बैंगन - 15 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बैंगन - 15

आप समझ ही गए होंगे कि क्या हुआ?
यदि नहीं, तो चलिए मैं बता देता हूं। आपको बताना ज़रूरी है क्योंकि आप ही तो पूरी कहानी के दौरान साथ चल रहे हैं।
तो जिस बंगले के बाहर सुबह के धुंधलके में तांगा आकर रुका था वो और कोई नहीं बल्कि मेरे भाई का वही बंगला था जो विदेश से लौटने के बाद उन्होंने ख़रीदा था और जिसमें पिछले दिनों मैं जाकर भाई के परिवार से मिल कर आया था। और आपको तो मालूम ही है कि वहां मेरे साथ क्या- क्या अजीबो - गरीब घटनाएं घटीं तथा किस तरह मेरा अपमान करके मुझे झूटा सिद्ध किया गया।
तो अख़बार में ये खबर पढ़ कर मेरा शक और भी गहरा हो गया कि ज़रूर मेरा भाई किसी गैर कानूनी काम या घोटाले में शामिल है। मैंने सच्चाई जानने के ख्याल से जब अपने स्तर पर तहक़ीकात करने का मानस बनाया तो मुझे मेरी मां और पत्नी से ये सुनने को मिला कि मैं भाई की तरक्की से जल रहा हूं इसीलिए तिल का ताड़ बना रहा हूं।
बस, इसीलिए मैंने ठान लिया कि मैं हार नहीं मानूंगा और अपने तरीके से ये पता लगा कर ही रहूंगा कि भाई की सफ़लता कितनी सच्ची है और उसके पीछे पुलिस क्यों पड़ी है?
इससे पहले कि कहानी आगे बढ़े, मुझे आपको एक राज़ की बात बतानी है।
राज की बात ये है कि तांगे पर रोज़ सुबह जाकर ताज़ा गुलदस्ते बेचने वाला ये नवयुवक मेरा ही आदमी है।
मैं तो अभी अपने ही शहर में हूं, पर इस युवक का घर मेरे भाई के शहर में ही है। घर भी क्या, एक मंदिर के अहाते में बने छोटे से घर में ये अपने पिता के साथ रहता है।
मेरा छोटा सा शहर भाई के तेज़ी से बढ़ते महानगर से लगभग सौ किलोमीटर के फासले पर है।
फूल वाला ये युवक एक मंदिर के पुजारी का बेटा है जो कुछ महीनों पहले एक बार मेरे पास काम मांगने के लिए मेरी दुकान में आया था। मैं उसे अच्छे वेतन पर कोई स्थाई रोजगार तो नहीं दे सका था पर उसके व्यवहार और मजबूरी को देखते हुए मैंने उसे अपने यहां रख ज़रूर लिया था। लड़के की मजबूरी ये थी कि वह अपने पिता से लड़ कर अपना घर छोड़ कर मेरे पास काम मांगने आया था। लड़का समझदार था और जल्दी ही मेरा विश्वस्त बन गया। इसीलिए मैंने उसे अपने इस गोपनीय मिशन में अपना भागीदार सहयोगी बनाया।
दो चार दिन ही गुज़रे होंगे कि मैं फ़िर सुबह की उसी ट्रेन से भाई के शहर जा रहा था।
इस बार मैंने भाई को अपने आने की कोई खबर नहीं दी थी और न ही अपने घर पर पत्नी और मां को ये बताया था कि मैं भाई से मिलने जा रहा हूं। बताने का कोई मतलब भी नहीं था। बताने से वे दोनों ये थोड़े ही समझतीं कि मैं भाई के परिवार की ख़ैर खबर लेने और उनसे मिलने जा रहा हूं। वो तो यही मानतीं कि मैं बस देखने जा रहा हूं कि भाई ने इतनी दौलत कैसे कमाई। उनकी निगाह में तो मैं भाई से जल रहा था न?
इसीलिए मैंने उनसे ये झूठ बोला था कि मैं अपनी दुकान के लिए कहीं माल खरीदने के लिए जा रहा हूं। मैंने उन्हें ये भी बता दिया था कि मुझे कुछ दिन लगेंगे।
ट्रेन समय पर ही थी और मैं आराम से पहुंच गया।