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अधूरा इश्क

आज फिर से वो दिखी थी, शायद दस साल बाद, नही उससे थोडा ज्यादा... उसका बदन पहले से थोडा सा भारी हो गया था..लेकिन चेहरे पर वही पुरानी मासूमियत मौजूद थी..जैसी स्कूल के दिनो मे होती थी।

जब पहली बार उसे स्कूल मे देखा था तब भी उस पर नजर ठहर सी गयी थी और आज अर्से बाद इस चेहरे को देखा है तो कमबख्त नजर उससे हट ही नही रही है।
करिशमा.. करिशमा शर्मा नाम था उसका... दोस्त लोग उसे खुशी कहते थे, और हम........हम तो कुछ कहते ही नही थे..क्योकी हमारी कभी बोलने की हिम्मत ही नही होती थी उससे...बस उसे देखते थे चोर नजरो से।

फिर एक दिन स्कूल आते हुए वह परेशान सी रास्ते मे खडी हुई दिखायी दी, उसकी साईकल खराब हो गयी थी। मैने दूर से ही उसे पहचान लिया, उसे ऐसे परेशान देख कर मेरे अंदर का दोस्त जागा, मन हुआ की उसे आगे बढकर उसकी परेशानियो को अपने कंधे पर उठा लिया जाये, तत्काल उसकी साईकल सही कराई जाये। लेकिन फिर एक अंजान डर ने मेरे अंदर के दोस्त को रोक लिया, शायद सही ही किया उसने क्योकी दो दिन पहले ही क्लास मे जबरन हेल्प करने के बहाने से दोस्ती आगे बढाने की कोशिश कर रहे चंदन को क्या लताड लगाई थी उसने... मुझे सबके सामने ऐसी लताड नही खानी थी, मुझे चंदन नही बनना था इसलिये मै तो सीधा ही चलता रहा अपनी राह पर।

तभी मुझ एक आवाज आयी, ‘हैलो....राहुल...हैलो...’ यह शब्द सुनते ही मै समझ गया था की ये किसकी आवाज है मेरा दिल बहुत जोर से धडका, मैने पलट कर देखा, चेहरे पर परेशानी लिये करिश्मा हाथ हिला कर मुझे पुकार रही थी। उसका थका हुआ चेहरा देखते ही मेरे हाथो ने दिमाग के कुछ आदेश देने से पहले ही जोर से ब्रेक लगा कर मेरी चलती हुई साईकल को रोक दिया।

‘अरे करीश्मा क्या हुआ’, सब कुछ जानकर भी अंजान बनते हुए मैने कहा

‘राहुल मेरी साईकल की चेन पता नही कैसे फस गयी ही, निकल ही नही रही है, क्या तुम मेरी हैल्प करोगे..प्लीज’, करिशमा ने कहा।

‘हेल्प और मै’, कमस से खुशी के मारे दिल डांस सा ही करने लगा था, लेकिन अपने अरमानो को खुद मे ही कैद करके मैने कहा, ‘हां..क्यो नही, अभी ठीक कर देता हू।‘

मै तत्काल अपनी साईकल से उतरा और अपने इंजीनीयरींग कौशल का परीचय देने लगा। सच मे ही बहुत बुरी तरह से फसी हुई थी चेन.. निकलने का नाम ही नही ले रही थी...लेकिन इस तरह उस खूबसूरत लडकी के सामने हार मानना भी तो नामुमकिन था, इसलिये अपना सारा जोर लगाकर मैने चैन निकाल दी, और करीशमा की साईकल ठीक कर दी।

‘थैक यू राहुल, तुमने तो मेरी हेल्प की अब मै तो स्कूल जा सकता हू लेकिन तुम शायद आज स्कूल नही जा सकोगे’

‘क्यो’, मैने आश्चर्य जताते हुए पूछा

‘मेरी हेल्प के चक्कर मे तुम्हारी शर्ट खराब हो गयी है’ उसने धीरे से कहा।

‘मैने खुद को देखा, सच मे मेरी शर्ट खराब हो चुकी थी, ‘हां शायद मै स्कूल नही जा सकूंगा..ठीक है करीशमा आप जाओ, मैने अपनी साईकल वापस घुमाते हुए कहा।

वह साईकल लेकर चलने लगी, फिर वो रूकी, ‘करीश्मा नही... 'खुशी', मेरे सभी दोस्त मुझे इसी नाम से बुलाते हैं’, खुशी ने मुस्कुराकर कहा।

‘औके, 'खुशी...’ कसम से यह नाम लेते हुए मन मे खुशी के लड्डू फूट रहे थे, यह खूबसूरत लडकी मुझे दोस्त समझती है, ये ही बहुत था मेरे लिये।

अगले दिन मैने स्कूल के रास्ते मे उसका इंतजार करता रहा लेकिन वह नही आयी, हारकर मै अकेला ही स्कूल पहुंचा। वहा खुशी पहले ही आ चुकी थी, आज उसके पापा उसे स्कूटर से छोडकर गये थे, शायद उसकी साईकल मे अभी भी कोई परेशानी थी।

मेरी नजर तो जाते ही उस पर टिक गयी थी, लेकिन जुवान ने खुद पहल करके बोलने से इंकार कर दिया था, इसलिये उसे देखकर भी नजरअंजाद करके मे क्लास मे पहुच गया था। अटेंडेस लग चुकी थी, और मैम को आने मे कुछ समय था। मेरे दोस्त मुझसे बाते कर रहे थे लेकिन मेरा मन तो खुशी से बात करने मे ही अटका हुआ था, अचानक से वह पलटी उसने मुझे देखा और मुस्कुरयी... बदले मे मै भी मुस्कुराया, उसने हाथ की घडी पर इशारा करके पूछा ‘इतना लेट कैसे हो गये?

मै बस मुस्कुराकर ही उसके सवाल को टाल दिया, अब ये तो नही कह सकता था की तुम्हारे इंतजार मे देर हो गयी।

हमारी नजरो की भाषा को मेरे दोस्त लोग भी पढ रहे थे, लेकिन गनीमत ये थी की किसी ने इसमे अपनी टांग नही अडायी। क्साल शुरू हो गयी, उस दिन पढने मै एक नया ही उत्साह सा था। लंच टाईम हुआ, सब खाना खा रहे थे लेकिन यहां तो भूख गायब ही थी, भूख थी तो अपनी नयी दोस्त से बाते करने की और लंच टाईम का समय मै खाने पर वेस्ट नही करना चाहता था। लेकिन खुशी ने रोज की तरह अपनी सहेलियो के साथ लंच किया, शायद वह मुझसे बात करने के लिये इतनी आतुर नही थी जितना मै था। मैने उसका वेट किया, खुद आगे बढकर बात नही की। थोडी देर बाद वह अपनी सहेलियो के साथ बहार आयी, उसने मुझे देखा, और बोली, ‘हैलो राहुल’,

‘हैलो, करीशमा’ मैने कहा

‘अब भी करीशमा, मैने कल बताया था ना की मेरे दोस्त मुझे खुशी कहते हैं’, उसने नारजगी दिखाते हुए कहा।

‘औह् हां, भूल गया, क्या करू पहले से करीशमा नाम ही जानता हू आपका तो बस वह ही याद रहा’, मैने ना समझ बनते हुए कहा, लेकिन सच तो यह है की मै उसके मुह से एक बार फिर अपने लिये दोस्त शब्द सुनकर उसकी और अपनी दोस्ती को कन्फर्म करना चाहता था।

‘अब तो जान गये हो ना मेरा नाम, अब मत भूलना क्योकी अगर फिर से तुमने मुझे करिशमा, कहा तो फिर हमारी दोस्ती खत्म’, उसने अपनी बडी सी आंखो को और बडा करते हुए कहा।

‘नही..नही..ऐसा कभी नही होगा’, सारी...मैन कहा।

मेरे सारी बोलने पर वह मुझे देखती रही फिर बोली, ‘तुमने मैने प्यार किया है’, मूवी देखी है

‘हां देखी है, कुछ दिन पहले टीवी पर देखी थी’, मैने कहा

‘तो तुम्हे याद होगा, की उसमे भाग्यश्री एक डायलाग कहती है, “दोस्ती मे नो सारी..नो थैंक्यू”.. उसने कहा

‘हां कहती है यह डायलाग वह’...मैने जवाव दिया

‘मै हमेशा इस डायलाग को फलो करती हू, और अगर तुम मेरे से दोस्ती रखना चाहते हो तो तुम भी इसे फालो करो, आज से “नो थैंक्यू नो सारी” समझे’...उसने हसते हुए कहा।

‘समझ गया मैडम और कोई रूल हो आपकी दोस्ती का तो बता दो..ताकी मै फिर से कोई रूल नही तोड सकूं’ मैने हसते हुए कहा।

‘नही आज के लिये इतना ही काफी है’...उसने कहा और हम दोनो हसने लगे।

हमारी दोस्ती उस दिन से शुरू हुई, सच बात तो यह उससे दोस्ती मेरा सपना था, सभी लडके उससे दोस्ती करना चाहते थे, लेकिन वह किसी को भी भाव नही देती थी, कभी किसी को नार्मल हाय, हैलो से आगे नही बढने देती थी।

पहले हम दोस्त बने, धीरे धीरे से बहुत अच्छे दोस्त और फाईनली हम एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त बन गये। वह मेरे बारे मै हर बात जानती थी, और मै उसके बारे मे, उसे कोई परेशानी ना हो मै हमेशा इस बात का ध्यान रखता था। उसके बिना मुझे स्कूल मुझे काटने को आता था...बहुत खालीपन लगता था, शायद वह भी मेरे बिना ऐसा ही महसूस करती थी क्योकी जिस दिन स्कूल ना आऊ या उसे ना मिलू उसके अगले दिन वो कम से कम दस बार मुझसे पूछती थी की कहा थे, कल क्यो नही आये, नही आना था तो पहले भी तो बता सकते थे।

हमारी दोस्ती इतनी क्लोज थी की मेरे सभी दोस्तो को लगता था की हमरा अफेयर चल रहा है। लेकिन ऐसा नही था, मै उसे मन ही मन चाहता था, लेकिन उसके लिये शायद मै एक दोस्त ही था, और मै उसकी दोस्ती कभी खोना नही चाहता था, जो चल रहा था उसे ऐसे ही चलने देना चहता था।

एक दिन खुशी स्कूल नही आयी थी, उसकी सहेली पिंकी ने बताया की उसे हल्का सा फीवर है। खुशी के बिना स्कूल टाईम काटना भी मुश्किल हो रहा था। उस दिन हमारी मैथ् की मैम भी नही आयी थी, परियड खाली था, सभी दोस्त खाली पिरियड मै बैठे हुए बात कर रहे थे, बातो से बाते निकल रही थी, और निकलते निकलते बात आ पहुची मेरे और खुशी के रिलेशन के बारे मे। दोस्तो को तो विश्वास था की मेरा उसके साथ अफेयर चल रहा है, और मै भी उनका विश्वास बनाये रखता था क्योकी भले ही झूठ सही लेकिन इस बहाने मै उन सभी की नजरो मै हीरो तो बना हुआ ही था।

‘अच्छा क्या चल रहा है तुम दोनो के बीच अभी’, अजय ने पूछा

‘क्यो तुझे पता नही है क्या’, मैने बेफ्रिकरी से कहा

‘हा जो चल रहा है वह तो मुझे पता है, लेकिन उससे आगे क्या चल रहा है’, अजय ने कहा

‘मतलब’, मैने नासमझ बनते हुए पूछा

‘मतलब, ये की इतने समय से इस खूबसूरत फूल को देख ही रहा है, या फिर कभी छुआ भी है इसे, कभी पाया भी है’, चंदन ने लगभग मेरी बेज्जती सी करते हुए कहा

‘मै उस फूल को देखता हू, या सूंघता हू, इससे तुझे क्या’, मैने नाराज होते हुए कहा

‘हा हा हा..मुझे क्या, अबे मुझे पहले ही पता था, ये बस ऐसे ही उसके पीछे लगा रहता है, इसने कभी कुछ करना तो दूर इसे छूने भी नही दिया होगा’, चंदन ने हसते हुए कहा।

‘नही ऐसा नही है’...मैने कहा

‘अच्छा ऐसा नही है तो कैसा है, बता हम सबको’, अजय ने चंदन के सुर मे सुर मिलाते हुए कहा।

उसकी बाते ना जाने क्यो मुझे अंदर तक चुभ गयी इसलिये मै जोश मे बोला, ‘मैने इस फूल को छुआ भी है और इसकी महक भी ली है, और जिसे देखकर तुम सिर्फ लार टपकाते हो, मैने इस मीठे रसगुल्ले को कई बार चखा है, अब कैसे चखा कब चला ये मै नही बताऊंगा’, मैने पूरे कान्फिडेंस के साथ झूठ बोलते हुए चंदन की हसी और उसका मुह बंद कर दिये।

मेरे यह शब्द कहने पर सारे दोस्तो मे एक दम सन्नाटा सा छा गया, क्लास की सबसे सुंदर लडकी को मैने पा लिया था, उन सभी को मेरी किस्मत से जलन हो रही थी, उनकी जलन उनके मुरझाये हुए चेहरो से ही महसूस की जा सकती थी।

पिरियड खत्म हो गया था, और इसकी के साथ हमारी बाते भी खत्म हो गयी थी, इस तरह एक झूठ के सहारे अपने दोस्तो की नजरो मे हीरो बनकर मै बहुत खुश था।

अगले दिन खुशी स्कूल आयी, उसका बुखार सही हो चुका था, हमेशा की तरह उसने आते ही मेरे से हाय-हैलो की, मैने उसकी तबियत के बारे मे पूछा। फिर रोज की तरह हम अपनी पढाई मे मशगूल हो गये।

लंच टाईम हुआ, मैने अपने दोस्तो के साथ खाना खाया और बहार लान मै बैठ गया, हम बाते ही कर रहे थे की तभी खुशी आयी,

‘हैलो खुशी’....मैने नार्मली कहा

उसने मुझसे कुछ नही कहा बस मेरी तरफ देखती रही, उसकी आंखे कुछ लाल सी थी, शायद वो उसकी नारजगी की निशानी थी, मै उसके इस रूप को देखकर अंदर से थोडा डर गया था, मैने कहा, ‘क्या हुआ?

‘तुम बताओ क्या हुआ?, उसने गुस्से से कहा

‘मै बताऊ क्या हुआ, मतलब? मैने आश्चर्य जताते हुए कहा,

‘मतलब ये की तुम बताओ की क्या हुआ, कल अपने दोस्तो को बहुत कुछ बता रहे थे तुम, अब बताओ क्या हुआ’, उसने गुससे से दांत पीसते हुए कहा

‘औह्ह, माँय गाड, ये कल की बात कर रही है, लगता है किसी ने कल की बाते बोल दी इसे, दोस्तो के बीच बोला गया एक झूठ यहां तक पहुंच गया। उसने सवाल का कोई जवाब नही था मुझ पर इसलिये बिना कुछ कहे ही मैने अपनी नजरे नीची कर ली, मेरे सारे दोस्त जिनके सामने मै हीरो बनता था वो सभी प्रशनवाचक नजरो से मुझे देख रहे थे।

‘बोलो अब, बोलो क्या हुआ’ खुशी ने फिर से कहा

‘सारी यार, लगता है तुम्हे कुछ गलतफहमी हुई है’, मैने खुशी को नार्मल करने की कोशिस करते हुए कहा।

‘हां गलतफहमी तो हुई है मुझे जो तुम्हे मैने दोस्त समझा, अपना सबसे अच्छा दोस्त समझा, लेकिन तुम भी औरो की तरह ही निकले। इस तरह मेरे बारे मे झूठा मजाक बना रहे हो अपने दोस्तो के सामने’ कहते हुए खुशी की आंखो मे आंसू आने लगे, शायद सभी ने पहली बार ही उसकी आंखो से आंसू गिरते हुए देखे थे।

सब शांत थे, मैने फिर हिम्मत करके कहा, ‘सॉरी खुशी मुझसे गलती हो गयी, प्लीज रो मत यार’

‘शट अप...खुशी ने रोते हुए कहा...अपनी सॉरी अपने पास रखो, मुझे तुम जैसे घटिया लडके से कोई मतलब नही ऱखना है। आज के बाद कभी मुझसे बोलना भी मत’ उसने गुस्से से मुझसे कहा और रोते हुए क्लास मे चली गयी।

मेरे कुछ दोस्त इस तरह खुशी के बारे मै गलत बोलने पर मुझे भला बुरा कह रहे थे तो कुछ मेरा मजाक बना रहे थे, लेकिन मुझे इस सब से कोई मतलब नही था, क्योकी खुशी के इन शब्दो से अचानक से मेरी सारी दुनिया ही तबाह हो गयी, मै पूरी तरह सदमे मे था।

मै वापस क्लास मै आया लेकिन फिर मेरी कुछ बोलने की हिम्मत नही हुई। मै एक मुजरिम की तरह क्लास मै बैठा था, मैने उस दिन बहुत मुश्किल से स्कूल टाइम काटा। उस दिन मुझे मुझे भूख-प्यास कुछ भी नही थी, मुझे बस अपनी बेवकूफी पर अफसोस था। खुशी का रोता हुआ चेहरा बार-बार मेरी आंखो के सामने आ रहा था, इसलिये मेरी आंखो से नीद भी गायब थी। मैने तय कर लिया की अगले दिन पूरी क्लास के सामने मै सच बता दूंगा और खुशी से माफी मांग लूगा, वह माफ करे या ना करे यह उसकी मर्जी लेकिन अब यही मेरा पश्चताप था।

अपनी गलती स्वीकार करने का इरादा लेकर मै अगले दिन स्कूल गया, मै उसका इंतजार करता रहा लेकिन खुशी स्कूल नही आयी। पिंकी ने बताया की वह अब स्कूल नही आयेगी, वह घर पर ही एक्जाम की तैयारी करेगी और सीधा एक्जाम देने ही आयेगी।

खुशी के इस तरह स्कूल ना आने से मुझे अपनी गलती अब एक गुनाह लगने लगी थी। कुछ दिन बाद स्कूल की छुट्टी पड गयी थी, और फिर फाईनल एक्सजाम शुरू हो गये। मै और खुशी एक ही कमरे मे बैठते थे, लेकिन उसने कभी भी मुझे पलट कर नही देखा। धीरे-धीरे सारे एक्जाम होते जा रहे थे, उस दिन आखरी एक्जाम था। एक्जाम के बाद वह जाने लगी तो मैने उसे रोका, वह रुक गयी लेकिन उसके चेहरे पर उस दिन वाला गुस्सा और आंखो मे दुख था, मेरी तो उससे नजरे मिलाने की हिम्मत ही नही हो रही थी। मैने नजरे नीचे किये ही उससे कहा, ‘सारी खुशी मुझसे गलती हो गयी, तुम मुझे अपना वेस्ट फ्रेड कहती थी क्या मेरी एक गलती भी माफ नही कर सकती....’

खुशी मुझे देखती रही, फिर वह बोली, ‘हां, मै तुम्हे अपना बेस्ट फ्रेंड कहती थी और मानती भी थी, लेकिन शायद यह मेरी सबसे बडी गलती थी, मै फिर से कभी ऐसी गलती नही दोहराउंगी। वैसे भी एक्जाम हो गये है, औऱ मै डाक्टर बनना चाहती हू, इसलिये दिल्ली जा रही हूं, कोचिंग मे एडमिशन ले लिया है मैने......’

खुशी थोडा आगे बढ गयी, फिर रूकी और ‘बोली, ‘तुम्हे देखकर बहुत दुख होता है, हो सके तो आज के बाद फिर कभी मत मिलना मुझे..’ और मेरी माफी को वही झटक कर वह अपनी राह चली गयी।

उस दिन के बाद वह फिर कभी वह नही मिली............ सालो बाद मैने आज उसे देखा है, हमारे कामन फ्रेंड की शादी मे। मैने उसे देख तो लिया लेकिन सालो पहले कहे हुए उसके शब्द अब भी मेरे जेहन मे ताजा थे, ‘फिर कभी मत मिलना’........ इसलिये मै उसे देखकर भी अंदेखा कर रहा था।

पार्टी आगे बढ रही थी, मै पार्टी मे वैसे भी बोर ही होता हू, लेकिन आज खुशी को देखकर एक अनजाने से डर ने मुझे घेर लिया था इसलिये इस डर से बचने के लिये मै एक साईड मै जाकर बैठा गया।

‘हैलो राहुल, कैसे हो’....मेरे कानो मे ये शब्द पडे, जिन्हे सुनते ही मै समझ गया ये किसकी आवाज है...

मैने पलट कर पीछे देखा खुशी वहां खडी थी....

मै हडबडाहट मे खडा हुआ, मैने उसे देखा लेकिन मेरी नजरे आज भी उसकी नजरो से मिलने से इंकार कर रही थीं।उसके चेहरे पर गंभीरता तो थी लेकिन नारजगी या गुस्सा कहीं नजर नही आ रहे थे
‘मै ठीक हूँ, आप बताइये कैसी है करिशमा जी’, मैने कह

‘देख लो कैसी हूँ’...उसने कहा

मैने जबरजस्ती की एक मुस्कान अपने होठो पर चिपका ली और इस बहाने उसके सवाल का जवाव देने से बच गया।

हम दोनो बैठ गये, सालो बाद फिर से मुझे अपनी दोस्त के पास बैठने का मौका मिला था, लेकिन समझ नही आ रहा था की क्या बात करूं।

‘और क्या कर रहे हो आजकल’, करिशमा ने बात शुरू की..

‘मै... गावर्मेंट जाव मै हूं, एकाउंटेंट हू, डिस्टिक आफिस मे’...मैने कहा

‘अरे वाह, तुम तो सरकारी बाबू बन गये’, खुशी ने कहा..’.अच्छा है’

‘आप तो डाक्टर बन गयी होगी’.... मैने सबाल किया

‘हां, मै डाक्टर हू, अभी दिल्ली मै ही प्रैक्टिस कर रही हूं’, खुशी ने जवाव दिया

हम कुछ देर चुप बैठे रहे, फिर उसने चुप्पी तोडते हुए कहा ‘और शादी हो गयी तुम्हरी’,

‘नही...अभी नही’ मैने कहा

‘क्यो...?’

‘बस ऐसे ही’

‘अरे गवर्मेंट जॉव मे हो, शादी की उम्र भी हो गयी है, फिर शादी क्यो नही की, क्या कोई गर्लफ्रेड है...’

‘नही, कोई गर्लफ्रेड नही है’...मैने कहा

‘आपकी शादी तो हो गयी होगी’...मैने सवाल किया

‘नही’, उसने थोडा गंभीर होते हुए कहा

‘क्यो’, मैने उससे सवाल किया

‘क्यो, तुम नही जानते… क्यो?’ .....उसके इस प्रशनवाचक जवाव को सुनकर मै अंदर तक हिल गया, मै समझ गया की वह अबतक मेरी गलती को भूली नही है। शायद वह मेरे पास फिर से मुझे मेरी भूल का एहसास कराने ही आयी है। मुझे खुशी की बाते अंदर ही अंदर खाये जा रही थी, जो गुब्बार सालो से मेरे अंदर है वह एकदम से फटने को मचल रहा था, लेकिन फिर भी मै खुद को रोके हुए था, मैने अपने इमोशन को कंट्रोल करते हुए कहा

‘सारी करिशमा जी, मुझसे गलती हो गयी, सच मै उस दिन के बाद मैने कभी खुद को माफ नही कर पाया हू। उस दिन के बाद मेरे जीवन मै कोई लडकी नही आयी है, क्योकी मुझे लगता है की जब मै अपनी दोस्ती को ही नही निभा सका, जो लडकी मुझ पर इतना भरोसा करती थी उसके भरोसे को नही निभा सका तो किसी से रिश्ता क्या निभाऊंगा....’ मेरी आंखे गीली होने लगी थी, खुशी एकटक मुझे देख रही थी,

‘सारी करीशमा, हो सके तो मुझे माफ कर दो..मै आज तक अपनी एक गलती मे जल रहा हूं’ मैने उसके हाथ जोडते हुए कहा।
उसने मेरे हाथो को अपने हाथ मै थामा और बोली, ‘वह वक्त बीत गया है राहुल, बहुत समय हो गया है, शुरू मै मुझे भी तुमसे नफरत थी, लेकिन जैसे जैसे वक्त बीता और हमरी समझ बढी मुझे महसूस हुआ वह स्कूल टाईम था, हम 16..17 साल के बच्चे थे, और बच्चो से गलतीया हो जाती है....तुमसे भी बचपने मे एक गलती हो गयी....लेकिन मै अपने मन से तुम्हे सालो पहले ही माफ कर चुकी हूं, भूल जाओ उन बातो को यार’

उसने मुझे अपने कंधे से लगाकर मेरे बहते आंसुऔ को रोकने की कोशिश की, लेकिन मै शायद कब से अपने दोस्त का गुनगाहर बनकर जिंदगी जी रहा था, आज उसके इन शब्दो से मुझे उस गुनाह से आजादी मिल गयी....तो आंसु रुकने का नाम ही नही ले रहे थे। मेरे आंसू देखकर खुशी की आंखे भी छलकने लगीं थी।

कुछ पल हम इसी तरह साथ रहे..फिर मैने खुद को संभाला... उसके बाद हम दोनो ने कुछ नही कहा बस शांत बैठे रहे।

फंगशन खत्म हो चुका था, खुशी को भी जाना था, वह अपनी गाडी की तरफ बढी...मै उसे बहार तक छोडने गया...

‘थैक्स टू फोरगिव मी करीशमा जी’....मैने उसका धन्यवाद अदा करते हुए कहा

‘दोस्ती मै नो थैक्स नो सारी...ये डायलाग नही सुना क्या कभी तुमने’ उसने मुस्कुराकर कहा.

‘हां सुना तो है,...बहुत पहले सुना था’, मैने सहमती जताते हुए कहा

‘अगर सुना है तो उसे फालो भी करो, औके बाय’...उसने मेरे नजदीक आकर कहा और एक पर्चा मेरी जेब मे रख दिया....और अपनी कार मै बैठकर चली गयी।

उसके जाते ही मेरा हाथ खुद-ब-खुद उस पर्चे पर पहुच गया, मैने तेजी से पर्चा निकाला, और उसे पढने लगा,उसमे लिखा था.....

‘ तुम शायद भूल गये मै सबके लिये करिश्मा हूँ लेकिन मेरे दोस्त मुझे खुशी कहते है...। और तुम्हारे मुह से मुझे खुशी सुनना ही अच्छा लगता है, क्योकी तुम सिर्फ मेरे बेस्ट फ्रेड ही नही... बल्की....

तुम्हे याद है वह फरवरी का महीना था, मै उस दिन अपने साथ रेड रोज, चाकलेट और एक खूबसूरत ग्रीटिंग लायी थी, उस दिन प्रपोज डे था...मै तुम्हे प्रपोज करने वाली थी, लेकिन यह हो ना सका और हम साथ होने की जगह और दूर हो गये.....बहुत दूर हो गये।

राहुल तुम मेरे लिये हमेशा दोस्त से बढकर थे... माय फर्स्ट लव..... जिसका मुझे आज भी इंतजार है...

अगर तुम भी मुझसे प्यार करते थे या थोडा बहुत आज भी करते हो, तो मुझे नीचे दिये नम्बर पर काल करना...मै हमेशा तुम्हारा इंतजार करूंगी।

तुम्हारी खुशी....।‘

आंखो मे आंसू लिये मैने जल्दी से अपना मोबाईल निकाला और तेजी से वह नम्बर डायल करने लगा...क्योकी मै सालो से अपने दिल मे दवे हुए प्यार से अब और दूर नही रहना चाहता था.... मेरे बचपन का प्यार... मेरा अधूरा इश्क आखिर आज पूरा हो गया था।

-समाप्त-

(दोस्तों आपको मेरी कहानी अधूरा इश्क कैसी लगी, कृपया आप अपने विचारों से मुझे अवश्य अवगत कराएं, मुझे आपके कॉमेंट्स का इंतजार रहेगा।)

अरुण गौड़

MO-8218989877


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