अनैतिक - २५ suraj sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अनैतिक - २५

तू नहीं चलेगा साथ?

नहीं अंकल, आज बहोत काम है, रीना है ना।। वो संभाल लेगी. कहना तो ये भी चाहता था की निकेत उसका पति है तो उसे ले जाओ पर माँ की परवरिश ने रोक लिया. वो चले गये..मै भी अन्दर आ गया. अब मेरा मन यहाँ नहीं लग रहा था..मै यहाँ से दूर फिर जर्मनी जाना चाहता था और फिर कभी कशिश की सूरत नहीं देखना चाहता था..तभी मेरे दिमाग में एक विकल्प आया. दोपहर का वक़्त था।।

माँ खाना बना रही थी और पापा, मै डायनिंग टेबल पर माँ की राह देख रहे थे, मुझे पता था अगर मुझे मेरा प्लान मंजिल तक पहोचाना है तो पापा को पहले मनाना पड़ेगा और फिर मैंने बात शुरू की..

पापा, एक बात बोलनी थी आपसे

हाँ, छोटी बोल ना

पापा वो अपनी खेत वाली जमीन तो खाली ही पड़ी है, क्या अब हम उसमे खेती कर सकते है?

नहीं बेटा, वो रेसिडेंट लैंड बन गयी, पूरी बंजर हो चुकी है, पर तू ये सब क्यूँ पुछ रहा?

एक बात बोलू, आप मारोगे तो नहीं..

ऐसा क्या पूछने वाला है तू, बचपन से कभी मैंने मारा है तुझे?...

उसे हम बेच क्यूँ नहीं देते?

अब पापा का पूरा ध्यान मेरी तरफ अ गया था, उन्होंने टीवी बंद कर दी और मेरी और देखते हुए कहा, क्या? क्या कहा तूने..? इतने जोर से पापा ने मुझे स्कूल में फेल होने पर भी नहीं चिल्लाया था, उनकी आवाज़ सुन माँ भी किचेन से बाहर आ गयी.. क्या हुआ?

पापा ने कहा, नहीं कुछ नहीं...आओ जल्दी फिर साथ में खाना खाते है..माँ फिर किचेन में चली गयी, पापा ने खुर्सी मेरे नजदीक लायी और धीरे से कहा, "दिमाग तो नहीं ख़राब हो गया है तेरा? तू जानता भी है वो हमारी खानदानी जमीन है, तेरे दादा ने ये जमीन बचाने के लिए बीमारी से लड़ते खुदकी जान दे दी, पर जमीन बेचीं नहीं और अब तू जमीन ... पर क्यूँ? तू ये जमीन क्यूँ बेचना चाहता है..

तब तक माँ पूरा खाना लेकर डायनिंग टेबल पर आ चुकी थी माँ ने भी कहा..क्या अपनी जमीन बेचना चाहता है तू? क्यों? क्या हुआ..

मुझे लगा ये ही सही वक्त है बात करने का अगर अभी नहीं कर पाया तो फिर कभी नहीं कर पाउँगा ...माँ ने सबको खाना परोसा और फिर मै कहने लगा..

मै जानता हूँ खानदानी जमीन है, पर ऐसी ज़मीन के टुकड़े का क्या फायदा जो किसी के काम भी ना आये, अगर दादाजी ने तभी उसे बेचकर अपने बीमारी का इलाज कराया होता तो शायद आज वो हमारे साथ होते, क्या दादाजी के जैसे आप को भी ये ही लगता है पापा की एक जमीन की कीमत इन्सान की जान से ज्यादा होगी?

माँ पापा मेरी बात ध्यान से सुन रहे थे, और पापा ने कहा, तू कहना क्या चाहता है खुलकर बोल..और क्यूँ बेचे उसे? क्या तुझे पैसे की ज़रूरत है बोल मुझे,

माँ ने कहा सच सच बता बात क्या है...

अब मैंने खाने की प्लेट साइड में की और माँ पापा के नजदीक जाकर कहा,

"देखो मै जानता हूँ की आपको वो जमीन से प्यार है पर ऐसा तो नहीं न की आपका बचपन ही वही गुजरा हो, रहते तो हम यही थे, है और रहेंगे. लोग तो अपना घर तक बेच देते है और मुझे पैसे की ज़रूरत नहीं है, आप दोनों के आशिर्वाद से मेरे पास इतना पैसा है की मै आपको ऐसी एक और ज़मीन खरीद कर दे सकता हूँ...

अब माँ पापा थोड़े शांत हुए..पापा ने कहा तो फिर, बेटा, हमें बता तेरे दिमाग में चल क्या रहा है?

माँ, पापा, मै चाहता हूँ अब आप दोनों भी मेरे साथ जर्मनी चलिए, हम वही एक घर लेगे और ख़ुशी से रहेंगे, हाँ जब आपको अपने घर की याद आये तो २-३ साल में एक बार हम आयेगे अपने इस घर में, आपको जमीन नहीं बेचनी ठीक है मत बेचो पर हमारे जाने के बाद पीछे उसका ध्यान कौन रखेगा, घर तो हम अंकल(रीना के पापा) के भरोसे छोड़कर जा सकते है..

मैंने मेरी बात पूरी की, कुछ देर सोचने के बाद माँ ने कहा,

"नहीं, हम यही रहेंगे, कही नहीं जायेंगे

माँ, मै जानता हूँ आपको इस घर से, यहाँ के लोगो से अपनापन हो गया है, पर मेरा यकीन मानिये।। जर्मनी में भी आपको भारत के लोग मिलेंगे, आपको वाहा बिलकुल अकेलापन नहीं लगेगा

पापा ने कहा, " पर एकदम से तुझे क्या हो गया? तू हमें क्यों ले जाना चाहता है?

पापा मै अकेला नहीं रह सकता, मुझे आप दोनों के साथ रहना है, आप दोनों की उम्र बडती जा रही है, भगवान ना करे पर अगर किसे कुछ हो गया तो कोई हॉस्पिटल भी ले जाने वाला नहीं है..

पर बेटा हमें वह की सिटिज़नशिप कैसे मिलेगी?

वो, मै देख लूँगा पापा, ५-६ साल जर्मनी में रहने के बाद आपको मिल ही जाएगी, और मेरा देश, मेरा घर, मेरा गाँव, मुझे भी याद आता है पर पापा मुझे भी तो कमाने के लिए ये सब को छोड़ कर ही जाना पड़ा था

माँ पापा ने एक दुसरे की ओर देखा और कुछ सोचकर बोले ठीक है हम सोचते है और मै बताता हूँ तुझे १-२ दिन में.

वो दोनों रूम में चले गये..