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गुनाह

अवनि ने ज़िन्दगी और मौत से लड़ते हुए अपनी सूनी आँखों से माँ की ओर देखा और बोली - " क्यों आई हो यहाँ? चली जाओ कही ऐसा ना हो की दुनिया को पता चल जाये की मेरी एक माँ भी है जो ज़िंदा है और मेरी लाश वो तुम्हें दें दे। बेकार में तुम्हें मेरे अंतिमसंस्कार में रूपये खर्च करने पड़ेंगे। वैसे भी तुम मुझे इस दुनिया में लाइ मुझे जन्म दिया यही तुम्हारा मुझ पे बहुत बड़ा एहसान है। माँ बोली- ऐसा मत बोल अवनि मै तेरी माँ हूँ और में मजबूर थी हालात ही कुछ ऐसे थे। "हाँ माँ हर बेटी की माँ मजबूर ही होती है इस समाज में तभी तो कोई बेटी को जन्म नहीं देना चाहता।" अवनि ने इतना कह के अपनी आँख बंद कर ली और अतीत के सागर में डूब गई । माँ के पास अवनि की बातों का कोई जवाब नहीं था इसलिए वो चुपचाप वहाँ से चली गई ।

उस दिन को अवनि कैसे भूल सकती है जिस दिन उसकी माँ ने उससे आखिरकार कह ही दिया की वो अब उसे नहीं पाल सकती। घर का खर्च बहुत बड़ गया है और उसके भाइयो की पढ़ाई भी होनी ज़रूरी है। माँ ने कहा की अब अवनि अपना इंतेज़ाम खुद कर ले चाहे लोगो के झूटे बर्तन धोये या उनके मैले कपड़े। अवनि को माँ की बातों पे विश्वास नहीं हुआ उसे लगा माँ उससे मज़ाक कर रही है मगर ये मज़ाक नहीं था उसकी माँ ने वाकई अवनि को अपने घर से अलग करने का फैसला कर लिया था ।

अवनि घर से निकल पड़ी थी अनजान राहों की ओर बिना किसी मंज़िल के । खैर गाँव में ही रहने वाली एक औरत ने उसे काम पे रख लिया । शुरू शुरू में तो उसका व्यव्हार अवनि के साथ अच्छा रहा मगर धीरे धीरे वो उस मासूम आठ साल की अवनि से ढेर सारे काम करवाने लगी । वो उससे घर के झूटे बर्तन साफ़ करवाती, कपड़े धुलवाती, झाड़ू पोछा करवाती और घर के लगभग सारे ही काम वो मासूम अवनि से ही करवाने लगी । और अगर किसी काम में ज़रा से भी ग़लती हो जाती तो वो अवनि को खूब गाली देती मारती फटकारती और उसे खाना भी नहीं देती । अवनि बेचारी कुछ न कहती बस सिसक सिसक कर घर एक कोने में पड़ी रोते हुए रात गुज़ार देती, रोते रोते कब उसकी आँख लग जाती उसे खुद पता नहीं चलता था ।

कुछ सालों बाद उस औरत ने अवनि को अपनी बेटी माया के घर शहर भेज दिया । वहाँ के हालात भी अवनि के लिए अलग नहीं थे उसे वहां भी ढेर सारा काम करना पड़ता था और गलती होने पे मार भी खानी पड़ती मगर वो बेचारी करती भी तो क्या जब उसकी किस्मत में उसकी माँ ने यहीं लिख दिया था उसे घर से और खुद से दूर कर के। अवनि को घर छोड़े हुए करीब चार पाँच साल हो गए थे मगर इतने सालों में अवनि की माँ ने एक बार भी अवनि के बारें में जानने की कोशिश नहीं की । अवनि का मन उससे बस एक ही सवाल करता रहता की आखिर कोई तो बता दे की उसका गुनाह क्या है क्यों उसकी माँ ने उसकी ज़िम्मेदारी उठाने से मना कर दिया। क्यों उसे अपने परिवार से यूँ जुदा होना पड़ा। आखिर क्यों? मगर अफ़सोस उसे अपने सवालों का जवाब कभी नहीं मिलता । जिस उम्र में उसे अपनी माँ के प्यार भरे हाथों से खाने के निवाले मिलने चाहिए थे उसे मिला भी तो क्या औरो का झूटन।

कुछ समय बाद माया ने अवनि को उसी शहर में अपने भाई के पास भेज दिया। वहां भाभी अवनि से काम तो करवाती थी मगर बाकियो की तुलना में उनका व्यव्हार अवनि के प्रति अच्छा था। अवनि ने भाभी के बच्चो के साथ थोड़ा बहुत पढ़ना लिखना भी सीख लिया था। अवनि की ज़िन्दगी जैसे तैसे कट रही थी कभी वो माया के पास रहती तो कभी भाभी के घर कोई एक घर तो था ही नहीं जिसे वो अपना कह सकती ।

वक़्त बीतता गया और मासूम सी अवनि अट्ठारह बरस की हो गई। उम्र बढ़ने के साथ साथ अवनि की दिक्कते भी बढ़ गई । उसे लोगो की गन्दी लालची निगाहों का सामना करना पड़ता था । वैसे भी एक लड़की की आबरु काँच की तरह होती है । इस पुरुष प्रधान समाज में उच्च माने जाने वाले ये पुरष हमेशा से ही एक स्त्री को वस्तु की तरह समझते आये है जो सिर्फ उनके दिल बहलाने का एक ज़रिया मात्र है । ये पुरष स्त्री को अपने बराबर का दर्जा देना तो दूर की बात उन्हें इज़्ज़त तक नहीं बख्शते । अवनि जो की अपने परिवार के होते हुए भी अनाथ थी कैसे बच पति इन भूखी वहशी निगाहों से।

अवनि आज कल माया के घर पर थी जहाँ माया का देवर अमर आया हुआ था । उसकी गन्दी नज़र शुरू से ही अवनि के ऊपर थी । वो किसी न किसी बहाने से अवनि को परेशान करता रहता था उसे छूने की कोशिश करता रहता था मगर बेबस अवनि उसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठा सकती थी आखिर वो कहती भी तो किससे कौन उसकी बातों पे विश्वास करता । और एक दिन जब माया और घर के बाकी लोग किसी रिश्तेदार की शादी में जा रहे थे अमर तबियत ठीक न होने का बहाना बना कर घर पे ही रुक गया । जब सब लोग चले गए तो उसने मौके का फायदा उठा के बेबस अवनि को अपनी हवस का शिकार बना डाला अवनि रोई गिड़गिड़ाई रहम की भीख मांगती रही मगर उस वहशी पे कोई फर्क नहीं पड़ा । अवनि एक तो वैसे ही सब कुछ खो चुकी थी पर आज उसने अपनी आबरू भी खो दी अवनि आज पूरी तरह से टूट गई। वो रात भर कमरे के कोने में मौन पड़ी रही जैसे उसे समझ ही नहीं आ रहा हो की वो आखिर करें तो करें क्या ।

माया के घरवालो ने इस बात को दबाने के लिए अवनि की शादी एक निठल्ले शराबी से करवा दी । वो रोज़ शराब पी के आता और अवनि को मरता पीटता, उसको गाली देता उसके साथ जानवरो जैसा बर्ताव करता । अवनि की ज़िन्दगी नर्क बना दी थी उसने । अवनि रोज़ घुट घुट के ज़िन्दगी गुज़ार रही थी । वो एक ज़िंदा लाश बन चुकी थी जो ज़िन्दगी जी नहीं रही थी बल्कि जैसे तैसे ढो रही थी। अब उसके अंदर और बर्दाश्त करने की हिम्मत नहीं बची थी और इसलिए उसने आत्महत्या करने का फैसला कर लिया । वैसे भी आखिर वो ज़िंदा रहती भी तो किसके लिए कौन था उसका अपना । माँ ने तो पहले ही उसे बोझ मान के खुद से दूर कर दिया था ।

आखिरकार एक दिन जब घर पे कोई नहीं था अवनि ने मौके का फायदा उठाया और ज़हर खा लिया । धीरे धीरे अवनि की साँसे थमने लगी मगर तभी पड़ोस की एक औरत ने खिड़की से अवनि को तड़पते हुए देख लिया वो तुरंत अवनि को नज़दीक के अस्पताल ले गई । मगर तब तक ज़ेहरज़हर म्मीद बहुत कम है ।

अचानक से अवनि को बहुत घबराहट सी होने लगी और वो अतीत के सागर से बाहर आ गई उसने देखा की उसकी माँ उसके सिरहाने बैठी हुई है । अपनी आखिरी सांस लेते हुए अवनि बोली- " माँ मुझे आज पता चला की मुझे किस बात की सजा मिली है।" माँ ने हैरानी से उसकी ओर देखा और पूछा - "ये तुम क्या कह रही हो अवनि? कैसा गुनाह और कैसी सजा ?" अवनि ने मुस्कुराते हुए माँ की ओर देखा और बोली - "माँ मेरा सबसे बड़ा गुनाह ये है की मैंने एक बेटी के रूप में जन्म लिया और हमारे समाज में बेटी को सिर्फ एक बोझ ही माना जाता है । अगर मैं बेटा होती तो तुम कभी मुझे घर से जाने को नहीं कहती। एक बेटी एक लड़की होने की सजा मिली है मुझे जो पहले मुझे मेरी अपनी माँ ने ठुकरा दिया, फिर मेरी इज़्ज़त के साथ खेला गया और फिर मुझे मरने के लिए एक शराबी के हाथ सौप दिया ।

माँ से अवनि की बातें सुनी न गई उसका कहा एक एक लफ्ज़ माँ के कलेजे को तीर की तरह चुभ रहा हो जैसे और वो कमरे से बाहर चली गई । तभी अवनि की साँसे और ज़ोर से चलने लगी और माँ की ओर बेबस नज़रो से देखते हुए अवनि ने दम तोड़ दिया । अवनि की आज मौत नहीं हुई बल्कि इस पुरुष प्रधान समाज में हो रहे ज़ुल्मो से उसे आज मुक्ति मिल गयी । माँ चुप चाप वहां से चली गई और अवनि का अंतिम संस्कार भी बाकि लावारिस लाशों के साथ कर दिया गया।

अवनि तो मर गई मगर अपने पीछे छोड़ गई कई सवाल जिनका जवाब शायद हम सभ्य कहलाने वाले लोगो की पास भी नहीं । क्यों आज भी स्त्री को एक खिलौना या सजावट की वस्तु माना जाता है? क्यों आज भी उसे मन बहलाने का साधन माना जाता है । आज भी स्त्री को वो इज़्ज़त नहीं मिलती जिसकी वो हक़दार है ।

आज के युग में स्त्री हर रूप में सक्षम है। हर क्षेत्र में स्त्री ने अपना नाम कमाया है वो अब पुरुषों से कदम से कदम मिला के चलती है । अफसोस की बात है की फिर भी स्त्रियों को वो मान सम्मान नहीं मिल पाता और आज भी बेटिओं को बोझ समझा जाता है । पता नहीं हम कब अपनी सोच में बदलाव ला पाएंगे, कब ऐसा होगा की बेटी के रूप में पैदा होना "गुनाह" नहीं "वरदान" कहलायेगा।

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