बैंगन - 16 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • The Hustel 2.0 - Show Of The Review - E 02 S 11

    कोई बात नहीं Mehul! अब मैं इसे और डिटेल्ड बनाकर अपडेट करता ह...

  • कोइयाँ के फूल - 2

                             कविताएँ/गीत/मुक्तक 11 कहकर गया थाकह...

  • नफ़रत-ए-इश्क - 43

    "कंग्रॅजुलेशंस mrs ओबेरॉय"..... तपस्या के  मंडप में जाते ही...

  • बेवफा - 25

    एपिसोड 25: ख़ामोश धमकीसमीरा अब समझ चुकी थी कि उसकी मुश्किलें...

  • Kurbaan Hua - Chapter 2

    उस लड़के के हाथों में एक खास ताकत थी, जैसे वो कोई सुपरहीरो ...

श्रेणी
शेयर करे

बैंगन - 16

इस बार मैं इस शहर में पहली बार आने वाला अकेला इंसान नहीं था। फूल वाला वही युवक तन्मय मुझे लेने स्टेशन पर आया था।
तन्मय मुझे तांगे में बैठा कर सीधा अपने घर ले गया। इस तांगे की भी एक रोचक कहानी थी।
तन्मय और उसके पिता यहां एक मंदिर के अहाते में बने छोटी- छोटी दो कोठरियों के मकान में रहते थे।
ये आपस में सटी हुई कोठरियां बरसों पहले कभी इसी इरादे से मंदिर के पिछवाड़े बनवाई गई होंगी कि ये मंदिर की रखवाली करने वाले परिवार को रहने के लिए दी जा सकें।
लेकिन अब ये पिता पुत्र ही मंदिर का रख रखाव करते थे। तन्मय की मां उसके बचपन में ही दिवंगत हो चुकी थी और उसे पिता ने ही पाला था।
इसी मंदिर के बाहर सड़क पर बनी दुकानों में से एक दुकान फल - सब्ज़ियों की थी। इसे एक पति - पत्नी चलाते थे जो दुकान के ऊपर बने हुए छोटे से कमरे में अपनी एकमात्र बेटी के साथ रहते थे।
पास के किसी गांव से यहां आकर बसे ये पति- पत्नी रोज़ी कमाने के लिए जी तोड़ मेहनत किया करते थे। पति के पास एक पुराना तांगा था जिस पर वह रोज़ सुबह जाकर मंडी से सब्ज़ी लाया करता था। पत्नी दिन भर फल- सब्ज़ियों की बिक्री करती और पति मंडी से माल देकर फ़िर नज़दीक के एक फॉर्म पर जाकर वहां उगने वाले तरह- तरह के फूल लाता था। उनकी बेटी फूलों को ऊपर कमरे में ले जाकर गुलदस्ते और मालाएं बनाया करती थी। फ़िर दोपहर ढलते ही वो अपने मां बाप को चाय पिला कर मंदिर के बाहर फूल बेचती थी।
बस फ़िर शाम होते ही उसका बूढ़ा बाप तांगे को तो एक पेड़ के नीचे खड़ा कर देता और शाम से ही लंबी तान कर सोता था।
दुकान से लौटी मां रात को उसे रोटी के लिए जगाती तो भी बूढ़ा कभी जागता, कभी करवटें बदल कर सोता ही रह जाता।
सब कहते थे कि बूढ़ा किसी नशे पत्ते की गिरफ्त में रहता था। सवेरे जल्दी जागने में कभी कोताही नहीं करता था लेकिन शाम होते ही उसकी आंखें पलटने लग जाती थीं।
उधर पुजारी का बेटा तन्मय अपनी स्कूली पढ़ाई छोड़ने के बाद से दिन भर इधर- उधर घूमा करता था।
एक दिन फल- सब्ज़ियों की दुकान के मालिक उस बूढ़े ने तन्मय के पिता को अपना तांगा सौंप दिया। कहता था अब मुझसे नहीं होता। इसे तू ले ले।
- अरे, पर मैं इसका क्या करूंगा? पंडित जी के पूछने पर बोला- अपने बेटे तन्नू को दे दे।
- तन्नू तो ख़ुद ही आवारा फिरता है। वो घोड़े का दाना- पानी कहां से जुटाएगा।
और बस, एक दिन बूढ़े ने नशे की नीम बेहोशी में जबरदस्त होश वाली बात कह दी। बिना किसी लाग लपेट के पंडित जी से बोला- तेरे छोकरे से मेरी बेटी की शादी कर दे और मेरे से दहेज़ में ये तांगा लेले। अब तेरा बेटा इसे चला कर अपनी रोटी भी कमाए और अपनी जोरू को फूल - पत्ती भी लाकर दे।
तो ये बात थी जो खुद तन्मय ने मुझे शाम को उसकी छत पर बैठे- बैठे सुना डाली।
मैंने तन्मय से पूछा- लेकिन ये तो अच्छी बात है फ़िर तुम मेरे पास काम मांगने के लिए अपना घर छोड़ कर क्यों आए थे? तुम्हारा तो बसा- बसाया घर है, जमा- जमाया रोजगार!
तन्मय ज़ोर से हंसा। फ़िर बोला- जो कहानी मैंने आपको सुनाई वो पूरी कहां है?
मैं आश्चर्य से मुंह फाड़े देखने लगा। तब उसने मुझे बताया कि जिस दिन लड़की के बाप ने आकर मेरे पिता को तांगा सौंपा, उसी शाम चिमनी घर से भाग गई।
- चिमनी? चिमनी कौन? मैंने हैरानी से पूछा।