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जुगनू - the world of fireflies - 6

विद्युत खुद भी नहीं जानता था कि प्रियमविधा उसे कहाँ मिलेगी... बस वह ''कहीं तो मिलेगी, कभी तो मिलेगी वाली " उम्मीद लेकर आगे बढ़ रहा था। वह निरंतर उस जंगल के पथरीले रास्तों पर आगे बढ़ रहा था... वास्तव में अगर उसके पैरों की भी जबान होती तो वे उसे, उसकी इस निर्दयता पर भर भर कर गालियां बक रहे होते.... आखिरकार उसने अपने पैरों पर रहम खाया और कुछ देर सुस्ताने की सोची।

एक पेड़ पर अपनी हथेलियां टिकाते हुए वह खड़ा ही हुआ था कि उसने अपनी हथेलियों पर कुछ लचीली ,चिपचिपी- सी हलचल महसूस की... जैसे कोई उसके हांथों को चाट रहा हो। उसने अनिभिज्ञता, डर और आश्चर्य के मिले जुले भाव से अपनी नज़रें उस पेड़ पर टिकाये अपने हाँथ पर डाली और अगले ही पल ट्रेन की फुर्ती से चिल्लाते हुए पीछे हट गया।

किसी पत्थर से खुरची हुई आकृति की भाँति उस पेड़ पर बड़ी बड़ी पथरीली आँखें और लचीले होंठ उभरे हुए थे जिसके भीतर से उसकी गहरे भूरे रंग की जीभ लार टपका रही थी और बार बार वह आकृति अपनीे वह गंदी जीभ अपने होंठों पर फेर रही थी जैसे अभी अभी आइस- क्रीम का स्वाद लिया हो ।

विद्युत फटी आंखों से सामने का नज़ारा देख रहा था, जो बिल्कुल उसकी समझ से परे था। वह सदमें में आने मुंह पर हाँथ रखता पर उसका ध्यान अपने हाँथ पर लगी विचित्र चिपचिपी वस्तु पर गया जिसे शायद कुछ देर पहले वह पेड़ चाट राह था। वह अपना हाँथ घांस पर घिसने लगा।

" बहुत.. स्वादिष्ट.. जान.. पड़ते.. हो.. " उस वृक्ष ने पेटहापन से लार टपकाते हुए भारी आवाज़ में कहा और एक बार फिर होंठों पर अपनी ज़बान फेरी।

" क..क्क..कौन हो तुम?? " विद्युत ने हिम्मत कर पूँछा।

" अरे इसे छोड़ो... मुझसे मिलो.. मैं हूँ रेला.. इस क्षेत्र की खूबसूरती.. " यह किसी स्त्री की इतराहट भरी आवाज़ थी जो उस पेड़ के बगल में लगे नारंगी रंग के पत्तो वाली टहनियों से सुसज्जित एक खूबसूरत वृक्ष में से आई।

विद्युत ने एक बार फिर उतने ही आश्चर्य भाव से उस वृक्ष की ओर देखा और सदमे से उसका दिल दहल गया। उस पेड़ पर भी उसी तरह आँख और मुंह की आकृति बनी हुई थी परंतु उस आकृति में ज़रा सी नज़ाकत थी।

उसने इधर उधर देखा और पाया कि लगभग सभी पेड़ों पर चेहरे बने हुए थे और उन सब की टहनियों में हलचल थी। अब जा कर कहीं उसे समझ आया.. कि जो आवाज़ें अबतक उसका पीछा कर रहीं थीं.. कोई शक ही नहीं कि वे इन रहस्यमयी पेड़ों की थीं।

वह भौचक्का सा हर ओर देख रहा था... न जाने कहाँ प्रवेश कर गया था... इस प्रतिकूल समय में भी उसे प्रियमविधा की बातें याद आई कि वो क्यों जल्द से जल्द यहां से भगा देना चाह रही थी... शायद वह उसे इन सब से बचा रही थी.. पर वह 'उल्लू का पठ्ठा!' मजनू बना यहां वापस चला आया.. लेकिन एक मिनट.. वह तो दो बार यहां आया है.. तब तो ऐसा कुछ नहीं मिला..

" डरा दिया न!!" स्त्री की आवाज़ वाले वृक्ष ने उस होंठ चाटते वृक्ष लो फटकारा - " एक तो पहली बार कोई मानव हमें जीवित महसूस कर पा रहा है.. उसपर तुम अपनी बेहूदा शक्ल और इस घिनौनी जीभ से उसे डरा रहे हो.. हुँह! " फिर उसी नारंगी पत्तों वाले पेड़ ने कहते हुए मुँह बिचकाया जो पहले वाले पेड़ की उस पेटहापन भरी हरकत पर उसे फटकार रहा था.. या शायद रही थी...

विद्युत को उसमें साक्षात देवी नज़र आई.. वह हिम्मत कर फिर कुछ बोलने को हुआ कि उसे अवसर ही नहीं मिला..

" ..तुम चुप रहो रेला.. यह क्षेत्र मेरे अधिकार में है.. तो यहां के निर्णय मैं ही करूँगा.. और वैसे भी कितने सालों बाद किसी मानव का स्पर्श महसूस किया है.. एक और बार स्वाद लेने का अवसर तो मिलना ही चाहिए.. " कहते हुए उस वृक्ष की टहनियाँ किसी हाँथ की तरह विद्युत की ओर बढ़ीं।

लोग अक्सर ऐसे खौफ के पलों में 'हनुमान चालीसा' पढ़ते हैं पर उस वक़्त विद्युत 'प्रियमविधा चालीसा' पढ़ रहा था क्योंकि केवल वही उसका एकमात्र सहारा थी।

जितनी ही नज़दीक वे टहनियां उसकी ओर बढ़ती जा रहीं थीं उसकी दोगुनी फुर्ती से, उसके द्वारा खोजा गया नया जाप" प्रियमविधा.. प्रियमविधा.. " जोरो शोरों से चालू था। वह लगातार यही बड़बड़ा ही रहा था कि उसके कानों में कुछ आवाज़ पड़ी और अगले ही पल उसकी मुस्कुराहट ने अपनी चादर से अधिक ही पैर पसारे।

वह प्रियमविधा के घुंघरुओं का स्वर था जिसे वह शायद बेहरा होने के बाद भी सुन लेता फिर अभी तो उसके कान सही सलामत थे.. मतलब प्रियमविधा ने उसकी सुन ही ली!!

वह उस पेड़ और विद्युत के बीच एक दीवार की तरह आकर खड़ी हो गई.. वे टहनियां तुरंत पीछे हट गयीं।

" हमारी अनुमति के बिना इस प्रकार की उद्दण्डता का परिणाम.. हमें नहीं लगता तुम्हें स्मरण कराने की आवश्यकता है?? " वह शेरनी की तरह गुर्राई

" माफी राजकुमारी.. " उस वृक्ष ने आदर से कहा- " मेरा उद्देश्य किसी प्रकार की उद्दण्डता का न था!!"

" तो इसे हम क्या समझें?? यह उद्दण्डता से भी कुछ अधिक नहीं था?? "

" लेकिन राजकुमारी यह हम सब को.. कैसे?..मेरा मतलब.. "

" प्रश्न का जवाब प्रश्न ही नहीं होता... उम्मीद है.. ऐसा दोबारा नहीं होगा.."

" जी राजकुमारी.. कदापि नहीं!"

प्रियमविधा ने उस रेला नाम के पेड़ को उस क्षेत्र का सही से संचालन करने का आदेश दिया और विद्युत को, जिसके दिमाग से सबकुछ बाउंसर की तरह ऊपर से जा रहा था, अपने पीछे आना का इशारा करते आंखें तरेरती आगे बढ़ गई।

विद्युत उसके पीछे पीछे चल दिया.. पर अभी भी उस सभी वृक्षों की पथरीली आँखें उसपर ही थी।
कुछ दूर चलने के बाद सब पेड़ कम दिखाई देने लगे। अब वह थोड़ी राहत महसूस कर रहा था और उसने प्रियमविधा से पूंछने की हिम्मत जुटाई।

"प्प.र..प्रि.. य.. " विद्युत उसका नाम लेने में भी हिचकिचा रहा था- " ..वो क्या थे?? " उसने बिना नाम लिए ही पूँछा और तुरंत अपने होंठ काटे।

प्रियमविधा लगातार अपने दांत भींचते हुए चल रही थी.. न जाने विद्युत से उसे किस बात की खुन्नस थी.. वह उससे चिढ़ी-चिढ़ी सी रहती थी.. न जाने उसने उसका क्या बिगाड़ रखा था?? विद्युत अपने प्रति उसका गुस्सा अनुभव कर पा रहा था.. पर इस वक़्त वह प्रियंविधा के साथ होने से अधिक खुश था।उस पेड़ से डरे होने के बाद भी वह उसकी बलैयां ही लेता रहा होगा कि उसकी वजह से प्रियमविधा उसे एक बार फिर मिल गयी।

प्रियमविधा की ओर से कोई उत्तर न पाकर.. उसने हिम्मत कर एक आखिरी बार पूंछने की कोशिश की- " क्या वो सब.. 'डेमन्स' है?"

उसने फिर कोई उत्तर नहीं दिया।

" तुम मुझसे गुस्...

" ..तुम तो उस वृक्ष से भी अधिक उद्दण्ड हो.. जो हमारे चेतावनी देने के पश्चात भी यहां पुनः आ गए! " कुछ दूर तक चलने के बाद प्रियमविधा उसपर बरसी। विद्युत ने गौर किया वह उसे बेहद सुनसान जगह पर ले कर आई थी सूनसान मतलब एकदम सूनसान.. यहां तक कि कोई वृक्ष भी नहीं था। वहां से वे रहस्यमयी वृक्ष भी काफी दूरी पर थे।

" क्योंकि अभी वो कल वाली स्टोरी पूरी नहीं हुई थी.. " वह बच्चों की तरह मचलता हुआ बोला।

" हमने तुम्हे कोई कथा नहीं सुनाई.. वह हमारे जीवन का एक..कटुक.. सत्य है.. " कहते हुए प्रियमविधा की आवाज़ भारी हो गई। विद्युत को तुरन्त अपनी गलती का एहसास हुआ कि भला कैसे वह किसी के अतीत के दुख को कहानी का नाम दे सकता है?? जबकि अब तो उन पेड़ो को देखने के बाद उसे पूरा यकीन भी हो गया था कि वह सब सच ही था।

" एम.. सॉरी! " उसे प्रियमविधा को टूटते देखकर बुरा लगा।

" ..ये सभी वृक्ष कोई दैत्य या दानव नहीं हैं.." प्रियमविधा ने खुद को संभाला- " इनमें भी जीवन और भवनायें हैं.. और जिस प्रकार केवल तुम हमें देख पाते हो उसी प्रकार इन्हें भी केवल तुम ही एक ऐसे मानव हो जो अप्राकृतिक ठंग से देख व महसूस कर पाने में सक्षम हो.. " एक बार फिर वह चिढ़ गई जैसे विद्युत का उसे व वृक्षों को देख पाना उसे रास न आया हो।

" म..म्मैं.. सच में कुछ नहीं जानता... कसम से... बिलीव मी.. " उसने अपना बचाव किया । अब वे एक विशाल पत्थर के सामने पहुंच चुके थे।
वहां पर पहुंच कर प्रियमविधा शांत हो गयी और विद्युत ने देखा उस विशाल पत्थर पर हांथों के निशान छपे हुए थे.. एक छोटा तो एक बड़ा..

" हाँथ पकड़ो.. " प्रियमविधा ने अचानक उसी पत्थर की ओर देखते हुए कहा।
" क्या...
" हाँथ पकड़ो..
" हाँ..
" अपने नहीं हमारे.. " प्रियमविधा खीझ उठी जब विद्युत ने मूर्खों की तरह अपने ही एक हाँथ से अपना दूसरा हाँथ पकड़ लिया.. दरसअल विद्युत को उम्मीद नहीं थी कि उसे प्रियमविधा खुद अपने हाँथ पकड़ने को बोलेगी। उसने उसका हाँथ पकड़ लिया और जैसा की उम्मीद थी.. बेशक उसे चार सौ चालीस वोल्ट का झटका लगा और अगले ही पल उसे दूसरा झटका आठ सौ अस्सी वोल्ट का लगा जब प्रियमविधा ने अपना हाँथ उस पत्थर पर बनी छाप पर रखा और वे एक दूसरी ही दुनिया में प्रवेश कर गए...

" जुगनू की दुनिया में.. या ' जुगनान ' में...


..हर तरफ खूबसूरती ही खूबसूरती.. रंग बिरंगे पत्तों वाले बोलते हुए खूबसूरत वृक्षों से लेकर विभिन्न जातियों पशु पक्षियों तक.. विद्युत ने इतने सारे जीव कभी नहीं देखे थे।

उसने कुछ विचलित होकर नज़रे घुमाईं और उसे वे भी नज़र आ गए.. जिनसे उसे हमेशा लगाव रहता है, जिनकी वजह से उसे रातें अधिक पसंद है.. जिन्हें आज वह दिन में जंगल में न पाकर दुखी था...
हर तरफ वे टिमटिमा रहे थे...

जुगनुओं के शहर में प्रवेश करना उसके लिए किसी ख़ूबसूरत सपने से कम न था। वह आगे बढ़ने को हुआ और उसे प्रियमविधा का पकड़ा हाँथ ध्यान में आया। वह वापस खड़ा हो गया कि "जब तक प्रियमविधा को ध्यान नहीं आता.. मैं भी अपनी तरफ से नहीं छोडूँगा..."

पर तुरंत ही उसके अरमानो पर टंकी भर पानी फिर गया जब प्रियमविधा ने अपना हाँथ छुड़ा लिया।

" ये कौन सी जगह है?? " विद्युत ने सामने देखते हुए रोमांच से पूँछा।

" यह 'जुगनान' है.. अर्थात जीवित वन.. यहाँ की प्रत्येक वस्तु मनुष्यवत वार्तालाप करती है.. " कहते हुए वह आगे बढ़ गयी। विद्युत भी उसके पीछे हो लिया ; उसे पीछे देखने का ध्यान ही नहीं रहा कि अब तक जिस जंगल में वे थे अब वहाँ केवल एक विशाल पत्थर था।

बहरहाल , प्रियमविधा उसे अब उसके सारे रहस्यों का जवाब देते हुए आगे बढ़ रही थी।

" पीछे जिन वृक्षों को तुमने देखा और जो वृक्ष यहां है.. वे सभी एक ही अंश है.. परंतु उन्हें इस वन की पहरेदारी की जिम्मेदारी दी गई है..

" और ये दी किसने ? " विद्युत ने एक चिड़ियों के जोड़े को आपस में रूठते - मनाते हुए देखकर मुस्कुराते हुए बेध्यानी से पूँछा। वह आज सभी पशु पक्षियों की भवनायें, उनकी बातें समझ पा रहा था।

" अवश्य बताएंगे.. सबर रखो! "

" हम्म.. " उसने समझ के भाव से कहा- " तुमने बताया नहीं वो पेड़ मेरे ऊपर क्यों चढ़ रहा था?? "

" ..क्योंकि उन्हें मनुष्य की त्वचा का स्वाद लुभाता है.. वे तुम्हे किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते.. बस तुम्हे चाट कर छोड़ देते.. " कहकर प्रियमविधा ने उसका मजाक उड़ाते हुए दबी मुस्कान हंसी ।

" छी!!..यक!!! " विद्युत ने करेले का रस पीने जैसा मुंह बनाया ।
" तो कल? कल तुम मुझे यहां से जाने को क्यों कहा रही थी?? "
" रात के समय तो ये वृक्ष वैसे भी निद्रावस्था में होते हैं। "
" तो फिर?? "
" तुम्हें प्रेतों से भय नहीं लगता??" प्रियंविधा ने उल्टा उससे ही प्रश्न किया।
" ऑफकोर्स लगता है!! "
" बस इसीलिए जाने को कहा था.. उस वन में प्रेत रहते हैं। "

"अरे हाँ! उसने तो साक्षात दर्शन भी किये थे, कल रात।विद्युत को अब अपना सपना याद आया.. उसके सपने में भी उसने प्रेत देखे थे.. और साथ ही प्रियमविधा को.. नहीं!नहीं! वो एक सपना था.. डोंट वरी! कुछ नहीं होगा। ऐसा करेगा कौन? उसके पास इतनी शक्तियां हैं.. ऊपर से वो तो किसी को दिखती भी नहीं तो.. कोई उसे नुकसान पहुंचाए, सवाल ही नहीं "
यद्यपि वह बुरी तरह से घबराया हुआ था.. क्योंकि एक बार पहले भी उसका एक बुरा सपना सच हो चुका है.. और वह वाकइ अपने इस सपने से घबराया हुआ था, क्योंकि प्रियंविधा से मिलते ही अचानक उसे दूसरा सपना आना और वो भी ऐसा.. उसके मन में शंका पैदा कर रहा था.. पर उसने जबरन अपने आप को दिलासा दिया।
उसने नीचे ध्यान नहीं दिया कि वह अपने अगले कदम में एक गहरे नीले रंग के एक छोटे जीव को अपने पैरों से रौंदने वाला था।

" विद्युत..रुको!!! " प्रियमविधा चीखी।

उसने उस छोटे जीव को हांथों में उठाया। उस जीव ने धीमे स्वर में 'माफी राजकुमारी' ' कहा और प्रियमविधा ने उसे दूसरी ओर छोड़ दिया।

विद्युत को केवल इतना ध्यान रहा कि अभी अभी प्रियमविधा ने उसे, उसके नाम से पुकारा था। मतलब उसे उसका नाम पता है जबकि विद्युत ने तो उससे एक बार भी अपने नाम का जिक्र नहीं किया।

उसे याद आया कि उस ऑटोवाले ने उससे कहा था कि वो मैडम ने बोला कि आप विद्युत आहूजा हो।

" तुम्हे मेरा नाम कैसे पता है ? " उसने प्रश्न किया- "..और जब मुझे गोली लगी थी, उस दिन हुआ क्या था एक्जैक्टली?? "

वह चुप ही रही। फिर कुछ देर बाद बोल पड़ी- " हम अक्सर यहां आने से पहले जंगल का मुआयना कर के आते हैं.. उस दिन भी यही कर रहे थे की हमें तुम दिखे.. और तुमसे कुछ ही दूर एक दूसरा व्यक्ति हांथों में एक विचित्र प्रकार की वस्तु लिए खड़ा था जिस ओर तुम्हारा ध्यान नहीं था..

" गन.. उसे गन कहते हैं.." उसने होशियारी से भौंहें चढ़ाई और प्रियमविधा ने उससे ज्यादा ऊँची भौंहें चढ़ाई...

" ..ओके सॉरी.. कंटिन्यू.. "

" ..हम तुम्हे चाहकर भी सावधान नहीं कर सकते थे क्यूंकि हमे लगा तुम भी आम मनुष्य की भाँति हमारा अनुभव नहीं कर पाओगे.. हम कुछ और सोच पाते कि तब तक उसने हाँथ में पकड़ी अपनी उसी वस्तु को तुम्हारी ओर किया ; एक कानफोड़ू ध्वनि हुई और तुम अगले पल ज़मीन पर थे। ठीक उसी प्रकार उसने दो और बार किया और जब तक हम विचार करते वह भाग खड़ा हुआ। हम केवल इतना ही देख पाये कि वन के बाहर कोई उसका अपने वाहन में इंतेज़ार कर रहा था। हम तुम्हारी ओर आये.. तुम्हारे पीछे घाव थे जिससे रक्त बह रहा था.. और यद्यपि हमें इस बात का ज्ञात था कि हमारा तुम्हे स्पर्श कर पाना संभव नहीं!.. परंतु यकायक ही हमारे हाँथ तुम्हे संभालने को बढ़े और..और हमने तुम्हारा स्पर्श अनुभव किया.. हमें लगा कि तुम.. " वह चलते हुए रुक गयी और उसकी आंखें चमकीं।।

" ..कि मैं!!? " विद्युत आगे सुनने को मचला पर प्रियमविधा के चेहरे पर वापस सख्ती के भाव आ गए और वह फिर आगे बढ़ने लगी- " तुम्हारी स्थिति देखते हुए हमने इन सब से ध्यान हटा कर तुम्हे जल्द से जल्द चिकित्सालय तक पहुंचाने का निर्णय किया.. परंतु वन-सीमा से बाध्य होने के कारण हम असफल थे। हमने 'जीवि' को बुलाया.. "

" अब ये '..जीभी..' कौन है?? तुम्हारे टाइम में भी लोग ब्रश-जीभी करते हैं ?? और वो भी बात करते हैं क्या?? " विद्युत ने अजीब सा मुंह बनाया।

" हमने 'जीवि' कहा.. न कि 'जीभी' " कहते हुए वह फिर उसकी ओर पलटी और कुछ सोचते हुए बोली - " एक कार्य करना.. मिलकर स्वयं ही ज्ञात कर लेना.. वैसे भी हम वहीं चल रहे हैं.. "

" ओके! " कहकर विद्युत ने कंधे उचका दिए। उसने सोचा शायद वह किसी जादुई पशु की बात कर रही है।

" ..वही तुम्हे मार्ग तक लेकर गई थी.. और भाग्य से उसी समय वाहनचालक भी वहीं आ गया.. "

" तो उस ऑटोवाले से बात तुमने की थी?.. "

" नहीं.. जीवि द्वारा ही कहलवाया था क्योंकि वह हमें नहीं सुन पाता.. "

" लेकिन उसने तो कहा था कि उसे कोई नहीं दिखा था! "

" क्योंकि जीवि ने जुगनू का रूप धारण किया था।"

" और मेरा नाम.. तुम्हे वो कैसे पता चला?? "

" तुम्हे स्पर्श करने से.. "

" ओह!हाँ!.. मैजिक पॉवर! " विद्युत ने समझ के भाव से कहा।

" तुम्हारे जाने के दो दिवस पश्चात, हमें उसी स्थान पर वही मनुष्य दिखा था, जो उस दिन तुमपर प्रहार करने वाले को अपने वाहन में लेकर गया था... "

" क्यों?? "

" शायद परीक्षण करने आया था कि तुम जीवित हो या नहीं.. "

विद्युत के होंठों पर एक व्यग्यात्मक हँसी परिलक्षित हो उठी जिसे प्रियमविधा ने कनखियों से देख लिया।
" तुम्हारा उससे कोई विवाद है क्या?? कि वह तुम्हारे प्राण लेने को तैयार था!! पर कदाचित उम्र में तुमसे उन्नीस ही रहा होगा। "

" वो मेरा छोटा भाई है.." न जाने क्यों वह प्रोयमविधा से झूँठ नहीं बोल पाया।

" क्या!!? " इसबार प्रियमविधा चौंकी , पर वह आश्चर्य एक भाई का अपने भाई पर जानलेवा हमला करने का था या विद्युत का एक भाई है इस बात का था, यह कहना बेहद मुश्किल था - " परंतु क्यों?? "

" मेरी माँ मेरे पैदा होने के साथ ही खत्म हो गईं थीं.. मेरे पापा ने दूसरी शादी की... कुछ साल बाद मैं उन्हें नागवार गुजरा क्योंकि मैं सौतेला था तो वो अपने बेटे को लेकर चली गयीं.. उनके जाने के बाद पापा भी सब को छोड़कर चले गए।
पापा ने ऑलमोस्ट सारी प्रॉपर्टी मेरे नाम कर दी थी। मुझे कुछ नहीं चाहिए था मैं तो सब कुछ अपने भाई सोम को देने को तैयार था पर मेरी मॉम और मेरा छोटा भाई सोम उस घर को , जिसमे हम सब पले बढ़े हैं ; उसे बेचना चाहते हैं क्योंकि उसकी कीमत करोणों में है.. पर मैं उस घर को कैसे बेचने दे सकता हूँ। वो घर मुझे पापा की याद दिलाता है.. वहां के आधे से ज्यादा फर्नीचर्स या तो वो बेंच चुके हैं या लेकर जा चुके हैं.. पर मैं किसी हाल में उन्हें वो घर नहीं बेंचने दे सकता था इसलिए मैंने उस घर की रॉयल्टी आने पास ही रखी।
बस इसीलिए वो मुझे मारकर उस घर की रॉयल्टी चाहती हैं।"

" मनुष्य प्रजाति ही ऐसी है.. लोभ के लिए अपनो का भी नाश कर दे.. " प्रियमविधा ने अफसोस से कहा।

जब विद्युत ने अपने भाई की गलत परवरिश और संगति की बात बताते हुए उसके ड्रग लेने की बात कही तो प्रियमविधा ने उसे बताया कि वह किसी ड्रग का नहीं बल्कि " जीवि " जे जादू का असर है जिसे प्रियमविधा ने करवाया था। विद्युत परेशान हो उठा तो उसने बताया कि उस जादू का असर अपने आप ही कुछ दिनों में खत्म हो जाएगा।

विद्युत ने राहत की सांस ली पर प्रियमविधा कुछ विचलित हो चुकी थी। उसकी आँखों मे किसी और बात का अफसोस था जिसे विद्युत ने भी महसूस किया पर वह शांत ही रहा और उसके पीछे - पीछे चलता रहा।

-×-×-×-

" ये..किसका..महल.. है!!? " विद्युत की आँखें हैरत से फटी रह गईं।

वह एक बेहद मजबूत, पुराना और खूबसूरत महल था जिसमें मशालों की जगह जुगनू रोशनी बिखेर रहे थे।

" यह जुगनान का जुगकिला है.. इसी जादुई महल के कारण जुगनान बसा हुआ है।"

" लेकिन यहां रहता कौन है.. " वह अभी भी फटी आंखों से हर ओर देख रहा था.. जहां की हर एक वस्तु रहस्यमयी लग रही थी।

" जुगनसेवक.. 'वे ' यहाँ रहते हैं.. " उसने विद्युत की ओर देखा जिसका चेहरा देखकर ही लग रहा था कि उसे कुछ समझ नहीं आया- " अ..अच्छा!..रुको!कुछ छण रुको.. " कहकर उसने अपनी मुठ्ठी बाँधी, और अपने होंठों के करीब लाकर उसने कुछ कहा.. शायद अपनी बाजू पर लिखा मंत्र उच्चारित किया.. और मुठ्ठी खोलते हुए हवा में उसपर फूँक मार दी..

" ये क्या कर रही..

अब हर जगह केवल और केवल जुगनू थे.. और धीरे धीरे कर वे सब मनुष्य का रूप लेने लगे। उनमें से कुछ स्त्रियाँ थीं तो कुछ पुरुष।

" ये सभी 'जुगनसेवक' हैं.. " प्रियमविधा ने उन सब की तरफ इशारा करते हुए कहा।

वे सभी अपने घुटनों के बल, सिरझुका कर बैठ गए। प्रियमविध ने आगे बढ़कर " ये वो नहीं है " कहा तो वे हताशा से वापस खड़े हुए और विद्युत को "कौन है " वाली निगाह से देखने लगे।

प्रियमविधा ने उनमें से एक उसकी ही हमउम्र स्त्री को अपने पास बुलाया और बाकी सब की ओर मुड़ कर बोली - " अभी हम खुद भी भलीभांति सत्य नहीं जानते... अगर कुछ भी भान हुआ तो यकीनन हम सर्वप्रथम आप सभी को ही सत्य से अवगत करायेंगे ; परंतु हमें उसतक पहुंचने के लिए आप सब की सहायता की आवश्यकता है।"

" हमें आप पर विश्वास है राजकुमारी! " उनमें से एक ने कहा और बाकी सभी ने सहमति जताई।

विद्युत को कोई आभास नहीं था कि वास्तव में वहां पर उसकी ही बात चल रही थी...

प्रियमविधा उसकी ओर मुड़ी और इस बार वह नरमी से बोली- " हम जानते हैं.. वर्तमान में तुम्हारे मस्तिष्क में अनेक प्रश्न हैं, परंतु एक पहर के अंदर सब कुछ स्पष्ट होते ही हम तुम्हे भी स्पष्ट कर देंगे। "

विद्युत केवल उसे देखता ही रहा और एक बात वह कसम खा कर कह सकता था कि एक सेकंड को ही सही पर उसे प्रियमविधा की आँखों में अपने लिये कुछ दिखा और जल्द ही छू-मंतर भी हो गया।

" ये 'जीवि' है.. " उसने उस हमउम्र लड़की की ओर इशारा किया- " इस वक़्त तुम इसके साथ चलो.. हम तुमसे कुछ छण बाद मिलते हैं। " कहकर वो जाने को मुड़ी।
" तुम कहाँ जा रही हो?? मैं कैसे अकेले... आई मीन.. मैं तुम्हारे अलावा यहाँ किसी को.. "
" हमपर यकीन है?? " वह बीच में अचानक बोल पड़ी।
विद्युत ने हाँ में गर्दन हिलाई।
" तो अभी जैसा कह रहे हैं वैसा करो!! " उसने वापस रूखेपन से कहा और कहीं चली गयी।

आगे जानने के लिए बने रहें...

पर्णिता द्विवेदी

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