा सारस्वत



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