अनैतिक - १७ suraj sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अनैतिक - १७

शाम होने आई थी, लॉक डाउन के वजह से पापा भी घर पर ही थे ...माँ, पापा, कशिश तीनो बाते करते, हँसी मजाक करते, मुझे रुम में आवाज़े आ रही थी और ये पहली बार था जब मुझे खुद की जॉब पर गुस्सा आ रहा था की मै बाहर उनसे बात भी नहीं कर सकता था.. मैंने २-३ मीटिंग्स ख़त्म की और माँ को पता था मुझे हर ३-४ घंटे में भूक लगती है. माँ ने मुझे नाश्ता रूम में ही लाकर दिया, मै काम में पूरी तरह बिजी था की वक़्त का पता ही नही चला।। कोरोना के वजह से बहोत एम्प्लोयेस काम पर नहीं आ सक रहे थे तो जो थे उन पर ही ज्यादा काम आ जाता ..

घर की आवाज़े कॉल पर ना आये इसलिए मै रूम का दरवाज़ा हमेशा बंद रखता, लैपटॉप देख देख कर मेरी आँखों में पानी आने लगा था, मैंने सोचा थोड़ी देर आँख बंद करके लेट जाता हूँ, तभी मुझे रूम में किसीकी आवाज़ सुनाई दी, नाश्ते की खाली प्लेट मैंने मेरे पास ही रखा था, शायद माँ आयी होगी।। नाश्ते की प्लेट लेने, मैंने ये सोचकर बंद आँखों से हात पकड़ लिया,

बहोत सीर दर्द कर रहा है माँ, थोडा दबा दो ना, कहकर मै जैसे ही आँख खोली कशिश थी...वो मेरे इतने करीब थी, उसका हात मेर हातो में था..मैंने झट से उसका हात छोड़ दिया, किसी भी वक़्त कोई भी रूम में आ सकता था..उसने भी हात छुटते ही जल्दी से बाहर चली गयी..मुझे खुद पर शरम आने लगी..ये क्या कर दिया मैंने ..पर गलती से हो गया था, मैंने कशिश को सॉरी का मेसेज भेजा..उसने सिर्फ रिप्लाई में एक स्माइली भेजी हँसने वाली ..मुझे थोड़ी तसल्ली हुई की उसने गलत मतलब नहीं निकाला.

पर उसके हात का वो स्पर्श मै अब भी महसूस कर रहा था, शायद और एक बार मुझे उसका हात पकड़ना था..बहोत बाते करना था खैर मैंने खुदको फिर से सपनो की दुनिया में जाने से रोका और जल्दी से काम पूरा करके हम सब खाना खाने बैठ गये, मेरी शिफ्ट भी ख़त्म हो गयी थी..

आज खाना कशिश ने बनाया है, माँ ने कहा..

अरे वाह इसीलिए खाने का टेस्ट रोज से अच्छा आ रहा है कहते हुए पापा ने मुहे आँख मारी..और कशिश और मै हँसने लगे. मै उसके बाजू वाली खुर्सी पर बैठा था..मै अब भी कुछ लेने के बहाने स उसे स्पर्श महसूस करता था शायद वो ये बात समाज गयी थी पर उसे अब बुरा नहीं लग रहा था, और तभी डोर बेल बजी..

निकेत तू? पापा ने कहा

हाँ वो कशिश को लेने आया हूँ..

मेरा मन फिर निराश हो गया..कितना खुश था पुरे दिन और अब..पर वो पत्नी थी उसकी..पर शायद कशिश की जाने की इच्छा नहीं थी वो मुझे देख रही थी मैंने बिना देरी किये कह दिया..

भैय्या आ जाओ आप भी, यही खाना खालो..

नहीं, वो घर पर दोस्त आने वाले है तो ...

माँ कभी कभी ऐसी बाते करती की मुझे लगता सच में माँ को जादू की झप्पी दे दू, माँ ने कहा

"अरे बेटा तेरे दोस्त आयेंग तो तू कशिश को क्यों ले जा रहा है? वो अकेली तुम लोगो के बिच क्या करेगी?..वैसे भी अभी तेरी माँ का कॉल आया था की कशिश को तबियत थोड़ी ख़राब है तो उसका ध्यान रखना...रहने दे उसे यहाँ.

.मै समाज गया माँ भी कशिश को उसके साथ नहीं भेजना चाहती थी..

निकेत चुपचाप चला गया..हमने चैन की सांस ली पर ऐसा कब तक चलता कभी ना कभी तो कशिश जाना ही था निकेत के पास. हम सबने खाना खाया सब चुपचाप थे मैंने सोचा थोडा माहोल बदलते है, मै अन्दर से लूडो ले आया..हम चारो खेलने लगे, फिर पापा मेरे रूम में आ गये और कशिश माँ के साथ सोने चली गयी...शानदार दिन था ये मेरे लिए. जिसे चाहता था वो मेर इतने करीब थी पर मै कुछ कर नहीं सकता था ये मेरी मज़बूरी थी या फिर मर्यादा..ऐसी ही पहला दिन गुजरा..

दूसरे दिन हर रोज की तरह मै आराम से उठ कर बिना टी शर्ट ही रूम से बाहर आ गया ..आदत हो गयी थी भूल गया था की घर में कशिश भी है, मैंने मुह पर पानी मारा और हॉल में आ गया पर ना माँ थी नाही पापा ..मेरे सामने सिर्फ कशिश थी अब हम दोनों पुरे घर में अकेले थे ..मै उसे पूछना चाहता था की माँ पापा कहा गये है पर पहले टी शर्ट पहनना सही समझा..मै टी शर्ट पहनकर फिर हॉल में आया उसने मेरे लिए कॉफ़ी बनाकर टेबल पर रख दी थी ..मैंने बिना उसे देखे पूछा..

माँ पापा कहा गये है?

वो मंदिर गये है, आ जायेगे अभी..

मैंने मन में सोचा किसे जल्दी है आराम से आने दो पर उसे नहीं बता सकता था...हम चुपचाप टीवी देखने लगे