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मासूमियत की कीमत


कमरे से हँस-हँस कर रोहित की आती आवाज सुनकर सुनैना उसका गेट खोलती अंदर चली गयी। वो कंप्यूटर पर अपने नये दोस्त विक्टर से बातें कर रहा था।

"हाँ तो अभी लंदन का मौसम कैसा है विक्टर?" वो आवाज को स्पीकर पर डाले था--"ओह मॉम! आप कब आयी? हे विक्टर! ये मेरी मॉम है सुनैना माथुर।" वो, माँ को देखते हुए देखते कहता है।

"हाय सुनैना! कैसी हो आप? आई थिंक अच्छी होंगी।" उधर से विक्टर की खनकती आवाज आयी थी।

"तुम रोहित के फ्रेंड हो तो मुझे आंटी बोल सकते हो।" सुनैना
गंभीर लहजे में बोली।

"ओ नो नो, मै आपको सुनैना ही कहूंगा। मुझे ये रिश्ते बनाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।" वो हँसकर बोला था-" यहाँ तो गर्मी बहुत पड़ती है रोहित! पूरा दिन एसी में रहता हूँ फिर भी पसीना निकलता है।" वो बोले जा रहा था।

सुनैना ने रोहित को घूरकर देखा था--" पर मैने तो सुना है कि लंदन में पूरे साल ठंड का मौसम रहता है।" सुनैना चकित होते हुए बोली--" तुम लंदन में ही रहते हो ना विक्टर।"

"आपको झूठ क्यों लग रहा है सुनैना! मुझे गर्मी ज्यादा लगती है, सबके लिए नॉर्मल हो मौसम पर मुझे तो बेहद गर्मी लगती है।" वो नार्मल सा बोला।

रोहित ने हँसकर माँ को देखा था--" मॉम! आप भी ना, कुछ भी बोलती हो।" सुनैना नाराज होकर बाहर निकल गयी।

"हाँ तो रोहित! आजकल तुम्हारे फ्रेंड्स क्या कर रहे है? सोमेश तो मेरे साथ गेम खेलता है, पर वो शायद तुम्हे लूजर समझता है।" विक्टर बोला।

"वो तो मेरा बेस्ट फ्रेंड है, तुम्हें ऐसा क्यों लगा? क्या उसने कुछ कहा, मेरे बारे में?" रोहित ठहरते हुए बोला था। वो, सोमेश, शौर्य और निलेश बेस्ट फ्रेंड्स थे। सब आर.जी.एम.एइंग्लिश स्कूल में दसवीं के छात्र थे।

"कुश खास तो नहीं पर गेम के एक लेवल को पार कर बोला कि रोहित तो लूजर है, वो इसे चार-पाँच बार में पार कर पायेगा।" वो धीरे से बोला।

"अरे जलता है मुझसे वो।" रोहित नाराज सा बोला।

"और बताओ रोहित! तुम्हें मुझ से बात करने में मजा आता है ना।" वो, रोहित से बाते करने लगा था। उसने अपनी तस्वीरें भेजी थी, जिसमे विक्टर का शानदार दस मंजिला फ्लैट दिख रहा था। वो देखकर रोहित के होश उड़ गये थे। बाइस साल की ही उम्र में वो एक बड़े से बिजनेस अंपायर को खड़ा कर चुका था। उसकी मॉम लंदन की थी और डैड इंडियन थे। दोनों ने लव मैरिज की थी। दो साल पहले वो दोनों एक एक्सीडेंट में मारे गये थे और अब अरबों के बिजनेस का विक्टर अकेला वारिस था। उसका बिजनेस पूरे लंदन के साथ अन्य देशों में भी फैला हुआ था। वो रोहित को अपने इंडिया वाले बिजनेस प्रोजेक्ट में चीफ बनाना चाहता था। रोहित, उसकी बातों से पूरी तरह दीवाना होने लगा था। वो बहुत खुश था, लाखो-करोड़ो के बिजनेस का चीफ बनने की बात सुनकर।

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"अरे रोहित! तुम अभी तक सोये नहीं, रात के डेढ़ बज रहे है।" विनय माथुर बाथरूम से कमरे में जा रहे थे। रोहित के कमरे से आती लाइट और आवाज सुनकर अंदर आये थे। वो विक्टर के साथ ऑनलाइन गेम खेलने में मग्न था।

"ओह डैड! सोने ही जा रहा हूँ, बस विक्टर के साथ गेम का एक राउंड खेलने लगा था।" वो मग्न सा बोला।

"तुम्हें सुबह स्कूल भी जाना है रोहित! तुम लेट सोओगे तो लेट ही उठोगे, फिर स्कूल में लेट होगा। बंद करो ये गेम और सो जाओ।" वो नाराज होकर बोले।

"रोहित! मैने क्या कहा था, तुम्हें?" कंप्यूटर से विक्टर की आवाज आयी थी।

"डैड! आप जाइए, मैं दस मिनट और गेम खेलूंगा, फिर सो जाऊंगा।" रोहित बोलकर फिर से गेम खेलने लगा था। विनय
को गुस्सा आने लगा था, वो अपना पैर पटकते हुए चले गये थे।

"गुड, तुम्हें अपने सारे फैसले खुद लेने होंगे, तभी तो तुम मेरी कंपनी के हेड ऑफ चीफ बनोगे।" विक्टर की मोहक आवाज आयी थी। रोहित खुश होकर खेलने लगा था। विक्टर गेम के साथ बाते भी कर रहा था। दस मिनट के बाद दोनों एक दूसरे को गुड नाइट बोलकर सो गये।

॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

रोहित, रिया और मीता स्कूल चले गये थे। अब घर में विनय और सुनैना बैठकर नाश्ता कर रहे थे। दोनों ही टेंशन में थे।

"तुम रोहित को समझाती नहीं हो क्या? वो देर रात तक अपने दोस्त के साथ गेम खेलता है, माना कि पढ़ाई में वो बहुत जीनियस है, पर रातों को जगना, उसके स्वास्थ्य के लिए तो हानिकारक है।" विनय नाश्ता करने के बाद हाथ पोंछते हुए बोले।

"आपको क्या लगता है, मैंने उसे नहीं समझाया? वो मेरी बात नहीं सुनता है। मुझे तो इसके नये दोस्त विक्टर पर शक है। खुद को लंदन में बताता है, पर वहाँ के मौसम के बारे में सही से बता नहीं पाता है। वो जरूर कोई गुंडा या बदमाश है, जो बच्चों को गेम में उलझा कर पढ़ाई से दूर करवा देता है।" सुनैना परेशान हो कर बोली थी। वो जुठे बर्तन उठाकर किचेन में चली गयी थी।विनय भी उठकर कमरे में आ गये थे। वो ऑफिस के लिए तैयार होने लगे थे।

"कुछ तो करना पड़ेगा सुनैना! वरना हमारा बेटा, बर्बादी के रास्ते पर चला जायेगा। अभी मैं निकलता हूँ, आकर सोचते हैं, क्या करे? ऑफिस के लिए लेट हो जायेगी।" वो गेट से बाहर निकलते हुए उससे बोले थे। वो हाथ हिलाकर बाय बोली और विनय की टैक्सी निकलने के बाद घर के अंदर चली आयी थी।

सुनैना और विनय माथुर मुंबई जैसे महानगर में रहते थे। विनय बैंक में क्लर्क थे। उनदोनों के तीन बच्चे थे। बड़ा रोहित और दो बेटी--रिया और मीता थी। इनका परिवार खुशहाली में अपने दिन बीता रहा था। रोहित को प्रोजेक्ट बनाने के लिए कंप्यूटर की आवश्यकता थी तो कुछ दिन पहले विनय ने उसके जन्मदिन पर लाकर दे दी थी। वो बेहद खुश हुआ था और अब ज्यादातर वक्त कंप्यूटर पर ही बिताता था। कभी-कभी उसके तीनों दोस्त भी घर आकर अपना प्रोजेक्ट बनाते थे। पढाई के बीच में वो, रिया और मीता के साथ कंप्यूटर पर थोड़ा सा गेम भी खेल लिया करता था।

कुछ हफ्ते पहले रोहित ऑनलाइन गेम में विक्टर के साथ खेलने लगा था। वो खुद को लंदन का बताता था। अचानक से वो दोनों खेल कम और बातें ज्यादा करने लगे थे। उनकी बातों से सुनैना और विनय दोनों परेशान हो जाते थे, पर अब पानी सर से ऊपर जाने लगा था। विक्टर, रोहित को घर के लोग, दोस्त और पढ़ाई से दूर कर रहा था। वो, उसे मनमानी करने के लिए उकसा रहा था।

सुनैना बिस्तर पर लेटी सोच में डूबी थी, अचानक ही उसके दिमाग में एक बात आयी, वो उठकर तैयार होने लगी थी।

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"इंस्पेक्टर! आप प्लीज एक बार मेरी बात मानकर उसे अपराधी की सूची में तलाशिए, प्लीज सर! एक बार। मेरा बच्चा मेरे हाथों से निकला जा रहा है।" सुनैना थाने में बैठी इंस्पेक्टर को सारी बातें बताकर स्थिति समझा रही थी--" वो उस अंजान विक्टर पर आँख बंद करके भरोसा करने लगा है। मेरा बेटा बहुत ही शांत और मिलनसार स्वभाव का था, पर अब वो बहुत ही उग्र हो गया है।" वो बोल ही रही थी जब इंस्पेक्टर ने टोका।

"क्या वो आपलोगों की बात नहीं सुनता या आपलोगों से लड़ाई करता है?"

"नहीं ऐसा तो नहीं है, पर अब वो अपनी बहनों से बात नहीं करता, ना ही उनकी पढ़ाई में हेल्प करता है और ना ही उनको कंप्यूटर छूने देता है। स्कूल से आकर कंप्यूटर पर बैठ जाता है और वही खाना भी खाता है। मुझे तो ये भी लगता है कि विक्टर मेच्योर इंसान है और बच्चो को अपने किसी मतलब के लिए दोस्त बनाता है।" सुनैना दुखी होकर बोली।

"अच्छा चलिए, हम विक्टर का नाम चेक करते हैं।" इंस्पेक्टर
उसे लेकर कंप्यूटर आपरेटिंग सिस्टम के पास ले आया था।

"बैठिए" इंस्पेक्टर, सुनैना को बैठने का इशारा किया-- "राकेश! अपराधियों के लिस्ट में विक्टर नाम सर्च करो तो।" कुर्सी खींचकर बैठते हुए वो बोला। राकेश के हाथ तेजी से टाइपिंग करने लगे थे। सुनैना की सांसे तेज चलने लगी थी।

"नो सर! इसमें तो विक्टर नाम का कोई आदमी नहीं है। ये देखिए, नॉट फाउंड दिख रहा है।" राकेश कंप्यूटर इंस्पेक्टर की तरफ घूमाते हुए बोला।

"सॉरी मैडम! आपका अंदाजा गलत निकला। रोहित अभी बच्चा है और इस उम्र में लोग कंप्यूटर और दोस्तों से अच्छे-खासे प्रभावित हो जाते हैं। आपके बेटे के साथ भी यही हुआ है और कोई बात नहीं है। आप घर जाइए और प्यार से उसे समझाया करे, आपका बेटा ठीक हो जायेगा।" इंस्पेक्टर ने शांति से समझाकर जाने कहा, सुनैना मन मारकर उठ गयी थी।

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"हे सोमेश! तू विक्टर को क्या बोला कि मैं लूजर हूँ? तू खुद को ओवर स्मार्ट मत समझा कर, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" रोहित क्लास के बाहर जानबूझ कर उससे टकरा गया था और अब उसे चिल्ला कर वार्न कर रहा था।

"हाँ कहा था, क्या कर लेगा तू? याद है तुझे, मैने ही तुझे गेम खेलना सिखाया था और आज तू मुझसे ही लड़ रहा है। " वो अपने बैज को उतारकर पॉकेट में रखता उसके करीब गुस्से से आ गया था।

"हे गाइज! तुमदोनों को क्या हो गया है? रोहित हमारी दोस्ती के बीच तुम विक्टर को मत लाया करों। मुझे भी वो कुछ ठीक नहीं लगा था।" शौर्य उनदोनों को अलग करता बोला।

"हाँ यार! मुझे उसकी कुछ बाते झूठी लगी थी। वो हम चारों से अलग-अलग बाते करता है और हमें एक-दूसरे से अलग रहने कहता है, ऐसा क्यों?" निलेश ने भी शौर्य की बातों का समर्थन किया था।

"वो इसीलिए कि वो जान गया है, मैं तुम तीनों में ज्यादा बेस्ट और इंटेलिजेंट हूँ।" रोहित गुस्से से बोला--"मुझे आज के बाद तुम तीनों से कोई बात नहीं करनी। आई हेट यू। गो टू हेल।" वो गुस्से से तमतमाता अपने क्लास में चला गया था।

"गाइज! इसको समझाना बहुत मुश्किल है, पर मुझे सच में लगता है कि विक्टर अच्छा लड़का नहीं है। मैने तो पाँच दिन बाद ही उसके साथ खेलना बंद कर दिया था।" शौर्य अपने हिसाब से बोल रहा था।

"हाँ मै भी चार दिन के बाद उससे दूर हो गया था, मेरी मानों सोमेश तो तू भी उसके साथ गेम खेलना बंद कर दे, क्योंकि मैं जानता हूँ वो गेम कम खेलता है और हमें हमारे मॉम-डैड के बारे में उल्टे-सीधे बाते ज्यादा करता है।" निलेश, सोमेश से बोला और शौर्य के साथ क्लास में चला गया। विक्टर, उन चारों के साथ ऑनलाइन गेमिंग रेस करता था और चारों को एक-दूसरे के बारें में उल्टे-सीधे बाते बताता था, जो निलेश और शौर्य को पसंद नहीं था।

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"हे विक्टर! आज तो मैं सोमेश का मुँह तोड़ देता, पर वो दोनों बीच में आकर उसे बचा लिए।" रोहित हँसते हुए विक्टर से बाते कर रहा था।

कंप्यूटर से उसके ठहाके की आवाज आयी--"तुम्हें देना चाहिए था एक जोरदार घूँसा उसे।"

"ये क्या हो रहा है? विक्टर तुम रोहित को ये क्या सिखा रहे हो? तुम दोस्त हो या इसके दुश्मन?" सुनैना जो रोहित के लिए खाना लेकर आ रही थी, दरवाजे पर विक्टर की आवाज सुनकर चिल्ला पड़ी थी।

"हे सुनैना! आप कैसी है? मैं सही तो बोल रहा हूँ, अगर कोई रोहित को लूजर कहेगा तो उसे, उसका मुँह तोड़ देना चाहिए।" विक्टर अब सीधे सुनैना से बाते करने लगा था--"मैं, रोहित का दोस्त हूँ, खुद को उसका शुभचिंतक समझता हूँ, इसीलिए उसे सही सलाह दे रहा हूँ।"

"चुप करो तुम" वो जोर से बोली--"रोहित मेरा बेटा है और मेरी बात सुनेगा, समझे तुम। अपने घटिया आइडिया अपने पास ही रखो।" गुस्से से बोलकर वो खाना टेबल पर रखती बाहर निकल गयी थी।

रोहित पर माँ के गुस्से का कोई असर नहीं हुआ, वो खाना उठा-कर खाने लगा और विक्टर से बाते करने लगा था। विक्टर, रोहित को अपने बिजनेस में पैसों का लेन-देन करना सीखाने लगा था, जिसे वो गौर से सुन रहा था।

"क्या हुआ मॉम! भैया ने आपको कुछ कहा क्या?" रिया धीरे से माँ का तमतमाया चेहरा देखकर पूछी थी। वो दोनों भी अभी स्कूल से आयी थी और लाउंज में बैठकर खाना खा रही थी। कुछ दिन पहले तक यहाँ रोहित भी बैठकर खाता था, पर अब वो यहाँ बैठना छोड़ चुका था।

"कुछ नहीं, तुम दोनों खाओ और अपने होमवर्क कम्पलीट कर लो, तुम्हारे टूयूटर आने वाले है।" वो अपने गुस्से को दबाती मीता को चावल देने लगी थी।

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"अब बोलिए, हमे क्या करना चाहिए। आपके कहने पर मैं रोहित से सख्ती नहीं करती हूँ, पर अब तो आपको कुछ सोचना पड़ेगा। वो विक्टर हमारे रोहित को अपनी तरह इडियट बना रहा है।" सुनैना, विनय के ऑफिस से आने के बाद बोली थी। वो अपने पुलिस स्टेशन जाकर पता लगाने की बात भी बताई थी।

विनय चाय के घूंट लेते हुए सुनैना को ही देख रहे थे। वो गलत नहीं बोल रही थी। उन्होंने खुद रोहित को विक्टर की बात पर उनकी बात काटते देख चुके थे। सुनैना बहुत चिंतित थी।

" सुनैना! मैने कुछ सोचा है। रोहित ने हमारी ढील का बहुत नाजायज फायदा उठाना शुरू कर दिया है, अब उसके सारे ड्रामे खत्म करने होंगे।" विनय उठकर रोहित के कमरे की तरफ बढ़ गया। उसके पीछे सुनैना भी चल दी थी।

"डैड! आप ये क्या कर रहे हैं... छोड़िए मेरा कंप्यूटर ...अरे खराब हो जायेगा।" रोहित चिल्लाकर विनय के हाथों से माउस और कंप्यूटर को खींचने लगे थे।

"छोड़ो रोहित" विनय की गुस्से भरी आवाज से रोहित डरकर साइड हो गया था--" लो पकड़ो सुनैना! इसे लेकर मेरे कमरे में चलो, मैं स्पीकर खोलकर लाता हूँ।" विनय की गुस्से भरी आवाज से वो तेजी से उसके हाथ से लेकर बाहर निकल गयी थी।

रोहित तेजी से मोबाइल पर टाइप करने लगा--"हे विक्टर! डैड, मेरा कंप्यूटर ले जा रहे है, शायद मोबाइल भी छीन लेंगे। अब मैं तुमसे बात नहीं कर पाऊंगा।" और सेंड कर दिया।

"लाओ अपना फोन मुझे दो।" विनय अपना हाथ बढाते हुए बोले। रोहित ने चुपचाप मोबाइल उन्हें थमा दिया था--"तुमने
हमारे प्यार को गलत ढंग से लिया रोहित! अब आज से तुम्हें कोई सुविधा नहीं मिलेगी। तुम अपने सारे प्रोजेक्ट स्कूल में बैठकर लैब से किया करोगे और किसी से मोबाइल पर बात भी नहीं करोगे।" वो बाहर निकलते हुए रुके थे‌--"वैसे भी तुमने अपने हर फ्रेंड से लड़ाई कर ली है तो बात करने की क्या जरूरत है? चुपचाप सो जाओ।"

रोहित की आँखो से आँसू बहने लगे थे। वो अपने हाथों से चेहरा ढककर रोने लगा था।

"क्या ये तरीका ठीक है?" सुनैना अपने डर को विनय के आगे लाती बोली थी। कंप्यूटर को रैक पर रखकर वो ढक दी थी।

"हाँ, अब यही एक रास्ता बचा है सुनैना! इससे वो विक्टर से भी दूर हो जायेगा और अपने दोस्तों के करीब आने लगेगा। रात बहुत हो गयी है, चलो सो जाओ।" वो कहकर लेट गये। सुनैना की आँखो से नींद कोसों दूर चली गयी थी, पर वो भी लेट गयी थी।

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दूसरे दिन रोहित सोकर उठा तो सबसे नाराज था। उसने ना ही नाश्ता किया और ना ही लंच बाक्स लिया था। सुनैना दुखी हो गयी थी।

दोपहर में जब रोहित स्कूल से वापस आया तो सुनैना से खाना मांगने लगा था। वो रिया और मीता के साथ हँस-बोल रहा था। सुनैना को खुशी हुई थी। वो रात तक अपने कमरे में पढ़ता ही रहा था।

"मॉम..डैड! आई एम सॉरी।" वो रात में खाते वक्त उनदोनों से बोला था--"मैंने बाद में काफी सोचा था, मैं बहुत गलत बीहेव कर रहा था। आज से ऐसा कभी नहीं होगा। मैं निलेश, शौर्य और सोमेश से भी कल जाकर माफी मांग लूंगा और अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर दूंगा।"

"रोहित बेटा, तुम्हें हमसे सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है, बस अच्छी बात है कि तुम्हें समझ आयी। तुम पढाई पर ध्यान लगाओ। इस साल तुम्हारे बोर्ड होंगे, उसकी तैयारी पर ध्यान दो।" विनय ने हँसते हुए ही कहा था ताकि उसे बुरा ना लगे।
सुनैना का दिल खुशी से झूम उठा था। सब खाना खाकर सोने की तैयारी करने लगे थे।

॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

चार दिन से ऊपर हो गये थे। रोहित अब पूरी तरह बदल चुका था। वो परिवार के साथ पहले की तरह घुल-मिल गया था। रिया और मीता के साथ खूब मस्ती करता था और उनकी पढ़ाई में भी हेल्प करने लगा था। वो अपने कंप्यूटर और मोबाइल के लिए एक बार भी नहीं बोलता था।

उस दिन सुनैना बच्चों का टिफिन पैक कर रही थी। सब स्कूल जाने की तैयारी में लगे थे, विनय बाथरूम में नहा रहे थे, तभी दरवाजे की घंटी बजी थी। सुनैना हाथ धोने लगी थी--"मॉम! आप काम कीजिये, मैं देखता हूँ, कौन है दरवाजे पर?" वो तेजी से लपका था।

"कौन है रोहित" देर होते देख सुनैना ने उसे आवाज लगाई थी।

"मॉम! वो चैरिटी वाले थे, मैने कह दिया, मेरे मॉम-डैड बीमार है और हॉस्पिटल में एडमिट है, तो वो चला गया।" हँसकर बोला था रोहित। सुनैना उसके सर पर चपत लगाती हँस दी थी--"हट बदमाश कहीं का, मुझसे बोलता, कुछ पैसे दे देती।" वो बोलकर रिया और मीता के बाल बनाने लगी थी। कुछ देर बाद सुनैना सबको टिफिन देकर बस तक छोड़ने जा रही थी। रिया और मीता का बस में बैठकर चली गयी थी। अब रोहित की बस आने वाली थी। वो बार-बार घड़ी देख रहा था।

"क्या हुआ रोहित! बस आ जायेगी, परेशान क्यों हो रहे हो?" उसके चेहरे पर फैली घबराहट देखकर सुनैना बोल पड़ी थी।

"मॉम! हमलोगों को आज कंप्यूटर पर न्यू प्रोजेक्ट बनाना है ना, तो जल्दी जाना था, पर इस बस को देखो ना आज लेट कर रहा है।" वो जल्दी से बोला था।

सुनैना कुछ बोलती इससे पहले ही बस आ गयी थी--"ले आ गयी बस, जा और अपना लंच खा लेना। ओके बाय...।" वो हाथ हिलाती बस को जाता देखती रही थी।

"अपना रोहित सुधरने लगा है ना सुनैना।" वो बाहर से वापस आयी तो विनय टाई गले में लपेटते हुऐ उसके करीब आ गया--"लो बांधो, अब तो खुश रहो सुनैना! रोहित तो ठीक हो गया है। तुम्हारे खूबसूरत चेहरे पर ये चिंता की लकीरे अच्छी नहीं लगती है।" उसके गालों को सहलाते विनय बोला था।

"हटिए, इतनी उम्र हो गयी है, पर आपको तो हर वक्त रोमांस ही सूझता है।" वो टाई बांध चुकी थी और वहां से हटने लगी थी।

"अरे, मेरी धर्मपत्नी तुम इतनी ब्यूटीफूल हो ना कि तुम्हें देखकर तो मैं रोज जवान हो जाता हूँ और रोमांस करने में कोई खराबी थोड़े ना है, अपनी लीगल वाइफ के साथ रोमांस कर रहा हूँ भई।" उसे अपनी तरफ खींचते हुए विनय रोमांटिक होता बोला--"आजकल तुम ना मुझ पर बिल्कुल ध्यान नहीं देती। मेरी आँखों में देखों ना....।" वो उसका चेहरा पकड़ कर उपर उठाता है--"कितना दूर कर दिया है तुमने मुझे खुद से, बहुत मिस करता हूँ तुम्हें सुनैना।"

सुनैना हँस दी--"मेरे लीगल पतिदेव जी! आज आपको लेट नहीं हो रहा है क्या? घड़ी पर एक नजर तो डालिए।" मुस्कुराकर वो उसका चेहरा पकड़ कर दीवार घड़ी की तरफ की थी।

"ओ नो..., पौने नौ बजने चले है। मैं भागता हूँ। मेरा बैग लेकर आओ जल्दी से।" वो जल्दी-जल्दी जूते पहनने लगा था। सुनैना हँसकर कमरे से बैग लाने चली गयी।

"तुम ना मेरा सारा रोमांटिक मूड का कचरा कर के रख दी, आज तुम्हें छोड़ूंगा नहीं, रेड्डी रहना सुनैना रानी।" विनय निकलने से पहले उसे बाहों में भरकर चूम लेता है और धमकी देकर निकल जाता है। वो खिलखिला कर हँस दी थी। घर का दरवाजा बंद कर वो गुनगुनाते हुए घर ठीक करने लगी थी। बेहद खुश थी वो।

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"मॉम-डैड! स्कूल से टूर पर हमलोगो को राजधानी भेजा जा रहा है। सबने फीस जमा कर दी है, अगर आपलोग नहीं बोलेगें तो मैं कल जाकर मना कर दूंगा।" रात में खाने के बाद उठते हुए रोहित बोला था।

"सुबह बता दूंगा रोहित! अभी आराम करो जाकर। ओके गुड नाईट।" विनय आराम से बोलकर खाने लगे थे। वो चला गया
सुनैना, उसे जाता देखती रही थी।

सब सो गये हैं। सुनैना उठकर लाउंज में आयी थी। रोहित के कमरे से कुछ आवाजें आ रही थी। वो धीरे से उसका गेट खोली थी--"अरे रोहित! तू अभी तक पढ रहा है बेटा।" वो बेड पर लेटा किताब खोले बुदबुदा रहा था।

"बस मॉम! हो ही गया था, ये चैप्टर कम्पलीट हो जाएं तो सो जाऊंगा। आप सो जाओ। गुड नाईट।" वो मुस्कुरा कर बोला था।

"गुड नाईट रोहित" दरवाजा बंदकर वो कमरे में चली आयी थी। विनय गहरी नींद में थे। सुनैना, उनके पीठ से लगकर सो गयी।

॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

"रोहित! ये लो तुम्हारे टूर के फीस, स्कूल में जमा कर देना। तुम टूर पर जाने की तैयारी कर लो।" विनय पैसे उसकी तरफ बढाते हुए बोले थे।

"थैंक्स डैड! मैं कोई बदमाशी नहीं करूंगा।" वो हँसकर उनके गले से लग गया था। विनय उसका पीठ थपथपाते हुए हँस दिये थे।

"तुम्हें जो भी चीजे चाहिए हो, शाम में मॉम के साथ मार्केट जाकर खरीद लेना। चलो अब सब अपनी-अपनी तैयारी करते हैं, वरना लेट हो जायेंगे।" वो अपने कमरे की तरफ बढ चले थे।

"हुर्रे" वो जोर से उछलकर चिल्ला पड़ा था। रिया और मीता, उसे देखकर हँसने लगी थी--"रूक, तुमदोनों को मैं बताता हूँ।" वो उन दोनो की चोटी खींचने लपका, पर रिया भाग माँ के पास भाग गयी थी।

"मॉम...मॉम! बचाओ, भैया मेरे बाल नोंचने की कोशिश कर रहे है।" मीता की चीख पर सुनैना उसे हल्के से डांटी थी।

"अरे उसे छोड़ रोहित! अभी तुरंत उसके बाल मैने गुंथे थे। ओह.... पूरा खुल गया।" वो मीता के बाल ठीक करने लगी थी--"अरे चुप कर मीता! मैं ठीक कर रही हूँ ना। क्या रोहित! तू भी ना, कभी-कभी बच्चो की तरह करने लगता है।" वो झुंझलाते हुए बोली। रोहित हँसकर भाग गया था।

॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

शाम में मार्केट से रोहित के लिए कुछ कपड़े और जरूरत के कुछ सामान के साथ चिप्स-भुजिया के पैकेट खरीदकर सुनैना घर आयी थी। रोहित ने सबकुछ लिखकर दे दिया था और खुद पढने की बात बोलकर घर में रह गया था।

"अरे रोहित! एक ग्लास पानी लाकर दे। पूरा थक गयी हूँ मैं।" वो निढाल होकर सामानों का थैला उसे थमाती सोफे पर बैठ गयी थी। वो पानी लाकर माँ को थमाता है और थैले में सामान देखने लगता है--"देख ले कुछ छूट तो नहीं गया है।" सुनैना, उससे बोली।

"नो मॉम! सब ठीक है, बस एक कैमरा नहीं है मेरे पास।" वो धीरे से उदास सा बोलकर कुछ सोचने लगता है, फिर बोला--"छोड़िए, मैं निलेश के मोबाइल से फोटोज ले लूंगा।" अपना सामान समेट कर वो कमरे में चला गया। सुनैना उसके मायूस चेहरे को देखकर सोच में पड़ गयी थी।

॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

"चलो रोहित! सब सामान ले लिया है ना, कुछ छूट तो नहीं गया?" वो आज दस दिन के लिए स्कूल टूर पर जा रहा था। विनय उसके सामानों के बारे में पूछताछ करने लगे थे।

"नो डैड! कुछ नहीं छूटा है। चले अब, बस हार्न बजा रही है।" वो अपना बैग कंधे पर उठाकर बोला था।

"रूको रोहित" विनय अपने कमरे में गये थे। वो सोच में डूबा खड़ा रहा। सुनैना ने रात में विनय से रोहित के लिए कैमरे की बात की थी।

"ये लो तुम्हारा मोबाइल! ये फुल चार्ज है।" उसके हाथ को पकड़कर विनय हथेली पर रखते मुस्कुरा कर बोले थे--"इसमें तुम्हारा सीम लगा है, हमे रोज कॉल करना और खूब सारे फोटोज खींचकर हमें वाटसप् करना। मैने तीन महीने का नेट डलवा दिया है।"

"थैंक्यू डैड! आप मुझसे नाराज तो नहीं है ना?" वो बेहद खुश होता, उनके गले से लग गया था।

"बिलकुल भी नहीं, तुमने इन दो महीनों में खुद में काफी बदलाव लाया है, इसी का ये इनाम है। तुम घूमकर आओ तो तुम्हारा कंप्यूटर भी तुम्हें मिल जायेगा और हम सब मिलकर वाटरलैंड घूमने भी जायेंगे और खूब मस्ती करेंगे।" विनय उसका पीठ ठोंक कर बोले और खुद से अलग किये थे। रोहित खुश होकर माँ के गले लग गया और रिया-मीता को प्यार करके विनय के साथ बाहर निकल गया।

उसके जाने के बाद सुनैना को घर खाली लगने लगा था। वो रोहित के कमरे में आकर किताबों को ढंग से रैक पर लगाने लगी थी।

॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

दस दिन सुनैना के लिए दस बरस की तरह बीते थे। वो रोज रोहित से फोन पर बातें करती थी। वो भी खुश होकर अपने घूमने वाली जगहों के बारे में बताया करता था। हर रोज खूब सारे फोटो भेजा करता था रोहित! जिसे देखकर विनय भी खुश होते थे। रिया और मीता भी अपने भाई को बहुत याद करती थी।

आखिरकार दस दिन बीत गये थे। आज रोहित की टीम की वापसी होने वाली थी। सुनैना सुबह से ही उसके पसंद के खाने बना कर तैयार कर ली थी और अब उसके आने का इंतजार कर रही थी।

"लो आ गया तुम्हारा लाडला।" विनय स्टेशन से उसे लेकर आये थे। वो काफी खुश था।

"रोहित, मेरा बच्चा।" सुनैना, उसके पास जाकर उसे गले से लगा ली थी। आजतक वो कभी भी इतने दिन के लिए उससे दूर नहीं गया था--"मैं तुम्हें बहुत मिस की। तुम्हारे बिना मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था।" आँसू की लड़ियाँ गालो से फिसल कर ढलकने लगी थी।

"हाँ भैया! मॉम ने तो इन दस दिनों में अच्छा खाना भी नहीं बनाया और आज आपके आने की खुशी में सुबह से बना-बना कर किचन भर रही थी।" मीता हँसकर रोहित के कंधे पर लटक गयी थी।

"चल अच्छा है ना, आज तू सबसे ज्यादा खाना। मॉम! मैने भी आप सबको बहुत मिस किया है। वहाँ होटेल के खानों में आपके हाथ का टेस्ट नहीं मिलता था।" रोहित हँसते हुए सुनैना से बोल कर, मीता को पीठ से अपनी गोद में उठाता बोला--"और रिया! क्या तुझे मेरी याद नहीं आयी?"

"भैया" वो दूर से पास आकर रोहित के गले लग गयी और रोने लगी थी--"मुझे आपके बिना घर अच्छा नहीं लगता था। मेरा दिल करता था कि मै स्कूल से वापस ही ना आऊं?" उसे रोता देखकर मीता भी रोने लगी थी। विनय और सुनैना, तीनो भाई-बहनों का प्यार देखकर उदासी में भी मुस्कुरा दिये थे।

"अरे चुप हो मेरी बहना! तुम लोग रो-रोकर मुझे भी रूला दोगी क्या? देख मैने तुम दोनों के लिए क्या-क्या खरीदा है?" वो दोनों को सोफे पर बैठाता अपने बैग से ढेर सारे खिलौने और कलर सेट्स और पेंसिल बाक्स निकाल कर उन्हें थमाया था। दोनों चुप हो गयी और खुश होकर अपनी चीजों को देखने लगी थी।

"डैड! ये आपके लिए" सुन्दर सा पेन होल्डर विनय के हाथो में थमाया था। वो भी खुश हो गये थे--"मॉम! ये आपके लिए"
कॉटन की गोटे लगी बंधेज की सुंदर सी शाल सुनैना के लिए थी। उसकी आँखे खुशी से फिर से झिलमिलाने लगी थी।

"इन सब चीजो की क्या जरूरत थी रोहित! तू अपने लिए कुछ खरीद लेता?" विनय, उससे बोले।

"डैड! मैं भी आप सबसे दूर पहली बार गया था तो सबके लिए कुछ-कुछ लेता आया ताकि मेरे साथ-साथ आप सबको भी मेरी ये ट्रिप याद रहे। मेरे लिए तो आप और मॉम है ना, फिर कभी खरीद दीजियेगा।" वो मुस्कुरा कर बोला था। विनय उसकी बातों से गदगद हो गये थे।

"मॉम! चलिए खाना खिलाइए अब, बहुत जोरों की भूख लगी है मुझे। मैं चेंज करके आता हूँ।" रोहित अपने कमरे में चला गया।

"मॉम! भैया ने कितनी सुन्दर कलर सेट ला दी है मेरे लिए।" मीता खुश होकर बोली थी।

"हाँ सबके लिए कुछ ना कुछ लेकर आया है रोहित! अब मेरा बेटा बहुत समझदार हो गया है।" सुनैना बोलकर उठ गयी --"चलों तुमलोग अपना सामान रखकर आओ, मैं सबका खाना निकाल रही हूँ। आप भी आइए।" वो बोलकर किचन में चली गयी थी।

खाने की टेबल पर रोहित अपने दस दिनों के अनुभवों को बता रहा था। रिया और मीता के साथ विनय भी काफी ध्यान से उसकी बात सुन रहे थे।

"ओह मॉम! मजा आ गया, आपके हाथ का खाना खाकर। मेरा तो पेट टाइट हो गया। अब मैं सोने जाता हूँ, वरना यहीं फट जाऊंगा।" रोहित उठकर बोला और अपने कमरे में जाने लगा था। आज संडे था तो सब घर में ही रहने वाले थे।

"रोहित! अभी आराम कर लो, शाम में हम सब वाटरलैंड घूमने जायेंगे और खूब मस्ती करेंगे। ओके।" विनय, उसको रोकते हुए बोले।

"ओके डैड" वो बोलकर चला गया। रिया और मीता भी अपने कमरे में भाग गयी थी। विनय कमरे में आकर न्यूज देखने लगे थे। सुनैना किचेन में घुस गयी थी।

शाम होने पर वो सब लोग टैक्सी से फिनलैंड घूमने गये थे। वहाँ झूले पर रिया और मीता को खूब डर लगा था, पर मजा भी बहुत आया था। बंदूक से निशाना लगाने में रिया, उन दोनों को हरा दी थी। मीता ने गैस वाले गुब्बारे खरीदवाये थे, अचानक वो गिरने लगी थी। रोहित उसे संभाल लिया, पर उसके हाथों से गुब्बारा छूटकर हवा में उड़ने लगा था। अब वो रोना शुरू कर दी थी। उसे चुप कराते-कराते सब परेशान हो गये थे। उसे दूसरा नहीं, अपना वाला गुब्बारा ही चाहिए था।

रोहित ने उसे बड़ा सा टैडीबियर खरीदकर दिया, तब जाकर वो चुप हुई थी। सबने रैस्टोरेंट में बैठकर एग रोल, पिज्जा और ब्रेड पकौड़ों के लुफ्त उठाए थे।

वापसी में सुनैना बेहद खुश थी। आज बहुत दिन बाद वो घूमने आयी थी। घर में उलझी वो अपने लिए समय नहीं निकाल पाती थी। मीता अपने टैडी को लिए हँस रही थी और रोहित भी रिया के साथ बात करते हुए काफी खुश था। विनय संतुष्ट हो कर टैक्सी की सीट से सर टिका दिये थे।

॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

दूसरे दिन से सब अपने-अपने काम में लग गये थे। रोहित को आज स्कूल जाना था। वो, सुनैना के साथ घर के बाहर बस के इंतजार में खड़ा था। कुछ देर बाद बस आ गयी थी।

"मॉम! यू आर द बेस्ट मॉम।" बोलते हुए वो, सुनैना के गालों को चूम कर गले से कसकर लग गया था।

"अरे, बच्चे की तरह मत कर, जा तेरी बस आ गयी है।" वो हँस कर उसके सर को चूमती उसे खुद से अलग करती बस की तरफ भेजी थी।

"बाय मॉम" वो खिड़की से हाथ हिलाता दूर तक उन्हे देखता रहा। सुनैना भी हाथ हिलाकर बाय करती अंदर चली आयी थी।

"आज रोहित अजीब विहेब कर रहा था।" सुनैना, विनय के टाई बांधते बोली थी। विनय उसकी आँखो में पूछने वाली निगाहों से देखने लगे थे--"वो बस में चढने से पहले मेरे गले से लग गया था। आजतक कभी ऐसा नहीं करता है वो।" वो खोई सी बोली।

"अरे तुम भी ना, बहुत दिनों बाद स्कूल गया है, इसीलिए गले लगा होगा। चलों मेरे बैग लेकर आओ, लेट हो रही है मुझे।" अपने जूते के फीते बांधने लगे थे वो। सुनैना कमरे से बैग लाने चली गयी।

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"हैलो पुलिस! मेरे घर के बगल वाले फ्लैट में कुछ देर पहले बहुत उठा-पटक और रोने की आवाजे आ रही थी, पर अब पूरी शांति पसरी है। आप प्लीज आकर चेक कर लीजिए।" थाने के इंस्पेक्टर को वर्ली से कॉल आया था।

"ठीक है, आप एड्रेस लिखाइए, हम आते है।" इंस्पेक्टर शकील अहमद पता नोट करने लगे थे।

कुछ देर बाद पुलिस लिखाए एड्रेस पर पहुंच चुकी थी। एक आदमी हाथ हिलाता उन्हें रोक रहा था--"हैलो सर! मैने ही फोन किया था। मेरा फ्लैट नंबर दो सौ आठ है और सामने में दो सौ नौ। आज दस बजे उस फ्लैट में शायद कोई आया था। फ्लैट की बेल बजी तो मुझे सुनाई दी थी। मैने निकलकर देखा तो एक तेरह-चौदह साल का लड़का स्कूल ड्रेस पहने बेल बजा रहा था। कुछ देर तक तो ठीक था, बाद में फ्लैट के अंदर से रोने की आवाज आने लगी थी और फिर लगा कोई कुछ उठाकर पटक रहा है तो मैने आपको कॉल कर दिया।" वो आदमी बोला था।

शकील अहमद आगे बढा था। उसके साथ दो सिपाही भी थे।

"दरवाजा खोलो....अंदर कौन है...दरवाजा खोलो...।" दोनों सिपाही दरवाजे के बेल बजाने के साथ-साथ पीट भी रहे थे।

"मोहित-आकाश! दरवाजा तोड़ दो।" इंस्पेक्टर दोनों सिपाही से बोला था। वो दोनों अपनी पूरी ताकत से दरवाजे को धकेलने लगे थे। दस मिनट में दरवाजे का लॉक अंदर से टूट गया। वो चारों अंदर घुसे थे। सामने फर्श पर पूरा खून बिखरा था और उसकी बूंदे अंदर जाती दिख रही थी। शकील, उस निशान के पीछे अंदर घुसा था।

कमरे के पलंग पर एक लड़का जिसके गर्दन पर चाकुओं से कई हमले किए गये थे, मरा पड़ा था। उसके गले का खून अब जमने लगा था। उसके शरीर का स्कूल ड्रेस पलंग के किनारे फटा हुआ पड़ा था। वही कोने में एक चालीस- बयालीस साल के आसपास का आदमी बैठा था। उसके बगल में चाकू फेंका हुआ था और उसके कपड़े खून से सने हुए थे। वो इंस्पेक्टर की तरफ देख रहा था।

"ये कैसे हुआ? तुमने मारा है इस बच्चे को।" शकील गुस्से से पूछ रहे थे।

"ये मुझे मारना चाहता था, मैने अपने बचाव में इसे मार डाला, मेरी गलती नहीं है इंस्पेक्टर।" वो रोते हुए बोल रहा था।

"अरेस्ट कर लो इसे।" शकील गुस्से से मोहित से बोला--"और तुम फोरेंसिक वालों को फोन करो।" आकाश से कहता कमरे में सर्च करने लगा। पलंग के नीचे एक मोबाइल टूटा पड़ा था। शकील, उसे किसी तरह सेट करके कॉल लिस्ट सर्च करने लगा था।

"हैलो! क्या क्या ये नंबर आपके बेटे का है?" अंजान नंबर से विनय को शाम के पाँच बजे कॉल आया था। वो अपने कामों को समेटने में लगा था।

"हाँ, पर आप कौन है?" विनय टेंशन में आ गये थे।

"आप वर्ली में गली नंबर दस, फ्लैट दो सौ नौ में आ जाइए, आपका बेटा घर नहीं गया है, यही है।" शकील गंभीरता से बोलकर फोन रख दिए थे। विनय को कुछ बुरा होने का एहसास हुआ था। उसने अपने फोन को देखा जहाँ सुनैना के दस से ज्यादा मिस कॉल थे। फोन साइलेंट हो गया था, जिससे उन्हे पता नहीं लगा। वो सुनैना को फोन लगाने लगे।

"हैलो सुनैना।" उधर से वो रोती रोहित के घर नहीं आने की बात बताई थी। विनय उसे सांत्वना देते हुए रोहित के वर्ली में होने की बात बताकर वहां जाने की खबर देते हैं और चिंता नहीं करने बोलकर फोन रखते है। वो मैनेजर से छुट्टी लेकर निकल पड़े थे।

शकील को कमरे से अश्लील वीडियो, फोटोज और कई ऑडियो कैसेट्स बाथरूम के बाथटब में तोड़ कर डुबाई मिली थी। दूसरे कमरे से अलग-अलग स्कूलों के बच्चो के फोटो दीवार पर टंगे हुए थे, जिसपर लाल मार्कर से क्रास के निशान लगे थे। शकील चकरा गये थे ये देखकर कि सब फोटो करीब चौदह साल के लड़को के ही थे और सब स्कूल के छात्र ही थे।

फोरेंसिक टीम आ गयी थी। वो लोग लाश की जाँच कर रहे थे। उसके साथ अप्राकृतिक कृत्य करने की कोशिश की गयी थी। गले के जख्म बता रहे थे कि बेचारे ने बहुत तड़प कर दम तोड़ा था। टीम को उस कमरे में रखे कंप्यूटर से बहुत सारे बच्चो से की गयी बातों के रिकार्ड मिले थे। गोदरेज के रैको में कुछ बच्चो के आइडेंटिटी कार्ड और कपड़े छुपाऐ हुए थे।

"कहाँ है मेरा रोहित" विनय पुलिस की गाड़ी देखकर घबराते हुए अंदर घुसे थे। सामने ही रोहित के मृत शरीर को पॉली बैग में डाला जा रहा था। विनय चित्कार कर उठे थे।

"मेरा बेटा! रोहित ....रोहित क्या हुआ तुझे..उठ बेटा, देख तेरे डैड आये है तुझे लेने...उठो रोहित......।" वो रोते हुए उसे पकड़ने की कोशिश कर रहे थे, पर शकील ने उन्हें कसकर पकड़ लिया था।

"मिस्टर.., प्लीज खुद को संभालिए, वो अब जीवित नहीं है।
हमें उसके बैग और मोबाइल मिले हैं। आप बताइए वो यहाँ क्यों आया था? क्या रोहित इस आदमी को जानता था?" उस आदमी के तरफ ऊंगली दिखाकर शकील ने पूछा।

विनय उसके कपड़ों पर खून के निशान देखकर खुद को शकील की पकड़ से आजाद किया और उस आदमी पर लपकते हुए दो-चार थप्पड़ लगाकर चिल्ला पड़े थे--"तू कौन है बता और मेरे बेटे से क्या दुश्मनी थी? नाम क्या है तेरा? बोल वरना मैं तुझे मार दूंगा।" वो लगातार उसे मारे जा रहा था।

" मै विक्टर हूँ, मुझे मत मारों...तुम्हारा बेटा मुझे मारने आया था, पर खुद को बचाने के चक्कर मे मेरे हाथ से वो मारा गया।" वो गिड़गिड़ाते हुए बोल रहा था।

विनय को शकील खींचकर बैठा दिये थे। वो अपने सर पर हाथ रखकर रोने लगे--"तो तुम विक्टर हो और हमलोग सोच रहे थे कि मेरा बेटा तुमसे दूर हो चुका है, पर ये हमारी भूल थी। वो तो तुमसे बहुत प्यार करता था, वो तुम्हें नहीं मार सकता, तुमने किसी मकसद से उसे मारा होगा। तुमने मेरे बच्चे को क्यों मारा विक्टर?" वो फूट-फूटकर रोने लगे थे।

"हाँ सुनैना...सुनैना! हमारा रोहित ...रोहित, नहीं ..रहा। उसे विक्टर ने मार डाला।" सुनैना के आये फोन को उठाकर विनय रोते हुए बोले थे। उधर से सुनैना के चीखने की आवाज आने लगी थी। विनय जोर-जोर से रोने लगे थे।

॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

आज रोहित को मरे चौथा दिन है। विनय के घर में सन्नाटा पसरा हुआ है। सब लाउंज में चुप होकर बैठे हैं। सबके दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि रोहित, विक्टर के पास कैसे पहुंचा और उसने रोहित को क्यों मारा? तभी विनय को पुलिस स्टेशन से फोन आता है--"मिस्टर विनय! आप अपनी पत्नी के साथ यहाँ आ जाइए।"

विनय, रिया और मीता को पड़ोसी के यहाँ रखकर सुनैना के साथ पुलिस स्टेशन निकल गये। वहाँ पर कुछ पैरेन्टस रोते हुए बैठे थे। सुनैना सबको रोता देखकर विनय की तरफ देखते लगी थी।

"आइए मिस्टर विनय" शकील अहमद ने उन्हें देखकर बुलाया था--"आप रोहित की माँ है?"

"जी इंस्पेक्टर! विक्टर ने बताया कुछ....।" पूछते हुए सुनैना की आवाज भर्रा गयी थी।

"आपलोग बैठिए, अभी हर बात आपको पता चल जायेगी।" उन्हें कुर्सी की तरफ इशारा करता है।

"आकाश! उसे लेकर आओ।" शकील ने आवाज लगायी थी।

सामने से आते हाथ-पैरों में हथकड़ी जकड़े उस चालीस साल के शख्स को देखकर सुनैना बोल पड़ी--"ये विक्टर है? मैने आपसे कहा था ना कि विक्टर अठारह साल का नहीं, कोई मैच्योर इंसान लगता है।"

"मुझे अब मत मारिए इंस्पेक्टर! मैं सबकुछ बताता हूँ।" शकील ने आकाश के हाथो से लोहे का रॉड लेकर दो रॉड उसे कसकर लगाया था। उसके चेहरे और शरीर के चोटों को देखकर पता चल रहा था कि उसने अपना मुँह खोलने के लिए कितना मार खाया होगा? वो दीवार से सटकर फर्श पर बैठ गया था। शकील ने रॉड टेबल पर रख दिया और कुर्सी पर बैठ गया।

"मेरा नाम गोविंद मुर्मू है। मैं हिमाचल का निवासी हूँ। मुझे अपने स्कूल लाइफ से ही खुद से छोटे लड़को के साथ दोस्ती करना बहुत पसंद था। धीरे-धीरे ये दोस्ती उनसे प्यार में बदलने लगी थी। मुझे लड़को से प्यार होने लगा था। कॉलेज लाइफ में मैंने पहली बार अपने जूनियर छात्र के साथ अप्राकृतिक कृत्य किया था। उसने अपने घर में सबको बता दिया था जिसके कारण उसके पैरेन्टस की शिकायत पर मुझे कॉलेज से निकाल दिया गया था। मेरे माता-पिता ने भी मुझे ठुकरा दिया और मुझसे नाता तोड़ लिया। अब मैं भूख-प्यास से तड़पने लगा था। एक दिन हार कर मैं मुंबई चला आया। यहाँ मैने अपना नाम विक्टर रख लिया था। यहाँ मजदूरी करके मैने कुछ पैसे जोड़े और एक छोटा सा घर ले लिया। उसके बाद कुछ अमीर घर के बच्चो को किडनैप कर उसके माँ-बाप से अच्छा रकम लूटा। मेरा ये धंधा अच्छा चल पड़ा। इससे मुझे पैसे भी मिलने लगे और मेरी इच्छा भी पूरी होने लगी थी। बाद में मैने एक फ्लैट और कार खरीद ली। वहाँ पर बच्चो से दोस्ती कर, गेम खेलने की बात कहकर बुलाता था और उनसे अपनी इच्छा पूर्ति करता था, बाद में उन्हें मारकर रात में कार से समुद्र में फेंक आता था। कुछ दिन बाद उस फ्लैट में काफी लोग बसने लगे थे। अब बच्चो को पकड़कर रखना रिस्की हो गया था तो मैने कंप्यूटर खरीद लिया और उससे ऑनलाइन बच्चो को गेम के जरिए फँसाने लगा। उन्हे अपने करोड़ो-अरबों की बिजनेस की झूठी बात से इम्प्रेस कर, उन्हें उसका चीफ बनाने की बात कहता था।"

"तुम्हारे दीवार पर लगे बच्चो की फोटो किसकी थी?" शकील ने उसे रोकते हुए पूछा।

"मैं उन सब बच्चो से ऑनलाइन गेम खेलता हूँ और उन्हें एक-एक कर बुलाने वाला था।" विक्टर बोला।

"इन लोगों को जानते हो? शकील ने वहाँ बैठे पैरेन्टस की तरफ ऊंगली दिखाते हुए गुस्से से पूछा। उसने "नहीं" में सर हिलाया--"तुम्हारे गोदरेज में मिले आइटेंन्टी कार्ड पर मिले नबंरो से इन्हे बुलाया गया है। तुमने जितने बच्चो को मार डाला, ये लोग उस बच्चे के पैरेन्टस है।" तेज आवाज में शकील चिल्ला कर बोला था। कुर्सी पर बैठे लोगों के रोने की आवाज आने लगी थी।

"पर हमने तो रोहित से कंप्यूटर और मोबाइल छीन लिया था, तो वो तुम्हारे पास कैसे आया?" विनय दुखी होकर उससे पूछे।

"रोहित और उसके दोस्त जब मेरे साथ गेम खेलने लगे तो मैं समझ गया रोहित सीधा-साधा है और मेरे झांसे में आसानी से फँस सकता है। मैने, उसे धीरे-धीरे आपलोगों और उसके दोस्तों के खिलाफ भड़काना शुरू किया। उसे मैं अपने इंडिया वाले प्रोजेक्ट में चीफ बनाने की बात कहता था। वो मुझसे बहुत इम्प्रेस हो गया था। बाद में मैने उसे अपना मोबाइल नंबर दिया और उसके घर का एड्रेस भी पूछ लिया था। अब वो अपने मोबाइल से भी मुझसे बात करने लगा था। वो स्कूल के साथ-साथ देर रात तक बिस्तर में भी मुझसे बातें करने लगा था। आप लोगों ने जब उसके रूम से कंप्यूटर खोलना शुरू किया तो उसने मुझे मोबाइल से एसएमएस कर दिया था। दूसरे दिन उसने स्कूल के ऑफिस फोन से मुझे कॉल किया और सब बात बताया। मैने उसे पाँच दिन बाद मोबाइल घर भेजने की बात कही थी। पाँच दिन के बाद मैने उसके एड्रेस पर एक मंहगा मोबाइल खरीदकर भेज दिया, जिसे उसने ही कूरियर वाले से लिया था।" वो सुनैना की तरफ देखता बोला।

सुनैना को याद आया, उसने चैरिटी वालों के बारे में बताया था और उस दिन वो जल्दी स्कूल पहुंचने के लिए बेचैन था।

"अब वो घरवालों से छुपकर मुझसे बाते करता था। मैने उसे समझाया था कि तुम एकदम पहले की तरह बिहेव करो ताकि आपलोगों को कोई शक ना हो। मैने उसका दोस्तों के साथ भी झगड़ा खत्म करवा दिया था। रात को जब आप चेक करने जाती थी, उसके रूम में तो वो किताबों के पीछे फोन रखे रहता था। अब मैं उसे अपने पास बुलाना चाहता था, पर उसके स्कूल टूर बीच में आ गये। टूर पर वो मुझसे बिना छुपे हरदम बात करता था। मैने उसे अपने इंडिया में बिजनेस के सिलसिले में होने की बात बतायी और साथ ही अपने तबितय खराब की झूठी बात बताकर खुद से मिलने आने कहा। वो बहुत एक्साइटेड हो गया था। उसने वादा किया कि टूर के बाद फर्स्ट दिन स्कूल जायेगा तो मुझसे मिलने आयेगा।" विक्टर बोल रहा था।

सुनैना को याद आया वो उस दिन स्कूल जाते समय किस तरह उससे कसकर गले लगा था। उसके आँखे बहने लगी थी।

वो बस से उतरकर स्कूल के बाहर वाले दुकान से पेन खरीदने के बहाने वहाँ से भाग गया। जब वो मेरे बताएं एड्रेस पर आया तो फ्लैट देखकर मुझे कॉल करने लगा था। वो पूछ रहा था कि मैं किसी होटेल में क्यों नहीं ठहरा हूँ? मैने उससे कहा कि पहले अंदर आओ तब बताता हूँ। वो मेरे दरवाजे की गेट तक आ गया और बेल बजाने लगा था। बेल की हर आवाज पर मैं खुशी से झूम उठता था। मैने उसे अंदर लाया। वो मुझे नहीं पहचान पाया क्योंकि मैने अपने फोटो के बदले उसे किसी विदेशी बाइस साल के लड़के की फोटो उसे भेजी थी। वो सॉरी बोलकर वापस जाने लगा था, पर मैंने उसे जबरदस्ती अंदर खींच कर दरवाजा लॉक कर लिया था।

अब मैं उसे झूठे-सच्चे बातों में उलझाने की कोशिश करने लगा, पर वो मेरी कोई बात नहीं सुन रहा था। उसे शायद मुझ पर शक हो गया था। मुझे बहुत गुस्सा आया, मैने उसे बेल्ट से बहुत पीटा और उसके सारे कपड़े फाड़ दिये। अब वो बाहर भाग नहीं सकता था। उसके लिए मैने बहुत प्यार से पास्ता बनाया था जिसे वो नहीं खाना चाहता था, पर मेरे थप्पड़ों की मार के डर से खाने लगा। मैं बहुत खुश हुआ। वो अपने फोटो से ज्यादा खुबसूरत था, मुझसे अब अपनी भावनाएं संभाली नहीं जा रही थी। मैने उसे प्यार से सहलाते हुए कमरे में चलने कहा। वो पिटाई से डरकर उठा, पर वो बच्चा मेरी सोच से ज्यादा तेज निकला। उसने किचेन सेल्फ से धारदार चाकू उठा लिया और मुझ पर हमला करने की कोशिश करने लगा था। मुझे उस पर बेहद गुस्सा आया, कहाँ मैं ताकतवर और शक्तिशाली आदमी और कहाँ वो एक चौदह साल का कमजोर बच्चा। मैने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, पर वो मेरी कोई बात मानने को बिलकुल तैयार नहीं था। वो जोर-जोर से रोकर अपनी हेल्प के लिए चिल्लाने लगा था। मेरा गुस्सा अब आउट ऑफ कंट्रोल हो गया। अगल-बगल के लोग सुनते तो यहाँ पहुँच जाते, मैने अपने दिल पर पत्थर रखकर उसके हाथों से चाकू छीना और ताबड़--तोड़ उसके गले पर हमला करने लगा। वो बिस्तर पर धराशायी होकर गिर गया। उसके खून से मेरा शर्ट भींग गया था। मुझे बहुत अफसोस हुआ, पर उसे मारना ही पड़ता। अब मैने सारे सबूत मिटाने शुरू कर दिये, पर मेरे सामने वाले पड़ोसी ने उसकी चीख और पिटाई की उठा-पटक की आवाज सुनकर आपलोगों को कॉल कर दिया।" वो रोते हुए बोल रहा था--"पर मैं उसे इतनी जल्दी मारना नहीं चाहता था। वो मुझे बहुत पसंद था। उसे मैं एक-दो महीने जिंदा रखता, उससे ढेर प्यार करता , फिर मारता,,,,पर उसने मुझे मजबूर कर दिया था।" अपने कठोर चेहरे पर मासूमियत की छाप लाने की बेकार कोशिश करता वो बोला।

सुनैना और विनय एक बार फिर से फूट-फूट कर रो उठे थे। शकील अहमद गुस्से से रॉड टेबल से लेकर उसे मारने लगा था। उसकी बिलबिलाती चीखों से पूरा थाना थर्रा उठा था।

॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

आज पूरे छ महीने बाद गोविंद मुर्मू उर्फ विक्टर को अदालत से सांस टूटने तक कारावास की सजा मिली थी। सुनैना और विनय अदालत से बाहर आये तो शकील अहमद ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा था--"आपदोनों अब खुद को संभालिए, रोहित और अन्य बच्चों के कातिल को सजा मिल चुकी है, अब आपलोग अपने दूसरे बच्चों पर ध्यान दीजिए।"

रोहित के सारे दोस्त उनदोनों से आकर मिले थे और खुद को रोहित की तरह समझने बोलकर गये थे। सोमेश सबसे लास्ट में आया था। उसने सुनैना को गले से लगा कर कहा--"आंटी!
आज से मैं आपका रोहित हूँ। वो तो चला गया पर मुझे और मेरे जैसे कितनों नासझम लड़कों को समझा गया। रोहित के बाद विक्टर का अगला शिकार मैं ही बनने वाला था, पर....।"
वो कुछ देर चुप हो गया। उसकी आँखे भर आयी थी--"आज से आपलोगों को जब भी रोहित की याद आये, मुझे बुला लीजियेगा। ओके, अभी मैं चलता हूँ।" वो अपने आँसू पोछते हुए चला गया था।

विनय और सुनैना रोहित को याद करने रोने लगे थे। दोनों की सोच एक समान ही थी--"काश...रोहित ने हमारी बात मानी होती.....काश...वो विक्टर से दूर रहता।"

समाप्त


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