रिस्की लव - 1 Ashish Kumar Trivedi द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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रिस्की लव - 1




(1)


हॉस्पिटल के आईसीयू में पूरी तरह शांति छाई हुई थी। एक नर्स मरीज़ के बेड के पास बैठी थी। कुछ देर पहले ही मरीज़ को ऑपरेशन थिएटर से आईसीयू में शिफ्ट किया गया था।
आईसीयू के बाहर मरीज़ का करीबी डॉक्टर से बात कर रहा था।
"डॉक्टर मेहरा भाई की हालत अब कैसी है ?"
डॉक्टर मेहरा ने जवाब दिया,
"पंकज भाई.... बड़ा मुश्किल ऑपरेशन था। बहुत समय लग गया। गोली दिल के बहुत करीब लगी थी। ऑपरेशन तो सक्सेसफुल रहा। पर खून बहुत बह गया था। कंडीशन क्रिटिकल है।"
"कितना समय लगेगा भाई को ठीक होने में ?"
"अभी तो अगले 24 घंटे बहुत क्रिटिकल हैं। पहले यह गुज़र जाएं। उसके बाद तो घाव को भरने में जितने भी दिन लगें।"
डॉक्टर मेहरा की बात सुनकर पंकज सोच में पड़ गया। डॉ मेहरा ने कहा,
"वैसे अगर उनके ड्राइवर मुकेश ने बहादुरी ना दिखाई होती और उन्हें लाने में ज़रा भी देर कर दी होती, तो उनका बचना मुश्किल था।"
पंकज ने कहा,
"डॉक्टर मेहरा एक बात का खयाल रखिएगा कि भाई की खबर बाहर ना जाने पाए।"
"पंकज भाई यह हॉस्पिटल भाई की वजह से ही है। कोई खबर बाहर नहीं जाएगी निश्चिंत रहिए।"
"ठीक है मैं चलता हूँ। आप पर भरोसा है कि भाई का इलाज अच्छी तरह होगा। उनकी देखभाल के लिए हर समय कोई ना कोई रहना चाहिए।"
"आप बिल्कुल चिंता ना करें। हमारे लिए भाई को सही सलामत घर भेजना ही सबसे ज़रूरी काम हैं। बस यह 24 घंटे ऊपर वाले के हाथ में हैं।"
पंकज चला गया। डॉक्टर मेहरा ने अपने जूनियर डॉक्टर को हिदायत दी कि मरीज़ पर नज़र रखे।

इस हॉस्पिटल का नाम कावेरी देवी मेमोरियल हॉस्पिटल था। यह शहर का माना हुआ हॉस्पिटल था। इसकी खासियत थी कि यह कावेरी देवी ट्रस्ट द्वारा संचालित था। यहाँ पाँच सितारा हॉस्पिटल की सुविधा आम आदमी को भी उपलब्ध थी।
इस हॅस्पिटल की स्थापना करने वाला अंजन विश्वकर्मा इसी हॉस्पिटल के आईसीयू में ज़िंदगी की लड़ाई लड़ रहा था।

हॉस्पिटल से आठ किलोमीटर की दूरी पर क्राइम रिपोर्टर नफीस रहमान अपने ऑफिस में बैठा अपने सहायक विनोद की खबर पर विचार कर रहा था। उसने विनोद से कहा,
"विनोद खबर पक्की है ना ?"
"सर पिछले चार सालों से आपके साथ काम कर रहा हूँ। बिना पुख्ता यकीन के कोई खबर आप तक नहीं लाऊँगा।"
नफीस अपनी कुर्सी से उठकर पंद्रहवीं मंज़िल के अपने ऑफिस की खिड़की से बाहर देखने लगा। नीचे सड़क पर जगमगाती रौशनी में शहर रोज़ की रफ्तार से ही दौड़ा रहा था। उस बात से बेखबर जो अभी विनोद ने उसे बताई थी।
विनोद ने कहा,
"सर कल रात दस से सवा दस के बीच यह वारदात हुई थी।"
नफीस अपनी जगह पर आकर बैठ गया। कुछ सोचकर वह बोला,
"शिमरिंग स्टार्स बीच हाउस अंजन विश्वकर्मा का है ?"
"जी सर...."
"वहाँ कौन कौन था उसके साथ ?"
"उसका खास आदमी पंकज सुर्वे था। सर सुनने में आया है कि वहाँ एक लड़की भी थी।"
"लड़की ?? कौन थी वो लड़की ?"

"सर वह पता नहीं चला।"
नफीस एक बार फिर सोचने लगा। वह अपने मन में कुछ हिसाब किताब लगा रहा था। विनोद ने पूँछा,
"क्या सोच रहे हैं सर ?"
"तुमने बताया कि अंजन को उसका ड्राइवर मुकेश बचा कर ले गया था। इसका मतलब यह है कि पंकज वहाँ से चला गया था। ज़रूर वह अंजन के कहने पर उस लड़की को वहाँ से निकाल कर ले गया होगा।"
"सर बात तो आपकी एकदम ठीक है।"
"विनोद वो लड़की अंजन के लिए बहुत खास है। तभी तो उसने अपने सबसे खास आदमी को उसे ले जाने के लिए कहा होगा।"
"सर मैंने तो ऐसे सोचा ही नहीं था।"
"विनोद...दो बातों का पता करो। वह लड़की कौन थी और ड्राइवर अंजन को लेकर कहाँ गया था ?"
"जी सर मैं इन दोनों बातों का पता लगाने की कोशिश करता हूँ।"
विनोद चला गया। नफीस अंजन के बारे में सोचने लगा। क्राइम रिपोर्टर नफीस ने पिछले पंद्रह सालों में अपराध की दुनिया में कई लोगों को चमकते और गायब होते देखा था। लेकिन अंजन विश्वकर्मा की कहानी उसे बड़ी दिलचस्प लगती थी। क्राइम रिपोर्टिंग के साथ साथ नफीस ने लेखन में भी हाथ आजमाया था। अपराध की दुनिया पर लिखी उसकी पहली किताब को लोगों ने बहुत पसंद किया था। इन दिनों वह अंजन के बारे में ही लिख रहा था।

नफीस याद कर रहा था बारह साल पहले के बाइस साल के अंजन को। जब पहली बार पुलिस स्टेशन में उसने अंजन को देखा था। वह अपने दोस्त इंस्पेक्टर नीरज से मिलने गया था। उसे एक केस के बारे में कुछ जानकारियां चाहिए थीं। जब वह पुलिस स्टेशन पहुँचा था तब इंस्पेक्टर नीरज दो जवान लड़कों को हड़का रहा था,
"बहुत गर्मी चढ़ी है तुम दोनों को। धमकी देने गए थे। पुलिस के डंडे पड़ेंगे तो सारी गर्मी उतर जाएगी।"
एक लड़का जो भरे हुए शरीर का था वह इंस्पेक्टर नीरज की बात सुनकर परेशान हो गया। उसने अपने साथी की तरफ देखा। उसके साथी ने आँखों ही आँखों में उसे आश्वासन दिया। उसका साथी बोला,
"इंस्पेक्टर साहब हम दोनों राजन भाई के आदमी हैं। आप हमें अधिक समय अपने पास रख नहीं पाएंगे।"
उसने बहुत आत्मविश्वास के साथ यह बात कही थी। इंस्पेक्टर नीरज ने उसे घूर कर देखा। उसके बाद गाल पर एक झन्नाटेदार झांपड़ रसीद कर दिया। झांपड़ ज़ोरदार था पर उस लड़के के चेहरे पर डर की जगह एक गुस्सा था।
वह सांवले रंग का दुबला पतला लड़का था। देखने से ऐसा हरगिज नहीं लगता था कि उसके भीतर एक आग छिपी हो सकती है।
उस लड़के का विश्वास सही निकला। राजन भाई का एक आदमी दोनों लड़कों की ज़मानत करा कर ले गया। तब नफीस को उन दोनों का नाम पता चला। दुबला पतला सांवला लड़का अंजन विश्वकर्मा था। उसके साथी का नाम पंकज सुर्वे था।
नफीस ने उस दिन उसकी आँखों में जो चिंगारी देखी थी वह इतनी बड़ी आग बन जाएगी उसे नहीं पता था।

नफीस का फोन बजा। स्क्रीन पर शाहीन का नाम देखकर वह मन ही मन बुदबुदाया,
'मारे गए.... मुझे तो याद ही नहीं रहा था।"

कार में नफीस और शाहीन थे‌। दोनों शाहीन की छोटी बहन नाज़नीन की बर्थडे पार्टी से लौट रहे थे। शाहीन अभी भी नाराज़ थी। नफीस ने कहा,
"अभी भी नाराज़ हो। ज़रूरी काम था इसलिए लेट हो गया था।"
शाहीन ने बाहर सड़क पर देखते हुए कहा,
"मैं कुछ कहूँ उसके अलावा तुम्हारे लिए सबकुछ ज़रूरी है।"
"कैसी बात कर रही हो ? तुमसे बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं है।"
"हर बार गलती करने के बाद तुम यही कहते हो।"
नफीस कुछ देर चुप रहा। वह शाहीन का मूड ठीक करने के बारे में सोच रहा था।‌ उसने कहा,
"बहुत दिन हुए कुल्फी नहीं खाई। चलो आज खाते हैं।"
शाहीन ने रुखाई से कहा,
"पार्टी में इतना कुछ खाया है। अब मन नहीं है। वैसे भी तुम मेरी सिचुएशन समझ नहीं पाओगे। अम्मी, अब्बू, भाईजान, भाभीजान, सारा आपा सब बार बार एक ही बात कर रहे थे। नफीस को फैमिली फंक्शन के लिए तो वक्त निकालना ही चाहिए।"
नफीस नाराज़ होते हुए बोला,
"आया तो था ना। तुम्हारी फैमिली के हर फंक्शन में शिरकत करता हूँ। पर मेरी सारी कोशिशों के बाद भी तुम्हारी फैमिली मुझे अपना नहीं पाई है।"
शाहीन ने उसे घूर कर देखा। वह बोली,
"वो सिर्फ मेरी फैमिली है। तुम भी तो उन्हें पूरी तरह अपना नहीं पाए।"
नफीस ने कुछ नहीं कहा। कुछ बोलने का मतलब झगड़ा बढ़ाना था। दोनों सारे रास्ते खामोश रहे।

घर पहुँचकर शाहीन अपने बेडरूम में चली गई। नफीस लिविंग रूम में अपना लैपटॉप लेकर बैठ गया। वह अंजन पर लिखी जा रही अपनी किताब के शुरुआती चैप्टर पढ़ने लगा।

छोटे मोटे अपराध करते हुए अंजन तेज़ी से अपराध की दुनिया में आगे बढ़ रहा था। सिर्फ दो साल में वह एक नाम बन गया था। अंजन के सर पर एक स्थानीय नेता रघुनाथ परिकर का हाथ था।
रघुनाथ का कंस्ट्रक्शन का बिज़नेस था परिकर कंस्ट्रक्शन्स। परिकर कंस्ट्रक्शन्स की निगाह उन पुरानी सोसाइटीज़ पर रहती थी जिनमें रीडेवलपमेंट की आवश्यकता होती थी।
रघुनाथ अपने रसूख और ताकत के बल पर यह निश्चित कर लेता था कि रीडेवलपमेंट का टेंडर गोकुल डेवलेपर्स को मिले जो उसके छोटे भाई यदुनाथ के नाम पर थी। एक बार प्रोजेक्ट हाथ आ जाता था तो फिर असली खेल शुरू होता था।
जानबूझकर रीडेवलपमेंट का काम शुरू करने में देर की जाती‌। इस दौरान लोगों को लालच देकर उनकी जगह खरीद ली जाती। जो नहीं मानता उसे डरा धमका कर काम किया जाता। अंजन रघुनाथ के लिए यही काम करता था।
दूसरी बार नफीस अंजन से एक पार्टी में मिला था।‌ अब उसका शरीर कुछ भर गया था। कपड़े पहनने का ढंग आ गया था। उसने ग्रे जींस और टाइट फिटिंग वाली टी शर्ट पर ब्राउन कलर का लैदर जैकेट पहन रखा था। बहुत आकर्षक लग रहा था।
हाथ में ड्रिंक लिए वह पार्टी में इधर उधर घूम रहा था। उसकी निगाहें पार्टी में आई लड़कियों पर थीं। वह उन्हें ही देख रहा था। नफीस ने बड़े ध्यान से देखा था। उसकी आँखों में उनके जिस्म के लिए कोई हवस नहीं थी। वह तो बस उनमें से अपने लिए एक गर्लफ्रेंड की तलाश कर रहा था जिसके साथ वह अच्छा वक्त बिता सके।
वह उन्हें दूर से ही देख रहा था। नज़दीक जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। वह जानता था कि भले ही उसने फैशनेबल कपड़े पहने हों पर उसके पास वह क्लास नहीं है।

बेडरूम का दरवाज़ा खुला। शाहीन ने आकर कहा,
"रात भर यहीं बैठोगे ?"
"बस आ रहा था।"
नफीस ने लैपटॉप बंद किया। शाहीन के पास आया। उसे गले लगाकर बोला,
"यू नो हाऊ मछ आई लव यू..."
शाहीन ने भी उसे अपनी बाहों में कस लिया।