Baingan - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

बैंगन - 13

मैंने एक बार फ़िर भाई के पास जाने का इरादा किया। लेकिन मुझे तत्काल ये ख्याल आया कि अगर मैंने अपनी पत्नी को ये बताया कि मैं भाई के पास जा रहा हूं तो पिछली बार की घटनाओं को देखते हुए वो मुझे जाने नहीं देगी। और अगर मैंने जाने की ज़्यादा ज़िद की तो हो सकता है कि वो भी साथ चलने की बात करे।
उसे साथ में ले जाने में सबसे बड़ी परेशानी ये थी कि फ़िर मैं अपना मिशन आसानी से पूरा नहीं कर पाऊंगा। मैं तो केवल इसीलिए जाना चाहता था कि मुझे भाई के किसी अपराध गतिविधि में शामिल होने का शक था और मैं इसके बारे में पता लगाना चाहता था। पत्नी साथ में होगी तो मुझे गुप्त रूप से कोई खोजबीन करने नहीं देगी। और जो कुछ भी प्रयास मैं करूंगा वो सीधे - सीधे भाभी और बच्चों को पता लगते रहेंगे। हो सकता है कि वो लोग मुझे कुछ करने ही न दें। ऐसी गतिविधियों की खोजबीन आसान थोड़े ही होती है। ख़ुफ़िया तरीके से सोच समझ कर करनी पड़ती है। ये कोई खाला का घर नहीं है कि भाई के पास जाऊं और उससे चिरौरी विनती करूं कि भाई- भाई, बता दे तू क्या खोटा धंधा कर रहा है?
मुझे ये कतई मंजूर नहीं था कि मैं चुपचाप सब देखता रहूं और इस तरह भाई खुद को व अपने परिवार को खतरे में डालता रहे। मैं जान बूझ कर ऐसा नहीं होने देना चाहता था। मुझे भाई की कारगुज़ारी का पता लगाना था और उसे इस रास्ते पर आगे चलने से रोकना था। भाई का परिवार मेरा भी तो कुछ लगता था। मैं मासूम छोटे छोटे बच्चों और भाभी को किसी मुसीबत में घिरते कैसे देख सकता था। आखिर पैसा ही तो सब कुछ नहीं है। परिवार की इज़्ज़त और सुख शांति का भी कुछ मोल है।
अब मुझे ही देखो। मेरी अपनी दुकान भी अच्छी खासी चलती थी। अच्छी आमदनी थी, घरबार सब ठीक ठाक चल रहा था। पर जैसे ही मुझे महसूस हुआ कि दुकान के कारण मुझे सुबह से रात तक सातों दिन व्यस्त रहना पड़ता है मैंने तुरंत दुकान पर एक काबिल मैनेजर रख दिया जो वहां का सब काम अच्छी तरह संभाल सके और मैं घर परिवार और बच्चों पर ध्यान दे सकूं।
इसी से तो अब मैं लगभग फ़्री रहता था।
जब मैंने अपनी मां को भाई के घर में घटी घटना के बारे में बताया तो वो कुछ चिंतित हो गई। लेकिन मेरी पत्नी ने तत्काल मां को समझा दिया कि ऐसा कुछ नहीं है और ये केवल मेरा वहम है कि भाई साहब कुछ गलत कर रहे हैं।
मां अपनी बहू की बात से तुरंत आश्वस्त हो गई और उसे भी ऐसा ही लगने लगा कि ज़रूर मुझे ही कोई ग़लत फहमी हुई होगी। मैं हाथ मल कर रह गया जब मां ने कहा कि मुझे तो ख़ाली बैठे बैठे बेकार की बातें सूझने लगी हैं।
लो, मां ने एक तीर से दो शिकार कर डाले। एक तो मुझे अप्रत्यक्ष रूप से ये सुना दिया कि मैं अब अपना कामकाज मैनेजर के भरोसे छोड़ कर ठाली बैठा हूं और दूसरे मुझ पर अनजाने ही ये आरोप भी मढ़ डाला कि मैं भाई के विदेश जाकर अच्छा पैसा कमा कर लाने से मन ही मन जलन अनुभव करता हूं इसलिए किसी तरह उसे नीचा दिखाने की कोशिश में लगा हूं।
मैं बैठे - बैठे ही मन में अपने को एक बार फ़िर अपमानित महसूस करने लगा। क्या सचमुच यही बात थी कि मैं भाई की तरक्की से जल रहा था?
अगर मुझे सच में ज़्यादा पैसे से इतना ही लगाव होता तो मैं अपने काम को मैनेजर के भरोसे छोड़ कर क्यों बैठता?
पर चलो, यदि सब ऐसा ही सोच रहे हैं तो सोचने दो, मुझे ही कुछ करना होगा। मैंने मन ही मन ठान लिया कि मैं सच्चाई का पता लगा कर ही रहूंगा...!


अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED