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दर्द-ए-वेलेंनटाइन

सुबह सुबह मोवाइल की मैसेज रिगं बजी, चंदू ने अलसाये हुये रजाई से अपना मुँह बहार निकाला और आंखे मसलते हुये मैसेज पढने लगा, वह ‘वेलेंग्टाइन वीक’ का मैसेज था, ‘अशिकी के उत्सव’ का निमंत्रण, वो उत्सव जिसका इंतजार चंदू एक अर्से से कर रहा था। उस साधारण से मैसेज को पढकर अचानक चंदू की आंखो मे चमक आ गई, तत्काल उसने नजर कैलेण्डर पर घुमायी, आज तो 7 फरवरी है यानी ‘रोज डे’।

चंदू जल्दी से उठा और सीधा बाथरूम मे घुस गया, और बडी तेजी से जीरो से हीरो बन गया, खुद को आइने मे देखकर थोडा इतराया, और सोचने लगा की दो साल कालेज मे खपाने के बाद भी किसी भी लड़की ने उस जैसे हैंण्डसम को अपना बायफ्रेंड क्यो नही बनाया, बेड लक है शायद उन सभी लड़कियो का जिन्होने उसकी गर्लफ्रेड बनने का मौका खो दिया। इस वेलेगटाइ डे पर कितनी लडकी उसके लिये पागल होंगी और उसकी गर्लफ्रेड बनेंगी... वैसे वो इतना हैँण्सम नही था जितना आज खुद को समझ रहा था, लेकिन इसमे गलती उसकी भी नही थी, कोई भी कौवा खुद को बगले से कम नही समझता है।

मन ही मन ख्वाबो की खूब ऊंची पतंग उडाता हुआ वह घर से बहार निकला, नुक्कड की दुकान से बहुत सारे गुलाब खरीदे और हाथ मे गुलाव के फूलो का गुलदस्ता लिये वो कालेज पहुचा। कालेज मे ल़डकियो की तो कोई कमी नही थी लेकिन उसके गुलाब थामने के लिये कोई भी हाथ खाली नही मिल रहा था। जिनके सपने सजोकर चंदू आया था वो सब तो पहले की गुलाव ले चुकी थी, और कुछ लडकिया तो गुलाब लेकर पूरा गुलादस्ता ही बना चुकी थी। उन्हे पीछे छोडकर चंदू आगे बढ गया, क्योकी उसे उम्मीद थी की इस मेले मे कोई तो हाथ होगा जो अब तक उसके रोज के लिये खाली होगा। वह काफी देर हाथ मे गुलाब लिये घूमता रहा लेकिन किसी भी लडकी ने उसके गुलाव को कोई भाव नही दिया। चंदू थोडा निराश हुआ और उसके अरमान भी गुलाव की तरङ थोड़ा मुरझाये लेकिन वह इतनी आसानी से पहली लडाई मे ही हार नही मानने वाला था।

8 फरवरी ‘प्रपोज डे’, चंदू फिर से बनठन कर कालेज पहुंचा की आज तो कोई लड़की जरूर उसे प्रपोज करेगी लेकिन ऐसा नही हुआ, उसे किसी लडकी ने प्रपोज नही किया। वह खुद किसी सुंदरी को प्रपोज करने की हिम्मत करता लेकिन कालेज मे एक लड़की को प्रपोज करने पर अपने जैसे एक प्यार के पंक्षी की धुनाई का मंजर देखकर उसके हिम्मत ने तत्काल हथियार डाल दिये। इसलिये अपने अरमानो को सीने मे दबाये हुये उस बेचारे ने वापस घर की राह पकड ली।

9 फरवरी ‘चाकलेट डे’, नया दिन नया सवेरा, नयी उम्मदो के साथ चंदू फिर बनठन कर जेब मे तरह तरह के चाकलेट भरकर फिर पहुच गया हसीनो के मेले मे, लेकिन किस्मत ने फिर उसका साथ नही दिया, वहा कुछ लड़किया पहले ही दूसरो लड़को से चाकलेट ले चुकी थी कुछ के लिये उनके बायफ्रेंड चाकलेट ला रहे थे तो कुछ पढाकू लडकिया हमेशा की तरह किसी से कुछ भी लेने को तैयार नही थी। बडे अरमानो से खरीदी गयी चाकलेटो को जब किसी ने मुह नही लगाया तो चंदू को दोस्तो ने मिलबाट कर उन्हे ठिकाने लगा दिया, वैसे भी जब कोई काम ना आये तब दोस्त ही काम आते है... ‘साले कमीने’।

10 फरवरी ‘टेडी डे’, चंदू को आजतक ये फण्डा समझ नही आया की लड़किया तो अपना बचपना सालो पीछे छोड़कर जवानी मे कदम रख चुकी है फिर ये ‘टैडी डे’ किस लिये, ये तो बिना मतलब का दण्ड है लडको पर। लेकिन आधुनिकता के इस जमाने मे बिना गर्लफ्रेंट बाला कोई लडका इस बात का विरोध भी तो नही कर सकता, भईया जब गर्लफ्रेंड पानी है तो ये दण्ड भी भरना ही होगा। इसलिये इन फालतू बातो को भूलकर जेब का दिवाला निकल जाने के बाद भी वह सुंदर सा टेडी लिये पहुच गया कालेज फिर से अपनी किस्मत अजमाने के लिए, लेकिन वाह रे, फूटी किस्मत जिससे हमेशा की तरह से चंदू को धोखा ही मिला और बेचारा टेडी और अपना मुह लटकाये हुए वापस आ गया।

11 फरवरी ‘प्रोमिस डे’, चंदू दुनिया भर की कसमे खाने को आतुर, किसी खूबसूरत बला से प्रोमिस करने की आशा लिये कालेज पहुचा लेकिन फिर वो ही पुरानी कहानी, लडकिया एक नम्बर के झूठे और धोखेबाज लड़को के प्रोमिस को इतने प्यार से एक्सेप्ट कर रही थी और बेचारा सच्चे दिल चंदू की तऱफ कोई देख ही नही रहा था। चंदू को समझ नही आ रहा था की लड़किया ज्यादा शरीफ है या लडके ज्यादा कमीने, जो वो बेचारी इन झूठो के ठेकेदारो की सच्चाई को समझ ही नही पा रही है। खैर इस सब से उसे क्या क्योकी लाख जतन के बाद अभी भी ना तो वो सच्चो मे था और ना ही झूठो मे...वह बेचारा तो अकेला ही रास्ता नाप रहा था।

12 फरवरी ‘हग डे’, चंदू परफ्यूम की पूरी बाटल डालकर शाहरूख खान की तरह दोनो बाहे फैलाये लडकियो की राह मे खडा रहा कि कोई तो हसीना उसका हाथ थामे, उसके दिल की धड़कन सुने। लेकिन लगता है इस बिजी शेडयूल मे लडकियो के पास इतना फालतू टाइम नही रहता जो वो चंदू और उसे अरमानो को समझे। आज फिर किसी भी लड़की ने उसे घास नही डाली, हारकर बेचारे को हाथ और मुह नीचे करके वापस घर आना पड़ा।

13 फरवरी ‘किस डे’, आज चंदू के लिये वेलेंगटाइन डे से पहले आशिको की जमात मे शामिल होने का आखरी मौका था, उसने दो दो बार ब्रश किया और मुह मे माउथ फ्रेशनर दबाकर पूरी तैयारी के साथ बस एक किस की चाह मन ने लिए फिर से हसीनओ के मेले मे पहुच गया, लेकिन उसके सारे जतन बेकार चले गये, एक और जहां गुटका खाऊ लडको को मुंह लगाया जा रहा था वही उसे माउथफ्रेशनर की बोतल मुह मे भरे चंदू को किसी भी लडकी ने देखा तक नही। इस बार उसकी सारी उम्मीदे टूट गयी थी, वह प्यार के इस खेल मे बिना खेली ही हार गया था, इस हार के बाद चंदू निराशा के सागर मे डूब गया था।

हारे हुए आदमी का एक ही साथी होती है ‘दारू’, बेचारे निराशा के सागर मे डूबे चंदू ने बचे खुचे पाकेटमनी से जैसे तैसे एक बोतल का इंतजाम किया और हाथ मे बोतल लिये दीवार के बच्चन स्टाईल मे मंदिर मे पहुच गया। उसने भगवान की मूर्ति को देखा और बोला, “आज खुश तो बहुत होगे तुम जो कभी एक्जाम के रिजल्ट वाले दिन के अलावा तुम्हारी सीढिया नही चढा, वो आज इन लडकियो के लतियाये जाने का दर्द लिये तुम्हारे सामने हाथ फैला रहा है, अगर तुम इस दुनिया मे हो, तुममे शक्ति है तो मेरे सीने के ‘दर्द-ए-वेलेंगटाइन’ से राहत दिला दो”।

चंदू भगवान के सामने अपने दिल का दर्द रखकर इंतजार कर रहा था की अब मंदिर के घंटे बजेंगे और कुछ चमत्कार होगा। लेकिन ना तो घण्टिया बजी और ना ही आसमान मे बिजली चमकी, लेकिन तभी किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा, उसने पलट कर देखा तो वो उसका पुराना दोस्त था जो आजकल एक नेताजी की चमचागिरी करके छुटभैया नेता बन गया था। वह चंदू से बोला “इतनी छोटी बात के लिये भगवान को क्यो परेशान करते हो मेरे दोस्त, तुम मेरे साथ चलो, मै तुझे गर्लफ्रेंड तो नही दिला सकता लेकिन तेरे दिल के दर्द से राहत जरुर दिला सकता हूँ”

चंदू को अपने दोस्त की बात मे एक नयी किरण नजर आयी और निराशा के इस भंवर मे साथ देने आये हाथ को थामकर वह वापस घर चल दिया।

14 फरवरी ‘वेलेंगटाइन डे’, चंदू तैयार हुआ, उसके दोस्त ने उसे आवाज दी, उसका छुटभैया नेता दोस्त और कुछ और लोग उसका इंतजार कर रहे थे। वह घर से बाहर आया, सभी ने एक योद्धा की तरह उसका स्वागत किया, और चंदू के गले मे लाल गमछा डाला और जोर से आवाज लगायी, “पाशचात्य संसकृति हाय-हाय” चंदू ने भी पूरे ताकत से उनकी आवाज मे आवाज मिलायी, और वे सभी चल दिये अपने मिशन पर, इस पश्चमी त्योहार वेलेगटाइन डे का पुतला फूकने और साथ घूम कर यह त्योहार मना रहे जोडो को जबरजस्ती राखी बंधवाने।

बहुत जतन करके भी प्रेमी बनने की नाकामी का इस तरह बदला लेते हुए चंदू के चेहरे की उदासी मुस्कुराहट मे बदलने लगी, वह मुस्कुराता हुआ खुद से ही बोला, “पता नही इस विरोध से हमारी संसकृति बचेगी या नही लेकिन इतना तो तय हो की मुझे मेरे दर्द-ए-वेलेंगटाईन से राहत जरूर मिल जायेगी,.... बोलो पाश्चात्य संस्कृति मुरदाबाद”।

(दोस्तो आपको मेरी रचना दर्द-ए-वेलेंग्टाइन कैसी लगी, कृपया अपने अमूल्य विचारो से मुझे अवश्य अवगत करायें, मुझे आपकी सार्थक प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।)

अरुण गौड

मो-8218989877


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