जुगनू - the world of fireflies - 3 शक्ति द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जुगनू - the world of fireflies - 3

एक बार फिर विद्युत् उसी सपने में जूझ रहा था, कि अलार्म बजने से उसका सपना अधूरा रह गया। आज ही तो वह एक बार फिर प्रियमगढ़ के लिए निकलने वाला था सुबह चार बजे और इसीलिये सुबह तीन बजे का ही अलार्म लगाया था उसने।
" काश इस अधूरे सपने की तरह 'वो सब' भी अधूरा रह जाता। " मायूसी से बड़बड़ाते हुए वह उठा।
अभी दस पंद्रह मिनट ही हुए थे कि उसका फोन एक बार फिर बज उठा पर इसबार कोई अलार्म नहीं किसी अननोन नंबर उसकी स्क्रीन पर नज़र आया ।उसे देखकर विद्युत् के चेहरे पर एक व्यंग्यात्मक हँसी परिलक्षित हो उठी।
उसने फोन कान से लगाया - " जी कहिये.. "
" बड़ी आसानी से पहचान गए, जहाँ तक मुझे पता है तुम तो कभी किसी का नंबर सेव नहीं करते ?? "किसी महिला की कर्कश आवाज़ फ़ोन के दूसरी और से उभरी।
" शुक्र है! आपको याद तो है... इक्ज़ैक्टली! फ़ोन पर आपका नंबर नहीं सेव है.. पर कड़वी यादें कैसे भूल सकता हूँ जिनका स्वाद अभी भी मेरे मुंह में रह गया है। " विद्युत् ने बत्तमीज़ी से जवाब दिया और इसके बाद उसने कुछ नहीं कहा केवल फोन के दूसरी ओर से आ रही आवाज़ सुन रहा था पर वह व्यंग्यात्मक हंसी अभी भी उसके चेहरे पर बरकरार थी।
***

" लेकिन बेटा इतनी सुबह... तुम तो चार बजे निकलने वाले थे न ? " उस उम्रदराज मेड उर्फ़ चच्चा ने विद्युत् के समय से पहले निकलने पर सवाल किया।
" कुछ काम है चच्चा.. मैं कल शाम तक वापस आऊँगा.."
" ठीक है! पर अपना ख्याल रखना.. "
" डोंट वरी चच्चा! अब मैं चलता हूँ..
..बाय! "
* * *

" आई डोंट नो! क्यों मैं हर बार उनकी बात मान कर उनसे मिलने चला जाता हूँ.. न वो मुझसे दूर ही रहती हैं और साथ रहने का तो सवाल ही नहीं उठता! कितनी बार मना कर चुका हूँ, कि अटलीस्ट जब तक मैं हूँ, उस घर को... " उसने अपने दांत भींचे और उसका गाल फड़फड़ाने लगा। " इससे तो बेहतर है कि इस ज़िंदगी से छुटकारा ही मिल जाए। भगवान् उठा.. ओह न..नो! नो..नो.. " उसने तुरंत ब्रेक मारा जब उसे अँधेरे में दूर से आती गाड़ी् नहीं दिखी और वह बस भिड़ ही जाता।
" क्या भगवान्?? इतना जल्दी भी नहीं कहा था थोड़ी तो वेट कर लो! " उसने अपने कार के काँच से सर निकाला और ऊपर की ओर देखते हुए कहा। "- इतनी डिस्पेरेशन सही नहीं! पहले प्रियमगढ़ जाकर उस लड़की का पता कर लूँ.. फिर उठाना.. "

" अबे ओ मजनू! आगे जाएगा तब्बीच तो पता करेगा न?? तेरे को मरने का है तो साला इधर खाई से कूद जा! मेरे को काइको लपेट रहा है? अभी मई ब्रेक नई मारता तो इधर से गला फाड़ने का टॉपिक ही ओवर.. डायरेक्ट गॉड से बात करता। अब चल अपनी खटारा साइड कर.. " पीछे से उसे दूसरे कार वाले ने फूहड़ता से आवाज़ दी क्योंकि विद्युत् की कार विचित्र अवस्था में खड़ी थी।
उसने जल्दी से काँच वापस बंद किया और वापस उन पेड़ो से ढकी हुयी सड़क पर निकल पड़ा। वह इस घटना में इतना उलझ गया कि उसे दो असामान्य बातों का ध्यान ही नहीं रहा। पहली ये की इस रास्तेे पर पहली बार कोई अन्य व्यक्ति वो भी रात के वक़्त दिखा था और दूसरी ये की उस कार वाले ने विद्युत् को पहचाना नहीं था जबकी विद्युत् का चेहरा उसे बखूबी दिख रहा था और वह एक बेहद जाना माना चेहरा था। इन सब बातों से बेखबर उसकी कार हवाओं से बातें कर रही थी और कुछ ही देर बाद उसकी कार शहर के रास्ते पर जा पहुंची।

मायानगरी.. जहाँ दिन रात बराबर चहल पहल रहती है। उसने एक सुनसान जगह पर गाड़ी रोकी और वहां से पैदल ही चलने लगा कुछ दूर चलने के बाद वह एक आलिशान बंगले के भव्य दरवाजे के पास खड़ा था। उसने अपना फ़ोन निकाला और किसी को मैसेज किया। कुछ देर बाद एक हट्टा कट्टा, 6 फुट का आदमी उसकी ओर आता हुआ दिखा, वह जमहाइयाँ ले रहा था, शायद नींद में था । हो भी क्यों न? चार बजे भला कौन ही विचरण करता है सिवाय भूतों के।

" आप ही वो साहब हैं?? " उसने नज़दीक आते हुए पूँछा।
" हम्म!"
" चलिये..
विद्युत उसके पीछे पीछे चल दिया। वह गॉर्ड जैसे दिखने वाला व्यक्ति, जिसके साथ विद्युत आया था उसे एक सिटिंग हॉल में बैठा कर चला गया। बैठते ही विद्युत की नज़र सबसे पहले ऊपर लटकते आलीशान झूमर पर गयी। उसके चेहरे पर करुणा और चिढ़ के मिले जुले भाव प्रकट हो उठे।

" बार बार इसे यूं देखने से , बिखरी हुयी यादें समेटी नहीं जा सकती विद्युत! " एक व्यंगपूर्ण आवाज़ का प्रयोग करती एक अधेड़ उम्र की महिला ने हॉल में प्रवेश किया।

" वाकई!! क्यूंकी किसी ने बड़ी बेदर्दी से फर्श पर पटका था!" उसने भी उतनी ही अकड़ से कहा।
" तुम बत्तमीजी कर रहे हो!"वह फुंफकारती हुई विद्युत के नज़दीक आयीं।
" मैंने ऐसे बेफ़िज़ूल शौक कभी नहीं पाले! आप बताइए ?? क्या काम है आपको मुझसे, क्यों बुलाया है मुझे?भला अब कौन सा कांड कर दिया 'आपके बेटे' ने?" उसने आपके बेटे पर अच्छा खासा ज़ोर दिया।

" सोम के ब्लड में पॉइज़न है!"
"व्हाट?? "
"हाँ "
"लेकिन कैसे? कब हुआ ये? और आपने पहले क्यों नहीं बताया मुझे... अर..अब कुछ बोलिये भी.. कहाँ है वो... आई नो सोम मुझे सौतेला मान कर नहीं पसंद करता पर इतना कुछ होने केे बाद तो आपको मुझे बताना चाहिए था। कहिये न कैसे हुआ ये?? " उसने व्याकुलता से पूँछा - एक सेकंड-एक सेकंड... इज़ इट ऐनी ड्रग केस?
" क्या हुआ?कैसे हुआ? इट्स नन ऑफ योर बिज़नेस... बस मुझे अनफॉर्च्युनेटली तुम्हारी हेल्प चाहिए।"
" मेरी हेल्प?? "
" तुम्हे दिल्ली वाले डॉक्टर जोश को सोम का इलाज करने के लिए कहना है.. यहाँ के डॉक्टर्स ने उसकी कंडीशन देखते हुए डॉक्टर जोश को रेफर किया है... एंड तुम्हे पता ही है कि मेरी उससे नहीं बनती.. तो वो मेरी बात नहीं मानेगा। "
" देखा अपने ईगो का रिजल्ट.. अगर पापा के टाइम भी आपने उनकी हेल्प ली होती तो पापा आज यहां होते और शायद आज भी वो आपकी हेल्प करने को तैया.. "
" शट-अप.. " वे गरजीं- " मुझे तुम्हारा लेक्चर नहीं सुनना है.. मदद कर सकते हो तो करो! वर्ना यहाँ से जा सकते हो! "
विद्युत ने उनकी बात पर ध्यान न देते हुए अपने फ़ोन से डॉक्टर जोश श्रीवास्तव को फोन कर अगले दिन की सोम की अपॉइंटमेंट फिक्स कर दी।
" मैं उससे मिल सकता हूँ??" उसने फ़ोन वापस अपनी जेब में रखते हुए कहा।
" मदद के लिए थैंक यू.. " उन्होंने जैसे दिल पर पहाड़ रख कर केवल धन्यवाद की खाना पूर्ति की- " ..पर तुम उससे नहीं मिल सकते.. "
" यही उम्मीद थी! " कहकर वह जाने को मुड़ा
" एक आखिरी बार पूँछ रही हूँ, तुम उन पेपर्स पर साइन करोगे?"
विद्युत हँस पड़ा यह सोचकर कि अपने बेटे की ऐसी कंडीशन में भी उन्हें पेपर्स की पड़ी है। उसने अपनी हंसी काबू की और बोला- " जवाब आप जानती हैं? "
उन्होंने कुछ नहीं कहा तो विद्युत वापस बोल पड़ा- " आई विश! आपने इन बुरी लतों के अलावा भी सोम को कुछ सिखाया होता.. तो आज ये नौबत ही नहीं आती।" वह वापस जाने को हुआ और अचानक ठिठका। उसने उसी दिशा में ही खड़े हुए पुनः कहा- " उम्मीद करता हूँ इस बार आप मेरे पीछे अपना कोई चमचा नहीं दौड़ाएंगी.. क्यूंकी इस बार उस घर की रॉयल्टी के अलावा भी बहुत कुछ लेकर जा रहा हूँ"
* * *

पूरे दस घंटे के सफर के बाद वह दुपहरी में प्रियमगढ़ पहुंचा। उसने वहीं के किसी होटल में खाना खाकर आराम किया और लगभग पांच बजे उस जंगल के लिए निकल गया -
"जहां पिछली बार उसके किसी अपने ने निर्दयता से गोलियां दागी थी, जहां किसी अनजान लड़की ने उन्हीं गोलियों के जाल से निकाल कर उसकी जान बचाई थी। न जाने कौन थी वह... किसी रहस्य से कम नहीं थी.. आखिर वह उस खतरनाक सून सान जंगल में कर क्या रही थी..वह भी एक लड़की होकर। क्या उसे अकेले डर नहीं लगा या फिर हो सकता है कोई और भी रहा हो उसके साथ.. लेकिन वो वहां उसके आकर थैंक्यू बोलने का इंतज़ार थोड़े ही कर रही होगी। कोई टूरिस्ट होगी तो चली गयी होगी तो.. तब उसके जाने का क्या मतलब.. अरे क्यों नहीं?? , वो एक बार फिर अपने जुगनुओं की दुनिया से जुगनू चुन कर लाएगा.. जिससे उसका खुशियों का नाता है। " न जाने कितने ही विचार उसके मस्तिष्क में उत्पन्न हो रहे थे।

वह एक घने जंगल जा पहुंचा । उसने अपनी कार एक सुरक्षित जगह पर खड़ी की और कुछ कुछ अंधेरा होने के बावजूद , बेखौफ सा उस जंगल के भीतर प्रवेश कर गया। उसके लिए रास्ते याद रखना इतना भी मुश्किल नहीं था कि भटकने जैसी स्थिति उत्पन्न हो । उसे एक दो जुगनू दिखने लगे थे और वे ठीक किसी दिशा की ओर थे जैसे रास्ता दिखाने का काम कर रहे हों ।
" आखिर कोई जंगलों में कैसे भटक सकता है... ये जुगनू भला कैसे किसी को भटकने दे सकते हैं?? " वह आगे बढ़ता जा रहा था और आखिरकार वह अपने जुगनुओं के शहर में प्रवेश कर चुका था। सामने सैकड़ों की मात्रा में जुगनू , तारों की तरह टिमटिमा रहे थे । उसने अपने पिठ्ठू बैग से एक जार निकाला और उसे एक व्यवस्थित जगह पर रख दिया। एक - एक कर जुगनू उसमें प्रवेश करते जा रहे थे।
उसके दिमाग में उस लड़की के टूरिस्ट होने ,और अब तक चले जाने वाली बात स्पष्ट थी फिर भी न जाने क्यों वह उस जार को वहीं पर रख कुछ आगे आ गया शायद उसी रहस्यमयी लड़की के मिलने की उम्मीद से।
वह काफी आगे निकल आया। अब अंधकार अधिक घना होता जा रहा था और जुगनू भी दिखने कम हो चुके थे । उसने अपने फ़ोन की फ्लैशलाइट चालू की और आगे बढ़ने लगा।
अचानक उसे अपने कान में एक फुसफुसाहट महसूस हुई और वह पलटा... पर उसे कुछ भी या कहें तो कोई भी नहीं दिखा... वह अब कुछ सहम चुका था पर निरंतर चारों दिशाओं में कुछ ढूंढते हुए आगे बढ़ रहा था। एक बार फिर कोई उसके कानों में फुसफुसाया एक बार फिर वह चिहुंक कर पलटा पर कोई नज़र नहीं आया।
" कौन है? " उसने एक जोरदार आवाज़ लगाई और अपनी ही आवाज़ की गूंज के अलावा प्रतिक्रिया में कोई अन्य आवाज़ नहीं आई।
वह वापस आगे की ओर जाने को पलटा और सदमें में उसने एक हाँथ अपने मुंह पर रख लिया
उसके ठीक सामने , तीन फीट की दूरी पर एक धुंधली आकृति खड़ी थी.. उसके दूसरे हाँथ में पकड़ा फ़्लैश केवल उस आकृति के कमर से निचले हिस्से में रोशनी कर रहा था। विद्युत अपना हाँथ ऊपर उठा कर उसके चेहरे पर रोशनी डालना चाहता था पर उसके हाँथ जैसे जड़ हो चुके हों । उसने अपनी गर्दन नीचे की, कि अपने दूसरे हाँथ की फ़्लैश लाइट ऊपर उठाएं पर उसका ध्यान फ़्लैश की ओर ना जाकर.. सामने खड़ी आकृति के पैरों की ओर गया.. जिनकी उंगलियां विद्युत की ओर न होकर विपरीत दिशा की ओर थी उसने भय से अपनी आंखें भींची और और उसके अंदर जितनी भी शक्ती थी, पूरी तरह से अपने गले से आवाज़ निकाली.. एक डर की चीख।
आंखें बंद करने के कुछ समय बाद उसे कुछ आंखों में चुभता हुआ सा महसूस हुआ। उसने डरते हुए अपनी एक आंख खोली और फिर अपनी दोनों आंखें खोल दी। उसके सामने कुछ ऐसी रोशनी थी जैसे कई बल्ब एक साथ जला दिए गए हों। उसने कुछ देर तक उसी दिशा में निरंतर देखा , वह पीली रोशनी कुछ कम होने लगी और उसे चमकते हुए वस्त्र सा कुछ दिखा। किसी स्त्री की आकृति... जिसकी पीठ विद्युत की ओर थी और उसके खूबसूरत लंबे घने सुनहरे बाल , कंधे पर झूल रहे थे.. वह केवल इतना ही देख पाया था कि अचानक वह लड़की एक तीव्र वेग की भांति विद्युत की ओर पलट गई ।
आय-हाय! माशाअल्लाह! पुरानी कहानियों में जिन खूबसूरत राजकुमारियों का जिक्र सुना था उनकी ही भांति खूबसूरती की प्रतिमा थी वह।
"बड़ी बड़ी गुलाबी आंखें... उनपर लहराती उसकी कोमल पलकें... खूबसूरत सी नांक... गुलाब की पंखुड़ियों जैसे नाज़ुक सुर्ख होंठ... और रंग तो ऐसा ,जैसे किसी ने दूध में एक चुटकी हल्दी घोल दी हो... कानों में पहने हुए उसके झुमके जो उसके यूं अचानक पलटने से नाचते हुए प्रतीत हो रहे थे और उनमें उलझे उसके रेशमी सुनहरे बाल.. पीले रंग के लहँगानामी वस्त्र में लिपटी वह किसी बिजली से कम नहीं लग रही थी।
कुछ देर पहले, विद्युत की भय से भींची आंखें अब झपकने का भी नाम नहीं ले रही थी। वह तो कुछ छण पहले वाली घटना हवा की तरह अपने दिमाग से उड़ा चुका था...


क्रमशः

पर्णिता द्विवेदी...