Risky Love - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

रिस्की लव - 15



(15)

विनोद ने मुंबई लौट कर नफीस को सारी बात बताई। विनोद को लग रहा था कि सारा खेल पंकज का रचाया हुआ था। लेकिन नफीस को अभी भी लग रहा था कि अंजन पर हमला पंकज ने नहीं करवाया था। उसने अपना तर्क देते हुए कहा,
"विनोद अगर हमला पंकज ने करवाया होता तो वह बिना इस बात की पूरी तसल्ली किए कि अंजन मर गया है बीच हाउस से ना जाता। यह हमला किसी और ने करवाया है। उसकी अंजन से बहुत गहरी दुश्मनी है। उसने अंजन पर हमला करवाया और इसकी खबर भी बाहर नहीं आने दी।"
विनोद ने अपना तर्क रखा,
"सर फिर उसने बिना तसल्ली किए अंजन को क्यों छोड़ दिया ?"
"उसने अपना काम पक्का किया था। अंजन का बच जाना सिर्फ उसकी किस्मत है। उस हमलावर को नहीं पता था कि अंजन का ड्राइवर मुकेश भी वहाँ है। उसने अंजन के सीने पर गोली चलाई। उसका बचना असंभव जानकर चला गया।‌ बाद में मुकेश ने अंजन को हॉस्पिटल पहुँचा दिया। सोचो अगर पंकज ने हमला कराया होता तो वह मुकेश को छोड़ता नहीं। इसका मतलब हमला अचानक हुआ। वह मीरा को लेकर भाग गया। शायद वह मीरा को अपना बनाना चाहता होगा। इसलिए उसे कैद करके रखा होगा।"
विनोद को उसका तर्क ठीक लगा। वह कुछ सोचकर बोला,
"सर घूम फिरकर बात फिर मुकेश पर आ गई है। ज़रूर वह हमलावर के डर से ही भागा है। वह जानता होगा कि अंजन पर हमला किसने काराया था।"
नफीस भी किसी विचार में मग्न था। वह सोच रहा था कि मुकेश आखिर दिल्ली ना जाकर कहाँ चला गया होगा।

वैन अंजन के नए बन रहे रिज़ार्ट पर आकर रुकी। पंकज और मीरा को एक आधी बनी हुई बिल्डिंग में ले जाया गया। एक बहुत बड़ा सा हॉल था। उसके एक कोने में अंजन एक कुर्सी पर बैठा था। उसे देखते ही मीरा भागकर उसके पास गई। उसकी आँखों में आंसू थे।‌
अंजन ने एक ढीली सी शर्ट पहन रखी थी। उसकी छाती का घाव अभी पूरी तरह से नहीं भरा था। मीरा ने आगे बढ़कर धीरे से उस जगह हाथ रखा जहाँ घाव था। वह बोली,
"मुझे तुम्हारे आदमी ने बताया कि दिल के पास गोली लगी थी। अब कैसे हो ?"
अंजन ने उसके हाथ को चूमते हुए कहा,
"मैं ठीक हूँ.... तुम बताओ इस हरामखोर ने तुम्हारे साथ कोई ज्यादती तो नहीं की।"
अंजन पंकज की तरफ खूनी निगाहों से घूर रहा था। मीरा ने कहा,
"मंसूबे तो इसने बहुत पाल रखे थे। लेकिन तुमने होने नहीं दिया।"
कहकर वह उसके कंधे पर सर रखकर रोने लगी। अंजन ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरकर कहा,
"तुम बंगले पर जाकर आराम करो। मैं इससे निपट कर आता हूँ।"
अंजन ने अपने आदमी को इशारा किया। वह मीरा को लेकर चला गया। उसके जाने के बाद अंजन अपनी कुर्सी पर वापस बैठ गया। उसके आदमी ने पंकज को धक्का दिया तो वह उसके कदमों पर जाकर गिरा। वह गिड़गिड़ाते हुए बोला,
"भाई मुझे माफ कर दो। कितने सालों का साथ है हमारा। मुझसे गलती हो गई।"
अंजन कुछ देर तक उसे गुस्से से घूरता रहा। उसके बाद उसे एक लात खींचकर मारी। इससे उसके ज़ख्म पर भी दर्द हुआ। पर उसे सहते हुए उसने कहा,
"इतने सालों का साथ अब याद आ रहा है। जब मीरा पर गंदी नज़र डाली तब याद नहीं था। जब मुझ पर हमला करवाया तब याद नहीं था।"
पंकज ने रोते हुए कहा,
"भाई भाभी पर बुरी नज़र डालकर पाप किया है लेकिन आप पर हमला नहीं करवाया है।"
"तुमने नहीं तो किसने करवाया है ?"
पंकज ने उसे उस दिन के अपने प्लान और जो कुछ घटा उसके बारे में सब बताया। उसे सुनने के बाद अंजन ने कहा,
"मुकेश कहाँ है ?"
"मुझे नहीं पता है भाई। मुझे बस इतना पता चला था कि वह मुंबई से दिल्ली जाने वाली ट्रेन पर चढ़ा था।‌ इसलिए मैंने अपने आदमी यह सोचकर दिल्ली भेजे थे कि उसे ढूंढ़कर असली हमलावर के बारे में पूँछूँगा। शायद उसे कुछ पता हो। पर मेरे आदमियों को वह दिल्ली में बहुत तलाशने पर भी नहीं मिला।"
अंजन ने पूँछा,
"मुकेश को दिल्ली की ट्रेन में चढ़ते तुम्हारे आदमियों ने देखा था।"
"नहीं भाई उन्होंने मुकेश के एक साथी से सुना था कि जब वह किसी को दिल्ली की गाड़ी में बैठाने के लिए गया था, तो उसने मुकेश को अपने परिवार के साथ गाड़ी पर चढ़ते देखा था। लेकिन जब तक वह कुछ कहता ट्रेन चलने लगी। इसलिए उसने आवाज़ नहीं दी।"
"मुकेश के किस साथी ने यह सूचना दी थी ?"
पंकज ने दिमाग पर ज़ोर डालते हुए कहा,
"यह तो मैंने पूँछा नहीं था।"
अंजन के चेहरे पर तंज़ भरी मुस्कान खिल गई। उसने कहा,
"तुम सोचते हो कि तुम मेरी बराबरी कर सकते हो। इसलिए मुझे रास्ते से हटाना चाहते थे। पर देख लो तुम कितने होशियार हो। जो खबर तुम्हें मिली उसकी सच्चाई भी नहीं परख पाए। यह भी नहीं पता कि खबर देने वाला था कौन।"
पंकज चुपचाप सिर झुकाए बैठा था। इस समय वह कुछ कहने की स्थिति में नहीं था। अंजन ने अपनी गन उसकी ओर तान दी। पंकज समझ गया कि अब उसका अंत आ गया। वह कुछ नहीं बोला।
एक गोली ने उसके माथे के बीच सुराख बना दिया।‌
अंजन ने एक बार फर्श पर पड़ी पंकज की लाश को देखा। फिर अपने साथी को निर्देश दिया कि ‌लाश को ठिकाने लगा दे।
अपने बंगले की तरफ जाते हुए अंजन ने एंथनी जैकब से बात की। उसे मुकेश का पता लगाने को कहा।

मीरा कई दिनों के बाद नहाई थी। उसे बहुत अच्छा लग रहा था। इसलिए बाथरोब में ही अपने बेड पर लेट गई। आँखें बंद कर वह कुछ सोच रही थी। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। नौकर ने बाहर से कहा,
"मैम आपके लिए खाना लगा दिया है।"
"ठीक है जाओ.... मैं आती हूँ।"
मीरा उठी। वार्डरोब में उसके लिए कुछ नए कपड़े सही तरह से लगाए गए थे। वह यह सोचकर मुस्कुराई कि अंजन को उसका इंतज़ार था। तभी उसके लिए कपड़े मंगाकर करीने से वार्डरोब में सजा दिए थे। उसने उनमें से एक ड्रेस चुनी। उसे पहन कर डाइनिंग टेबल पर आई। नौकर उसके लिए प्लेट लगा रहा था तभी अंजन भी आ गया। उसने मीरा को देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। मीरा भी मुस्कुरा दी। वह उसके पास बैठने जा रहा था कि तभी डॉक्टर मेहरा का फोन आ गया। उसने फोन उठा लिया। डॉक्टर मेहरा ने बताया कि नर्स का फोन आया था। उसने बताया कि वह मना करने के बावजूद भी बाहर चला गया है। उन्होंने कुछ सख्त लहज़े में उसे समझाया कि अभी वह पूरी तरह ठीक नहीं है। अतः उसे सावधानी बरतनी होगी।
अंजन के ज़ख्म में लात मारते समय खिंचाव आ गया था। इसलिए दर्द हो रहा था। उसने मीरा से कहा कि वह खाना खाकर अपने कमरे में आराम करे। वह कुछ देर में उसके पास आएगा।

मीरा के मिल जाने से अंजन बहुत खुश था। वह उसके बारे में ही सोच रहा था। नर्स अंजन की ड्रेसिंग कर रही थी। इतने दिनों में वह कुछ खुल गई थी। इसलिए बोली,
"सर आपने मेरी बात नहीं मानी। बाहर चले गए। अभी घाव भरने में कुछ समय और है।"
कोई और समय होता तो शायद अंजन उसे घूर कर देखता। पर आज उसका मूड अच्छा था। उसने कहा,
"ज़रूरी ना होता तो बात मान लेता।"
नर्स ने ड्रेसिंग पूरी की और उससे कहा कि वह खाना खा ले। उसके बाद वह उसे दवा खिलाएगी। अंजन ने उससे कहा कि वह घर जाए। दवा उसे दे दे। वह अपने आप खा लेगा।

अंजन ने मीरा के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। मीरा ने उठकर दरवाज़ा खोल दिया। अंजन अंदर जाकर बैठ गया। मीरा ने कहा,
"थैंक्यू...."
अंजन ने कहा,
"किस बात के लिए ?"
मीरा ने बैठते हुए कहा,
"मेरे आराम का खयाल रखने के लिए। बहुत खूबसूरत ड्रेसेज़ हैं।"
अंजन उठकर उसके पास आ गया। उसका हाथ पकड़ कर बोला,
"मुझे मौका दो। मैं तुम्हें दुनिया की हर खुशी दूँगा।"
मीरा ने अपना हाथ छुड़ा लिया। उसके इस व्यवहार पर अंजन ने कहा,
"क्या बात है ? नाराज़ हो मुझसे ?"
मीरा ने बेरुखी दिखाते हुए कहा,
"क्यों... नहीं होना चाहिए क्या ?"
अंजन वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गया। मीरा ने कहा,
"मुझसे छिपाया क्यों ?"
अंजन ने कहा,
"क्या छिपाया है मैंने ?"
"अपनी असलियत।"
उसकी बात पर अंजन चुप हो गया। मीरा ने कहा,
"तुम्हारा कंस्ट्रक्शन्स का बिज़नेस महज़ एक पर्दा है। तुम उसके पीछे क्या क्या करते हो बताओ।"
अंजन अभी भी कुछ नहीं बोला। मीरा उस पर बताने के लिए ज़ोर डालने लगी। अंजन को अच्छा नहीं लग रहा था। वह खीझकर बोला,
"कितने मन से तुम्हारे पास आया था कि उस दिन जो नहीं कह सका वह आज कहूँगा। तुम यह सब लेकर बैठ गईं।"
मीरा ने भी गुस्से से कहा,
"मेरे साथ ज़िंदगी बिताने की बात करते हो। लेकिन सच नहीं बोल सकते हो। जहाँ इतना किया है एक काम और कर दो। मेरे लंदन जाने का इंतज़ाम कर दो।"
उसकी बात सुनकर अंजन कुछ देर चुप बैठा रहा। उसके बाद उठकर दरवाज़े तक गया। बाहर जाने से पहले मीरा से बोला,
"इंतज़ाम होते ही खबर कर दूँगा।"
दरवाज़ा खोलकर वह चला गया। मीरा कुछ पल खड़ी रही। उसके बाद अपने बिस्तर पर लेट गई।
अंजन गुस्से में भरा अपने कमरे में पहुँचा। इतने दिनों के बाद मीरा उसे मिली थी। वह उसके साथ प्यार भरी बातें करना चाहता था। लेकिन मीरा ने उसके काम के बारे में पूँछकर उसका मूड खराब कर दिया था।
वह गुस्से से भरा हुआ था। उसकी कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। उसने अपनी अलमारी खोली। उसमें पीने का सामान रखा था। उसने बोतल उठाई और मुंह लगाकर पीने लगा।




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