लौट जाओ शैली... - 3 - अंतिम भाग Dr Vinita Rahurikar द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लौट जाओ शैली... - 3 - अंतिम भाग

भाग-3

जिम की वार्षिक पार्टी में शैली ने फिर विनीत के साथ खूब एंजॉय किया। विनीत के बेटे की तबीयत खराब होने की वजह से उसकी पत्नी नहीं आ पाई। शैली और विनीत देर तक डांस करते रहे। उस रात देर तक विनीत शैली के घर पर भी रहा। शैली का पिछला सारा मलाल धुल गया।

शैली के विवाह न करने की बात से थक कर आखिर उसके माता पिता ने उसके छोटे भाई का भी विवाह कर दिया। शैली विवाह में शामिल होने गई। वहीं कहीं पहली बार शैली के अंदर एक कसक उठी। दोनों बहने अपने अपने पति बच्चों में व्यस्त थी। माता-पिता नाती, नातिन, दामादों की खातिरदारी और नई बहू को लेकर उनमें ही व्यस्त और उत्साहित थे। कुछ वर्षों पहले जब शैली घर आती थी तो सब उसके आसपास मंडराते रहते थे। चारों ओर उसकी पूछ परख होती रहती। पर आज सब अपने में मस्त और व्यस्त थे। शैली अपने आपको बहुत उपेक्षित सा महसूस कर रही थी। सब उससे कटे-कटे से व्यवहार कर रहे थे। कुछ एक लोगों ने तो उसकी ओर इशारा करके स्पष्ट शब्दों में कहा कि हमने तो सुना है कि यह अपने जिम के मालिक के साथ बिना शादी के रहती है।

शैली का मन खराब हो गया। वह हफ्ते भर के लिए आई थी मगर तीन दिनों में ही वापस चली गई।

दिन महीने गुजरते गए। आठ-दस महीने बाद ही पूनम की भी शादी हो गई। उसने जिम की नौकरी छोड़ दी। पूनम उम्र में शैली से छोटी थी। शैली को थोड़ा अखरा। पूनम ने अपनी शादी में किसी को भी नहीं बुलाया था। ना ही शादी का कार्ड दिया था। जिम में कोई नहीं जानता था कि उसकी शादी कहां हुई है, किससे हुई है। जिम पर शैली की एकमात्र सहेली पूनम ही थी जो उसकी राजदार थी और जिससे वह अपने दिल की बात कह देती थी। अब शैली को अकेलापन सा लगता।

इसी तरह दो-तीन साल गुजर गए। विनीत इस बीच एक और बेटे का बाप बन गया था। उसकी पत्नी ने अपने सास-ससुर को अपने पास बुलवा लिया था और बच्चों को उनके सुपुर्द कर के वह जिम आने लगी थी। धीरे-धीरे उसने तीनों-चारों जिम का काफी कुछ काम संभाल लिया था। जब तक विनीत जिम में होता उसकी पत्नी उसके साथ केबिन में बैठी रहती। अतः शैली को विनीत से बातचीत करने का मौका ही नहीं मिल पाता। उसके और विनीत के बीच बस काम को लेकर औपचारिक बातचीत ही हो पाती थी। विनीत उसके घर भी नहीं आ पाता था। शैली मन मसोस कर रह जाती थी। यूं भी वह 32 वर्ष की हो चुकी थी और विनीत की नजरों में अपना आकर्षण भी खो चुकी थी। कसरत के कारण बदन भले ही चुस्त-दुरुस्त था लेकिन चेहरे पर उम्र का असर दिखाई देने लगा था।

और वैसे भी अभिनीत का मन रंजना नाम की नई लड़की में लगा हुआ था। रंजना 22 साल की चंचल, शोख, चुलबुली और आकर्षक युवती थी। विनीत उसके साथ वही कहानी दोहरा रहा था जो उसने कभी शैली के साथ की थी। शैली को रंजना को देखकर अफसोस होता और तरस आता कि इसका भी वही हश्र होगा जो मेरा हुआ। पर उसे पता था कि रंजना को अगर वह समझाने की कोशिश करे भी तो उसे समझ में नहीं आएगा जैसे उस समय शैली को कुछ समझ में नहीं आया था। चमक-दमक ग्लैमरस लाइफ में उलझी ये उम्र ही ऐसी होती है।

लेकिन शैली को बहुत दुख होता जब विनीत उसके काम में गलतियां निकालता था और उसे झड़प देता। विनीत की डांट से शैली टूट जाती।

तभी एक दिन मां का फोन आया कि उन्होंने बहू की ससुराल तरफ से किसी लड़के का फोटो कोरियर से उसे भेजा है। लड़का 38 साल का है, तलाकशुदा है पर अच्छा यह है कि कोई बाल बच्चा नहीं है। मां ने साफ-साफ शब्दों में उसे कह दिया कि अब भी अगर उसने शादी के लिए मना कर दिया तो फिर वह शैली से कोई रिश्ता नहीं रखेंगे ना ही उसके विवाह के लिए प्रयत्न करेंगे। यह लड़का भी शैली से सिर्फ इसलिए विवाह करने के लिए तैयार हुआ है क्योंकि उसकी परिस्थिति साधारण मध्यमवर्गीय ही है।

तीसरे दिन शैली को लड़के का फोटो मिल गया। साधारण नैन नक्श वाला सीधा साधा सा कुछ स्थूल सा आदमी था। शैली ने फोटो टेबल पर रख दिया। वह बहुत आहत थी कि अब यही बचा है उसकी किस्मत में।

दूसरे दिन शैली किसी काम से बाजार गई तो अचानक पीछे से आवाज आई

"अरे शैली तुम?"

शैली ने पीछे देखा तो पूनम को देखकर एक सुखद आश्चर्य में डूब गई।

"कितने सालों बाद मिली हो तुम तो मुझे एकदम से भूल ही गई।" शैली ने एक मीठी शिकायत की।

"क्या करूं घर गृहस्ती में उलझ गई थी और तुम कैसी हो? जिम पर सब कैसे हैं?" पूनम ने पूछा।

"सब ठीक है..." शैली कहते-कहते अचानक रुक गई। सामने से अचानक आकाश एक 3-4 साल के लड़के को गोद में लेकर आया और शैली पर एक उपेक्षित सी उड़ती हुई निगाह डालकर पूनम से बोला-

"जरा इसे पकड़ो मैं सामान गाड़ी में रख दूं। यह और घूमने की जिद कर रहा है। मैं इसे ले जाता हूं।" कहते हुए आकाश ने बच्चे को पूनम की गोद में दिया और पास खड़ी चमचमाती बड़ी कार का गेट खोल कर सामान की थैलियां रखकर बच्चे को लेकर वापस चला गया।

अब शैली को समझ में आया कि पूनम ने अपनी शादी में किसी भी जिम वाले को क्यों नहीं बुलाया था।

"मैं जानती हूं कि तुम्हारे मन में कई सवाल उठ रहे होंगे। आकाश का रिश्ता मेरे मौसा जी के भाई लेकर आए थे मेरे लिए। तुमने उसे छोड़ने का निर्णय बड़ी जल्दी किया शैली। आकाश की बहनों को अच्छे नंबरों की वजह से स्कॉलरशिप मिल गई और साथ ही पार्ट टाइम नौकरी करके उन्होंने अपनी पढ़ाई का खर्च स्वयं ही उठाया। पढ़ाई पूरी होने पर अपने कॉलेज में पढ़ने वाले अपनी पसंद के लड़कों से उनका विवाह हो गया। आज वह सुखी संपन्न है अपने-अपने परिवारों में। उनकी पढ़ाई और दहेज के लिए रखे रुपयों और कुछ लोन लेकर हमने दो साल पहले एक पॉश कॉलोनी में बंगला खरीद लिया और दो-दो गाड़ियां भी। आज मेरे पास प्यार करने वाला पति, स्नेह लुटाने वाले सास-ससुर ननदे और प्यारा सा बेटा, घर, गाड़ी, संपन्नता सब कुछ है। आकाश तो मुझे जान से ज्यादा प्यार करता है।" पूनम ने बताया।

शैली के अंदर से कुछ टूट गया। उसने गौर से पूनम को देखा, कीमती सूट, हाथ में हीरे की अंगूठियां, हीरे के टॉप्स, सोने की चूड़ियां उस पर उसके चेहरे का लावण्य उसके सुखी होने की गवाही दे रहा था। सचमुच सात साल में उसे उम्र छू भी नहीं गई पाई थी वरन वह और अधिक निखार गई थी। आकाश भी तो पहले से भी अधिक निखरा और आकर्षक लग रहा था। और उसका बेटा... शैली के कलेजे में एक हूक उठी। वह मूर्खता नहीं करती तो वह प्यारा सा बच्चा आज उसका होता। वह थोड़ा धीरज रखती सामंजस्य करती तो आज यह सारा ऐश्वर्य उसका होता।

"तुम्हारी स्थिति देखकर पता चलता है कि तुमने अभी भी विवाह नहीं किया है। कब तक ऐसी रहोगी। लौट जाओ शैली लौट जाओ। इससे पहले कि सब कुछ हाथ से निकल जाए।" और पूनम उससे विदा लेकर अपने बच्चे और आकाश के पास चली गई।

शैली भौचक्की सी थोड़ी देर तक खड़ी रह गई फिर थकी हुई सी घर लौट आई। आखों के सामने रह-रहकर पूनम और आकाश के सुखी संतुष्ट चेहरे घूम जाते। शैली देर तक रोती रही। यह उसने अपने जीवन के साथ क्या खिलवाड़ कर दिया।

शाम को जब वह थोड़ा संयत हुई तब उसने मां को फोन लगाया "मां मैं घर वापस आ रही हूं। तुम उस लड़के को हां कह दो मैं शादी करने को तैयार हूं।"

आकाश जैसे सुंदर जीवनसाथी की बजाए अब यही तलाकशुदा उसका भविष्य था।

डॉ विनीता राहुरीकर