लेखिका - रेखा पंचोली
* खतरनाक कोरोनावायरस और चीन
वह अंदर आकर सोने का उपक्रम करने लगी किंतु नींद आंखों से कोसों दूर थी ।आजकल कई दिन ऐसे ही गुजर जाते कभी रात को नींद नहीं आती तो कभी दिन में बेचैनी सी महसूस होने लगती, यह कहां आ गए थे हम ऐसा तो कभी सोचा नहीं था, कि इतनी जल्दी ऐसे दिन आएंगे। किताबों में पढ़ा सुना था कि जब प्रलय आती है ,तो दुनिया खत्म हो जाती यह सब कुछ इतना ही विध्वंसक और प्रलयंकारी था। जिस तरह से कोरोनावायरस चीन से निकलकर पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रहा था। हजारों लोग कॉरोना से ग्रसित हो चुके थे । इतनी जल्दी प्रलय का अहसास होगा ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचा था। अमेरिका, इटली, चीन ,फ्रांस ,ब्रिटेन ,भारत छोटे-बड़े सभी देश भी इसकी चपेट में आ चुके थे। कोरो ना इतनी खतरनाक बीमारी थी कि वह किसी को छू लेना तो दूर 1 मीटर दूर से भी फैल सकती थी ।यह किसी की छुई हुई चीज को स्पर्श करने से भी फैल सकती थी ।जितनी यह खतरनाक थी उतनी ही जानलेवा भी थी। अनेक सवाल मन में आते थे। कई बार कई रातें बिना सोए गुजर जाती थी। क्या यह महामारी चीन द्वारा अनजाने में फैली थी या यह एक जैविक युद्ध था ,दुनियां का तीसरा और सबसे भयावह विश्वयुद्ध जिसमें पूरी दुनियां जीवन के लिए संघर्ष कर रही थी। जिस का मुकाबला मिलिट्री से नहीं था या सैनिकों को नहीं मारा जा रहा था ।बल्कि आम जन ,मासूम बच्चे , बूढ़े ,स्त्रियां और जवान निर्दोष , बेगुनाह, निरीह लोग सब इसकी चपेट में आ रही थे। नित नए आंकड़े बढ़ ते ही जा रहे थे। संक्रमित और मरने वालों के आंकड़े गिनने के अलावा जैसे हमारा कोई काम नहीं रहा था। घरों में बैठे हम जैसे लोग टीवी के सामने बैठे या सोशल मीडिया पर आंखें गड़ाए मरने वालों और संक्रमित की गिनती ही करते रहते थे । यह स्थिति लोगों का मानसिक संतुलन खराब करने के लिए पर्याप्त थी ।हल्का सा खांसी- जुखाम बुखार यह शक मन में पैदा कर देता था कि कहीं यह कोरोनावायरस का संक्रमण तो नहीं ! कहीं हम मौत की तरफ तो नहीं बढ़ रहे!!
चीन की भूमिका संदिग्ध थी ,किंतु यह कहने का साहस सिर्फ अमेरिका ही कर रहा था। बाकी देश चुप थे क्यों चुप थे ? नहीं पता ! डब्ल्यूएचओ भी इस मामले में खामोश था। चीन के वुहान नामक शहर से यह वायरस फैला था। सबसे पहला मामला दिसंबर में आया था ।उसके बाद हम वहां के वायरल वीडियोस देखते रहते थे कि किस तरह चीन में यह कोरोनावायरस अपना प्रभाव दिखा रहा है ।तब सोचा भी नहीं था कि चीन से चलकर सारे विश्व में फैल जाएगा और केवल विश्व में ही नहीं हमारे देश, हमारे राज्य ,हमारे शहर में भी आकर दस्तक देगा और आज यह हालात थे कि हमारे घर से दो-तीन किलोमीटर दूर कोराना वायरस से संक्रमित एरिया था और यह सुमेधा के शहर का ही हाल नहीं था ।भारत में हमारे देश के अधिकांश शहरों में कोरोनावायरस दस्तक दे चुका था और यही हाल विश्व के सभी देशों का था । क्या यह वायरस पूरी दुनिया को निगल लेगा?
चीन की भूमिका पूरी तरह संदिग्ध थी। जब पहली बार वहां पर यह संक्रमण फैलने लगा तो ऐसा सुना गया कि किसी पत्रकार और डॉक्टर ने आगाह किया कि यह संक्रमित करने वाली महामारी है और तेजी से फैल सकती है| किंतु उस डॉक्टर की बात को दबा ही नहीं दिया गया बल्कि उसे निलंबित कर दिया गया। संक्रमण फैलता रहा पूरे वुहान में कई लोग ,हजारों लोग इसकी चपेट में आ गए और मौत के मुंह में चले गए लेकिन चीन ने, ना तो अपने यहां की हवाई यात्राएं बंद की और ना ही अपने यहां से निर्यात करना बंद किया और और इस तरह पूरा विश्व इस महामारी की चपेट में आ गया।
यह घोर लापरवाही थी, गैर इरादतन हत्या का प्रयास था ।लाखों-करोड़ों लोगों को मौत के मुंह में धकेल ना था । जब एक व्यक्ति की गैर इरादतन हत्या का प्रयास भी हो या गैर इरादतन हत्या हो जाए तो उसके लिए केस चलता है ।तो चीन को क्यों छोड़ दिया जाना चाहिए ? वह लाखों लोगों का गुनाहगार है। अभी तो सिर्फ लाख तक ही पहुंचे हैं। यह संख्या करोड़ों तक भी पहुंच सकती हैं।
एक किताब के हवाले से कहा तो यह भी गया कि वुहान में चीन ने एक लेब बनाई हुई है ,जिसका किसी को पता नहीं है ,वहां कोई आसानी से जा नहीं सकता और वहां पर इस प्रकार के जैविक हथियार पर कई वर्षों से प्रयोग चल रहा था । यह भी अंदाजा लगाया गया कि यह चीन का तीसरे विश्वयुद्ध का आगाज था और इस प्रकार छुपे हुए जैविक हथियार से उसने वार किया। यद्यपि चीन द्वारा यह सफाई दी गई कि यह वायरस चमकादड़ों से फैला है ।चमगादड़ के अंदर इस प्रकार का वायरस होता है, किसी मनुष्य ने चमगादड़ का सूप पिया और उसी के जरिए यह वायरस फैला और इससे कई लोग चपेट में आ गए। कुछ भी हो इससे पूरी दुनिया पर मौत का और आर्थिक मंदी का संकट गहरा गया था । कई देशों की गति लोक डाउन के चलते रुक गई थी भारत में भी 22 मार्च से जनता कर्फ्यू और उसके बाद से ही संपूर्ण देश को लोक डाउन कर दिया गया था । यह अच्छी बात थी कि भारत में इस समय जो प्रधानमंत्री हैं वह अत्यंत ही सूझबूझ से काम लेने वाले है। चीन में संक्रमण फैलने के तत्काल बाद ही
उन्होंने वहां से सभी प्रकार की हवाई यात्राएं रद्द कर दी थी और वहां पढ़ रहे भारतीय छात्रों को एअरलिफ्ट करके भारत में बुला लिया था। स्थिति बिगड़ने से पहले ही उन्होंने पूरी एहतियात बरती थी और संपूर्ण देश को लोक डाउन कर दिया था । सब कुछ ठीक चल रहा था और ऐसा लग रहा था कि अन्य देशों से हमारे देश की हानि बहुत कम होगी लेकिन इसी समय सामने आया एक जातिविशेष की जमात और दिल्ली में स्थित इन का सबसे बड़ा धार्मिक स्थान । कहा नहीं जा सकता की इनकी कितनी भूमिका थी पर एक न्यूज़ चैनल ने उसे जिम्मेदार ठराया |
* लोन में नाश्ता और घटनाओं पर चर्चा
हम ठीक 8:30 बजे लोन में नाश्ता लेकर आ गए ।आज नाश्ते में आलू के पराठे खमन , धनिए की चटनी दही था । नाश्ता समीर के साथ हम सब अच्छी मात्रा में ही लेते थे । 2:00 बजे तक फिर समीर कुछ नहीं खा सकते थे।आजकल समीर के साथ ही पूरा परिवार सुबह का नाश्ता सोशल डिस्टेंस इंग का पालन करते हुए लोन में ही करता था। समीर सुबह 8:30 बजे नाश्ता करने के पश्चात सुरक्षा की दृष्टि से अपना पूर्ण मेडिकल सूट पहन लेते थे और उसके बाद 2:00 बजे तक पानी भी नहीं पीते थे ।वहां से लौट कर नहा कर ही थोड़ा बहुत खाते थे । और फिर पुनः शाम को 5:00 बजे हॉस्पिटल चले जाते थे । कितना बड़ा त्याग था ना । हम सब लोन में बैठे नाश्ते के साथ बातें कर रहे थे ।मैंने समीर से तभी जानना चाहा कि कल वे कैसे लेट हो गए थे। समीर ने बताया की पहली घटना तो यह घटी की जो कोरोना पीड़ित लोग आइसोलेशन के लिए हॉस्पिटल में लाए गए थे । उनमें से एक महिला ऐसी थी ,जो अपने आप को मानसिक रोगी दिखा रही थी और दौड़-दौड़ कर सब को छूने का प्रयास कर रही थी। इसी चक्कर में पूरा स्टाफ डिस्टर्ब हो गया था ।सब लोग इधर से उधर भाग रहे थे कि कहीं वह किसी को छू ना ले और वह इस तरह से बेखौफ होकर लोगों को छूने के लिए दौड़ रही थी जैसे कोई खेल, खेल रही हो। आइसोलेशन वार्ड से बाहर निकलकर वह अन्य कमरों और स्टाफ के के रुम में भी घुसी थी| इसलिए बाद में पूरे हॉस्पिटल को जहां-जहां वह गई सेनिटाइज करवाया गया और महिला पुलिस को बुलाकर उससे कंट्रोल किया गया । फिर उससे अलग ही रूम में कवरेंटाइन किया गया । पता है उस एक अकेली औरत के लिए 4 महिला सिपाहियों की ड्यूटी लगाई गई है। इनमें से एक सुनंदा के चाचा की लड़की निशा भी है। हां निशा उसकी तो अभी डेढ़ साल की बेटी है। क्या उसे कोरोना का खतरा नहीं होगा ? सुमेधा पूछ बैठी , नौकरी तो नौकरी है सुमेधा नौकरी तो करनी ही पड़ेगी ना समीर ने आखिरी बाइट लेते हुए उसकी ओर देखकर कहा।
समीर तैयार होने अंदर चले गए। अनाया ने मुझे कहा मम्मी आपने देखा नहीं कल वीडियो, कैसे वो औरत पूरे हॉस्पिटल में शोर मचाते हुए दौड़ रही थी और उसके पीछे-पीछे उसकी भाभी उसे पकड़ने के लिए दौड़ रही थी। मैंने नहीं देखा दिखाओ तो जरा । अनाया मुझे वीडियो दिखाया सचमुच सारी नर्से इधर से उधर दोड़ती भयभीत सी दिखाई दे रही थी और यह स्त्री डराती हुई लोगों को छूने के लिए दौड़ी जा रही थी । मम्मी ये जानबूझकर कर रही है या यह मानसिक रोगी है । कहीं ये जानबूझकर कोरोनावायरस फैलाने का प्रयास तो नहीं कर रही है ? सुरभि ने कहा ।
तू हमेशा गलत ही सोचती है। वह ऐसा जानबूझकर क्यों करेगी क्या उसे मौत का खतरा नहीं ।वह कोरोनावायरस से संक्रमित हैं ।क्या इसका डर उसका मानसिक संतुलन खराब नहीं कर सकता ? अमित ने सुरभि को समझाया ।
क्यों क्या मानव बम नहीं होते ? आतंकवाद फैलाने के लिए क्या मानव बम उपयोग में नहीं लाए जाते ? और तुमने क्या यह वीडियो नहीं देखा क्या जिसमें एक महिला कह रही है कि यह कोरोनावायरस इन की धार्मिक किताब से निकला है और इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा क्या इस भावना के चलते बेखौफ होकर दूसरों को कोरोना फैलाने की कोशिश नहीं कर सकती । अनाया बीच में बोल पड़ी ।
तब समीर तैयार होकर बाहर आ गए और जाने लगे तो मैं अनायास बोल पड़ी कि तुमने दूसरी घटना तो नहीं सुनाई अरे वह मुरादाबाद वाली घटना टीवी पर देखी होगी ना तुम ने ,डॉक्टर को बुरी तरह से घायल कर दिया कुछ लोगों ने वो मेरा ही दोस्त है । साथ एमबीबीएस किया था हमने। कल वही बात चलती रही फोन पर वहां के स्टाफ से और भाभी जी से कंडीशन सीरियस है उसकी
ऐसे लोगों को ठीक करने जाते ही क्यों हैं, क्यों जाना है इनकी बस्तियों में लॉक करके छोड़ दीजिए ना जो लोग इस तरह का बर्ताव करते हैं ।सुरभि आक्रोशित होकर बोली |
डॉक्टर का कर्तव्य मरीज को ठीक करना है। कहते हुए समीर बाहर निकल गए।
मां आपके स्कूल का एरिया कोरोना की चपेट में है वह पूरा कर्फ्यू लगा हुआ है लगभग 90 परसेंट लोग वहीं के हैं। अमित ने बताया।
हाय राम ! ऐसा कैसे हुआ मेरे स्कूल के बच्चे और स्कूल की टीचर्स तो चपेट में नहीं आ गए उसने चिंतित होते हुए कहा ।
मां ऐसे पता नहीं चलता,नाम, नहीं देते हैं केवल मेल - फीमेल और उम्र ही पता चलती है।
कोई बाहरी व्यक्ति वहां धार्मिक स्थल पर ठहरा और उसकी वजह से यह औरों में फैला। अनाया ने बताया तो सुरभि बोल पड़ी लेकिन धार्मिक स्थलों पर इकट्ठे हो ना तो बंद था । इस दौरान फिर कैसे लोग वहां गए।
वही तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया और सब लोग आ गए इस चपेट में । अमित ने बताया , तो सुरभि को मेरी चिंता हो आई मां- अब आप उस एरिया में मत जाना । इन लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं कि संक्रमण किसी की जान ले सकता है। वहां क्यों जाना है, आपको भी कभी खतरा हो गया तो इतनी जल्दी जाने वाला नहीं है कोरोनावायरस। मैं सोच में डूब गई ,इस बार का 2 अंक कितना मनहूस साबित हो रहा था | सब कुछ ठीक चल रहा था ,20 मार्च को मोदी जी के भाषण ने आशंका जगा दी थी | हाँ 20 मार्च 2020 ही तो था उस दिन |
*लोक डाउन 1, लोक डाउन 2 ,लोक डाउन 3, और लोक डाउन 4 .....यह एक लम्बा सिल- सिला था जिसमें से हमें गुजरना था | पहला लोक डाउन सबको अच्छा लगा ,किसीको कोई खास परेशानी नहीं थी |सब लोग बरसों बाद एक सुकून भरा जीवन जी रहे थे कोई आपा - धापी नहीं , कोई शादी-पार्टी नहीं कोई इवेंट ,प्रतियोगिता नहीं कोई मेले-जलसे नहीं | किसी से किसी की होड़ नहीं, कोई प्रतिस्पर्धा नहीं सचमुच दुनियां को जरुरत थी इसकी |हम थक चुके थे इस प्रतिस्पर्धा के युग से हम में से अधिकांश
लोगों को ऐसी शांति चाहिए थी | शादियों में सिर्फ 5 लोग की अनुमति प्रशासन की मिली और बाद में 50 लोगों की |क्या हम सब यही नहीं चाहते थे ? जाने - अनजाने भारतीय शादियाँ प्रदर्शन ,प्रतिस्पर्धा का सबब बन चुकी थीं | कहीं ये मजबूरी थी कि लोग अपने जैसे स्तर के लोगों के अनुकूल समारोह की व्यवस्था करने को विवश थे | जो लाखों रूपए इस प्रकार शादी समारोह में खर्च किये जाते थे अब बच्चों को भविष्य निधि के रूप में दिए जा सकेगें |
5 अप्रैल और दीपोत्सव
पहला लोक डाउन १४ अप्रैल को ख़त्म होने वाला था |इसी बीच प्रधानमंत्री जी ने एक और नया टास्क दीपक जला कर प्रार्थना करने का दिया | घर में बंद लोगों को एक मनोरंजक कार्य मिल गया ,सच उस दिन रात को 9 बजे दीपक तो जले ही ,लोगों ने फटाखे भी फोड़ डाले कोचिंग सिटी कोटा फटाखों की आवाजों से गूँज उठी | इस दिवाली को मनाने में ज्यादा हाथ था, कोटा कोचिंग के छात्रों का ...बच्चे अपने होस्टलों में उब रहे थे | क्लासें बंद थीं , अवसर का खूब लाभ उठा गए | यद्यपि मोदी विरोधियों ने मोदी जी के इस अवाहन पर बड़े सवाल उठाये पर दिवाली से इस माहौल ने एक नई स्फूर्ति भर दी |
लोक डाउन और कोचिंग सिटी कोटा
लोक डाउन हुए दो-तीन हफ्ते गुजर चुके हैं कोविड-19 के चलते पूरा कोटा शहर जैसे सांस रोककर एक ही जगह पर खड़ा हो गया है | अपनी पूरी जीवंतता पर चलता यह शहर दिन को ही नहीं रात को भी जागता है। कण्व ऋषि की यह भूमि शिक्षा का बड़ा केंद्र बन चुकी है जीवनदायिनी चंबल नदी के किनारे बसा यह शहर कभी ऐसे भी उदास खड़ा हो जाएगा सोचा नहीं था, केवल कोटा ही क्यों पूरा राष्ट्र इस समय थम गया था | शिक्षकों की कर्मभूमि थी यहां यहां एलन जैसे बड़े-बड़े कोचिंग इंस्टीट्यूट थे। कोटा की आबोहवा में एक उत्साह था| एक उर्जा थी, ऐसा मुझे बाहर दूसरे प्रदेशों के आने वाले मेरी हमउम्र महिलाओं ने भी कहा था | कभी मंथन किया करती थी , आखिर ऐसा क्यों ? यह शहर इतना जीवंत और युवा क्यों लगता है | इसका कारण मुझे यही समझ में आया कि यह एक ऐसा शहर है जहां सारे युवा बच्चे जिनकी उम्र लगभग 16 से 19 बरस है यहां पर रहते हैं और उन्हीं का उत्साह व एनर्जी सभी लोगों को महसूस होती है | यहां रहने वाले लोग अक्सर अपने आपको उनकी ही तरह की युवा समझते हैं | यहां ऐसे अनेक बुद्धिमान भारत के कोने-कोने से आए हुए शिक्षक रहते हैं | जो एकाग्र चित्त होकर शिक्षा के ढांचे में बड़े-बड़े डॉक्टर और इंजीनियर का निर्माण करते हैं | किसी को किसी की निंदा करने की फुर्सत नहीं है |सभी अपने-अपने काम में लगे रहते हैं और युवा बच्चे जिनका जीवन का सिर्फ एक ही ध्येय है | वे लोग शिक्षा ग्रहण करते हैं |एकाग्र होकर और बचे समय में अपनी उम्र के अनुसार खूब मनोरंजन भी करते हैं।
नए कोटा के यह सारे हिस्से राजीव गांधी नगर ,इंदिरा विहार, महावीर नगर तृतीय ,दादाबाड़ी , ,कुन्हाड़ी के सारे पार्क चंबल उद्यान , चिल्ड्रेन पार्क, सिटी मॉल, नए कोटा के सारे रेस्टोरेंट और होटल अमर पंजाबी ढाबा ,ट्रीट रेस्टोरेंट ,टी कैफे, टेस्ट फॉर मी आदि इन बच्चों की रोनक से जो आबाद रहा करते थे आज बिल्कुल खाली चुपचाप सन्नाटे में स्थिर मौन से हो गए हैं। सारे बॉयज और गर्ल्स हॉस्टल शांत है | इनके द्वार बंद है बच्चे तो यहीं हैं , मगर हॉस्टलों में बंद चुपचाप डरे सहमे से हैं। एक वायरस
ने सबको दहशत में ला दिया है। अपनों से दूर डरे सहमे , जो मिल जाए उसे खाने को मजबूर हैं |कई मैस संचालकों ने मैस भी बंद कर दिए हैं । यद्यपि कोचिंग इंस्टिट्यूट इन्हें दो वक्त का भोजन उपलब्ध करवा रहे है, किंतु वह इनके लिए काफी नहीं, पिज्जा ,बर्गर ,पास्ता, पोहे, कचोरी सब इनके लिए सपनों की बातें हो चुकी हैं | अब दोस्तों से मेलजोल भी नहीं रहा, अब इन्हें अपना घर ,अपने पेरेंट्स याद आ रहे हैं। किसी को खांसी जुकाम भी हो जाए तो कोरोनावायरस का अटैक समझ कर रोने लगता है। उनकी मनोदशा को समझना इतना आसान नहीं है। चंबल अपना नीला आंचल फैलाये मौन बह रही है । समय की गति के साथ जैसे उसे यह सन्नाटे रास आ गए हैं। जल मुर्गीयां बतखें और बगुले वैसे ही जल क्रीडायें कर रहे हैं, जैसे पहले किया करते थे। मछलियों को अब पकड़े जाने का भय नहीं है । चंबल तुम इतनी खामोश क्यों हो ? कुछ बोलती क्यों नहीं ? क्या वक्त का हर फैसला तुम्हें इतनी आसानी से मंजूर है ? सैकड़ों बरसों से तुम इस शहर के इतिहास की साक्षी रही हो ? तुमने इस शहर की कितनी रौनक ,कितनी जीवंतता देखी है ? तुम्हारे किनारे प्रसिद्ध राष्ट्रीय मेले लगते रहे हैं, प्रतिवर्ष होने वाले कितने जुलूस और कितने जलसों कि तुम साक्षी हो ।क्या इस शहर की इस बेनूरी पर तुम्हारा दिल पसीजता नहीं ? बताओ तो क्या पहले जैसे रोनेके फिर से लौटेगी या नहीं ? कहीं हम इस नामुराद सोशल डिसटेंसिंग का हमेशा के लिए शिकार तो नहीं हो जायेगें ? शायद तुम कह रही हो कि जैसे पूरा देश सन्नाटे में है। पूरा देश ही उदास बेरौनक है , और फिर भी गंगा -जमुना भी इसी तरह बह रही हैं ।मैं भी उन्हीं अपनी बड़ी बहनों का चुपचाप अनुसरण कर रही हूं। मंदिरों में भगवान भी बंद हैं। स्थिर मौन चुप । कोचिंग स्टूडेंट्स के फेवरेट राधा कृष्ण मंदिर पर भी ताले जड़े हैं| जैसे वो कीसी से मिलना ही नहीं चाहते । क्या इंसानों की गलतियां क्षमा के योग्य नहीं रही या उनके पास आज के हालातों के लिए कोई जवाब नहीं है ।
शायद प्रकृति के विधान के आगे मजबूर हो गए हैं।
लोक डाउन सेकंड किसी को रास नहीं आ रहा था | हालात बदलने लगे थे । लोगों को समझ आने लगा था कि कोरोनावायरस कोई थोड़ी दिन रहकर जाने वाला संकट नहीं है । यह लंबे समय तक चल सकता है। दूसरे राज्यों में काम करने वाले मजदूरों और फैक्ट्रियों में काम करने वाले कामगार एक बेचैनी महसूस करने लगे थे । वह लोग घर लौट जाना चाहते थे ।कोचिंग सिटी कोटा में बाहर के लाखों छात्र-छात्राएं रह रहे थे। बच्चों का मन पढ़ने में नहीं लग रहा था | वैसे भी क्लासेस बंद हो चुकी थी, कुछ कोचिंग में ऑनलाइन कोचिंग चल रही थी | पर बच्चों का मन अपने घर जाने के लिए बेचैन था |अधिकांश में मैस संचालकों ने मैस बंद कर दिए थे | बच्चे स्टूडेंट छात्र-छात्राएं बेचैन होने लगे थे | ये आम दिनों की कोई छुट्टियां नहीं थीं | हॉस्टल में बंद बच्चे अनेक परेशानियों से गुजर रहे थे | कोटा के स्वयंसेवी संस्थाओं ने पूरा जिम्मा संभाल लिया था और स्वयं कोचिंग संस्थान भी बच्चों की जरूरतें पूरी करने में लगे हुये थे |कोटा की सबसे बड़ी कोचिंग इंस्टीट्यूट में बच्चों के लिए भोजन बनकर पैकेट प्रोवाइड किए जा रहे थे | फिर भी हर बच्चे तक हर छात्र और छात्रा तक उनका पहुंच पाना संभव नहीं था । सुरभि कोचिंग इंस्टिट्यूट में टीचिंग का कार्य करती रही थी |लोक डाउन के बाद वह घर में ही थी | क्योंकि उसे सिर्फ ऑफलाइन कोचिंग पढ़ाने में ही मजा आता था |लंबे समय से छात्र-छात्राओं के बीच रहने के कारण वह बच्चों से जुड़ी हुई थी| कई ग्रुपों के द्वारा और गाहे-बगाहे यह बच्चे उसे फोन भी करते रहते थे | सुनंदा के बच्चे संचिता और अनिकेत भी कोचिंग के स्टूडेंट थे इनके माध्यम से सुमेधा को निरंतर कोटा के छात्र-छात्राओं के बारे में जानकारी मिलती रहती थी ।
सुमेधा आज ऊपर का कमरा साफ करने आई थी | अमित और अनाया का कमरा भी ऊपर ही था | सामने वाला पूरा पोर्शन खाली पड़ा हुआ था | आज वह उसे साफ कर देना चाहती थी स
| समीर के लिए क्योंकि लंबे समय से कोरोना के मरीजों के बीच काम करने के बाद समीर को अब होम क्वॉरेंटाइन किया जाने वाला था और वह नहीं चाहती थी कि वह अब भी वहीं सर्वेंट क्वार्टर में रहे इसीलिए सफाई करने ऊपर आ गई थी | तभी सुरभि उसके पास आई ,' मम्मी कितना बुरा लग रहा है | कोचिंग स्टूडेंट्स को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । सरकार आख़िर समझती क्यों नहीं | बच्चों को को अपने घर पहुंचाने का कोई इंतजाम क्यों नहीं कर रही है। यह कोई आम दिन नहीं है | कोरोनावायरस का खतरा चारों तरफ मंडरा रहा है | आखिर 16 -17 साल के इन बच्चों से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं| वह बेहद डरे और सहमे हैं, अगर किसी को जरा भी खांसी जुकाम हो जाता है तो वह कोरोना समझ कर रोने लगते हैं |आख़िर बच्चे ही तो ठहरे। मां अब इस तरह मैं घर में हाथ पर हाथ रखे बैठी नहीं रह सकती |मुझे अब जाना होगा इन बच्चों के बीच में |'
'सुरभि ! ऐसे हालातों में तुम बाहर कैसे जा सकती हो ,चारों तरफ इस खतरनाक वायरस का खतरा मंडरा रहा है, कैसे जाओगी तुम!' सुमेधा सुरभि के निर्णय से विचलित हो गाई थी | "मां में बच्चों के लिए कुछ करना चाहती हूं। वे कितने मायूस हैं, बेसहारा और अकेला महसूस कर रहे हैं अपने-आप को ,आप चिंता ना करिए , मैं मास्क चेहरे पर लगाकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए, यह सब काम करूंगी| आखिर इस वायरस से डरकर हम कब तक घर में बैठे रहेंगे।" तभी सुनंदा वहां पर आ गई बहुत दिनों से वह इधर नहीं आई थी| रोज मिलने वाले वे लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते करते दूर-दूर होते जा रहे थे । "क्या हुआ सुनंदा बहुत दिनों बाद दिखी हो ।" 'हां ! दीदी जब से यह कोरोनावायरस का संकट हमारे सामने आया है| हम तो मिलना ही भूल गए| बहरहाल दीदी मैं ही कहने आई हूं आप समझाओ ना इन्हें,,, सुरभि के साथ अनिकेत और संचिता भी जिद कर रहे हैं छात्रों की मदद करने के लिए। उसने अपने चेहरे का मास्क ठीक करते हुए कहा।
जाने दे सुनंदा ठीक ही तो कह रहे हैं |आखिर बच्चे कहां तक इस वायरस से डर कर बैठे रहेंगे | मैं स्वं अभी सुरभि को यही समझा रही थी | पर अब खुद उसके तर्कों से सहमत हूं ,आखिर इतने बच्चे बाहर के कोटा सिटी में रह रहे हैं और वह किन परेशानियों का सामना कर रहे हैं, अगर हमारे बच्चे उनकी मदद करना चाहते हैं, हमें करने देना चाहिए | बच्चे स्वयं समझदार है अपनी सुरक्षा वे खुद रखेंगे। और उस दिन से शुरू हो गया सुरभि अनिकेत और संचिता का सोशल वर्क। सुरभि ने कई ग्रुपों को जोड़कर एक बड़ा ग्रुप बच्चों का बना लिया था। कोई भी बच्चा किसी भी परेशानी में हो तो तुरंत ग्रुप में मैसेज डालें। यह लोग कोचिंग इंस्टिट्यूट में बनने वाले खाने नाश्ते और शाम के भोजन को बच्चों तक पहुंचा रहे थे |
इसके अतिरिक्त उन्हें जरूरत की चीजें भी पहुंचा रहे थे |
कभी-कभी घर से भी सैंडविच और नाश्ता बना कर ले जाते। यूपी हॉस्टल में रहने वाला दीपक संचिता का दोस्त था |वैसे तो इस हॉस्टल का नाम कुछ ओर ही था | पर यूपी के अधिकांश बच्चे होने के कारण इसका नाम ही बच्चों ने यूपी हॉस्टल डाल दिया था | यूं तो इस हॉस्टल के अधिकांश बच्चे संचिता के कक्षा के छात्र ही थे | पर इन सब में सबसे अजीज दोस्त था दीपक। पश्चिम बंगाल बिहार , झारखंड छत्तीसगढ़ पंजाब गुजरात महाराष्ट्र आदि सभी राज्यों के बच्चे यहां पर शिक्षा ग्रहण कर रहे थे | सच में कोटा, कोटा नहीं मिनी भारत बन चुका है और यह मिनी भारत के बच्चे कोटा की आबोहवा में ऐसे रच- बस जाते थे कि जब यहां से जाते थे तो इन्हें कोटा की यादें भुलाए नहीं भूलती थी |चंबल का पानी और यहां की आबोहवा इन्हें ऐसी रास आती थी | किंतु आज इन के दिलों में असुरक्षा का भाव था, आज इन्हें कोटा वासियों की सहायता की जरूरत थी जिसमें कोटा के लोग पीछे नहीं रह रहे थे | वह बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे थे |पर अपना घर तो अपना घर होता है |यह बच्चे आज घर जाने को बेताब थे। बिहार की अंजलि अनिकेत की मित्र बन चुकी थी। यह स्वाभाविक ही था |कठिन पढ़ाई और मेहनत के बीच इन बच्चों के लिए दोस्त और दोस्ती ही एक बड़ा सहारा होते थे और किशोर वय में यह स्वाभाविक था| कहीं ना कहीं अपनों की कमी महसूस करते इन बच्चों का कोई न कोई दिल का रिश्ता बन ही जाता था| जिंदगी भर एक प्यारी सी याद बनकर शायद उन्हें हमेशा याद आता हो, क्योंकि इस उम्र के दिल के रिश्ते बस दिल के रिश्ते ही बनकर रह जाते हैं | अंजाम तक नहीं पहुंचते। या यूं कह लीजिए कि यह उम्र नहीं होती रिश्तो को अंजाम तक पहुंचाने की मंजिल की तलाश में यह अपनी पढ़ाई यहां पूरी करके अपनी राह पर अलग-अलग निकल जाते हैं| हाँ जिंदगी भर इन रिश्तों को अपने दिल में महफूज जरूर रखते होंगे क्योंकि इस उम्र का प्यार भुलाए नहीं भूलता |
क्रमशः- लोक डाउन एंड कोचिंग सिटी कोटा भाग -3 में