आदमखोर Amulya Sharma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आदमखोर

हमेशा की तरह दिसंबर आते ही मेरे कॉलेज में विंटर वेकेशन घोषित हो गई और मै अगले ही दिन गांव की तरफ निकल पड़ा.जीरो रोड डिपो से सुबह सात बजे की बस पकड़ी और एक बजे मै घर पर था.
गांव की मिटटी में एक अजीब सी खुशबु होती है जो की तभी महसूस की जा सकती है जब आप बहुत दिनों बाद गाँव वापस आये हो. परमानेंट गांव में रहने वालो को ये खुशबु महसूस नहीं होती. बहुत दिनों बाद वापस घर आने का आनंद ही कुछ और होता जिसको शब्दो में बता पाना बहुत ही मुश्किल है।

घर पर आते ही , सबसे मिलने के बाद एक चेतानवी प्राप्त हुई कि रात होने के बाद बाहर निकलना मना है. मै तो अचंभित रह गया। ऐसा क्या हो गया की रात में बाहर नहीं जाने दिया जा रहा है? जरूर ही कोई ख़ास बात है."रात में बाहर निकलना क्यों मना है ?" मैंने चाचा जी से प्रश्न किया। " गांव में कोई जानवर आ गया है जो की बहुत से लोगो को घायल कर चुका है और बहुत सी भेड़ ,बकरियों को भी मार चुका है। इसीलिए रात होने के बाद घर से बाहर कोई नहीं निकलेगा। " उन्होंने आदेश सुनाया। मेरा मन बुझ सा गया। क्या -क्या प्लान बनाये थे कि रात में कल्लू की दुकान पर बैठा जायेगा और दीक्षित जी के कुछ और किस्से सुने जाएंगे। पर अब तो ऐसा होना बहुत ही मुश्किल था।

बड़े भाई साब से मंत्रणा की गई और रात में कल्लू की दूकान पर बैठने का प्लान बनाया गया. इसके बिना छुट्टियों का सारा मज़ा ही किरकिरा हो जायेगा। भाई साब ने आश्वस्त किया की कोई ना कोई रास्ता निकला जायेगा। शाम को घर में बर्तन मांजने वाली बाई आयी जो की पिछले बहुत वर्षो से घर से जुडी हुई थी. उसका घर भी गांव के अंदर था और गांव की खबरे बताने में उसे महारत हासिल थी.आते ही उसने दो -तीन घटनाओ के बारे में सभी को बताया।

सभी लोग भयभीत हो कर उसकी बाते सुनते रहे. "लेकिन क्या तुमने उस जानवर को देखा है या जिन लोगो के बारे में तुम बता रही हो , उनसे क्या तुम आज मिली थीं ?" मैंने उत्सुकतावश प्रश्न किया। "मै अगर उस जानवर के सामने आ गई होती तो क्या मै आज ये सब बताने के लिए यहाँ पर आती ?" बाई ने उल्टा मुझसे ही प्रश्न कर दिया। "मैंने इन घटनाओ के बारे में केवल सुना है और बहुत सारे लोगो ने भी ये बात बताई है। इसमें झूठ कुछ भी नहीं". उसने फिर कहा।मै असमंजस में पड़ गया।

"मतलब की अभी किसी ने उस जानवर को देखा भी नहीं है और उसने इतने लोगो को घायल भी कर दिया है ?" मै सोचने लगा.बाई बर्तन धो कर जल्दी जल्दी वापस अपने घर की ओर निकल गई। और शाम होते ही मेरे चाचा जी ने घर का गेट बंद करदिया। मेरे सारे अरमानो पर पानी फिर गया.अब कुछ करने को था नहीं, तो कुछ किताबे पलटी गई ,टीवी देखा गया और खाना खा कर मैं रजाई में घुस गया.मेरा कमरा घर की सीढ़ियों के पास था और छत पर कोई दरवाजा भी नहीं लगा था.

मै बताना भूल गया की मेरे गांव में एक पहाड़ी है जिसमे बहुत सी चट्टानें है। इन चट्टानों के बीच में बहुत सी गुफाएँ भी है जिनसे कोई भी आसानी से छिप कर बैठ सकता है.मेरा गांव इस पहाड़ी के चारो ओर बसा है.
मेरा घर पहाड़ के किनारे पर ही है। मतलब कि घर के पीछे से ही पहाड़ शुरू हो जाता है और इस वजह से छत और पहाड़ के बीच में कुछ ख़ास अंतर नहीं है. कोई भी थोड़ी सी मेहनत कर के आसानी से छत पर आ सकता है.और एक बार अगर कोई छत पर आ गया तो वह घर में भी आसानी से आ सकता था.ये सोच कर मेरे साँस रुक सी गई की अगर वो जानवरछत पर आ गया तो वो सीढ़ियों से नीचे भी आ सकता है.मैंने डर के मारे हनुमान चालीसा बोलनी शुरू कर दी.डर और ठण्ड के सम्मिलित असर की वजह से मुझे बाथरूम जाने की जरुरत महसूस होने लगी, जो की मैं हरगिज नहीं चाहता था.

किसी तरह आखिरकार नींद आ ही गई। लेकिन सुबह एक सरप्राइज मेरा इन्तजार कर रहा था।
सुबह जब मै जब बाहर आया तो देखा कि कल्लू की दुकान पर मजमा लगा हुआ था.बहुत सरे लोगो के बीच में कल्लू खड़ा था और कुछ बोल रहा था. मै झटपट दूकान की ओर लपका.

कल्लू ने पिछली रात उस जानवर का सामना किया था. यह सुन कर मै तो अचम्भित रह गया. "मतलब कि मेरा सोचना सही था की रात में वो जानवर घर की छत पर भी आ सकता था ". यह सोच कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए.
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"तो मै रात में पेशाब करने के लिए उठा तो देखता क्या हूँ कि पहाड़ की तरफ से कोई जीव मेरी और धीरे धीरे बढ़ रहा है। " कल्लू ने रहसयमयी अंदाज में बताया।

"मैंने लाठी उठाई और जोर से चिल्लाया- हा डा डा डा...."
"मेरी आवाज सुन कर वो जानवर मेरी और लपका। मै चारपाई पर खड़ा हो गया और जैसे ही वो मेरे पास आया , मैंने उसके सर पर लाठी से जोर से मारा " कल्लू ने वीर रस से ओत - प्रोत हो कर अपनी वीर गाथा सुनाई.

"मतलब की तुमने उस जानवर को देखा ?" मैंने कहा।

"देखा ? सारे को कल मारे देता लेकिन वो वापस भाग गवा पहाड़ की ओर " कल्लू दहाडा ।

यह बात मेरे लिए और चिंता जनक थी क्युकी वह जानवर अभी भी जिन्दा था और पहाड़ में ही कही छुपा था।

"लेकिन कल्लू , तुमने बहुत बहादुरी दिखाई !" मैंने कहा ।

"अरे भैया, बच गवा सारा ! मोहि बहुत अफ़सोस है या बात का " कल्लू ने दुखी हो कर कहा.
मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया क्युकी जिस जानवर को आज तक किसी ने नहीं देखा था , उसे मेरे मोहल्ले के वीर पुरुष श्री कल्लू ने देखा और केवल देखा ही नहीं , उसका सामना भी किया।
"वाह श्री कल्लू , वाह ! " मैंने कल्लू की और गर्व से देखा और वापस घर आ गया।
अगले दिन पता चला की गांव में वन विभाग के कुछ लोग आये हुवे है और वो उस जानवर को पकड़ कर ले जायेगे।
वन विभाग की टीम पूरे दिन पहाड़ में घूमती रही। उनके पास बन्दुक और जाल वगैरह भी था। पर सुबह से शाम हो गई लेकिन वन विभाग की टीम को कोई जानवर नहीं दिखा। उन्होंने पहाड़ की हर एक गुफा ढूंढ ली पर उस जानवर का कोई पता नहीं चला.
थक हार कर उन्होंने पूँछ -तांछ शुरू की की क्या किसी ने उस जानवर को देखा है ? लोगो ने एक सुर में बताया की गांव में केवल कल्लू ने ही उसे देखा है और केवल देखा ही नहीं , उसका सामना भी किया है।

वन विभाग वाले कल्लू की दूकान की ओर लपके। सारा दिन पहाड़ में ख़ाक छानने के बाद अब जा कर उनको कोई ढंग की खबर मिली थी।

"तो तुमनें उस जानवर को देखा है ? " वन विभाग के अफसर ने कल्लू से पूँछा। दिन भर पहाड़ में फिजूल में घूमने की थकावट और चिढ़ उसकी शकल में साफ़ देखी जा सकती थी।

"हां साहेब , देखा है " कल्लू ने सकपकाते हुए जवाब दिया।

" तुम उस को पहचान सकते हो ? " अफसर ने फिर पूंछा।

" बिलकुल साहेब " कल्लू ने कहा.
" ठीक है , तो लो , पहचानो इन फोटो में से कि वो कौन सा जानवर था ?" अफसर ने कल्लू के सामने एक फोटो एल्बम रखते हुए कहा।
" जी साहेब " कल्लू ने कहा और एल्बम को देखने लगा।
एल्बम में एक से एक भयानक जानवरो के चित्र थे। कुछ को कल्लू पहचानता था और कुछ को नहीं। एल्बम के पेज पलटते पलटते , अचानक कल्लू को एक फोटो दिखी और वो स्तब्ध रह गया।
" साहेब , यही जानवर रहा । " कल्लू की नसे तन गई। एक फोटो की तरफ इशारा करते हुए उसने कॉन्फिडेंस से कहा।
"पक्का ?" अफसर ने पूंछा।
"हां साहेब बिलकुल पक्का। यही रहा । " कल्लू ने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ कहा।

" साले , ये जानवर हिमालय में पाया जाता है और इसको हिम तेंदुवा कहते है " अफसर ने गुस्से में कहा।

"ये जानवर यहाँ आ ही नहीं सकता साले , भांग खा रखी है क्या तूने ?" एक दूसरे अफसर ने कहा।

कल्लू की बोलती बंद हो गई।

"ही ही ही ही...... साहेब , ऐसा ही कुछ रहा , वो रात के अँधेरे में ठीक से दिखिस नाही !"
एक गन्दी हंसी के साथ कल्लू ने खिसियाते हुए कहा !
" साले , अफवाह उडाता है ! जेल हो जाएगी साले !" अफसर ने घृणा से थूकते हुए कहा।

कल्लू का सारा वीर रस , उसकी दूकान की नाली के साथ बहते गंदे पानी में सड़क पर बह गया।
घर की बाई ने सारे गांव में कल्लू की फजीहत का प्रचार विद्युत गति से कर दिया।
उस रात भाई साब के साथ पुनः कल्लू की दूकान में हुमस कर बैठा गया और उसकी वीर गाथा की धज्जिया उड़ाई गई। जीवन का आनंद वापस आ गया था।

उस दिन के बाद किसी ने उस जानवर को नहीं देखा और ना ही गांव में कोई घटना हुई।