(17)
फोन आने के बाद मुकेश की नींद उड़ गई। वह डर गया था। उसे अपने से अधिक राजेश्वरी और माधवी की फ़िक्र थी। उसके मन में पहली बात यही आई कि उसे मुंबई से कहीं दूर चले जाना चाहिए। वह सोचने लगा कि कहाँ जा सकता है। उसे दिल्ली में रहने वाले अपने रिश्ते के चाचा की याद आई। उस समय घबराहट में और अधिक सोच नहीं पा रहा था। उसने भागकर दिल्ली जाने का फैसला कर लिया।
उसने राजेश्वरी को उठाकर सारी बात बताई। उससे कहा कि जितनी जल्दी हो सके निकलने की तैयारी करे। राजेश्वरी ने तीनों के कुछ कपड़े और कुछ पैसे रख लिए। मुकेश ने एटीएम कार्ड और ज़रूरी दस्तावेज़ रख लिए। माधवी को उठाकर तैयार किया और तीनों घर से निकल गए।
ट्रेन में बैठकर मुकेश को लगा कि उसके दोस्त ने दिल्ली की ट्रेन पर चढ़ते हुए देख लिया था। इसलिए वहाँ जाना ठीक नहीं है। उसने जलगांव में उतर कर एक सस्ते से होटल में रहकर सोचा कि कहाँ जाना है। कोई उसका पता ना कर सके इसके लिए उसने अपने मोबाइल से ज़रूरी चीज़ें डिलीट कर दीं। सिम कार्ड निकाल कर तोड़ दिया। मोबाइल को तोड़ कर फेंक दिया।
राजेश्वरी ने सुझाव दिया कि वो लोग नवापुर चलें। वह दोनों को लेकर यहाँ आ गया। ललित ने उन्हें एक छोटा सा घर रहने के लिए दिलवा दिया। घर से तो बहुत कम पैसे लेकर चले थे। जिस अकाउंट का एटीएम था उसमें भी अधिक पैसे नहीं थे। मकान लेने और ज़रुरी सामान खरीदने में बहुत सा पैसा लग गया। मुकेश को एक फोन और सिम कार्ड भी लेना पड़ा।
इसलिए आज वह ललित के साथ उसके ठेकेदार से मिलने गया था। उसे ठेकेदार की गाड़ी चलाने का काम मिल गया। कुछ हद तक मुकेश को तसल्ली मिली थी। लेकिन वह भी उन सवालों से परेशान था जो राजेश्वरी उठा रही थी।
उसने इतने सालों की मेहनत से अपनी गृहस्थी बनाई थी। केशव चॉल में अपनी खोली ले ली थी। अपनी बेटी माधवी को वह बहुत चाहता था। उसको लेकर उसके मन में कई सपने थे। वह चाहता था कि माधवी खूब पढ़े। पढ़ लिख कर उसका और राजेश्वरी का नाम रौशन करे। इसलिए उसे पढ़ा रहा था। लेकिन अब माधवी की पढ़ाई भी छूट गई थी। इस बात का उसे सबसे अधिक दुख था।
वह सोच रहा था कि आखिर कब तक ऐसे चलेगा। उसे कुछ तो करना ही पड़ेगा। मुंबई की उसे कोई खबर नहीं थी। वह नहीं जानता था कि अंजन की जान बची या नहीं। उसने डर की वजह से मुंबई में किसी से संपर्क नहीं किया था।
वह यह भी नहीं जानता था कि अंजन पर हमला करने वाला कौन था। वह यह सोचकर डर गया था कि उसे फोन करने वाले को यह पता था कि वह अंजन को हॉस्पिटल ले गया था। उसके पास उसका नंबर भी था। इसलिए घबराहट में मुकेश ने जल्दी से मुंबई छोड़ दी थी।
मुकेश ने एक बार फिर माधवी के सर पर हाथ फेरा। उसे नींद नहीं आ रही थी। वह धीरे से उठा और दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गया। मकान के बाहर एक नीम का पेड़ था। वह उसके नीचे जाकर बैठ गया।
वह पेड़ के नीचे बैठा था। उसके सामने कुछ कदम पर एक टूटी सी दीवार थी। अचानक उसे लगा जैसे कि दीवार के उस तरफ से कोई उसे घूर रहा है। उसने ध्यान से देखा तो सचमुच कोई था। वह बुरी तरह डर गया। उठकर अंदर की तरफ भागने लगा। उस आदमी ने चिल्लाकर कहा,
"रुको मुकेश..."
मुकेश डर कर वहीं रुक गया। वह आदमी उसके पास आकर बोला,
"मेरा नाम एंथनी जैकब है। अंजन सर ने तुम्हें तलाशने के लिए कहा था।"
अंजन का नाम सुनकर मुकेश कुछ शांत हुआ। उसने पूँछा,
"अंजन साहब बच गए ?"
"हाँ... तभी तो उन्होंने तुम्हें ढूंढ़ने के लिए कहा।"
मुकेश ने एंथनी की तरफ देखकर कहा,
"तुम्हें सचमुच अंजन साहब ने भेजा है। मैं कैसे यकीन करूँ ?"
एंथनी ने कहा,
"तुमको लगता है कि मैं उनका आदमी हो सकता हूँ जिनसे डर कर तुम भागे थे।"
मुकेश ने धीरे से कहा,
"हाँ...."
एंथनी ने जवाब देते हुए इधर उधर देखकर कहा,
"अगर ऐसा होता तो मैं इतनी देर तुमसे बात क्यों करता। तुम्हें मार देता। अंदर जाकर तुम्हारी बीवी और बेटी को भी मार देता।"
मुकेश को उसकी बात में दम लगा। एंथनी ने कहा,
"अंजन सर के कहने पर ही मैं तुम्हें ढूंढ़ता हुआ यहाँ आया हूँ।"
मुकेश ने आश्चर्य से कहा,
"तुम्हें मेरे यहाँ होने का पता कैसे चला ?"
एंथनी ने उसे घूर कर देखा। वह बोला,
"बताया ना एंथनी जैकब नाम है मेरा। माना हुआ जासूस हूँ।"
मुकेश ने भी उसे अच्छी तरह से देखा। उसके बाद बोला,
"फिर भी कुछ तो होगा जिसके सहारे तुम यहाँ तक आ गए।"
अपने सर की तरफ उंगली दिखाते हुए एंथनी बोला,
"अपने दिमाग के सहारे। कैसे वह बाद में बताऊँगा। मुझे प्यास लगी है। पानी पिला दो।"
मुकेश ने उससे कहा कि वह ठहरे। वह अंदर से पानी लेकर आता है। वह दरवाज़े की तरफ बढ़ा ही था कि राजेश्वरी दरवाज़ा खोलकर बाहर आई। वह उससे कुछ कहने ही जा रही थी कि एंथनी को देखकर रुक गई। उसके चेहरे पर डर देखकर मुकेश ने आगे बढ़कर उसे सारी बात बताई। कुछ देर तक वह अविश्वास के साथ एंथनी की तरफ देखती रही। एंथनी ने कहा,
"आपके पति सही कह रहे हैं। मैं आप लोगों को नुकसान पहुँचाने नहीं बल्कि आप लोगों की मदद करने आया हूँ। मुझे प्यास लगी है। थोड़ा पानी पिला दीजिए।"
राजेश्वरी अंदर गई और एक गिलास पानी लेकर आई। एंथनी ने पानी पीकर उसे धन्यवाद दिया। मुकेश को एंथनी पर पूरा यकीन हो गया था। उसने राजेश्वरी से कहा कि वह एंथनी के लिए चाय बना दे। वह मान गई। उसने अंदर से बैठने के लिए प्लास्टिक के दो मोंढे़ लाकर दिए। एंथनी और मुकेश बैठ गए। मुकेश ने कहा,
"अब बताओ कि मुझे कैसे ढूंढ़ा ?"
एंथनी ने समझाया,
"तुम दिल्ली की ट्रेन पर चढ़े थे लेकिन दिल्ली नहीं पहुँचे। इसका मतलब था कि ट्रेन में चढ़ने के बाद तुमने इरादा बदल दिया था। मैंने अंदाजा लगाया कि तुम बीच में ही कहीं उतर गए होगे। ट्रेन स्टेशन से चलकर जलगांव में रुकती है। मैंने दिमाग लगाया कि अगर उतरे होंगे तो यहीं उतरे होगे। उसके बाद मैंने सोचा कि यहाँ उतर कर आगे क्या करना है सोचा होगा। इसके लिए आसपास ही किसी होटल में ठहरे होगे। मैंने तुम्हारी तस्वीर के साथ आसपास के होटलों में पूँछताछ की तो पता चला कि एक होटल में तुम परिवार के साथ ठहरे थे लेकिन अगले ही दिन चले गए।"
मुकेश एंथनी को ध्यान से देख रहा था। वह वैसा बिल्कुल भी नहीं था जैसा फिल्मों और टीवी में जासूस को दिखाया जाता था। वह बहुत ही साधारण सा दिखने वाला आदमी था। लेकिन जो वह बता रहा था उससे मुकेश उसकी बुद्धी का कायल हो गया था। उसने कहा,
"अब तक तो तुमने सब ठीक ही बताया है। लेकिन यह बताओ कि तुम्हें कैसे पता चला कि मैं अपने परिवार के साथ नवापुर आया हूँ ? मैं यहाँ रह रहा हूँ यह कैसे पता चला ?"
राजेश्वरी चाय बनाकर ले आई थी। साथ में कुछ बिस्कुट थे। एंथनी ने बिस्कुट की प्लेट और अपनी चाय पकड़ ली। एक बिस्कुट को चाय में डुबोकर खाया। फिर एक घूंट चाय पीकर बोला,
"बहुत अच्छी चाय बनाई है। बहुत मन था चाय पीने का।"
उसने राजेश्वरी की तरफ देखकर कहा,
"थैंक्यू....."
उसके बाद एक और बिस्कुट चाय में डुबोते हुए बोला,
"तुम होटल से चले गए तो मैंने अंदाजा लगाया कि ज़रूर जलगांव छोड़कर बाहर गए होगे। कहाँ और कैसे इस बात पर दिमाग लगाना शुरू किया। दिमाग में आया कि कहीं जाने के लिए ट्रेन ही पकड़ी होगी। स्टेशन पर आकर फिर पूँछताछ की। किस्मत अच्छी थी एक कुली ने तुम्हें नवापुर की गाड़ी में चढ़ते देखा था।"
एंथनी रुका उसने दो बिस्कुट चाय में डुबोकर खाए। फिर दो चार घूंट चाय पी। मुकेश अपनी चाय पीते हुए उसे बड़े ध्यान से देख रहा था। वह सोच रहा था कि एंथनी को इस तरह बिस्कुट खाते देखकर कौन उसे जासूस कह सकता है। लेकिन अंजन ऐसे वैसे को नहीं चुनता है। यह जैसी भी हरकत कर रहा हो पर दिमाग का तेज़ है। एंथनी ने पहले इत्मीनान से सारे बिस्कुट और चाय खत्म की। प्लेट और कप राजेश्वरी की तरफ बढ़ाते हुए उसे एक बार फिर धन्यवाद दिया। मुकेश ने भी अपना कप पकड़ाते हुए कहा,
"अब तुम जाकर आराम करो। मुझे कुछ बात करनी है।"
राजेश्वरी अंदर चली गई। मुकेश ने एंथनी की तरफ देखा। एंथनी बोला,
"नवापुर आने के बाद तुम्हें फिर तलाशना शुरू किया। कुछ पता नहीं चल रहा था। आज एक बार फिर किस्मत काम कर गई। एक चाय की दुकान पर खड़ा चाय पी रहा था। तभी तुम एक ठेकेदार के दफ्तर से किसी के साथ निकलते दिखे। जब तक कुछ समझकर तुम तक पहुँचता तुम उस आदमी की मोटरसाइकिल पर बैठ कर निकल गए थे। एक बार फिर दिमाग लगाया। घुस गया ठेकेदार के दफ्तर में। अपने आप को तुम्हारा रिश्तेदार बता कर पूँछताछ की। पता चला कि तुम किसी ललित के साथ काम मांगने आए थे। ललित का पता लिया। यहाँ आया तुम्हारे बारे में पूँछा तो तुम्हारे घर का पता चल गया। मैं सोच रहा था कि तुम्हारे घर का दरवाज़ा खटखटाऊँ कि तुम खुद ही बाहर आकर पेड़ के नीचे बैठ गए।"
मुकेश को यह तो पता चल गया था कि एंथनी उस तक कैसे पहुँचा। पर अब उसके दिमाग में दूसरा सवाल था। अंजन ने उसे तलाशने के लिए एंथनी को क्यों भेजा। अंजन उससे क्या चाहता है। मुकेश ने अपने मन में उठ रहे सवाल का जवाब एंथनी से मांगा।
एंथनी ने जवाब के बदले उससे सवाल कर दिया,
"क्या तुम अंजन सर पर हमला करने वाले को जानते हो ?"
अब मुकेश को समझ आ गया था कि क्यों अंजन ने एंथनी को उसे ढूंढ़ने के लिए कहा था। उसने ना में सर हिला दिया।